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‘गौरा वास्तव में बहुत प्रियदर्शन थी।’ -कथन के आधार पर गौरा के बाह्य सौन्दर्य की विशेषताएँ लिखिए।

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गौरा के पुष्ट लचीले पैर, भरे पुढे, चिकनी भरी हुई पीठ, लम्बी सुडौल गर्दन, निकलते हुए छोटे-छोटे सग। भीतर की लालिमा की झलक देते हुए कमल की दो अधखुली पंखुड़ियों जैसे कान। लम्बी और अन्तिम छोर पर काले सघन चामर का स्मरण दिलाने वाली पूँछ। सारा शरीर साँचे में ढ़ला-सा लगता था। उसके गौर वर्ण में विशेष चमक थी। मानो रोमों पर अभ्रक का चूर्ण मल दिया गया हो। उसकी काली बिल्लौरी आँखों को तरल सौन्दर्य तो दृष्टि को बाँध लेता था। साँचे में ढले हुए मुख पर आँखें बर्फ के नीचे जल के कुण्डों के समान लगती थीं। आँखों में एक आत्मीय विश्वास भरा था। ऐसा सुन्दर उसका पुष्ट सौन्दर्य था। वास्तव में वह प्रियदर्शन थी।



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