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‘किश्त क्रय पद्धति’ में आपको बाजार का कौन-सा रूप दिखाई देता है? क्या यह पद्धति ग्राहक के हित में  है?

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किश्तों में माल बेचने की आधुनिक बाजारू व्यवस्था में बाजार का मायावी रूप ही दिखाई देता है। यह उपभोक्तावादी व्यवस्था का ही एक रूप है। इसमें ग्राहक का हित कदापि नहीं है। हाँ, ग्राहक के हित का शोषण अवश्य है। यह छद्म शोषण है, जिसकी जेब में पैसा नहीं है, उसे भी इस पद्धति द्वारा अनावश्यक वस्तु खरीदने के लिए प्रेरित किया जाता है। इससे ग्राहक को ऋणग्रस्त होकर हानि उठानी पड़ती है। इसका उद्देश्य ग्राहक का हित नहीं है। इसके द्वारा उत्पादक को ही लाभ मिलता है। उत्पादक का माल बिक जाता है तथा फाइनेन्सर को ब्याज का लाभ मिलता है। ग्राहक की तो जेब ही कटती है।



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