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क्या हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि जो लोग ऐसे जनसंहार की योजनाए बनाएँ, अमल करें और उसे समर्थन दें, वे कानून के हाथों से बच न पाएँ? ऐसे लोगों को कम-से-कम राजनीतिक रूप से तो सबक सिखाया ही जा सकता है।

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भारत में धर्म, जाति व सम्प्रदाय के नाम पर अनेक बार साम्प्रदायिक दंगे हुए तथा देश की शान्ति और व्यवस्था पर प्रश्न चिह्न भी लगा। इन साम्प्रदायिक दंगों के पीछे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से विभिन्न राजनीतिक दलों का हाथ रहा है। यह दल अपने राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति हेतु दुष्प्रचार करते हैं जिसमें जनसामान्य इनके बहकावे में आकर गलत कदम उठाते हैं। भारत में सन् 1984 के सिक्ख दंगे हों, सन् 1992 की अयोध्या की घटना हो या सन् 2002 में गुजरात का गोधरा काण्ड, इन सभी चटनाओं के पीछे राजनीतिक दलों की स्वार्थपूर्ण नीति रही है।
इस प्रकार ये सभी घटनाएँ हमें आगाह करती हैं कि राजनीतिक उद्देश्यों के लिए धार्मिक भावनाओं को भड़काना खतरनाक है। इससे हमारी लोकतान्त्रिक व्यवस्था को खतरा उत्पन्न हो सकता है, अतः यह जरूरत है कि ऐसी घटनाओं को रोका जाए। इन घटनाओं को रोकने के लिए आवश्यक है कि ऐसे राजनीतिक दल व उनके नेतृत्वकर्ता जिनका आपराधिक रिकॉर्ड रहा है या साम्प्रदायिक दंगों में लिप्त रहे हैं उन पर चुनावी प्रक्रिया में भाग लेने पर आजीवन प्रतिबन्ध लगा दिया जाना चाहिए।



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