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लेखक ने मनुष्य की भावनाओं को विचित्र क्यों बताया है?

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मनुष्य के मन को समझ पाना बहुत मुश्किल है। कभीकभी जब उसके साथ कोई नहीं होता तब निर्जन एकांत में भी वह स्वयं को अकेला अनुभव नहीं करता। उस एकाकीपन में भी उसे अपनेपन की अनुभूति होती है। इसके विपरीत कभी-कभी सैकड़ों लोगों के बीच होकर भी वह सूनापन महसूस करता है। उसे सबकुछ पराया, अपनत्वहीन लगता है। मनुष्य-मन की इन्हीं अटपटी स्थितियों के कारण लेखक ने उसकी भावनाओं को विचित्र बताया है।



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