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'ममता’ कहानी के आरम्भ में ममता तथा उसके पिता चूड़ामणि के बीच हुए वार्तालाप को अपने शब्दों में लिखिए।

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ममता के पिता चूड़ामणि दोबारा ममता के कमरे में आए तो उनके साथ दस सेवक चाँदी के थालों में कुछ लिए आए। मंत्री के संकेत पर वे थालों को भूमि पर रखकर चले गए। ममता ने पूछा कि ये क्या है तो चूड़ामणि ने थालों पर ढका पर्दा हटा दिया। उसमें रखी स्वर्ण-मुद्राएँ चमकने लगीं। ममता के पूछने पर चूड़ामणि ने कहा कि यह उसके लिए उपहार हैं।

ममता ने पूछा कि इतना स्वर्ण कहाँ से आया और इसका वे क्या करेंगे? चूड़ामणि ने कहा-यह भविष्य के लिए है। इस सामन्ती वंश का पतन निश्चित है। तब मन्त्री पद नहीं रहेगा। उस समय इस धन की जरूरत होगी।

ममता अपने पिता से सहमत नहीं थी। उसने कहा कि वे ब्राह्मण हैं। उनको इतने अधिक धन की आवश्यकता नहीं है। ऐसा प्रतीत होता है कि उन्होंने विधर्मी शेरशाह से रिश्वत ली है। ममता ने कहा कि यह अर्थ नहीं अनर्थ है, वह इसको लौटा दें। वह ब्राह्मण हैं। कोई हिन्दू उनको भिक्षा अवश्य देगा । उनको इतने धन की आवश्यकता नहीं है।

परन्तु चूड़ामणि ”मूर्ख है” कहकर बाहर चले गए।



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