InterviewSolution
| 1. |
‘मुक्ति-दूत’ काव्य के तृतीय सर्ग की कथा का सार लिखिए।या‘मुक्ति-दूत’ खण्डकाव्य के तृतीय सर्ग की कथा संक्षेप में लिखिए।या‘मुक्ति-दूत’ खण्डकाव्य के आधार पर जलियाँवाला बाग की घटना का वर्णन कीजिए।या‘मुक्ति-दूत’ खण्डकाव्य के किस सर्ग ने आपको सर्वाधिक प्रभावित किया है और क्यों ? संक्षेप में अपने विचार व्यक्त कीजिए। |
|
Answer» तृतीय सर्ग में अंग्रेजों की दमन-नीति के प्रति गाँधीजी का विरोध व्यक्त हुआ है। देश में अंग्रेजों । का शासन था और उनके अत्याचार चरम-सीमा पर थे। भारतीय बेबसी और अपमान की जिन्दगी जी रहे थे। केवल वही लोग सुखी थे, जो अंग्रेजों की चाटुकारिता करते थे। गाँधीजी भारत की दुर्दशा का कारण भली-भाँति समझते थे, इसके बाद भी उन्होंने अंग्रेजों के प्रति पहले नम्रता की नीति अपनायी। वे उनको जनता के दु:ख-दर्द बताकर कुछ विनम्र बनाना चाहते थे, परन्तु जब उनकी नीति से अंग्रेजों का हृदय नहीं बदला, तब उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध ‘सविनय सत्याग्रह’ के रूप में संघर्ष छेड़ दिया। गाँधीजी ने प्रथम विश्व युद्ध के समय देशवासियों से अंग्रेजों की सहायता करने का आह्वान किया, जिससे अंग्रेजों का हृदय भारतीयों के प्रति कोमल हो, परन्तु युद्ध में विजय पाने के बाद अंग्रेजों ने ‘रॉलेट ऐक्ट पास करके अपना अत्याचारी शिकंजा और अधिक कड़ा कर दिया। गाँधीजी ने अंग्रेजों के इस काले कानून का उग्र विरोध किया। उनके साथ तेज बहादुर सपू, जवाहरलाल नेहरू, बाल गंगाधर तिलक, मदन मोहन मालवीय, जिन्ना, पटेल आदि नेता संघर्ष में सम्मिलित हो गये। इन्हीं दिनों जलियाँवाला बाग की अमानवीय घटना घटित हुई। वैशाखी के अवसर पर अमृतसर के इस बाग में अंग्रेजी शासन के विरुद्ध प्रस्ताव पारित करने के लिए जनता एकत्र हुई थी कि जनरल डायर नामक अंग्रेज सेनानायक ने निहत्थी भारतीय जनता पर अन्धाधुन्ध साढ़े सोलह सौ चक्र गोलियों की वर्षा कर उसे भून डाला। डायर की इस नृशंस पशुता का शिकार माताओं, विधवाओं, बिलखते बच्चों को भी होना पड़ा- दस मिनट गोलियाँ लगातार, साढ़े सोलह सौ चक्र चलीं । यह दृश्य देखकर गाँधीजी का हृदय दहल उठा और उनकी आँखों में खून उतर आया। इस युग-पुरुष ने क्रोध का जहर पीकर सभी को अमृतमय आशा प्रदान की और यह निश्चय कर लिया कि अंग्रेजों को अब भारत में अधिक दिनों तक नहीं रहने देंगे। |
|