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‘मुक्ति-दूत’ खण्डकाव्य के प्रथम सर्ग की कथा संक्षेप में लिखिए।या‘मुक्ति-दूत’ के प्रथम सर्ग के आधार पर गाँधीजी के लोकोत्तर गुणों का उल्लेख कीजिए।

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प्रथम सर्ग में कवि ने महात्मा गाँधी के अलौकिक एवं मानवीय स्वरूप की विवेचना की है। पराधीनता के कारण उस समय भारत की दशा अत्यधिक दयनीय थी। आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक सभी परिस्थितियों में भारत का शोषण हो रहा था। कवि अवतारवाद की धारणा से प्रभावित होकर कहता है। कि जब संसार में पाप और अत्याचार बढ़ जाता है, तब ईश्वर किसी महापुरुष के रूप में जन्म लेता है। अन्यायी रावण से मानवता को मुक्ति दिलाने के लिए राम का और अत्याचारी  कंस का विनाश करने के लिए श्रीकृष्ण का अवतार हुआ। वही ईश्वर कभी गौतम, कभी महावीर, कभी ईसा मसीह, कभी हजरत मुहम्मद, कभी गुरु गोविन्द सिंह आदि महापुरुषों के रूप में अत्याचार के निवारण के लिए प्रकट होता रहता है। उसके अनेक रूप और नाम होते हैं। लोग उसे पहचान नहीं पाते; क्योंकि वह मनुष्य के समान आचरण करता है। उसके आचरण से लोगों के कष्ट दूर हो जाते हैं। उसके त्याग और बलिदान से लोग सन्मार्ग पर चलने को प्रेरित होते हैं। अमेरिका में लिंकन और फ्रांस में नेपोलियन के रूप में वही दिव्य शक्ति थी। इसी क्रम में भारत-भूमि के परित्राण के लिए काठियावाड़ प्रदेश में पोरबन्दर नामक स्थान पर करमचन्द के यहाँ मोहनदास के नाम से एक महान् विभूति का जन्म हुआ था।

महात्मा गाँधी के दुर्बल शरीर में महान् आत्मिक बल था। उन्होंने अपने बीस वर्ष के अफ्रीका प्रवास में वहाँ के भारतीय मूल निवासियों पर होने वाले अत्याचारों का विरोध किया था। भारत लौटकर यहाँ के शोषित, दलित, दीन-हीन हरिजनों की दशा देखकर  गाँधीजी व्याकुल हो उठे थे। गाँधीजी को हरिजनों और हिन्दुस्तान से अगाध प्रेम था। हरिजनों का उद्धार करने और भारत को स्वतन्त्र कराने के लिए उन्होंने तीस वर्षों तक भारत का जैसा नेतृत्व किया, वह भारतीय इतिहास में सदा स्मरणीय रहेगा। इनके अथक प्रयासों के फलस्वरूप ही भारतवर्ष को स्वतन्त्रता प्राप्त हो सकी।



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