InterviewSolution
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‘मुक्ति-दूत’ के द्वितीय सर्ग का सारांश लिखिए।या‘मुक्ति-दूत’ खण्डकाव्य के द्वितीय सर्ग की कथा अपने शब्दों में लिखिए।या“मैं घृणा-द्वेष की यह आँधी, न चलने दूंगा न चलाऊँगा। या तो खुद ही मर जाऊँगा, या इसको मार भगाऊँगा।।”या‘मुक्ति-दूत’ खण्डकाव्य की उक्त पंक्तियों के आधार पर नायक की मनोदशा का वर्णन कीजिए। या मुक्ति-दूत’ खण्डकाव्य में किसकी मुक्ति का वर्णन है सोदाहरण स्पष्ट कीजिए। |
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Answer» ‘मुक्ति-दूत’ के द्वितीय सर्ग में गाँधीजी की मनोदशा का चित्रण किया गया है। उनका हृदय यहाँ के निवासियों की दयनीय दशा को देखकर व्यथित और उनके उद्धार के लिए चिन्तित था। एक दिन गाँधीजी स्वप्न में अपनी माता को देखते हैं। माताजी उन्हें समझा रही हैं कि जो तुम्हारा थोड़ा भी भला करे, तुम उसका अधिकाधिक हित करो; गिरते को सहारा दो; केवल अपना नहीं, औरों का भी पेट भरो। माँ का स्मरण करके गाँधीजी का हृदय भर आया। उन्होंने सोचा—माँ ने सही कहा है, मैं मातृभूमि के बन्धन काढूंगा। मैं कोटि-कोटि दलित भाइयों की रक्षा करूंगा। जब तक मेरे देश को एक बच्चा भी नंगा और भूखा रहेगा, मैं चैन से नहीं सोऊँगा। मेरे देश के निवासी अपमान भरा जीवन जी रहे हैं। मनुष्य-मनुष्य का तथा धनी-निर्धन का यह घृणित भेद मिटाना ही होगा। हरिजनों की दुर्दशा को देखकर उनका हृदय क्षोभ से जलने लगता है। हम सभी ईश्वर की सन्तान हैं, उनमें भेद कैसा? गुरु वशिष्ठ ने निषाद को हृदय से लगा लिया था, राम ने शबरी के जूठे बेर खाये थे। हरिजन सत्यकाम को गौतम बुद्ध ने शिक्षा दी थी। मेरा तो मत है कि हरिजन के स्पर्श से किसी मन्दिर की पवित्रता नष्ट नहीं होती। ये भी अपने भाई हैं, हमें चाहिए कि हम इन्हें हृदय से लगाकर प्यार करें। गाँधीजी ने हरिजनों को आश्रम में रहने के लिए आमन्त्रित किया। इस पर कुछ लोगों ने रुष्ट होकर आश्रम के लिए चन्दा देने से इनकार कर दिया। आश्रम के प्रबन्धक मगनलाल ने जब गाँधीजी को बताया कि हरिजनों को आश्रम में रखकर आपने अच्छा नहीं किया, तब गाँधीजी ने कठोर स्वर में कहा– असवर्णो की बस्ती में भी रह लँगा उनके संग भले।। पहले देश स्वतन्त्र हो जाये, फिर मुझे इस छुआछूत से ही लड़ना है। गाँधीजी के इस उत्तर से आश्रमवासियों ने अनुभव किया कि गाँधीजी असाधारण मनुष्य हैं। एक बार गाँधीजी ने स्वप्न में श्री गोखले (गोपाल कृष्ण) को देखा। उन्होंने गाँधीजी को निरन्तर स्वतन्त्रता के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी और यह आशा प्रकट की कि गाँधीजी ही भारतवर्ष के मुक्ति-दूत बनेंगे जो बिगुल बजाया है तुमने, दक्षिण अफ्रीका में प्रियवर। |
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