1.

निम्नांकित गद्यांशों में रेखांकित अंशों की सन्दर्भ सहित व्याख्या और तथ्यपरक प्रश्नों के उत्तर दीजिये –जाड़े के दिन थे ही, तिस पर हवा के प्रकोप से कँपकँपी लग रही थी। हवा मज्जा तक ठिठुरा रही थी, इसलिए हमने कानों को धोती से बाँधा। माँ ने भेंजाने के लिए थोड़े-से चने एक धोती में बाँध दिये। हम दोनों भाई अपना-अपना डण्डा लेकर घर से निकल पड़े। उस समय उस बबूल के डण्डे से जितना मोह था, उतना इस उम्र में रायफल से नहीं। मेरा डण्डा अनेक साँपों के लिए नारायण-वाहन हो चुका था। मक्खनपुर के स्कूल और गाँव के बीच पड़नेवाले आम के पेड़ों से प्रतिवर्ष उससे आम झूरे जाते थे। इस कारण वह मूक डण्डा सजीव-सा प्रतीत होता था। प्रसन्नवदन हम दोनों मक्खनपुर की ओर तेजी से बढ़ने लगे। चिट्ठियों को मैंने टोपी में रख लिया, क्योंकि कुर्ते में जेबें न थीं।(1) प्रस्तुत गद्यांश का संदर्भ लिखिए।(2) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।(3) लेखक ने चिट्ठियों को कहाँ रख लिया था?(4) लेखक ने चिट्ठियों को टोपी में क्यों रख लिया?(5) लेखक ने डण्डे की तुलना किससे की है?

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1.सन्दर्भप्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक हिन्दी गद्य में संकलित एवं श्रीराम शर्मा द्वारा लिखित स्मृति नामक निबन्ध से उधृत है। प्रस्तुत अवतरण में लेखक ने अपनी बाल्यावस्था का सजीव चित्रण करते हुए बचपन की छोटी-छोटी बारीकियों को स्पष्ट किया है।

2.रेखांकित अंशों की व्याख्यालेखक शीतऋतु का वर्णन करते हुए कहता है कि “जाड़े का दिन था। हाड़ कॅपा देने वाली ठण्ड थी। इसलिए हमने कानों को धोती से बाँध लिया। माँ ने चना भैजाने के लिए उसे एक धोती में बाँध कर मुझे दिया। मैं और छोटा भाई डण्डा लेकर घर से चल पड़े। उस समय उस बबूल के डण्डे से जितना लगाव था उतना आज एक रायफल से नहीं है। मैं उस डण्डे से अनेक साँपों को मार चुका था। प्रतिवर्ष इसी डण्डे से आम के टिकोरे तोड़े जाते थे। इसीलिए वह डण्डी मुझे अत्यन्त प्रिय था। हम दोनों भाई मक्खनपुरे की ओर आगे बढ़े। कुर्ते में जेब न होने के कारण चिट्ठियों को मैंने टोपी में रख लिया था।”

3.लेखक ने चिट्ठियों को अपनी टोपी में रख लिया था। “

4.लेखक के कुर्ते में जेबें न थीं, इसलिए उसने चिट्ठियों को टोपी में रख लिया।

5.लेखक ने डण्डे की तुलना गरुण से की है।



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