1.

निम्नलिखित अवतरणों के आधार पर उनके साथ दिये गये प्रश्नों के उत्तर लिखिए-कुसंग का ज्वर सबसे भयानक होता है। यह केवल नीति और सद्वृत्ति का ही नाश नहीं करता, बल्कि बुद्धि का भी क्षय करता है। किसी युवा पुरुष की संगति यदि बुरी होगी तो वह उसके पैरों में बँधी चक्की के समान होगी, जो उसे दिन-दिन अवनति के गड्ढे में गिराती-जाएगी और यदि अच्छी होगी तो सहारा देने वाली बाहु के समान होगी, जो उसे निरन्तर उन्नति की ओर उठाती जाएगी।(अ) प्रस्तुत अवतरण के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।(ब) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।(स) 1. युवा पुरुष की संगति के बारे में क्या कहा गया है ?2. प्रस्तुत गद्यांश में लेखक क्या कहना चाहता है ?3. अच्छी संगति से होने वाले लाभों को उदाहरण देकर समझाइए।4. कुसंग का क्या प्रभाव होता है ?[ कुसंग = बुरा साथ। सद्वृत्ति = अच्छा आचरण। क्षय = नाश। अवनति = पतन। बाहु = भुजा।]

Answer»

(अ) प्रस्तुत गद्यावतरण’ आचार्य रामचन्द्र शुक्ल द्वारा लिखित एवं हमारी पाठ्यपुस्तक ‘हिन्दी’ के गद्य-खण्ड में संकलित ‘मित्रता’ नामक निबन्ध से अवतरित है।
अथवा निम्नवत् लिखें-
पाठ का नाम – मित्रता। लेखक का नाम – आचार्य रामचन्द्र शुक्ल।

(ब) प्रथम रेखांकित अंश की व्याख्या – शुक्ल जी कहते हैं कि बुरी संगति घातक बुखार के समान हानिकारक होती है। जिस तरह कोई व्यक्ति यदि भयानक ज्वर से ग्रसित हो तो वह ज्वर उसके शरीर और स्वास्थ्य को नष्ट कर देता है तथा कभी-कभी प्राण भी ले लेता है, उसी प्रकार बुरी संगति हमारी नैतिकता, सदाचार, मन तथा बुद्धि को नष्ट कर देती है।

द्वितीय रेखांकित अंश की व्याख्या – मानव-जीवन में युवावस्था सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण होती है। कुसंगति किसी युवा मनुष्य की सारी प्रगति को उसी तरह रोक लेती है, जिस तरह पैर में बँधा हुआ भारी पत्थर किसी व्यक्ति को आगे नहीं बढ़ने देता, वरन् प्रायः उसे गिरा देता है। इसी प्रकार कुसंगति में लिप्त मनुष्य का पतन होने लगता है और वह दिन-प्रतिदिन पतन के मार्ग पर अग्रसर होता रहता है। इसके विपरीत अच्छी संगति हमारे लिए एक ऐसी सुदृढ़  बाँह अर्थात् सहारा होती है जो हमें गिरने नहीं देती, अपितु उन्नति के पथ पर निरन्तर आगे बढ़ाती है और जीवन को शुद्ध, सात्विक तथा उन्नत बनाती है।

(स) 1. युवा पुरुष की बुरी संगति उसे अवनति के गड्ढे में प्रतिदिन गिरती जाएगी और यदि अच्छी होगी तो वह उसे निरन्तर उन्नति की ओर अग्रसर करेगी।

2. प्रस्तुत गद्यांश में लेखक कहना चाहता है कि कुसंगति मनुष्य के पतन और सत्संगति उसके उत्थान का कारण होती है। इसलिए व्यक्ति को बुरी संगति से बचकर रहना चाहिए।

3. अच्छी संगति सहारा देने वाली बाँह के समान होती है, जो व्यक्ति की जीवन-रक्षक और उसे उन्नति की ओर ले जानी वाली होती है।

4. कुसंग का प्रभाव बहुत भयानक होता है। यह मनुष्य की नैतिकता और अच्छे आचरण को नष्ट कर देता है। इसके साथ-साथ वह उसकी बुद्धि का भी क्षय करता रहता है।



Discussion

No Comment Found

Related InterviewSolutions