1.

निम्नलिखित अवतरणों के आधार पर उनके साथ दिये गये प्रश्नों के उत्तर लिखिए-विश्वासपात्र मित्र जीवन की एक औषध है। हमें अपने मित्रों से यह आशा रखनी चाहिए कि वे उत्तम संकल्पों से हमें दृढ़ करेंगे, दोषों और त्रुटियों से हमें बचाएँगे, हमारे सत्य, पवित्रता और मर्यादा के प्रेम को पुष्ट करेंगे, जब हम कुमार्ग पर पैर रखेंगे, तब वे हमें सचेत करेंगे, जब हम हतोत्साहित होंगे, तब वे हमें उत्साहित करेंगे। सारांश यह है कि वे हमें उत्तमतापूर्वक जीवन-निर्वाह करने में हर तरह से सहायता देंगे। सच्ची मित्रता में उत्तम-से-उत्तम वैद्य की-सी निपुणता और परख होती है, अच्छी-से-अच्छी माता का-सा । धैर्य और कोमलता होती है। ऐसी ही मित्रता करने का प्रयत्न प्रत्येक पुरुष को करना चाहिए।(अ) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।1. प्रस्तुत अवतरण में शुक्ल जी क्या कहना चाहते हैं?2. व्यक्ति को अपने मित्रों से कैसी उम्मीद रखनी चाहिए?याउत्तम मित्र से क्या अपेक्षा रखनी चाहिए ?या3. लेखक ने सच्ची मित्रता के लिए कौन-कौन-सी उपमाएँ दी हैं ?यालेखक ने सच्चे मित्र की तुलना किससे की है?4. एक सच्ची मित्र किसे कह सकते हैं।या‘मित्रता’ पाठ के आधार पर विश्वासपात्र मित्र की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।(ब)[औषध = दवाई। सचेत = सावधान। हतोत्साहित = निराश। निपुणता = चतुरता। परख = पहचानने की केला।]

Answer»

(अ) प्रथम रेखांकित अंश की व्याख्या – आचार्य शुक्ल जी का कहना है कि जिस प्रकार अच्छी औषध आपके शरीर को अनेक प्रकार के रोगों से बचाकर स्वस्थ बना देती है, उसी प्रकार विश्वसनीय मित्र अनेक बुराइयों से बचाकर हमारे जीवन को उन्नत तथा सुन्दर बनाता है। हमारा मित्र ऐसा होना चाहिए, जिस पर हमें यह विश्वास हो कि वह हमें सदा उत्तम कार्यों में लगाएगा, हमारे मन में अच्छे विचारों को उत्पन्न करेगा, बुराइयों  और गलतियों से हमें बचाता रहेगा। हममें सत्य और मर्यादा के प्रति प्रेम को विकसित करेगा, उनमें किसी तरह की कमी नहीं आने देगा। यदि हम बुरे मार्ग पर चलेंगे तो वह हमें उससे हटाकर सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देगा और जब कभी हमें उद्देश्यों के प्रति निराशा उत्पन्न होगी तो वह आशा का संचार कर अच्छे कार्यों के प्रति हमारा उत्साह बढ़ाएगा।

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि विश्वासी मित्र हमें गरिमा से जीवनयापन करने में प्रत्येक सम्भव सहायता प्रदान करेगा, जिससे हम सुविधा एवं सम्मानपूर्वक जी सकें।

द्वितीय रेखांकित अंश की व्याख्या – आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जी का कहना है कि जिस तरह कुशल वैद्य नाड़ी देखकर तत्काल रोग का पता लगा लेता है, उसी प्रकार सच्चा मित्र हमारे गुणों और दोषों को परख लेता है। जिस प्रकार अच्छी माता धैर्य के साथ सभी कष्टों को सहन कर मधुर व्यवहार करती है, उसी प्रकार सच्चा मित्र अपने मित्र को बड़े धैर्यपूर्वक कुमार्ग से हटाकर स्नेह के साथ सन्मार्ग पर लगाता है। अत: हमें ऐसा मित्र चुनना चाहिए, जिस पर हमें यह विश्वास हो कि वह हमें कुमार्ग से हटाकर सुमार्ग की ओर ले जाएगा।

(ब) 1. प्रस्तुत अवतरण में शुक्ल जी ने अच्छे और विश्वासपात्र मित्र के महत्त्व को प्रकट करते हुए कहा है कि ऐसे मित्र में गुण-दोष की परख होती है, धैर्य एवं स्नेह होता है तथा ऐसा मित्र ही जीवन को सफल बनाने में सहायक होता है। लेखक ने विश्वासपात्र से ही मित्रता करने की प्रेरणा दी है।

2. व्यक्ति को अपने मित्रों से यह उम्मीद रखनी चाहिए कि वे उन्हें उत्तम कार्यों की ओर प्रवृत्त करेंगे, मन में अच्छे विचारों को उत्पन्न करेंगे, बुराइयों और गलतियों से उन्हें बचाएँगे, सत्य; पवित्रता और मर्यादा के प्रति प्रेम को विकसित करेंगे, सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देंगे तथा निरुत्साहित होने पर उत्साहित करेंगे।

3. लेखक ने सच्ची मित्रता की निम्नलिखित तीन उपमाएँ (तुलना) दी हैं
(i) जीवन के लिए एक औषध के समान होती है।
(ii) निपुणता और परख में उत्तम वैद्य के समान होती है।
(iii) स्नेह और धैर्य में माता के समान होती है।

4. हम ऐसे मित्र को सच्चा मित्र कह सकते हैं जो हमें उत्तम संकल्पों से दृढ़ करेगा, बुराइयों और त्रुटियों से हमें बचाएगा, हम में सत्य, पवित्रता और मर्यादा रूपी मानवीय मूल्यों को पुष्ट करेगा, बुरे मार्ग पर । चलने से हमें रोकेगा और सदैव उत्साहित करेगा।



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