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निर्यात विधि (Export Procedure) के सोपान अथवा अवस्थाएँ समझाइये ।

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एक देश का व्यापारी दूसरे देश के व्यापारी को माल भेजता है तब उसे दूसरे देश में निर्यात किया ऐसा कहा जाता है । विदेशव्यापार द्वारा विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है । अलग-अलग देशों में निर्यात विधि अलग-अलग पाई जाती है । परन्तु भारत में सामान्यत: निम्न विधि पाई जाती है ।

(1) ऑर्डर प्राप्त करना : सर्वप्रथम ऑर्डर या इन्डेन्ट प्राप्त करना होता है । आयात-विधि के अनुसार ऑर्डर ओपन या क्लोज्ड हो सकता है । ओपन ऑर्डर में विवरण नहीं होता तथा निर्यातकार स्वयं विवरण भर देता है । जबकि क्लोज्ड ऑर्डर में सम्पूर्ण विवरण अर्थात माल की थोक कीमत, पैकिंग आदि का विवरण होता है ।

ऑर्डर प्राप्त होते ही निर्माता माल भेज दे यह आवश्यक नहीं है । पहले वह आयातकार के विषय में जानकारी प्राप्त करता है । यदि आयातकार की शान अच्छी हो तो ही माल भेजने की विधि आगे बढ़ाता है ।

(2) निर्यात लाइसन्स प्राप्त करना : भारत में आयात-निर्यात व्यापार पर बहुत नियंत्रण है । कुछ निश्चित वस्तुओं का निर्यात करना हो तो कानून के अंदर दिये गये परिशिष्ट में इसका उल्लेख है या नहीं यह जानना आवश्यक होता है और ऑर्डर के अनुसार माल की निर्यात अवधि संभव है या नहीं यदि माल परिशिष्ट में शामिल न हो तो इस माल का निर्यात उचित लाइसन्स धारण करनेवाला आसानी से कर सकता है ।

जिस माल पर निर्यात के लिए नियंत्रण होता है उसे भी दो भागों में बाँटा जाता है । ओपन जनरल लाइसन्स के अनुरूप माल और खास नियंत्रण लागू होनेवाला माल । ओपन जनरल लाइसन्स जिसे OGL कहा जाता है के अनुरूप किसी निश्चित समय के लिए माल के निर्यात की मंजूरी मिलती है । इस तरह का लाइसन्स प्राप्त करने के लिए उचित अधिकारी से निर्धारित रूपरेखानुसार निवेदन करना पड़ता है । रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के सरकारी खाते में निर्यात लाइसन्स-फीस भरनी पड़ती है और निर्यातकार आयकर नियमित भरता है ऐसा प्रमाणपत्र भी प्राप्त करना होता है । आवेदन-पत्र के साथ लाइसन्स फीस की रसीद तथा आयकर का प्रमाणपत्र योग्य अधिकारी को देना होता है ।

जिस माल की तंगी हो और उसका निर्यात करना हो तो उसके लिए क्वोटा परमिट दिया जाता है ।
निर्यात लाइसन्स देने के सम्बन्ध में निर्यातकार के तीन प्रकार किए गये हैं : स्थापित निर्यातकार, उत्पादक तथा नवागंतुक स्थापित निर्यातकार अर्थात् ऐसे निर्यातकार जिन्होंने निर्दिष्ट समय के अन्दर माल का निर्यात किया हो । उत्पादक अर्थात् वस्तु के ऐसे उत्पादक जिन्होंने अपने उत्पादन के कुछ हिस्सों का निर्यात करने के लिए लाइसन्स प्राप्त किया हो । नवागंतुक अर्थात् वस्तु के आंतरिक व्यापार में संलग्न व्यापारी अथवा जिन्होंने निर्दिष्ट समय के उपरांत अन्य समय में निर्यात किया हो । लाइसन्स देने के सम्बन्ध में स्थानिक निर्यातकों को प्राथमिकता दी जाती है ।

(3) माल इकट्ठा करना : निर्यातक को निर्यात लाइसन्स मिलता है – अर्थात् आयताकार के ऑर्डर अनुसार माल इकठ्ठा करता है । निर्यातक यदि उत्पादक हो तो ऑर्डर के अनुसार माल का उत्पादन करता है और यदि व्यापारी हो तो ऑर्डर के अनुसार माल इकठ्ठा करता है ।

(4) विदेशी मुद्रा की व्यवस्था करना : भारत में अभी-अभी उदारीकरण की नीति अमली हुई है । परन्तु अभी भी कुछ मात्रा में नियंत्रण है मगर पहले तो सम्पूर्ण विदेशी मुद्रा पर नियंत्रण होता था जिससे निर्यातकों को उसके लिए आवेदन करना पड़ता था । आज निर्यात की कुल रकम के निर्धारित प्रतिशत की रकम रिजर्व बैंक में जमा करानी पड़ती है ऐसा निवेदन कस्टम अधिकारी अथवा रिजर्व बैंक के अधिकारी को करना होता है । इसके लिए निर्यात को चार फोर्म भरने पड़ते हैं जिन्हें जी. आर. पत्रक कहा जाता है । इस पत्रक में निर्यातकार निर्यात किए गये माल की कीमत, धन किस तरह प्राप्त करना है तथा विदेशी मुद्रा से संबंधित अधिकृत व्यापारी बैंक का नाम इत्यादि दर्शाया जाता है । इस पत्रक की एक प्रतिलिपि माल भेजते समय कस्टम अधिकारी को दी जाती है तथा शेष तीन प्रतिलिपियाँ विदेशी मुद्रा से व्यवहार करनेवाले बैंक को भेजी जाती हैं । बैंक उनमें से दो प्रतिलिपियाँ रिजर्व बैंक को भेजती है ।

(5) शानपत्रक प्राप्त करना : आयात तथा निर्यात दोनों व्यापार में शानपत्र द्वारा ही व्यापार किया जाता है जिससे सामने के पक्ष को शान के विषय में जानकारी प्राप्त हो । भारत में जिस बैंक की शाखा हो उस बैंक का शानपत्र अथवा लेटर ऑफ क्रेडिट आयात को भेजना पड़ता है । यदि आयातकार की प्रतिष्ठा हो और उसके साथ बार-बार व्यापार होता हो तब बैंक रेफरन्स भी जारी कर सकता है ।

(6) शिपिंग ऑर्डर प्राप्त करना : आयातकार की शान की जानकारी हो जाने के बाद स्टीमर अथवा एयरकार की व्यवस्था करनी होती है । इसलिए संबंधित कंपनी के साथ वाहन में जगह प्राप्त करने के लिए करार करना पड़ता है । इसके लिए निर्यात से पूर्व जहाज के लिए आवेदन-पत्र देना होता है । आवेदन-पत्र में निर्यातकार माल का सम्पूर्ण विवरण देता है तथा कब तक जगह चाहिए उसकी संभवित तारीख देता है । कप्तान शिपिंग ऑर्डर देता है । शिपिंग ऑर्डर द्वारा कंपनी जहाज के कप्तान को आदेश देती है कि निश्चित माल निश्चित जगह से चढ़ाना है । कई बार पूरा जहाज या विमान भाड़े पर ले लिया जाता है । इस प्रकार के लिए गये करार को चार्टर्ड पार्टी करार . कहा जाता है । स्टीमर तथा विमान में स्थान प्राप्त करने के लिए दलाल नियुक्त किये जाते हैं । वे इस तरह के काम में सही जानकारी रखते हैं तथा सभी परिस्थिति से परिचित होते हैं ।

(7) जकात का भुगतान : निर्यात अथवा उसके द्वारा नियुक्त फार्वडिंग एजेन्ट उसके बाद चुंगी-विधि तैयार करता है । इसके लिए शिपिंग बिल नामक दस्तावेज की तीन नकल तैयार की जाती है । शिपिंग बिल अर्थात् ऐसा प्रारूप जिसमें निर्याता अपना नाम, माल का वर्णन, जहाज का नाम किस बंदरगाह पर माल उतारना है आदि विवरण लिखता है । जकात अधिकारी द्वारा यह प्रारूप प्राप्त किया जा सकता है।

जकात के संबंध में माल को तीन भागों में विभाजित किया जाता है :

  • मुक्त माल – जिस पर जकात नहीं लगती
  • जकात लेने के पात्र माल
  • पुनः निर्यात के लिए माल

इसके उपरांत निर्यात आवेदन-पत्र भी दो प्रतिलिपियों में होती है । पोर्ट-ट्रस्ट लैडिंग तथा शिपिंग न्यूज ऑफिस द्वारा यह अरजी प्राप्त की जा सकती है ।

शिपिंग बिल तथा निर्यात आवेदन-पत्र लैंडिंग तथा शिपिंग न्यूज ऑफिस में प्रस्तुत किया जाता है । इस ऑफिस में निश्चित फीस भरनी होती है । इसके उपरांत फीस भरने की रसीद के साथ निर्यात आवेदन-पत्र की रकम प्रतिलिपि और शिपिंग बिल की तीन प्रतिलिपियाँ वापस मिलती हैं ।

ये दोनों दस्तावेज निर्यात ऑफिस में दिये जाते हैं तब अधिकारी भुगतान पात्र जकात की गिनती करता है और जकात भरने के बाद अधिकारी मंजूरी देता है ।

(8) पैकिंग तथा मार्किंग : निर्यात व्यापार में पैकिंग महत्त्वपूर्ण है क्योंकि पैकिंग मजबूत होनी चाहिए । इसके उपरांत पैकिंग में थोडा परिवर्तन नूर में कभी महत्त्वपूर्ण परिवर्तन ला सकता है । क्योंकि जहाजी कंपनी कप्तान मात्र माल के वजन से नूर निश्चित करता है ऐसा नहीं है । माल का वजन और कीमत दोनों बातें ध्यान में रखी जाती हैं । इसलिए कम से कम जगह रोके ऐसी पैकिंग करनी चाहिए । पैकिंग पर माल जहाँ पहुँचाना है उसका नाम, पता, क्रेता पेढ़ी का नाम, पैकिंग का वजन और आकार के अलावा अन्य विवरण भी दिया जाता है ।

ठीक ढंग की पैकिंग करने के बाद इस पैकिंग में ऊपर स्टेन्सिल के द्वारा मार्किंग की जाती है जिससे माल का पैकिंग आसानी से पहचाना जा सके ।

(9) माल का बीमा लेना : समुद्री मार्ग द्वारा निर्यात करना हो तब समुद्री जोखिम जैसे कि समुद्री आँधी, वातावरण से माल को होनेवाला नुकसान, समुद्री लुटेरों द्वारा होनेवाली माल की लूट आदि की मदद से होनेवाले नुकसान के सामने आर्थिक मुआवजा प्राप्त करने के लिए माल का बीमा लेना पड़ता है । बीमा कम्पनी के साथ इसके बारे में करार किया जाता है । बीमा कम्पनी प्रीमियम निश्चित करे वह भरने से निर्यातक को ‘कवर नोट’ दिया जाता है । बीमा पॉलिसी तैयार होती है अर्थात् कवर नोट के बदले में बीमा कम्पनी पोलिसी होती है ।

(10) कार्टेग ऑर्डर प्राप्त करना : कार्टिंग ऑर्डर अर्थात् जहाज पर माल चढ़ाने के लिए अनुमति । कार्टिंग ऑर्डर प्राप्त करने के लिए जिस बन्दरगाह से माल निर्यात करना हो उनके सक्षम अधिकारियों को निर्यातक को आवेदन करना पड़ता है । इस आवेदन में शापिंग बिल में दर्शायी हुई समस्त जानकारी के उपरान्त जकात भुगतान किया है, इसकी जानकारी दर्शायी जाती है । निर्यातक बन्दरगाह पर के खर्च जैसे कि माल स्थानान्तरण का खर्च और जहाज पर माल चढ़ाने का खर्च आदि भरते है तब निर्यातक को कार्टिंग ऑर्डर देते है ।

(11) कप्तान या साथी की रसीद (Mate Receipt) : कार्टिंग ऑर्डर के आधार पर माल जहाज पर चढ़ाया जाता है । जहाज के कप्तान को प्रतिनिधि ‘मेट’ से पहचाना जाता है । शीपिंग बिल के अनुसार माल है या नहीं यह मेट जाँच कर लेता है । जब जहाज पर माल चढ़ाया जाये तब जहाज के कप्तान अथवा उनका प्रतिनिधि की तरफ से माल स्वीकार किया है । इस संदर्भ की जो रसीद दी जाती है उन्हें साथी की रसीद कहते है, जहाज का कप्तान माल के पैकिंग की जाँच करते है । यदि माल का पैकिंग योग्य/सन्तोषप्रद न हो अथवा वाहन के लिये योग्य न हो तो उनकी रसीद में टिप्पणी की जाती है । ऐसी टिप्पणी लिखी हुई रसीद को दोष सहित रसीद (Foul Receipt) अथवा डर्टी चीट के रूप में पहचाना जाता है । यदि समस्त सूचनाएँ योग्य हो तो क्लीन रसीद दी जाती है । यदि साथी की रसीद दोषमुक्त हो तो इसका अर्थ होता है कि जहाज में चढ़ाया जानेवाला माल का ऑर्डर के अनुसार पैकिंग नहीं है और माल के स्थानान्तरण के दौरान यदि माल को नुकसान हो तो इसके लिए जहाजी कम्पनी जिम्मेदार नहीं होती ।

(12) बिल ऑफ लेडिंग (Bill of Leding) या जहाजी बिल्टी : साथी की रसीद जहाजी कम्पनी के कार्यालय में प्रस्तुत करने पर जहाज में माल चढ़ाने सम्बन्धी पक्की रसीद (बिल ऑफ लेडिंग) दी जाती है । इस रसीद में जहाज में चढ़ाए गए माल का विवरण होता है । यह माल की मालिकी दर्शाता है । विदेशी आयात-कर्ता को बिल ऑफ लेडिंग के सामने जहाजी कम्पनी माल का कब्जा देती है । बिल ऑफ लेडिंग जहाजी कम्पनी देती है, जिसमें माल भेजनेवाले का नाम, जहाज का नाम, जहाज के कप्तान का नाम, माल का थोक, पैकिंग एवं मार्किंग का विवरण, आयातकार का नाम, जिस बन्दरगाह पर माल भेजना है उस बन्दरगाह का नाम व नूर की रकम का समावेश होता है । इसका ट्रान्सफर कर अधिकार परिवर्तन किया जा सकता है ।

(13) उत्पत्ति-प्रमाण पत्र (Certificate of origin) : कई बार दो देशों के बीच चुंगी-मुक्ति का करार किया जाता है । उस समय उत्पत्ति-प्रमाण पत्र आवश्यक बनता है । यह प्रमाणपत्र माल किस देश में उत्पन्न किया गया है, यह दर्शाता है जिससे आयातकार चुंगी-मुक्ति का लाभ उठा सकता है । निर्यातकार माल के उत्पत्ति-स्थान से सम्बन्धित प्रमाणपत्र प्राप्त करके आयातकार के पास भेजता है । उत्पत्ति का प्रमाणपत्र निर्यातकार के अपने देश में से मजिस्ट्रेट या चैम्बर ऑफ कॉमर्स द्वारा प्राप्त करना पड़ता है ।

(14) कोन्स्युलर इन्वोइस (व्यापारी राजदूत का बीजक) (Consular’s Invoice) : व्यापारी राजदूत के बीजक में निर्यात माल की कीमत दर्शायी जाती है । निर्यात किया गया माल जब आयातकार के देश में पहुंचे तब वह चुंगी निश्चित करता है । यदि माल की कीमत को आधार बनाकर चंगी निश्चित की जाती हो तो माल की कीमत जानने के लिए पैकिंग खोलकर माल की सही कीमत जानी जाती है, और उसके बाद चुंगी निश्चित की जाती है । यदि निर्यातकार के देश के राजदूत से माल की कीमत से सम्बन्धित प्रमाणपत्र लेकर आयातकार को भेज देता हो तो चुंगी-अधिकारी प्रमाणपत्र में दर्शाई गई कीमत के आधार पर चुंगी निश्चित कर सकता है और पैकिंग खोलने की भी आवश्यकता नहीं पड़ती है ।

(15) दस्तावेज भेजना : निर्यातक अपनी बैंक के माध्यम से आयतक को बीजक, बीमा पॉलिसी अथवा कवर नोट, बिल ऑफ लेडिंग, माल की उत्पत्ति का प्रमाणपत्र, व्यापारी राजदूत का बीजक तथा हुण्डी आदि महत्त्वपूर्ण दस्तावेज आयातकर्ता की बैंक को भेज देता है ।

(16) रकम/वित्त की वसूली : निर्यातक माल के रकम की वसूली के लिए बैंक को सूचना देते है । बीजक में दर्शायी हुई रकम वसूल करने के लिए निर्यातक आया तक पर हुण्डी लिखता है । यह हूण्डी स्वीकार के सामने हो अथवा भुगतान के सामने हो सकती है । यदि स्वीकार के सामने की हूण्डी हो तो निर्यातक की बैंक यह हूण्डी आयातक के समक्ष प्रस्तुत करके उनका आयातक द्वारा स्वीकार किये जानेवाले जरूरी दस्तावेज देता है परन्तु यदि वह रकम के भुगतान के सामने हो तो हुण्डी की रकम पूरी रकम चुकाने के बाद बैंक दस्तावेज देती है। स्वीकार सामने की हूण्डी की रकम परिपक्व (पकने की) तारीख पर बैंक वसुल करके निर्यातक को भेज देता है । जब भुगतान सामने की हूण्डी की रकम निर्यातक को भेज दी जाती है ।



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