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Answer» राष्ट्रीयता का अर्थ एवं परिभाषाएँ ‘राष्ट्रीयता’ शब्द अंग्रेजी भाषा के ‘नैशनलिटी’ (Nationality) शब्द का हिन्दी अनुवाद है, जिसका उत्पत्ति लैटिन भाषा के ‘नेशियो’ (Natio) शब्द से हुई है। इस शब्द से जन्म और जाति का बोध होता है। राष्ट्रीयता एक सांस्कृतिक तथा आध्यात्मिक भावना है, जो लोगों को एकता के सूत्र में बाँधती है। इसी भावना के कारण लोग अपने राष्ट्र से प्रेम करते हैं। इस प्रकार राष्ट्रीयता एक भावात्मक शब्द है। इसी भावना के कारण लोग अपने देश पर संकट आने की स्थिति में अपने तन, मन और धन का बलिदान करने से भी पीछे नहीं हटते हैं। जे० एच० रोज के अनुसार, “राष्ट्रीयता हृदयों की वह एकता है, जो एक बार बनने के बाद कभी खण्डित नहीं होती है।” राष्ट्रीयता की पूर्ण एवं सम्यक परिभाषा करना एक कठिन कार्य है; किन्तु कुछ विद्वानों ने इसे स्पष्ट रूप से परिभाषित करने का प्रयास किया है। इन विद्वानों की परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं- जिमर्न के अनुसार, “राष्ट्रीयता सामूहिक भावना का एक रूप है, जो विशिष्ट गहनता, समीपता तथा महत्ता से एक निश्चित देश से सम्बन्धित होती है।” ब्लंश्ली के अनुसार, “राष्ट्रीयता मनुष्यों का वह समूह है, जो समान उत्पत्ति, समान जाति, समान भाषा, समान परम्पराओं, समान इतिहास तथा समान हितों के कारण एकता के सूत्र में बँधकर राज्य का निर्माण करता है।” गिलक्राइस्ट के अनुसार, “राष्ट्रीयता एक आध्यात्मिक भावना या सिद्धान्त है, जिसकी उत्पत्ति उन लोगों में से होती है, जो साधारणत: एक जाति के होते हैं, जो एक भूखण्ड पर रहते हैं तथा जिनकी एक भाषा, एक धर्म, एक इतिहास, एक जैसी परम्पराएँ एवं एक जैसे हित होते हैं तथा जिनके राजनीतिक समुदाय और राजनीतिक एकता के एक-से आदर्श होते हैं।” डॉ० बेनीप्रसाद के अनुसार, “राष्ट्रीयता की निश्चित परिभाषा करना कठिन है। परन्तु यह स्पष्ट है कि ऐतिहासिक गतिविधियों में यह पृथक् अस्तित्व ही उस चेतना का प्रतीक है, जो सामान्य आदतों, परम्परागत रीति-रिवाजों, स्मृतियों, आकांक्षाओं, अवर्णनीय सांस्कृतिक सम्प्रदायों तथा हितों पर आधारित है।” उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर हम कह सकते हैं, “राष्ट्रीयता एक ऐसी भावना है, जिसके कारण एक देश के लोग एकता के सूत्र में बँधे रहते हैं और जो अपने देश एवं देशवासियों के प्रति संभावपूर्वक रहने की प्रेरणा देती है।” राष्ट्रीयता के प्रमुख निर्माणक तत्त्व राष्ट्रीयता के निर्माण अथवा राष्ट्रीयता की भावना के विकास में अनेक तत्त्व सहायक होते हैं। उनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है- 1. भौगोलिक एकता- भौगोलिक एकता राष्ट्रीय एकता की प्रेरणा-स्रोत है। जब लोग समान भौगोलिक परिस्थितियों में रहते हैं तो उनकी आवश्यकताएँ एवं समस्याएँ भी समान होती हैं। अत: वे लोग मिल-जुलकर समान ढंग से अपनी समस्याएँ सुलझाने हेतु एकजुट होते हैं। इसके परिणामस्वरूप उनमें एकता की भावना उत्पन्न होती है, यह भावना ही कालान्तर में राष्ट्रीयता का प्रतीक बनती है। परन्तु इस सन्दर्भ में यह उल्लेखनीय है कि भौगोलिक एकता राष्ट्रीयता को एक सहायक तत्त्व है; अतः इसे अनिवार्य तत्त्व नहीं माना जाना चाहिए। 2. भाषा की एकता- राष्ट्रीयता के विकास में भाषा की एकता भी महत्त्व रखती है। समान भाषा-भाषी देशों में समान विचार एवं समान साहित्य का सृजन होता है। उनके समान रीति-रिवाज एवं समान रहन-सहन के कारण उनमें समान राष्ट्रीयता की भावना का उदय होता है। भाषा की एकता भी राष्ट्रीयता का एक अनिवार्य तत्त्व नहीं है; उदाहरणार्थ-कर्नाटक प्रान्त के नागरिक कन्नड़ भाषा बोलते हैं; तमिलनाडु के निवासी तमिल बोलते हैं और भारत के अधिकांश उत्तर-मध्य क्षेत्र में हिन्दी बोली जाती है। अत: इस आधार पर हम यह नहीं कह सकते कि भारत में राष्ट्रीयता का अभाव है। 3. संस्कृति की एकता- सांस्कृतिक एकता राष्ट्रीयता के मूल्यवान तत्त्वों में से एक है। संस्कृति के अन्तर्गत एक निश्चित भू-भाग के व्यक्तियों का साहित्य, रीति-रिवाज, प्राचीन परम्पराएँ इत्यादि सम्मिलित होती हैं। समान संस्कृति के आधार पर समान विचार, समान आदर्श तथा समान प्रवृत्तियाँ उत्पन्न होती हैं, जिससे राष्ट्रीयता के निर्माण में सहायता मिलती है। 4. समान ऐतिहासिक परम्पराएँ- ऐतिहासिक घटनाओं एवं स्मृतियों का भी राष्ट्रीयता के विकास में काफी महत्त्व होता है। विजय और पराजय की स्मृतियाँ, सामाजिक विकास के आदर्श, सांस्कृतिक उत्थान-पतन का संकलित इतिहास राष्ट्रीयता के विकास में पर्याप्त सहायक होता है। सम्राट अशोक, अकबर और शिवाजी आदि का गौरव गाथा पढ़ने से समस्त भारतीयों में राष्ट्रीयता की भावना का संचार होता है। 5. धार्मिक एकता- धार्मिक एकता भी राष्ट्रीयता के निर्माण तथा विकास में वृद्धि करती है। इतिहास इस बात का साक्षी है कि धार्मिक भिन्नता के कारण अनेक देशों में कितना अधिक रक्तपात हुआ है। धार्मिक भिन्नता के आगे राष्ट्रीयता की भावना दुर्बल पड़ जाती है, जिसके परिणामस्वरूप दो भिन्न धर्मावलम्बी राष्ट्रों के मध्य युद्ध होते हैं। इसीलिए प्रसिद्ध विद्वान रैम्जे म्योर ने लिखा है, “कुछ मामलों में धार्मिक एकता राजनीतिक एकता के निर्माण में शक्तिशाली योग देती है, जबकि कुछ दूसरे मामलों में धार्मिक भिन्नता उसके मार्ग में अनेक बाधाएँ उपस्थित करती है।” 6. राजनीतिक एकता- समान राजनीतिक व्यवस्था के अन्तर्गत रहने वाले लोग भी एकता का अनुभव करते हैं। इसके अतिरिक्त वे समान राजनीतिक व्यवस्था के परिणामस्वरूप मानसिक एकता का भी अनुभव करते हैं, जो आगे चलकर राष्ट्रीयता के निर्माण में सहायक होती है। इसके साथ ही कठोर विदेशी शासन भी राष्ट्रीयता के निर्माण में सहायक सिद्ध होता है। 7. जातीय एकता- जातीय एकता भी राष्ट्रीयता के विकास में सहायक होती है। एक जाति के लोग समान संस्कारों एवं रीति-रिवाजों आदि के कारण एक संगठन में बंधे रहते हैं, जिनके परिणामस्वरूप उनमें एकता की भावना का उदय होता है। 8. सामान्य आर्थिक हित- आधुनिककाल में राष्ट्रीयता के निर्माण में आर्थिक तत्त्व सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण तत्त्व माना जाता है। भारत के परिप्रेक्ष्य में रोजगार प्राप्त करने में सभी का सामान्य आर्थिक हित है। अत: इस दिशा में किए जाने वाले प्रयास राष्ट्रीय एकता के प्रयास के अन्तर्गत आते हैं। 9. अन्य तत्व- समान सिद्धान्तों में आस्था, सामान्य आपदाएँ, युद्ध लोकमत एवं सामूहिक एकता की चेतना भी राष्ट्रीयता के विकास में सहायक सिद्ध होती है। सामान्य आपदाओं; जैसे-गुजरात में आए भूकम्प और तमिलनाडु तथा अण्डमान द्वीप समूह में आए सुनामी समुद्री लहरों के तूफान के समय सभी क्षेत्रों से की गई सहायता इस बात का प्रतीक है कि हमारे अन्दर राष्ट्रीयता की भावना विद्यमान है। उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि राष्ट्रीयता भावात्मक एकता का प्रतीक होती है। राष्ट्रीयता की भावना के कारण ही व्यक्ति राष्ट्र के प्रति पूर्ण समर्पण तथा बलिदान की भावना प्रकट करता है। राष्ट्रीयता का निर्माण विभिन्न तत्त्वों के मिश्रण से होता है। इनमें सांस्कृतिक तथा ऐतिहासिक परम्पराओं की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। राष्ट्रीयता की भावना के कारण ही भारत अंग्रेजी दासता से स्वतन्त्र हुआ। तथा यहूदियों ने यहूदी राष्ट्रीयता की भावना से आप्लावित होकर अपने स्वतन्त्र राष्ट्र की स्थापना की।
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