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| 1. | विदेश-व्यापार (Foreign Trade) का अर्थ बताकर इसका महत्त्व समझाइए । | 
| Answer» विदेश-व्यापार का अर्थ (Meaning) : सामान्य अर्थ में दो या दो से अधिक देशों के मध्य होनेवाले व्यापार को विदेशी व्यापार कहते हैं । जैसे भारत का व्यापारी अमेरिका (USA) से व्यापार करे, तो यह विदेशी व्यापार कहलायेगा । परिभाषाएँ (Definitions): 
 महत्त्व (Importance) : विदेश-व्यापार का महत्त्व निम्नलिखित है : 1. श्रम-विभाजन तथा विशिष्टीकरण का लाभ : विश्व के पृथक-पृथक देशों के मध्य प्राकृतिक साधन-सम्पत्ति का असमान विवरण हुआ होने से देश की जरूरतमंद सभी वस्तुएँ उत्पादित नहीं होती । जिस देश में जिस वस्तु का उत्पादन अनुकूल हो वह वस्तु कम खर्च पर सरलता से उत्पादन करके अन्य देश में निर्यात कर सकते है । और देश की आवश्यकतावाली वस्तुएँ विदेश से आयात की जा सकती है । अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के कारण आयातकर्ता देश एवं निर्यातकर्ता देश को श्रम विभाजन और विशिष्टीकरण का लाभ मिलता है । 2. अल्पविकसित देशों का विकास : विदेशी व्यापार के कारण विदेशी टेक्नोलॉजी, आधुनिक संचालकीय ज्ञान, संशोधन, विदेशी पूँजी आदि का आयात कर सकते है । अल्पविकसित देश अन्य देशों के साथ सहयोग के अनुबन्ध (करार) करके उद्योग-धन्धे स्थापित करके देश का विकास आसानी से किया जा सकता है । 3. साधन-सम्पत्ति का अधिकतम उपयोग : विश्व के पृथक-पृथक देशों की साधन-सम्पत्ति का ज्यादातर उपयोग विदेशी व्यापार के कारण होता है । प्रत्येक देश अपनी आवश्यकता के अनुसार टेक्नोलॉजी, यंत्र और मानवीय श्रम का आयात करके अपने साधनों का महत्तम . उपयोग सम्भव बनाते है । विभिन्न देशों में स्थित लोग अपने देश की प्राकृतिक सम्पत्ति का उपयोग उनकी योग्यता अनुसार करके उत्पादन में वृद्धि करते है और अतिरिक्त उत्पादन का निर्यात करते है । 4. आनुषांगिक/सहायक सेवाओं का विकास : विदेशी व्यापार के कारण आयात और निर्यात होने से वाणिज्य विषयक सहायक सेवाएँ जैसे कि बैंक, बीमा, गोदाम, संदेशा व्यवहार, परिवहन की सेवाएँ, आढ़तिया आदि सेवाओं का विकास होता है । 5. मूल्य स्तर को स्थिर बनाये रखना : विदेशी व्यापार द्वारा देश में जिस वस्तु की अधिक से अधिक घट (कमी) है उनका निर्यात करके घटते मूल्य को रोका जा सकता है, और इस तरह वस्तु की घट (कमी) को उनका आयात करके बढ़ते हुए मूल्य को रोका जा सकता है । इस तरह विदेशी व्यापार द्वारा मूल्य स्तर को स्थिर रखा जा सकता है । 6. ऊँचा जीवन स्तर : विदेशी व्यापार में अलग-अलग देशों के मध्य स्पर्धा होती रहती है । स्पर्धा में बने रहने के लिए उत्पादक अपनी वस्तु की कीमत (मूल्य) कम हो और अधिक अच्छी गुणवत्ता बनी रहे इसके लिए प्रयास करते है । उत्तम गुणवत्तावाली वस्तु कम मूल्य पर मिलने से लोगों के जीवन स्तर में सुधार होता है । 7. संस्कृति, फैशन और ज्ञान का विनिमय : विदेशी व्यापार के कारण अलग-अलग देश एक-दूसरे के सम्पर्क में आते है, एक-दूसरे के बारे में जानकारी प्राप्त करते है और एक-दूसरे की संस्कृति समझते है, जिससे दीर्घ समय पर विदेशी सुमेल और संवादिता बनाई जा सकती है । इस तरह, अलग-अलग देशों के मध्य संस्कृति, फैशन और ज्ञान का विनिमय (आदान-प्रदान) होता है । 8. आपत्तिकाल में सहायक : अकाल, भूकम्प, रोग का फैलना, आँधी जैसी प्राकृतिक अथवा मानवसर्जित आपत्तियों में वस्तु की आपूर्ति अनियमित हो जाती है, तब विदेशी व्यापार का विशेष महत्त्व होता है । भारत जैसे देश में अधिकांशत: कृषि वर्षा पर आधारित है । यदि पर्याप्त मात्रा में वर्षा न होने पर कृषि असफल हो जाती है । ऐसे समय पर विदेश से अनाज आयात करके प्राकृतिक आपत्तियों का सामना किया जा सकता है । 9. विश्व एक बाजार : औद्योगिक रूप से विकसित और समृद्ध राष्ट्र उच्च (ऊँची) टेक्नोलॉजी का उपयोग करके बड़े पैमाने पर उत्पादन करते है । ऐसे उत्पादन को बेचने के लिए सतत नये बाजार खोजने के प्रयत्न करते है, इसके लिए देश की सीमाए पार करते है । जिसके कारण विदेशी बाजार विकसित होता है । इस तरह विश्व के बहुत से देश अन्तर्राष्ट्रीय (विदेशी) बाजार में प्रवेश करते है। जिससे विश्व एक बाजार बन गया है । | |