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‘विश्वासपात्र मित्र से बड़ी भारी रक्षा रहती है।’ स्पष्ट कीजिए।

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प्रस्तुत पंक्ति में आचार्य शुक्ल यह बताना चाहते हैं कि मानव-जीवन में विश्वासपात्र मित्र का कितना अधिक महत्त्व है। लेखक की मान्यता है कि जिस मित्र पर विश्वास किया जा सके, वह मानव-जीवन के लिए दवाई के समान होता है। जैसे दवाई हमें विभिन्न बीमारियों से मुक्त करा देती है, वैसे ही विश्वासपात्र मित्र हमें जीवन के अनेक संकटों से बचा सकता है। लेखक का विचार है कि विश्वासपात्र मित्र हमारे विचारों को ऊँचा उठाते हैं, हमारे चरित्र को दृढ़ बनाते हैं, हमें बुराइयों और गलतियों से बचाते हैं। ऐसा मित्र हमारे मन और आचरण में सत्य-निष्ठता को जागृत करता है तथा हमें पवित्रतापूर्वक जीवन-यापन करने की प्रेरणा देता है। ऐसे मित्र की प्रेरणा से हम प्रेमपूर्वक मर्यादित जीवनयापन कर सकते हैं। हमें निराशा के क्षणों में प्रोत्साहन भी विश्वासपात्र मित्रों से ही प्राप्त होता है।



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