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This section includes InterviewSolutions, each offering curated multiple-choice questions to sharpen your knowledge and support exam preparation. Choose a topic below to get started.

1.

बिन्दु ‘U’ क्या दर्शाता है?(क) संसाधनों का अल्प एवं अकुशल प्रयोग(ख) संसाधनों का पूर्ण एवं कुशलतम प्रयोग(ग) तकनीक में सुधार(घ) अप्राप्य संयोग

Answer»

(क) संसाधनों का अल्प एवं अकुशल प्रयोग

2.

अवसर लागत क्या है? एक संख्यात्मक उदाहरण की सहायता से समझाइए। 

Answer»

अवसर लागत दूसरे अवसर की हानि के रूप में पहले अवसर को लाभ उठाने की लागत है। दूसरे शब्दों में, । “अवसर लागत को किसी साधन के उसके दूसरे सर्वश्रेष्ठ वैकल्पिक प्रयोग के मूल्य के रूप में परिभाषित कर सकते हैं।” उदाहरण के लिए जब हम वाणिज्य विषयों (Commerce subjects) को चुनते हैं तो हमें विज्ञान विषयों (Science subjects) का त्याग करना पड़ता है तो विज्ञान विषय हमारे वाणिज्य विषय चुनने की अवसर लागत हैं। इसी प्रकार यदि एक व्यक्ति ने M.A. (Economics) किया है तो वह शिक्षक बनकर 40000, किताबें लिखकर 50000 तथा अर्थशास्त्री बनकर 70000 कमा सकता है तो अर्थशास्त्री बनने के लिए उसे किताबें लिखने तथा शिक्षक बनने के अवसर को छोड़ना होगा, परन्तु उसकी अवसर लागत (Opportunity cost) 50000 है। क्योंकि यह दूसरा सर्वश्रेष्ठ वैकल्पिक प्रयोग है।

3.

भारत एक श्रम प्रधान देश है। इसे पूँजी प्रधान और श्रम प्रधान उत्पादन की तकनीक में से कौन-सी तकनीक अपनानी चाहिए?

Answer»

यदि भारत में श्रम प्रधानता है तो श्रम की लागत पूँजी की लागत से कम होगी, परन्तु पूँजी की उत्पादकता श्रम की उत्पादकता से कहीं अधिक है। अतः कुल मिलाकर पूँजी प्रधान तकनीक से प्रति इकाई लागत न्यूनतम हो सकती है। परन्तु साथ ही श्रमिकों को रोजगार देना भी आवश्यूक है। अतः एक ऐसा मार्ग ढूंढा जाना चाहिए, जिसमें श्रमिकों को रोजगार भी मिल जाए तथा प्रति इकाई लागत भी न्यूनतम हो।

4.

बढ़ती हुई जनसंख्या को देखते हुए हमें उत्पादन संभावना वक्र को दाँई ओर खिसकाने की आवश्यकता है। इसके लिए हम क्या कर सकते हैं?

Answer»

(i) तकनीक में सुधार द्वारा
(ii) शिक्षा तथा प्रशिक्षण के विस्तार से श्रम की उत्पादकता बढ़ाकर
(iii) संसाधनों का विकास करके
(iv) नए संसाधनों के अन्वेषण द्वारा

5.

निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सत्य है?(क) हमारी आवश्यकताएँ सदा संसाधनों से अधिक होती हैं।(ख) हमारे संसाधन सदा आवश्यकताओं से अधिक होते हैं।(ग) संसाधनों के वैकल्पिक प्रयोग नहीं होते।(घ) इच्छाओं के वैकल्पिक प्रयोग होते हैं।

Answer»

(क) हमारी आवश्यकताएँ सदा संसाधनों से अधिक होती हैं।

6.

संसाधनों के कारण पूर्ण रोजगार के बावजूद एक अर्थव्यवस्था PP वक्र से नीचे कार्यशील हो सकती है यदि(क) संसाधन प्राकृतिक हो(ख) संसाधन मानवकृत हो(ग) संसाधनों का कुशल प्रयोग न हो रहा हो(घ) तकनीक पुरानी हो

Answer»

(ग) संसाधनों का कुशल प्रयोग न हो रहा हो

7.

एक अर्थव्यवस्था में शिक्षा का महत्व जानकर लोगों ने अपने बच्चों की शिक्षा पर बहुत ध्यान देना शुरू कर दिया। इससे उत्पादन संभावना वक्र पर क्या प्रभाव पड़ेगा?(क) PP वक्र दाँई ओर खिसकेगा(ख) PP वक्र बाँई ओर खिसकेगी(ग) PP वक्र से नीचे उत्पादन होगा(घ) PP वक्र से ऊपर उत्पादन होगा

Answer»

सही विकल्प है  (क) PP वक्र दाँई ओर खिसकेगा

8.

आवश्यकताएँ कितने प्रकार की होती हैं?याअनिवार्य आवश्यकताएँ किन्हें कहा जाता है?याआरामदायक आवश्यकताओं से आप क्या समझती हैं?याविलासात्मक आवश्यकताओं से क्या आशय है?

Answer»

व्यक्ति की आवश्यकताएँ अनन्त होती हैं तथा वे कभी भी पूर्ण नहीं होतीं। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए मानवीय आवश्यकताओं का एक व्यवस्थित वर्गीकरण किया गया है। इस वर्गीकरण के अन्तर्गत समस्त मानवीय आवश्यकताओं को तीन वर्गों में रखा गया है। ये वर्ग हैं-अनिवार्य आवश्यकताएँ, आरामदायक आवश्यकताएँ तथा विलासात्मक आवश्यकताएँ। इन तीनों प्रकार की आवश्यकताओं का संक्षिप्त परिचय निम्नवर्णित है

(1) अनिवार्य आवश्यकताएँ:
मानव जीवन के लिए अत्यधिक अनिवार्य आवश्यकताओं को इस वर्ग में सम्मिलित किया जाता है। इस वर्ग की मानवीय आवश्यकताओं को व्यक्ति की मौलिक आवश्यकताएँ भी कहा जाता है। इस वर्ग की आवश्यकताओं की पूर्ति के अभाव में मनुष्य का जीवन भी कठिन हो जाता है। मुख्य रूप से भोजन, वस्त्र तथा आवास को इस वर्ग की आवश्यकताएँ माना गया है। व्यापक रूप से इस वर्ग में भी तीन प्रकार की आवश्यकताओं को सम्मिलित किया जाता है, जिन्हें क्रमशः जीवनरक्षक अनिवार्य आवश्यकताएँ, कार्यक्षमतारक्षक अनिवार्य आवश्यकताएँ तथा प्रतिष्ठारक्षक
अनिवार्य आवश्यकताएँ कहा जाता है।

(2) आरामदायक आवश्यकताएँ:
इस वर्ग में उन आवश्यकताओं को सम्मिलित किया जाता है। जिनकी पूर्ति से व्यक्ति का जीक्न निश्चित रूप से अधिक सुखी तथा सुविधामय हो जाता है। 

उदाहरण के लिए – विभिन्न घरेलू उपकरण इसी वर्ग की आवश्यकताएँ हैं। इन उपकरणों को अपनाकर जीवन अधिक सरल हो जाता है।

(3) विलासात्मक आवश्यकताएँ:
इस वर्ग में उन आवश्यकताओं को सम्मिलितं किया जाता है। जो व्यक्ति की विलासात्मक इच्छाओं से सम्बन्धित होती हैं। इन आवश्यकताओं की पूर्ति के अभाव में न तो व्यक्ति के जीवन पर कोई प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और न ही व्यक्ति की कार्यक्षमता ही घटती है। विलासात्मक आवश्यकताएँ भिन्न-भिन्न समाज में भिन्न-भिन्न होती हैं। विलासात्मक आवश्यकताएँ भी तीन प्रकार की होती हैं, जिन्हें क्रमशः हानिरहित विलासात्मक आवश्यकताएँ, हानिकारक विलासात्मक आवश्यकताएँ तथा सुरक्षा सम्बन्धी विलासात्मक आवश्यकताएँ कहा जाता है। अधिक महँगी कार, आलीशान भवन, महँगे तथा अधिक संख्या में वस्त्र रखना हानिरहित विलासात्मक आवश्यकताओं की श्रेणी में आते हैं। भोग-विलास के साधने नशाखोरी तथा नैतिक एवं चारित्रिक पतन के साधनों को अपनाना हानिकारक विलासात्मक आवश्यकताओं से सम्बद्ध हैं। जहाँ तक सुरक्षात्मक विलासात्मक आवश्यकताओं का सम्बन्ध है, इनमें बहुमूल्य गहनों तथा विभिन्न सम्पत्तियों को सम्मिलित किया जाता है। ये वस्तुएँ व्यक्ति के संकट-काल में सहायक होती हैं।

9.

आवश्यकता एवं आर्थिक क्रियाओं को सम्बन्ध बताइए।

Answer»

आवश्यकता आविष्कार की जननी है। यदि आवश्यकताएँ न होतीं तो किसी प्रकार के आर्थिक प्रयास आदि का प्रश्न ही नहीं उठता। अतः आर्थिक प्रयत्न की जननी आवश्यकता ही है। इस प्रकार आर्थिक क्रियाओं एवं आवश्यकताओं में अत्यन्त घनिष्ठ सम्बन्ध हैं। वास्तव में, आवश्यकताएँ ही मनुष्य को आर्थिक प्रयत्न करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं। आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए मनुष्य विभिन्न प्रकार की आर्थिक क्रियाएँ करता है। इन आर्थिक क्रियाओं में उत्पादन, विनिमय, वितरण आदि को सम्मिलित किया जा सकता है।

10.

गृह-अर्थव्यवस्था के मुख्य सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।

Answer»

किसी भी परिवार की उत्तम गृह-अर्थव्यवस्था को बनाए रखने के लिए निम्नलिखित सिद्धान्तों को ध्यान में रखना चाहिए

  1. पारिवारिक लक्ष्यों के निर्धारण का सिद्धान्त
  2. आय के विश्लेषण का सिद्धान्त
  3. विभिन्न पारिवारिक योजनाओं सम्बन्धी सिद्धान्त
  4. पारिवारिक भविष्य की सुरक्षा सम्बन्धी सिद्धान्त
  5. परिवार के सदस्यों की सन्तुष्टि का सिद्धान्त।
11.

सफल गृह-अर्थव्यवस्था की किन्हीं दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।

Answer»

सफल गृह-अर्थव्यवस्था की दो विशेषताएँ हैं

  1. परिवार की आवश्यकताओं की प्राथमिकता को निर्धारित करना तथा
  2. गृह-अर्थव्यवस्था में बचत का प्रावधान रखना।
12.

गृह-अर्थव्यवस्था की एक सरल एवं स्पष्ट परिभाषा लिखिए।

Answer»

‘परिवार की आय तथा व्यय पर नियन्त्रण होना तथा आय का गृह के सृजनात्मक कार्यों में व्यय करना गृह-अर्थव्यवस्था कहलाता है।” निकिल तथा डारसी

13.

सफल गृह-अर्थव्यवस्था की मुख्य विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।

Answer»

यह सत्य है कि परिवार की सुख-शान्ति एवं समृद्धि के लिए गृह-अर्थव्यवस्था का उत्तम एवं सुनियोजित होना आवश्यक है। अब प्रश्न उठता है कि किस प्रकार की गृह-अर्थव्यवस्था को उत्तम या सफल कहा जा सकता है, अर्थात् सफल गृह-अर्थव्यवस्था की विशेषताएँ या लक्षण क्या हैं? सफल गृह-अर्थव्यवस्था की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित मानी जाती हैं ।

  1. सफल गृह-अर्थव्यवस्था में परिवार की मूलभूत आवश्यकताओं को प्राथमिकता दी जाती है।
  2. सफल गृह-अर्थव्यवस्था में परिवार की विभिन्न आवश्यकताओं में समन्वय स्थापित किया जाता है।
  3. सफल गृह-अर्थव्यवस्था में परिवार की समस्त आवश्यकताओं की प्राथमिकता को निर्धारित कर लिया जाता है।
  4. सफल गृह-अर्थव्यवस्था के अन्तर्गत आय के अनुसार व्यय का निर्धारण किया जाता है।
  5. सफल गृह-अर्थव्यवस्था के अन्तर्गत अनिवार्य रूप से बचत का प्रावधान होता है।
  6. सफल गृह-अर्थव्यवस्था में पारिवारिक सन्तोष का ध्यान रखा जाता है।
14.

गृह-अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाला मुख्यतम कारक क्या है?

Answer»

गृह-अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाला मुख्यतम कारक है-धन या आय।

15.

अवमूल्यन और मूल्यह्रास में अंतर स्पष्ट कीजिए।

Answer»

अवमूल्यन सरकार द्वारा आयोजन के अनुसार विदेशी करेंसी के संबंध में घरेलू करेंसी के मूल्य में कमी है, यह उस स्थिति में होता है जब विनिमय दर का निर्धारण पूर्ति और साँग की शक्तियों द्वारा नहीं होता है परंतु विभिन्न देशों की सरकारों द्वारा निश्चित किया जाता है। मूल्यहास विदेशी करेंसी के संबंध में, घरेलू करेंसी के मूल्य में आने वाली कमी है, यह उस स्थिति में होता है, जब अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार में विनिमय दर का निर्धारण पूर्ति और माँग की शक्तियों द्वारा होता है।

16.

गृह-अर्थव्यवस्था का अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा परिभाषा निर्धारित कीजिए। गृह-अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाले मुख्य कारकों का भी उल्लेख कीजिए।

Answer»

गृह विज्ञान’ घर तथा परिवार सम्बन्धी व्यवस्था का अध्ययन है। घर तथा परिवार की व्यवस्था के अनेक पक्ष हैं। इन पक्षों में ‘अर्थव्यवस्था एक महत्त्वपूर्ण पक्ष है। अन्य समस्त पक्षों में गृहिणी एवं परिजनों के दक्ष होते हुए भी, यदि घर की अर्थव्यवस्था सुचारु न हो, तो परिवार की सुख-शान्ति एवं समृद्धि संदिग्ध हो जाती है। इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए गृह विज्ञान में अर्थव्यवस्था का व्यवस्थित अध्ययन किया जाता है तथा प्रत्येक सुगृहिणी से आशा की जाती है कि वह गृह-अर्थव्यवस्था को उत्तम बनाए रखने में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान प्रदान करेगी। गृह-अर्थव्यवस्था के अर्थ, परिभाषा तथा उसे प्रभावित करने वाले कारकों का विवरण निम्नवर्णित है

गृह-अर्थव्यवस्था का अर्थ एवं परिभाषा
सार्वजनिक जीवन में अर्थव्यवस्था’ एक विशिष्ट प्रकार की व्यवस्था है जिसका सम्बन्ध मुख्य रूप से धन-सम्पत्ति से होता है। रुपए-पैसे की योजनाबद्ध व्यवस्था ही अर्थव्यवस्था है। प्रत्येक संस्था एवं संगठन के सुचारू संचालन के लिए स्पष्ट एवं सुदृढ़ अर्थव्यवस्था आवश्यक होती है। जब अर्थव्यवस्था को अध्ययन घर-परिवार के सन्दर्भ में किया जाता है, तब इसे गृह-अर्थव्यवस्था कहा जाता है। अर्थव्यवस्था के अर्थ को जान लेने के उपरान्त गृह-अर्थव्यवस्था का वैज्ञानिक अर्थ भी स्पष्ट किया जा सकता है। घर-परिवार के आय-व्यय को अर्थशास्त्र के सिद्धान्तों के आधार पर नियोजित करना तथा इस नियोजन के माध्यम से परिवार को अधिक-से-अधिक आर्थिक सन्तोष प्रदान करना ही गृह-अर्थव्यवस्था है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए निकिल तथा डारसी ने गृह-अर्थव्यवस्था को इन शब्दों में परिभाषित किया है, “परिवार की आय तथा व्यय पर नियन्त्रण होना तथा आय को गृह के सृजनात्मक कार्यों में व्यय करना गृह-अर्थव्यवस्था कहलाता है।” इस प्रकार स्पष्ट है कि गृह-अर्थव्यवस्था का सम्बन्ध, परिवार की आर्थिक क्रियाओं से होता है। इस स्थिति में यह भी जानना आवश्यक है कि आर्थिक क्रियाओं से क्या आशय है? आर्थिक क्रियाएँ व्यक्ति या परिवार की उन क्रियाओं को कहा जाता है, जिनका धन के उपभोग, उत्पादन, विनिमय अथवा वितरण से होता है। परिवार की विभिन्न आर्थिक गतिविधियाँ ही परिवार की आर्थिक पूर्ति में सहायक होती हैं। इस दृष्टिकोण से परिवार की आर्थिक गतिविधियों का विशेष महत्त्व होता है। यहाँ यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि प्रत्येकै परिवार निरन्तर रूप से असंख्य आवश्यकताओं को महसूस करता है तथा चाहता है कि उसकी समस्त आवश्यकताएँ पूरी होती रहें। परन्तु समस्त आवश्यकताओं को पूरा कर पाना प्रायः सम्भव नहीं होता। इस स्थिति में व्यक्ति अथवा परिवार की आवश्यकताओं की प्राथमिकता को निर्धारित किया जाता है। यह कार्य भी गृह-अर्थव्यवस्था के ही अन्तर्गत किया जाता है। परिवार का अर्थ-व्यवस्थापक परिवार की आवश्यकताओं की प्राथमिकता को निर्धारित करता है तथा प्राथमिकता के आधार पर विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए समुचित प्रयास किए जाते हैं। इस प्रकार की दृष्टिकोण अपना लेने से गृह-अर्थव्यवस्था उत्तम बनी रहती है। सफल गृह-अर्थव्यवस्था के लिए परिवार की आर्थिक गतिविधियों को सुनियोजित बनाना नितान्त आवश्यक है। किसी भी स्थिति में पारिवारिक व्यय को पारिवारिक आय से अधिक नहीं होना चाहिए। आय की तुलना में व्यय के अधिक हो जाने की स्थिति में पारिवारिक अर्थव्यवस्था डगमगा जाती है तथा परिवार को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ जाता है।

गृह-अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाले मुख्य कारक
घर-परिवार की सुख-शान्ति तथा समृद्धि के लिए गृह-अर्थव्यवस्था का उत्तम होना नितान्त आवश्यक है। गृह-अर्थव्यवस्था को विभिन्न कारक प्रभावित करते हैं। गृह-अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाले मुख्य कारकों को संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है

(1) गृह-अर्थव्यवस्था की सुचारू प्रक्रिया:
परिवार की सम्पूर्ण आय को ध्यान में रखते हुए पारिवारिक व्यय की व्यवस्थित योजना तैयार करना ही, गृह-अर्थव्यवस्था की प्रक्रिया कहलाती है। इस योजना के अन्तर्गत आय तथा व्यय में सन्तुलन बनाए रखना आवश्यक होता है। इसके लिए पारिवारिक-बजट का निर्धारण तथा उसका पालन करना सहायक सिद्ध होता है। आय एवं व्यय में परस्पर सन्तुलन रखने की यह योजना गृह-अर्थव्यवस्था को गम्भीर रूप से प्रभावित करती है।

(2) पारिवारिक आय:
गृह-अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाले कारकों में पारिवारिक आय एक अति महत्त्वपूर्ण कारक है। पारिवारिक आय के अर्जन में प्रमुख योगदान परिवार के मुखिया का होता है। वास्तव में धनोपार्जन का दायित्व मुख्य रूप से परिवार के मुखिया का ही माना जाता है। मुखिया की आय परिवार की अर्थव्यवस्था को विशेष रूप से प्रभावित करती है। यदि मुखिया के अतिरिक्त परिवार का कोई अन्य सदस्य भी धनोपार्जन करता हो, तो उसकी आय को भी गृह-अर्थव्यवस्था के लिए प्रभावकारी कारक माना जाता है।

(3) गृहिणी की कुशलता:
निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि गृहिणी की कुशलता भी गृह-अर्थव्यवस्था को प्रभावित करती है। कुशल गृहिणी परिवार की आवश्यकताओं की प्राथमिकता को निर्धारित करके आय के अनुसार व्यय करती है। मितव्ययिता ही अच्छी गृहिणी का आवश्यक गुण है। कुशल गृहिणी गृह-अर्थव्यवस्था के लिए जहाँ एक ओर बचत का बजट निर्धारित करती है, वहीं दूसरी ओर परिवार की आय में यथासम्भव वृद्धि के उपाय भी करती है।

(4) पारिवारिक व्यय का नियोजन:
यह सत्य है कि गृह-अर्थव्यवस्था को परिवार की आय मुख्य रूप से प्रभावित करती है, परन्तु आय के साथ-साथ व्यय का नियोजन भी अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। भले ही परिवार की आय कितनी भी अधिक क्यों न हो, यदि आय से व्यय अधिक हो जाए तो समस्त प्रयास करने के उपरान्त भी परिवार की अर्थव्यवस्था सन्तुलित नहीं रह पाती। इस प्रकार कहा जा सकता है कि उत्तम गृह-अर्थव्यवस्था के लिए पारिवारिक व्यय का नियोजन भी एक महत्त्वपूर्ण कारक है। यदि नियोजित ढंग से व्यय नहीं किया जाता, तो परिवार की अर्थव्यवस्था के बिगड़ जाने की आशंका रहती है।

(5) परिवार के रहन-सहन का स्तर:
गृह-अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाला एक अन्य कारक है-परिवार के रहन-सहन का स्तर। प्रत्येक परिवार चाहती है कि उसका रहन-सहन का स्तर उन्नत हो। रहन-सहन के स्तर को ऊँचा उठाने के लिए पर्याप्त धन व्यय करना पड़ता है। इस स्थिति में यदि इस प्रकार से किया जाने वाला व्यय पारिवारिक आय के अनुरूप नहीं होता, तो निश्चित रूप से गृह-अर्थव्यवस्था बिगड़ जाती है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कहा जा सकता है कि रहन-सहन के स्तर को पारिवारिक आय को ध्यान में रखकर ही निर्धारित किया जाना चाहिए।

(6) निरन्तर होने वाले सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन:
समाज में निरन्तर रूप से होने वाले सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन भी परिवार की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करते हैं। फैशन, नवीन प्रचलन, मनोरंजन के नए-नए साधन आदि कारक परिवार के व्यय को बढ़ाते हैं। इस प्रकार यदि आय में वृद्धि नहीं होती तो परिवार का व्यय बढ़ जाने पर परिवार की अर्थव्यवस्था क्रमशः बिगड़ने लगती है। इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए सुझाव दिया जाता है कि अपनी आय को ध्यान में रखते हुए ही फैशन, मनोरंजन एवं सामाजिक उत्सवों आदि पर व्यय करना चाहिए।

(7) परिवार का आकार:
परिवार के आकार से आशय है-परिवार के सदस्यों की संख्या। परिवार के सदस्यों की संख्या भी परिवार की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाला एक उल्लेखनीय कारक है। यदि परिवार की आय सीमित हो तथा उस आय पर ही निर्भर रहने वाले परिवार के सदस्यों की संख्या अधिक हो, तो निश्चित रूप से परिवार के रहन-सहन का स्तर निम्न होगी तथा गृह-अर्थव्यवस्था भी संकट में रहेगी। इससे भिन्न यदि किसी परिवार में धनोपार्जन करने वाले सदस्यों की संख्या अधिक हो तथा उन पर निर्भर रहने वाले सदस्यों की संख्या कम हो तो निश्चित रूप से परिवार की अर्थव्यवस्था सुदृढ़ बनी रहती है तथा रहन-सहन का स्तर भी उन्नत बन सकता है। आधुनिक दृष्टिकोण से ‘छोटा-परिवार, सुखी-परिवार’ की धारणा को ही उत्तम माना जाता है।

17.

बाजार अर्थव्यवस्था में उत्पादन …………… के लिए किया जाता है।(क) लाभ(ख) समाज कल्याण(ग) सेवा(घ) सरकारी जिम्मेदारी

Answer»

सही विकल्प है  (क) लाभ

18.

‘आवश्यकता’ का अर्थ स्पष्ट कीजिए। परिवार की मूलभूत आवश्यकताओं को संक्षेप में वर्णन कीजिए।यापरिवार की मूल आवश्यकताएँ कौन-सी हैं? उनकी पूर्ति क्यों आवश्यक है?

Answer»

आवश्यकता का अर्थ
परिवार एक ऐसी सामाजिक संस्था है, जो अपने सदस्यों की विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए व्यापक प्रयास करती है। आवश्यकताओं को अनुभव करना तथा उनकी पूर्ति करना ही जीवन है। अब प्रश्न उठता है कि आवश्यकता से क्या आशय है? व्यक्ति की आवश्यकताएँ मूल रूप से व्यक्ति की कुछ विशिष्ट इच्छाएँ ही होती हैं, परन्तु व्यक्ति की समस्त इच्छाओं को उसकी आवश्यकताएँ नहीं माना जा सकता। इच्छाएँ हमारी भावनाओं से पोषित होती हैं। वे भौतिक जगत् की यथार्थताओं से दूर होती हैं, परन्तु आवश्यकताओं का सीधा सम्बन्ध भौतिक यथार्थताओं से होता है। आवश्यकताएँ हमारे भौतिक साधनों के अनुरूप होती हैं। इस प्रकार हमारी प्रबल इच्छाएँ तथा साधनानुकूल इच्छाएँ ही हमारी आवश्यकताएँ बन जाती हैं। इस प्रकार स्पष्ट है कि हम उस इच्छा को आवश्यकता कह सकते हैं जिसमें कल्पना के अतिरिक्त अन्य तीन तत्त्व भी विद्यमान हैं। ये तत्त्व हैं क्रमशः इच्छा की प्रबलता, इच्छा को पूर्ण करने के लिए समुचित प्रयास तथा इच्छापूर्ति के लिए सम्बन्धित त्याग के लिए तत्परता। इस प्रकार से हम व्यक्ति की उस इच्छा को आवश्यकता कह सकते हैं जिस इच्छा को पूरा करने के लिए उस व्यक्ति के पास समुचित साधन हैं तथा साथ-ही-साथ वह व्यक्ति उस इच्छा को पूरा करने के लिए सम्बन्धित साधन को इस्तेमाल करने के लिए तत्पर भी हो। आवश्यकता के अर्थ को पेन्शन ने इन शब्दों में स्पष्ट किया है, “आवश्यकता विशेष वस्तुओं की पूर्ति हेतु एक प्रभावपूर्ण इच्छा है जो उन्हें प्राप्त करने के लिए आवश्यक प्रयत्न अथवा त्याग के रूप में प्रकट होती है।” आवश्यकता के अर्थ एवं प्रकृति को ध्यान में रखते हुए स्मिथ तथा पैटर्सन ने स्पष्ट किया है, ”आवश्यकता किसी वस्तु को प्राप्त करने की वह इच्छा है जिसे पूरा करने के लिए मनुष्य में योग्यता है और वह उसके लिए व्यय करने के लिए तैयार हो।”परिवार की मूल आवश्यकताएँ
मनुष्य की विभिन्न आवश्यकताएँ होती हैं। आज के वैज्ञानिक युग में निरन्तर बढ़ती हुई आवश्यकताओं ने मानव-जीवन को बड़ा जटिल बना दिया है। आज किसी के पास कितना ही धन हो, वह उसकी आवश्यकता के अनुपात में कम ही प्रतीत होता है। अतः कुशल संचालन के लिए आवश्यक है कि गृहिणी को आवश्यकताओं की जानकारी हो, जिससे वह कुशलतापूर्वक उनकी पूर्ति कर सके।
अनिवार्य आवश्यकताएँ ही मूल आवश्यकताएँ कहलाती हैं, जो प्रत्येक परिवार में प्राय: निम्नलिखित होती हैं

(1) भोजन:
पोषक तत्वों से युक्त सन्तुलित भोजन परिवार की प्रथम मूल आवश्यकता है। परिवार के सभी सदस्यों (बच्चे, स्त्री व पुरुष) को पोषणयुक्त भोजन पर्याप्त मात्रा में मिलना चाहिए।

(2) वस्त्र:
परिवार के सभी सदस्यों को पर्याप्त एवं उपयुक्त वस्त्र उपलब्ध होने चाहिए। उपयुक्त वस्त्रों से हमारा तात्पर्य है कि ये मौसम, व्यक्तिगत रुचि, सामाजिक स्थिति, रीति-रिवाजों आदि के अनुरूप होने चाहिए।

(3) आवासीय व्यवस्था:
परिवार के सदस्यों की आवश्यकताओं के अनुसार उचित आवास का होना एक अनिवार्य आवश्यकता है। पर्याप्त एवं शुद्ध जल, वायु, सूर्य का प्रकाश इत्यादि का उपलब्ध होना उचित आवास की आवश्यक विशेषताएँ हैं।

(4) शिक्षा:
बच्चों की अच्छी शिक्षा की व्यवस्था करना परिवार की मूल एवं अनिवार्य आवश्यकता है। उपयुक्त शिक्षा से व्यक्तित्व का विकास होता है। अतः बालक-बालिकाओं की शिक्षा का प्रबन्ध करना अति आवश्यक है। इसके अतिरिक्त उपयोगी सूचना देने वाली पत्र-पत्रिकाओं का भी प्रत्येक परिवार के लिए अलग महत्त्व है, क्योंकि ये सदस्यों के स्वास्थ्य, मनोरंजन, राजनीतिक, धार्मिक एवं सामाजिक ज्ञान में वृद्धि करती हैं।

(5) चिकित्सा एवं स्वास्थ्य रक्षा:
पोषणयुक्त भोजन, आवश्यक व्यायाम, मौसम के अनुरूप वस्त्र एवं घर व आस-पास की स्वच्छता आदि परिवार के सदस्यों को स्वस्थ रखने के लिए अति आवश्यक हैं। इनका विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए। किसी भी सदस्य के बीमार पड़ने पर उसे उपयुक्त चिकित्सा उपलब्ध होनी चाहिए।

(6) बच्चों की देखभाल:
बच्चे परिवार एवं देश का भविष्य होते हैं। अतः स्वास्थ्य, विकास, शिक्षा व आचार-व्यवहार के दृष्टिकोण से उनकी देखभाल अति आवश्यक है। बच्चों की उचित देखभाल को परिवार की मूल आवश्यकताओं में सम्मिलित किया जाता है।

(7) मनोरंजन:
मानसिक स्वास्थ्य के लिए स्वस्थ मनोरंजन अति आवश्यक है। अतः परिवार में मनोरंजन के यथा योग्य साधन अवश्य उपलब्ध होने चाहिए।

(8) प्रेम, स्नेह एवं सहयोग:
एकाकी परिवार में प्राय: पति-पत्नी एवं उनके अविवाहित बच्चे होते हैं। संयुक्त परिवार पति-पत्नी, उनके माता-पिता व भाई-बहनों के संयुक्त रूप से रहने के कार अधिक बड़ा हो जाता है। परिवार छोटा हो या फिर बड़ा, दोनों ही में सदस्यों के स्नेह व परस्पर सह की भावना का होना आवश्यक है। परिवाररूपी सामाजिक संस्था का कुशल संचालन प्रेम, स्नेह एवं सहयोग पर ही निर्भर करता है। यह प्रवृत्ति भी परिवार की मूल आवश्यकता है।

(9) आय:
यह परिवार की सबसे महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है। धन से प्रायः सभी भौतिक आवश्यकताएँ क्रय की जा सकती हैं। परिवार में धन का प्रमुख स्रोत पारिवारिक आय होती है। प्रत्येक परिवार की आय प्राय: सभी सदस्यों की मूल आवश्यकताओं को पूर्ण करने के योग्य होनी चाहिए।

(10) बचत:
आकस्मिक संकटों (बीमारी आदि) का सामना करने के लिए अतिरिक्त धन की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त लड़के-लड़कियों के विवाह, लड़कों के व्यवसाय एवं धार्मिक कार्यों आदि में भी अकस्मात् ही धन की आवश्यकता पड़ती है। धन की इस आकस्मिक आवश्यकता की पूर्ति एक बुद्धिमान् गृहिणी नियमित बचत द्वारा करती है। अतः प्रत्येक गृहिणी का कर्तव्य है कि वह आय-व्यय में सन्तुलन रखकर परिवार के भविष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उचित एवं अधिक-से-अधिक बचत करे। प्राथमिक एवं गौण आवश्यकताओं में भिन्नता लाना इतना सरल नहीं है जितना हम समझते हैं। वास्तव में जो वस्तु एक परिवार के लिए विलासिता की श्रेणी में है, वह वस्तु किसी अन्य परिवार के लिए अनिवार्य आवश्यकता की श्रेणी में मानी जा सकती है। अतः विभिन्न आवश्यकताएँ परिवार की आर्थिक दशा, रहन-सहन एवं समाज में स्तर तथा प्रतिष्ठा के अनुसार प्राथमिक अथवा गौण हो सकती हैं। परिवार के मुखिया तथा अन्य सदस्यों का दायित्व है कि वे पारिवारिक परिस्थितियों एवं उपलब्ध साधनों को ध्यान में रखते हुए पारिवारिक आवश्यकताओं की प्राथमिकता को निर्धारित कर लें तथा उनकी क्रमिक पूर्ति के लिए प्रयास करें।

19.

निम्नलिखित में से किसे व्यष्टि अर्थशास्त्र के अन्तर्गत अध्ययन किया जायेगा?(क) कपड़ा उद्योग(ख) बेरोजगारी(ग) प्राथमिक क्षेत्र(घ) उपरोक्त सभी

Answer»

सही विकल्प है  (क) कपड़ा उद्योग

20.

निम्नलिखित में से किसे समष्टि अर्थशास्त्र के अन्तर्गत अध्ययन किया जायेगा?(क) उपभोक्ता व्यवहार(ख) राष्ट्रीय आय(ग) कीमत सिद्धान्त(घ) कल्याण अर्थशास्त्र

Answer»

सही विकल्प है  (ख) राष्ट्रीय आय

21.

दुर्लभता और चयन का अटूट संबंध है। स्पष्ट कीजिए।

Answer»

यह कथन बिल्कुल सत्य है कि दुर्लभता और चयन का अटूट संबंध है। यदि संसाधन दुर्लभ न होते तो चयन की समस्या जन्म ही न लेती। संसाधनों की दुर्लभता ही चयन की समस्या को मूल कारण है। संसाधन न केवल दुर्लभ हैं, बल्कि वैकल्पिक प्रयोग वाले हैं। इसीलिए अधिकतम संतुष्टि प्राप्त करने के लिए व्यक्ति व समाज को संसाधनों के प्रयोग में चयन करना पड़ता है। इसीलिए यह कहा जाता है कि दुर्लभता ही सभी केन्द्रीय समस्याओं की जननी है।

22.

निम्नलिखित का अध्ययन समष्टि अर्थशास्त्र के अन्तर्गत होगा या व्यष्टि अर्थशास्त्र के अन्तर्गत?(i) राष्ट्रीय आय(ii) श्रमिकों का वेतन निर्धारण(iii) शिक्षा क्षेत्र(iv) प्राथमिक क्षेत्र(v) बैंक उद्योग(vi) कल्याण अर्थशास्त्र

Answer»

(i) राष्ट्रीय आय → समष्टि अर्थशास्त्र
(ii) श्रमिकों का वेतन निर्धारण → व्यष्टि अर्थशास्त्र
(iii) शिक्षा क्षेत्र → समष्टि अर्थशास्त्र
(iv) प्राथमिक क्षेत्र → समष्टि अर्थशास्त्र
(v) बैंक उद्योग → व्यष्टि अर्थशास्त्र
(vi) कल्याण अर्थशास्त्र → व्यष्टि अर्थशास्त्र

23.

मानवीय आवश्यकताओं की मुख्य विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।

Answer»

मानवीय आवश्यकताओं की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित होती हैं ।

  1. मानवीय आवश्यकताएँ असीमित होती हैं।
  2. मानवीय आवश्यकताओं में पुनरावृत्ति होती है। उदाहरण के लिए–एक बार भोजन ग्रहण कर लेने के उपरान्त कुछ समय बाद पुनः भोजन की आवश्यकता महसूस होने लगती है।
  3. आवश्यकताओं की एक विशेषता यह है कि इनमें विकल्प भी सम्भव होते हैं। उदाहरण के लिए–प्रकाश की आवश्यकता के लिए साधन के रूप में लैम्प, मोमबत्ती, वैद्युत-बल्ब आदि में विकल्प हो सकता है।
  4. कुछ आवश्यकताएँ परस्पर पूरक होती हैं। उदाहरण के लिए मोटर की पूरक आवश्यकता पेट्रोल है।
  5. मानवीय आवश्यकताओं में प्रतिस्पर्धा होती है तथा उनकी प्रबलता में अन्तर होता है।
  6. वर्तमान सम्बन्धी मानवीय आवश्यकताएँ अधिक प्रबल होती हैं।
  7. कुछ मानवीय आवश्यकताएँ आदत का रूप ले लेती हैं।
  8. जानकारी बढ़ने के साथ-साथ आवश्यकताएँ बढ़ती हैं।
  9. आवश्यकताओं पर विज्ञापन एवं प्रचार का भी प्रभाव पड़ता है।
  10. मानवीय आवश्यकताओं की एक विशेषता यह है कि इन पर प्रचलित रीति-रिवाजों तथा फैशन का भी प्रभाव पड़ता है।
24.

आवश्यकता की अनिवार्यता आप किस प्रकार निर्धारित करेंगी?

Answer»

आवश्यकता की अनिवार्यता निम्नलिखित आधारों पर निर्भर करती है

(1) कुशलता में वृद्धि का आधार:
यदि किसी आवश्यकता की पूर्ति से परिवार की कार्य-कुशलता में वृद्धि होती है, तो वह आवश्यकता अति अनिवार्य हो जाती है।

(2) सुख-सन्तोष का आधार:
जिन आवश्यकताओं की पूर्ति से पारिवारिक सदस्यों को सुख एवं सन्तोष की प्राप्ति होती है, वे अनिवार्यता की श्रेणी में आती हैं।

(3) मूल्य एवं माँग का आधार:
यदि किसी आवश्यक वस्तु के मूल्य में वृद्धि की आशंका हो तो वह अनिवार्यता की श्रेणी में आ जाती है।

25.

आर्थिक समस्या क्या है? यह क्यों उत्पन्न होती है?अथवाअर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्याएँ क्यों उत्पन्न होती हैं?

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अर्थव्यवस्था की आर्थिक समस्या संसाधनों की आबंटन की समस्या है। यह दुर्लभ संसाधनों के उपयोगों में चुनाव की समस्या है। प्रा. एरिक रोल के शब्दों में, “आर्थिक समस्या निश्चित रूप से चयन की आवश्यकता से उत्पन्न होने वाली समस्या है, जिसमें वैकल्पिक उपयोग वाले सीमीत संसाधनों का प्रयोग किया जाता है। यह संसाधनों के दोहन की समस्या है।”

आर्थिक समस्या उत्पन्न होने के कारण
(क) मानव की इच्छाएँ असीमीत हैं-मानव की इच्छाएँ गुणात्मक तथा मात्रात्मक दोनों रूप से असीमीत हैं। जैसे ही एक इच्छा पूर्ण होती है, एक अन्य इच्छा जन्म ले लेती हैं यदि इच्छाएँ सीमित होती तो एक समय ऐसा आता जब मनुष्य की सभी इच्छाएँ पूर्ण हो जाती, परन्तु ऐसा नहीं होता है क्योंकि इच्छाओं का कोई अन्त नहीं है, परन्तु सभी इच्छाएँ एक समान तीव्र नहीं होती हैं। कुछ इच्छाएँ अधिक तीव्र (जरूरी) होती हैं कुछ कम।
(ख) इच्छाओं की पूर्ति के साधन सीमीत हैं-इच्छाओं की तुलना में उनकी पूर्ति के साधन सीमीत होते हैं। यह बात एक व्यक्ति के लिए भी सत्य है तो एक संपूर्ण अर्थव्यवस्था के लिए भी। एक व्यक्ति की आय कितनी भी बढ़ जाये वह इतनी नहीं होती कि उसकी सभी इच्छाएँ पूर्ण हो सकें। इसी प्रकार अमीर से अमीर अर्थव्यवस्था में उत्पादन कारक-श्रम, पूंजी, भूमि एवं उद्यम इतने नहीं होते कि सभी वांछित वस्तुओं का उत्पादन किया जा सके।
(ग) साधनों के वैकल्पिक उपयोग हैं-साधन न केवल सीमीत हैं अपितु उनके वैकल्पिक उपयोग भी हैं। उदाहरण के लिए यदि एक श्रमिक है तो उसे कृषि में भी उपयोग किया जा सकता है तथा उद्योग में भी। इसी प्रकार यदि एक भूमि का टुकड़ा है तो उस पर स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, कृषि, उद्योग, घर आदि बन सकते हैं। एक प्रयोग करने पर हमें दूसरे प्रयोग का त्याग करना होगा। अतः साधनों के वैकल्पिक उपयोग होने के कारण हमें उनके सर्वोत्तम प्रयोग का चयन करना पड़ता है। अतः संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि इच्छाओं की तुलना में वैकल्पिक उपयोग वाले संसाधनों की दुर्लभता आर्थिक समस्या को जन्म देती है।

26.

आवश्यकताओं के महत्व पर प्रकाश डालिए।

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आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है। विज्ञान के विभिन्न आविष्कारों के अन्वेषण का आधार सदैव मनुष्य की आवश्यकताएँ ही रही हैं। आदि मानव से आज के मानव का सामाजिक विकास समय-समय पर आवश्यकताओं की उत्पत्ति एवं तुष्टि के कारण ही सम्भव हुआ है। आधुनिक युग में आवश्यकताओं की पूर्ति का सर्वश्रेष्ठ साधन धन है। आवश्यकताओं में वृद्धि होने पर परिवार के सदस्य पारिवारिक आय में वृद्धि का प्रयास करते हैं, जिसके फलस्वरूप रहन-सहन का स्तर ऊँचा होता है। सम्मिलित आर्थिक प्रयासों से पारिवारिक सदस्यों में स्नेह, सहयोग एवं दायित्व की भावना में वृद्धि होती है तथा परिवार की उन्नति होती है।

27.

केन्द्रीय समस्याएं क्यों उत्पन्न होती हैं? संसाधनों के आबंटन की समस्या की व्याख्या कीजिए।

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केन्द्रीय समस्याएँ उत्पन्न होने के पीछे तीन मूलभूत कारण हैं

(क) मानव आवश्यकताएँ असीमीत हैं-मानव की आवश्यकताएँ असंख्य तथा असीमित हैं जैसे ही एक इच्छा पूर्ण होती है। एक अन्य इच्छा जन्म ले लेती है। यदि इच्छाएँ सीमित होती तो एक समय ऐसा आता है। जब मनुष्य की सभी इच्छाएँ पूर्ण हो जाती, परंतु ऐसा नहीं होता क्योंकि इच्छाओं का कोई अन्त नहीं है। परंतु सभी इच्छाएँ एक समान तीव्र नहीं होती। कुछ इच्छाएँ जरूरी होती हैं। कुछ कम जरूरी होती हैं। अतः इच्छाओं का प्राथमिकीकरण करना सहज हो जाता है।
(ख) सीमित साधन–इच्छाओं की तुलना में उनकी पूर्ति के साधन सीमित होते हैं। यह बात एक व्यक्ति के लिए भी सत्य है। तो एक संपूर्ण अर्थव्यवस्था के लिए भी एक व्यक्ति की आये कितनी भी बढ़ जाये वह इतनी नहीं होती कि उसकी सभी इच्छाएँ पूर्ण हो सके। इसी प्रकार अमीर से अमीर अर्थव्यवस्था में उत्पादन कारक-श्रम, पूँजी, भूमि एवं उद्यम इतने नहीं होते कि सभी आवश्यक वस्तुओं का उत्पादन किया जा सके।
(ग) साधनों के वैकल्पिक उपयोग-साधन न केवल सीमित हैं अपितु उनके वैकल्पिक उपयोग भी हैं। उदाहरण के लिए यदि एक श्रमिक है तो उसे कृषि में भी उपयोग किया जा सकता है तथा उद्योग में भी। इसी प्रकार यदि एक भूमि का टुकड़ा है तो उस पर स्कूल, कॉलेज, व अस्पताल, कृषि, उद्योग, घर आदि बन सकते हैं। एक प्रयोग करने पर हमें दूसरे प्रयोग का त्याग करना होगा। अतः साधनों के वैकल्पिक उपयोग होने के कारण हमें उनके सर्वोत्तम प्रयोग का चयन करना पड़ता है। अतः संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि इच्छाओं की तुलना में वैकल्पिक उपयोग वाले संसाधनों की दुर्लभता आर्थिक समस्या को जन्म देती है।

संसाधनों के आबंटन की समस्या की व्याख्या इस प्रकार है-
(1) क्या उत्पादन करें?
(2) कैसे उत्पादन करें?
(3) किसके लिए उत्पादन करें?

(1) क्या उत्पादन करें – प्रत्येक अर्थव्यवस्था में असीमित भाव व इच्छाओं तथा सीमित व संसाधनों के कारण यह निर्णय लेना पड़ता है कि क्यों उत्पादन करें तथा कितनी मात्रा में उत्पादन करें। यदि एक अर्थव्यवस्था उपभोक्ता वस्तुओं का उत्पादन अधिक करें तो वह पूँजीकृत वस्तुओं का उत्पादन कम कर पायेगी। इसी प्रकार यदि आवश्यक वस्तुओं का उत्पादन किया जाए तो विलासिता की वस्तुओं का उत्पादन कम हो जायेगा।
(2) कैसे उत्पादन करें-प्रत्येक वस्तुओं का उत्पादन अनेकों तकनीकों से किया जा सकता है। मुख्यतः दो प्रकार की तकनीकें हैं (1) श्रम प्रधान तकनीक तथा (2) पूंजी प्रधान तकनीक। श्रम प्रधान तकनीक में श्रम अधिक तथा पूंजी कम प्रयोग होती है। तथा पूँजी प्रधान तकनीक में पूँजी अधिक तथा श्रम कम प्रयोग होता है। यदि हमारी अर्थव्यवस्था में पूँजी अधिक है तो पूँजी प्रधान तकनीक का उपयोग करना चाहिये। यदि हमारी अर्थव्यवस्था में श्रम अधिक है, तो श्रम प्रधान तकनीक का प्रयोग करना चाहिए।
(3) किसके लिए उत्पादन करें-इस समस्या का संबंध उत्पादित पदार्थ व सेवाओं के वितरण की समस्या से हैं, जब क्या उत्पादन करें तथा कैसे उत्पादन करें की समस्या का समाधान हो जाता है, तो प्रश्न उठता है कि इसका उपभोग कौन करेगा अर्थात किसके लिए उत्पादन किया है। कार्ल मार्क्स (Karl Marx) के अनुसार, “प्रत्येक से क्षमता अनुसार, प्रत्येक की आवश्यकता के अनुसार के आधार पर वितरण होना चाहिए।” अन्य विचारधारा के अनुसार उत्पादन का वितरण इस प्रकार हो, जो सभी को उपयोग की न्यूनतम मात्रा उपलब्ध हो सके।

28.

आधिकारिक आरक्षित निधि का लेन-देन क्या है? अदायगी संतुलन में इनके महत्व का वर्णन कीजिए।

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आधिकारिक आरक्षित लेन-देन से अभिप्राय सरकारी कोषों में उपलब्ध सोने के कोष तथा अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा के कोष में कमी और वृद्धि से है। इसका प्रयोग अदायगी संतुलन के आधिक्य और घाटे को ठीक करने के लिए किया जाता है। घाटे की दशा में विदेशी विनिमय बाजार में करेंसी को बेचकर तथा अपने देश के विदेशी विनिमय को कम करके कोई देश अधिकृत आरक्षित निधि संव्यवहार का कार्य कर सकता है। अधिकृत आरक्षित निधि में कमी को कुल अदायगी-घाटा संतुलन कहते हैं। इसके विपरीत आधिक्य की दशा में विदेशी विनिमय बाजार में करेंसी को खरीदकर तथा अपने देश के विदेशी विनिमय को बढ़ा करके कोई देश अधिकृत आरक्षित निधि संव्यवहार का कार्य कर सकता है। अधिकृत आरक्षित निधि में वृद्धि को कुल अदायगी आधिक्य संतुलन कहते हैं।

29.

स्वचालित युक्ति की व्याख्या कीजिए, जिसके द्वारा स्वर्णमान के अंतर्गत अदायगी-संतुलन प्राप्त किया जाता था।

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डेविड ह्यूम (David Hume) नामक एक अर्थशास्त्री ने 1752 में इसकी व्याख्या की कि किस प्रकार स्वर्णमान के अंतर्गत स्वचालित युक्ति से अदायगी-संतुलन प्राप्त किया जाता था। उनके अनुसार यदि सोने के भण्डार में कमी हुई, तो सभी प्रकार की कीमतें और लागत भी अनुपातिक रूप से कम होंगी और इसके फलस्वरूप घरेलू वस्तुएँ विदेशी वस्तुओं की तुलना में सस्ती हो जायेंगी। तदनुसार, आयात घटेगा और निर्यात बढेगा। जिस देश से घरेलू अर्थव्यवस्था आयात कर रही थी और सोने में उसको भुगतान कर रही थी, उसको कीमतों और लागतों में वृद्धि का सामना करना पड़ेगा। अतः उनका महँगा निर्यात घटेगा और घरेलू अर्थव्यवस्था से आयात बढ़ेगा। इस प्रकार धातुओं के कीमत तंत्र द्वारा सोने की क्षति उठाकर अदायगी संतुलन में सुधार लाना होता है। सापेक्षिक कीमत । पर जब तक अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में साम्य की पुनस्र्थापना नहीं होती, तब तक प्रतिकूल व्यापार संतुलन वाले देश के अदायगी संतुलन को अनुकूल व्यापार संतुलन वाले देश के अदायगी संतुलन को समकक्ष लाता है। इस संतुलन की प्राप्ति के बाद शुद्ध सोने का प्रवाह नहीं होता और आयात-निर्यात संतुलन बना रहता हैं इस प्रकार स्वचालित साम्यतंत्र के द्वारा स्थिर विनिमय दर को कायम रखा जाता था।

30.

क्या चालू पूँजीगत घाटा खतरे का संकेत होगा? व्याख्या कीजिए।

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चालू पूँजीगत खाता खतरे का संकेत होगा यदि इसका प्रयोग उपभोग अथवा गैर विकासात्मक कार्यों के लिए किया जा रहा है। यदि इसका उपयोग विकासात्मक योजनाओं के लिए किया जा रहा है, तो इससे अर्थव्यवस्था में आय और रोजगार का स्तर ऊँचा उठेगा। आय और रोजगार का स्तर ऊँचा उठने का अर्थ है कि भारतीयों की क्रय शक्ति बढ़ेगी। भारतीय अर्थव्यवस्था की निर्यात क्षमता बढ़ेगी, विदेशों में निवेश करने की क्षमता बढ़ेगी तथा सरकारी आय (कर तथा अन्य कारकों से) बढ़ेगी जिससे अर्थव्यवस्था इस घाटे की पूर्ति करने में समर्थ हो जायेगी।

31.

उन विनिमय दर व्यवस्थाओं की चर्चा कीजिए, जिन्हें कुछ देशों ने अपने बाह्य खाते में स्थायित्व लाने के लिए। किया है।

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निम्नलिखित विनिमय दर व्यवस्थाओं का कुछ देशों ने अपने बाह्य खाते में स्थायित्व लाने के लिए प्रयोग किया है:

⦁    विस्तृत सीमा पट्टी प्रणाली-इस प्रणाली के अंतर्गत अंतराष्ट्रीय मुद्रा बाजार में दी करेंसियों की समता दर के बीच + 10% तक का सामंजस्य करके भुगतान शेष को ठीक करने की छूट होती है। यह ऐसी प्रणाली को कहते हैं, जो स्थिर विनिमय दर में विस्तृत परिवर्तन/समंजन की अनुमति देती है।
⦁    चलित सीमाबंध प्रणाली-यह भी स्थिर और लोचशील विनिमय दर के बीच एक समझौता है, परंतु जैसा कि नाम है चलित यह कम विस्तृत है। इसके केवल समता दर के बीच + 1% तक का सामंजस्य करके भुगतान शेष को ठीक करने की छूट होती है। यह लघु सामंजस्य है जिसे समय-समय पर दोहराया जा सकता है।
⦁    प्रबंधित तरणशीलता प्रणाली-स्थिर और लोचशील विनिमय दरों की एक अंतिम मिश्रित प्रणाली है। यह स्थिर विनिमय दर और नम्य विनिमय दर का मिश्रण है, जो सरकार द्वारा प्रबंधित तथा नियंत्रित होता है। इसमें विनिमय दर को लगभग पूरी तरह से स्वतंत्र छोड़ दिया जाता है और मौद्रिक अधिकारी कभी-कभी हस्तक्षेप करते हैं।

32.

मौद्रिक विनिमय दर और वास्तविक विनिमय दर में भेद कीजिए यदि आपको घरेलू वस्तु अथवा विदेशी वस्तुओं के बीच किसी को खरीदने का निर्णय करना हो तो कौन-सी दर अधिक प्रासंगिक होगी?

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मौद्रिक विनिमय दर वह विनिमय दर है, जिसमें एक करेंसी की अन्य करेंसियों के संबंध में औसत शक्ति को मापते समय कीमत स्तर में होने वाले परिवर्तनों पर ध्यान नहीं दिया जाता। अन्य शब्दों में, यह मुद्रास्फीति के प्रभाव से मुक्त नहीं होती। इसके विपरीत, वास्तविक विनिमय दर वह है जिसमें विश्व के विभिन्न देशों के कीमत स्तरों में होने वाले परिवर्तन को ध्यान में रखा जाता है। यह वह विनिमय दर से, जो स्थिर कीमतों पर आधारित होने के कारण मुद्रास्फीति के प्रभाव से मुक्त होती है। किसी भी एक समय पर, घरेलू वस्तुएँ खरीदने के लिए मौद्रिक विनिमय दर अधिक उपयुक्त होती है।

33.

यदि देश B से देश A में मुद्रास्फीति ऊँची हो और दोनों देशों में विनिमय दर स्थिर हो तो दोनों देशों के व्यापार शेष का क्या होगा?

Answer»

देश B के लोग घरेलू वस्तुएँ अधिक लेंगे और आयात कम करेंगे विदेशी भी देश की वस्तुएँ अधिक खरीदेंगे।
अतः देश B में निर्यात > आयात होगा इसीलिए देश B का व्यापार शेष धनात्मक होगा। इसके विपरीत देश A के लोग विदेशी वस्तुएँ अधिक लेंगे और आयात अधिक करेंगे। विदेशी भी देश A से वस्तुएँ खरीदना नहीं चाहेंगे अतः देश A में आयात > निर्यात होगा इसीलिए देश A का व्यापार शेष ऋणात्मक होगा।

34.

खुली अर्थव्यवस्था स्वायत्त व्यय खर्च गुणक बंद अर्थव्यवस्था के गुणक की तुलना में छोटा क्यों होता है?

Answer»

खुली अर्थव्यवस्था गुणक बंद अर्थव्यवस्था गुणक से छोटा होता है, क्योंकि घरेलू माँग का एक हिस्सा विदेशी | वस्तुओं के लिए होता है। अतः स्वायत्त माँग में वृद्धि से बंद अर्थव्यवस्था की तुलना में निर्गत में कम वृद्धि होती। है। इससे व्यापार शेष में भी गिरावट होती है।

35.

केन्द्रीय योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था में केन्द्रीय समस्या का समाधान ………… द्वारा किया जाता है।(क) कीमत तंत्र(ख) सामाजिक तंत्र(ग) सरकार द्वारा नियुक्त केन्द्रीय अधिकारी(घ) इनमें से कोई भी

Answer»

(ग) सरकार द्वारा नियुक्त केन्द्रीय अधिकारी

36.

अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्याओं की विवेचना कीजिए।

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अर्थव्यस्था की केन्द्रीय समस्याएँ इस प्रकार हैं-

(i) किन वस्तुओं का उत्पादन किया जाए और कितनी मात्रा में प्रत्येक समाज को यह निर्णय करना होता है कि यह किन वस्तुओं का उत्पादन करे और कितनी मात्रा में। यदि एक प्रकार की वस्तुओं का उत्पादन अधिक किया जाए तो अर्थव्यवस्था में दूसरी प्रकार की वस्तुओं का उत्पादन कम हो सकता है तथा विपरीत।। एक अर्थव्यवस्था को यह निर्धारित करना पड़ता है कि वह खाद्य पदार्थों का उत्पादन करे या मशीनों का, शिक्षा एवं स्वास्थ्य पर खर्च करे या सैन्य सेवाओं के गठन पर, उपभोक्ता वस्तुएँ बनाए या पूँजीगत वस्तुएँ। निर्णायक सिद्धान्त यह है कि ऐसे संयोजन का उत्पादन करें, जिससे कुल समाप्त उपयोगिता अधिकतम हो।
(ii) वस्तुओं का उत्पादन कैसे करें-सभी वस्तुओं का उत्पादन कई तकनीकों द्वारा हो सकता है किसी वस्तु के उत्पादन में श्रम प्रधान तकनीक का प्रयोग करें या पूंजी प्रधान तकनीक का, यह निर्णय लेना होता है। इसके लिए निर्णायक सिद्धान्त यह है कि ऐसी तकनीक का प्रयोग करें, जिसका औसत उत्पादन लागत उत्पादन न्यूनतम हो।
(iii) उत्पादन किसके लिए करें–अर्थव्यवस्था में उत्पादित वस्तुओं की कितनी मात्रा किसे प्राप्त होगी अर्थव्यवस्था के उत्पादन को व्यक्ति विशेष में किस प्रकार विभाजित किया जाए। यह आय के वितरण पर निर्भर करता है। यदि आय समान रूप से विभाजित होगी, तो वस्तुएँ और सेवायें भी समान रूप से विभाजित होंगी। निर्णायक सिद्धान्त यह है कि वस्तुओं और सेवाओं को इस प्रकार वितरित करो कि बिना किसी को बतर बनाये किसी अन्य को बेहतर न बनाया जा सके।