InterviewSolution
This section includes InterviewSolutions, each offering curated multiple-choice questions to sharpen your knowledge and support exam preparation. Choose a topic below to get started.
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कृष्ण के रूप-सौन्दर्य को देखे बिना गोपियों के नेत्रों की क्या दशा हो रही है? |
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Answer» गोपियों के नेत्रों को स्वप्न में भी चैन प्राप्त नहीं है। श्रीकृष्ण के वियोग में गोपियों के प्राण निकलना चाहते हैं; किन्तु नेत्र उनके साथ नहीं जाना चाहते । अपने नेत्रों की व्याकुलता का वर्णन करती हुई गोपियाँ कहती हैं कि श्रीकृष्ण के दर्शन के अभाव में मरने पर भी हमारी आँखें खुली-की-खुली रह जायेंगी। |
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| 2. |
वियोगिनी गोपियों की आँखों को सदैव पश्चात्ताप क्यों रहेगा? |
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Answer» गोपियों की आँखें कृष्ण को नयन भरकर नहीं देख पायीं; अत: उनके वियोग में मरने के उपरान्त जिस-जिस लोक में वे जायेंगी, उन्हें पश्चात्ताप रहेगा। |
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‘आग लगा कर पानी के लिए दौड़ने’ का आशय स्पष्ट कीजिए। |
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Answer» आग लगाकर पानी के लिए दौड़ने का आशय अपनी की हुई गलत्री को छिपाना है। आग लगाकर पानी के लिए दौड़नेवाला यह दिखाना चाहता है कि आग उसने नहीं लगायी, बल्कि वह तो आग से बचाना चाहता है। विरहिणी गोपी को उसकी सखी ने पहले प्रिय से मिलाने का वायदा किया और उसके मन में उत्कण्ठा पैदा की और फिर उसे समझाने लगी। |
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निगोड़े का अर्थ स्पष्ट करते हुए बताइए कि बादलों को निगोड़े क्यों कहा गया है? |
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Answer» बादलों को देखकर गोपियों की विरह-वेदना और तेज हो गयी। विरहिणी ने बादल को निगोड़ा इसलिए कहा है। क्योंकि बादलों ने उमड़-घुमड़ कर ऐसा वातावरण निर्मित कर दिया है कि उनकी विरह वेदना और बढ़ गयी है। बादलों ने उनके साथ ऐसा करके दुष्टता का काम किया है। |
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‘कूप ही में यहाँ भाँग परी है’ से कवि का क्या तात्पर्य है? |
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Answer» इस पंक्ति में गोपियाँ उद्धव से कहती हैं कि यहाँ तो कुएँ में ही भाँग पड़ी हुई है; अर्थात् सारे ब्रजवासियों पर श्रीकृष्ण के प्रेम का नशा चढ़ा हुआ है। |
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रितून को कंत’ किसे और क्यों कहा गया है? |
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Answer» ‘रितून को कंत’ बसंत को कहा गया है क्योंकि चारों तरफ सरसों के फूल खिले हुए हैं। |
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श्रीकृष्ण को भूलने में गोपियाँ अपने को असमर्थ क्यों पाती हैं? |
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Answer» गोपियाँ श्रीकृष्ण को भूलने में अपने को इसलिए असमर्थ पाती हैं, क्योंकि उनका स्वयं मन ही जाकर श्रीकृष्ण में बस गया था। |
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गोपियाँ उद्धव से ज्ञान का उपदेश वापस ले जाने के लिए क्यों कह रही हैं? |
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Answer» गोपियाँ उद्धव से ज्ञान का उपदेश वापस लेने को इसलिए कह रही हैं क्योंकि ब्रज में उसको कोई ग्रहण नहीं करेगा। उनका मन श्रीकृष्ण के साथ चला गया है फिर वे कौन-से मन से उनके उपदेश को ग्रहण करें। |
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| 9. |
‘उतै चलि जात’ में किधर जाने की ओर संकेत है? |
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Answer» जिधर श्रीकृष्ण गये (मथुरा की ओर) उधर जाने का संकेत है। |
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भारतेन्दु जी के लेखन की भाषा बताइए। |
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Answer» भारतेन्दु जी के लेखन की भाषा ब्रजभाषा एवं खड़ीबोली हिन्दी है। |
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निम्नलिखित मुहावरों का अर्थ स्पष्ट करते हुए वाक्यों में प्रयोग कीजिए –प्रलय ढाना, पलकों में न समाना, कुएँ में भाँग पड़ी होना। |
Answer»
मेरे परीक्षा में अनुत्तीर्ण होने पर घर में जैसे प्रलये ढा गया हो।
विवाह के समय इतना उल्लास था कि वह आनन्द जैसे पलकों में न समा रहा हो।
कृष्ण के विरह में ब्रज की सभी गोपियाँ व्याकुल थीं, जिसे देखकर लगता था जैसे पूरे कुएँ में भाँग पड़ी हो। |
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| 12. |
‘कुकै लग कोइलैं कदंबन पै बैठि फेरि’ पंक्ति में कौन-सा अलंकार है? |
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Answer» ‘कूकै लगीं’ कोइलैं कदंबन पै बैठि फेरि’ में वृत्त्यनुप्रास अलंकार है। |
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निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए-(अ) परसों को बिताय दियो बरसों तरसों कब पांय पिया परसों।(ब) पिय प्यारे तिहारे निहारे बिना, अँखियाँ दुखियाँ नहीं मानती हैं।(स) बोलै लगे दादुर मयूर लगे नाचै फेरि । देखि के संजोगी जन हिय हरसै लगे। |
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Answer» (अ) काव्य-सौन्दर्य-
(ब) काव्य-सौन्दर्य-
(स) काव्य-सौन्दर्य-
“घन घमण्ड नभ, गरजत घोरा। प्रिया हीन डरपत मन मोरा।” |
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‘प्रलय’ की चाल से कवि का क्या तात्पर्य है? |
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Answer» प्रलयकाल में भयंकर वर्षा होती है, पृथ्वी पानी में डूब जाती है। प्रलय की चाल से कवि का तात्पर्य है कि आँखों से बहुत आँसू बहते हैं। |
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‘प्रेम माधुरी’ के सम्बन्ध में भारतेन्दु के विचारों को अपने शब्दों में लिखिए। |
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Answer» ‘प्रेम माधुरी’ कविता भारतेन्दु हरिश्चन्द्र द्वारा रचित है। इस कविता में कवि ने गोपिकाओं की विरह दशा का वर्णन किया है। सारांश- वर्षा ऋतु आने पर कोयलें फिर कदम्ब के वृक्षों पर बैठकर कूकने लगी हैं। मेंढक बोलने लगे हैं, मोर नाचने लगे। हैं और अपने प्रियजनों के समीप स्थित लोग इस वर्षा-ऋतु के दृश्यों को देख-देखकर प्रसन्न होने लगे हैं। भगवान् श्रीकृष्ण के मथुरा चले जाने पर उनके वियोग में गोपिकाएँ अत्यन्त दु:खी हैं। मथुरा जाते समय श्रीकृष्ण ने गोपिकाओं से वादा किया था कि परसों आ जायँगे। परसों की जगह बरसों बीत गये लेकिन श्रीकृष्ण भगवान् वापस नहीं आये। उद्धव गोपिकाओं को निर्गुण ब्रह्म की उपासना का सन्देश देते हैं। इसके उत्तर में गोपिकाएँ कहती हैं कि हम लोगों का मन पूरी तरह से श्रीकृष्ण में लीन है, अत: भगवान् श्रीकृष्ण से अलग नहीं हो सकता। |
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भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के जीवन-परिचय एवं रचनाओं का उल्लेख कीजिए।अथवाभारतेन्दु हरिश्चन्द्र की साहित्यिक सेवाओं का उल्लेख करते हुए उनके जीवन-परिचय पर प्रकाश डालिए।अथवाभारतेन्दु हरिश्चन्द्र की कृतियों का उल्लेख करते हुए उनकी भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए। |
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Answer» भारतेन्दु हरिश्चन्द्र जन्म- सन् 1850 ई०, काशी। मृत्यु- सन् 1885 ई० । पिता- बाबू गोपालचन्द्र। जीवन-परिचय- बाबू भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का जन्म काशी के एक प्रतिष्ठित वैश्य परिवार में सन् 1850 ई० में हुआ था। इनके पिता बाबू गोपालचन्द्र जी (गिरधरदास) ब्रजभाषा के अच्छे कवि थे। इन्हें काव्य की प्रेरणा पिता से ही मिली थी। पाँच वर्ष की अवस्था में ही एक दोहा लिखकर बाबू भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने पिता से कवि होने का आशीर्वाद प्राप्त कर लिया था। दुर्भाग्य से भारतेन्दु जी की स्कूली शिक्षा सम्यक् प्रकार से नहीं हो सकी थी। इन्होंने घर पर ही हिन्दी, उर्दू, फारसी, अंग्रेजी और संस्कृत भाषाओं का ज्ञान स्वाध्याय से प्राप्त किया था। भारतेन्दु जी साहित्य स्रष्टा होने के साथ-साथ साहित्यकारों और कलाकारों को खूब सम्मान करते थे। ये अत्यन्त ही मस्तमौला स्वभाव के व्यक्ति थे और इसी फक्कड़पन में आकर इन्होंने अपनी सारी पैतृक सम्पत्ति को बर्बाद कर दिया था जो बाद में इनके पारिवारिक कलह का कारण बना। सन् 1885 ई० में इनका देहान्त राजयक्ष्मी की बीमारी से हो गया। 35 वर्ष के अल्पकाल में ही भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने हिन्दी के सर्वतोन्मुखी विकास के लिए जो प्रयास किया वह अद्वितीय । था। इन्होंने पत्रिका प्रकाशन के साथ-साथ लेखकों का एक दल तैयार किया और निबन्ध, कहानी, उपन्यास, नाटक, कविता आदि हिन्दी की विभिन्न विधाओं में साहित्य प्रणयन को प्रेरणा प्रदान की। भारतेन्दु की साहित्यिक सेवाओं का ही परिणाम है कि उनके युग को ‘भारतेन्दु युग’ कहा गया है। रचनाएँ- बाबू भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की प्रसिद्ध काव्य-रचनाएँ हैं-प्रेम-माधुरी, प्रबोधिनी, प्रेम-सरोवर, प्रेम-फुलवारी, सतसई श्रृंगार, भक्तमाल, विनय, प्रेम पचीसी आदि । काशी नागरी प्रचारिणी सभा से प्रकाशित तीन खण्डों में भारतेन्दु ग्रन्थावली’ नाम से इनकी सस्त रचनाओं का संकलन हुआ है। भारतेन्दु जी की रचनाओं की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इन्होंने रीतिकालीन काव्यधारा को राजदरबारी विलासिता के वातावरण से मुक्त कराकर स्वतन्त्र जन-जीवन के साथ विचरण करने की नयी दिशा प्रदान की। इनकी रचनाओं में प्रेम और भक्ति के साथ-साथ राष्ट्रीयता, समाज-सुधार, राष्ट्रभक्ति और देश-प्रेम के व्यापक स्वरूप के दर्शन होते हैं। इन्होंने रीतिकालीन कवियों की भाँति प्रेम और श्रृंगार की भी सरल एवं भावपूर्ण मार्मिक रचनाएँ की हैं। काव्यगत विशेषताएँ (क) भाव-पक्ष- 1.भारतेन्दु जी को हिन्दी के आधुनिक काल का प्रथम राष्ट्रकवि नि:संकोच कहा जा सकता है। क्योंकि सर्वप्रथम इन्होंने ही साहित्य में राष्ट्रीयता, समाज-सुधार, राष्ट्रभक्ति तथा देश-भक्ति के स्वर मुखर किये। 2.गद्यकार के रूप में तो आप आधुनिक हिन्दी गद्य के जनक ही माने जाते हैं। 3.कविवचन सुधा और हरिश्चन्द्र सुधा आदि पत्रिकाओं के माध्यम से भारतेन्दु जी ने हिन्दी के लेखकों और कवियों को प्रेरणा प्रदान की तथा पद्य की विविध विधाओं का मार्ग निर्देशन किया। (ख) कला-पक्ष- 1.भाषा-शैली- भारतेन्दु जी की काव्य की भाषा ब्रज़ी और गद्य की भाषा खड़ीबोली है। इन्होंने भाषा का पर्याप्त संस्कार किया है। बाबू भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की काव्यगत शैलियों को निम्नलिखित चार श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है- (1) भावात्मक शैली, (2) अलंकृत शैली, (३) उद्बोधन शैली तथा (4) व्यंजनात्मक शैली ।। इसके अतिरिक्त गद्य के क्षेत्र में परिचयात्मक, विवेचनात्मक तथा भावात्मक, तीन प्रकार की रचनाएँ प्रयुक्त हुई हैं। 2.रस-छन्द-अलंकार- बाबू भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की रचनाओं में भक्ति, श्रृंगार, हास्य, वीभत्स और करुण आदि रसों को विशेष रूप से प्रयोग हुआ है। इन्होंने गीति काव्य के अतिरिक्त कवित्त, सवैया, छप्पय, कुण्डलिया, लावनी, गजल, दोहे आदि सभी प्रचलित छन्दों का प्रयोग अपनी रचनाओं में किया है। उपमा, रूपक, सन्देह, अनुप्रास, श्लेष, यमक इनके प्रिय अलंकार हैं। साहित्य में स्थान- आपको हिन्दी का युग-निर्माता कहा जाता है। आपने अपनी प्रतिभा से हिन्दी साहित्य को एक नया मोड़ दिया। इस दृष्टि से आधुनिक काल के साहित्यकारों में आपका एक विशिष्ट स्थान है। |
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