InterviewSolution
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भारत में कृषि वित्त के वर्तमान स्रोतों की चर्चा कीजिए। |
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Answer» भारत में कृषि वित्त के मुख्य स्रोत निम्नलिखित हैं 1. ग्रामीण, साहूकार व महाजन- ये प्रायः सम्पन्न किसान तथा भूमिपति होते हैं। ये कृषि के साथ-साथ लेन-देन का भी कार्य करते हैं। ये लोग कृषि के अतिरिक्त अन्य कार्यों के लिए भी पैसा उधार देते हैं। ⦁ परोक्ष उधार-रासायनिक खाद, बीज, जन्तुनाशक तत्त्व, पम्पिंग सैट तथा ट्रैक्टर के लिए भी स्टेट बैंक ऋण प्रदान करता है। ⦁ यह 18 महीने तक की अवधि के लिए अल्पकालीन साख राज्य सहकारी बैंकों, प्रादेशिक ग्रामीण बैंकों व अन्य वित्तीय संस्थाओं को प्रदान करेगा, ताकि उसका उपयोग कृषि कार्यों के विशिष्ट उत्पादन व बिक्री क्रियाओं के लिए किया जा सके। ⦁ 18 महीने से 7 वर्ष के लिए मध्यकालीन ऋण राज्य सहकारी बैंकों व प्रादेशिक ग्रामीण बैंकों को कृषि विकास व इनके द्वारा निर्धारित अन्य कार्यों के लिए दिए जाएँगे। ⦁ पुनर्वित के रूप में दीर्घकालीन ऋण भूमि विकास बैंकों, प्रादेशिक ग्रामीण बैंकों, अनुसूचित बैंकों, राज्य सहकारी बैंकों व अन्य वित्तीय संस्थाओं को कृषिगत व ग्रामीण विकास के लिए दिए जाएँगे। ⦁ यह राज्य सरकारों को 20 वर्ष तक के लिए ऋण दे सकेगी, ताकि वे प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से सहकारी साख समितियों की शेयर पूँजी में हिस्सा ले सकें। ⦁ यह केन्द्रीय सरकार की स्वीकृति पर किसी भी अन्य संस्था को दीर्घकालीन ऋण दे सकेगा, ताकि कृषि व ग्रामीण विकास को प्रोत्साहन दिया जा सके। |
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भू-सुधार के अन्तर्गत कौन-कौन से कार्यक्रम आते हैं? |
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Answer» ‘भूमि-सुधार’ एक अत्यन्त व्यापक शब्द है। अत: भूमि-सुधार की दिशा में जो सर्वतोमुखी प्रगति हुई है, उसका विवेचन हम निम्नलिखित शीर्षकों में करेंगे (अ) मध्यस्थों की समाप्ति-1. जमींदारी उन्मूलन। 2. जागीरदारी उन्मूलन। |
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भारत में कृषि उपज की विक्रय व्यवस्था के दो दोष बताइए। |
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Answer» कृषि उपज की विक्रय व्यवस्था के दो दोष हैं– (1) घटिया किस्म की कृषि उपज। |
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कृषि विपणन से क्या आशय है? भारत में कृषि विपणन की वर्तमान व्यवस्था क्या है? |
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Answer» कृषि विपणन का अर्थ भारत में कृषि पदार्थों के विपणन की वर्तमान व्यवस्था 1. गाँव में बिक्री–भारत में कृषि-उत्पादन का अधिकांश भाग प्रायः गाँव में ही बेच दिया जाता है। ग्रामीण साख सर्वेक्षण समिति इस निष्कर्ष पर पहुँची है कि कुल फसल का लगभग 65% भाग उत्पत्ति के स्थान पर ही बेच दिया जाता है। इसके अतिरिक्त 15% भाग गाँव के बाजार में, 14% भाग व्यापारियों व कमीशन एजेण्टों को तथा शेष 6% अन्य पद्धतियों से बेचे जाने का अनुमान है। ग्रामीण बाजार में फसल की बिक्री मुख्यत: तीन रूपों में होती है (क) बाजार योग्य अतिरेक (Marketable Surplus) का कम होना। 2. मण्डियों में बिक्री- भारत में अधिकांश किसान अपनी फसल गाँवों में नहीं बेचते, वे मण्डियों में अपनी फसल बेचा करते हैं। भारत में लगभग 6,700 मण्डियाँ हैं। भारत में दो प्रकार की मण्डियाँ पायी जाती हैं–नियमित तथा अनियमित। नियमित मण्डियाँ प्रायः निजी व्यक्तियों, संस्थाओं अथवा मण्डलों द्वारा संचालित होती हैं। अनयिमित मण्डियों में, जहाँ उनका प्रबन्ध निजी व्यक्तियों के हाथ में होता है, प्राय: सभी प्रकार की अनियमितताएँ होती हैं और मध्यस्थ फसल का अधिकांश भाग हड़प लेते हैं। नियमित मण्डियों में किसानों को अपनी उपज का उचित मूल्य मिल जाता है क्योंकि इनकी व्यवस्था राज्य सरकारों द्वारा की जाती है। केन्द्रीय विपणन निदेशालय इस सम्बन्ध में राज्यों का पथ-प्रदर्शन करता है। |
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भारत में साहूकारों की कृषि-वित्त व्यवस्था के दोष बताइए। |
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Answer» भारत में साहूकारों की कृषि-वित्त व्यवस्था के दोष निम्नलिखित रहे हैं ⦁ साहूकार की कार्य-पद्धति लोचदार होती है और वह समय, परिस्थिति तथा व्यक्ति के अनुसार उनमें परिवर्तन करता रहता है। ⦁ साहूकार अपने ऋणों पर ब्याज की ऊँची दर वसूल करता है। ⦁ साहूकार मूलधन देते समय ही पूरे वर्ष का ब्याज अग्रिम रूप में काट लेते हैं और इसकी कोई रसीद नहीं देते हैं। ⦁ अनेक साहूकार कोरे कागजों पर हस्ताक्षर या अँगूठे की निशानी ले लेते हैं और बाद में उन अधिक रकम भर लेते हैं। |
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एक सुव्यवस्थित कृषि विपणन पद्धति की विशेषताएँ बताइए। |
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Answer» एक सुव्यवस्थित कृषि विपणन पद्धति में निम्नलिखित विशेषताएँ होनी चाहिए ⦁ मध्यस्थों की संख्या न्यूनतम होनी चाहिए। ⦁ कृषि और कृषि उपज के विक्रेता दोनों के हितों की सुरक्षा होनी चाहिए। ⦁ सस्ती व उत्तम परिवहन की व्यवस्था होनी चाहिए, जिससे माल मण्डियों तक आसानी से तथा कम लागते पर ले जाया जा सके। |
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सुव्यवस्थित कृषि विपणन की दो विशेषताएँ बताइए। |
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Answer» सुव्यवस्थित कृषि विपणन की दो विशेषताएँ हैं- (1) मध्यस्थों की संख्या न्यूनतम होना तथा |
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भारतीय कृषि की दो विशेषताएँ बताइए। |
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Answer» (1) भारत में कृषि उत्पादकता अन्य देशों क तुलना में कम है। |
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भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का महत्त्व बताइए। |
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Answer» भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि के महत्त्व को निम्नलिखित प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है ⦁ भारतीय कृषि राष्ट्रीय आय का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है।। ⦁ सम्पूर्ण जनसंख्या का लगभग 67% भाग अपनी आजीविका कृषि से ही प्राप्त करता है। ⦁ देश के कुल भू-क्षेत्र के लगभग 49.8% भाग में खेती की जाती है। ⦁ कृषि देश की 121 करोड़ जनसंख्या को भोजन तथा 36 करोड़ पशुओं को चारा प्रदान करती है। ⦁ देश के महत्त्वपूर्ण उद्योग कच्चे माल के लिए कृषि पर ही आश्रित हैं। ⦁ चाय, जूट, लाख, शक्कर, ऊन, रुई, मसाले, तिलहन आदि के निर्यात से देश को पर्याप्त विदेशी | मुद्रा प्राप्त होती है। ” ⦁ कृषि देश के आन्तरिक व्यापार का प्रमुख आधार है। ⦁ कृषि एवं कृषि वस्तुएँ केन्द्र एवं राज्य सरकारों को राजस्व उपलब्ध कराती हैं। ⦁ कृषि उत्पादन यातायात को पर्याप्त मात्रा में प्रभावित करता है। |
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भारतीय अर्थव्यवस्था में लघु एवं कुटीर उद्योगों का महत्त्व बताइए। |
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Answer» भारतीय अर्थव्यवस्था में लघु एवं कुटीर उद्योगों के महत्त्व को निम्नलिखित प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है ⦁ इन उद्योगों में लगभग 2.25 करोड़ लोग रोजगार में लगे हैं। ⦁ ये उद्योग विकेन्द्रित अर्थव्यवस्था की स्थापना करते हैं जो आज के युग की माँग है। ⦁ इन उद्योगों को उपभोक्ताओं की रुचि के अनुसार समायोजित किया जा सकता है। ⦁ ये उद्योग औद्योगिक अशान्ति, हड़ताल, तालाबन्दी आदि से मुक्त रहते हैं और सहानुभूति, समानता, सहकारिता, एकता तथा सहयोग की भावना को जन्म देते हैं। ⦁ ये उद्योग विदेशी विनिमय अर्जित करने में अत्यन्त सहायक सिद्ध हुए हैं। ⦁ इन उद्योगों को चलाने के लिए विशेष शिक्षा तथा प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं होती। 10. कुटीर तथा लघु उद्योगों का माल अधिक टिकाऊ तथा कलात्मक होता है। |
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लघु एवं कुटीर उद्योग को परिभाषित कीजिए। भारतीय अर्थव्यवस्था में इन उद्योगों के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।या भारतीय अर्थव्यवस्था में लघु एवं कुटीर उद्योगों के महत्त्व को दर्शाइए। |
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Answer» लघु तथा कुटीर उद्योग विकेन्द्रित आर्थिक प्रगति के द्योतक माने जाते हैं। मॉरिस फ्रीडमैन ने कुटीर एवं लघु उद्योगों के दर्शन (Philosophy) की व्याख्या करते हुए लिखा है-“जहाँ विशाल उद्योगों का उद्देश्य लाभ कमाना और उनका आधार पूँजी है, वहाँ कुटीर एवं लघु उद्योगों का उद्देश्य जीवन की समृद्धि और उनका आधार धन न होकर स्वयं मनुष्य है। विशाल उद्योग पूँजी की सेवा करते हैं और लघु उद्योग । मानवता की।” कुटीर उद्योग की परिभाषा ⦁ ये कृषि व्यवसाय से सम्बद्ध होते हैं। ⦁ इनमें अधिकांश कार्य मानवीय श्रम द्वारा किए जाते हैं। ⦁ इन उद्योगों में मुख्यत: परिवार के सदस्य ही कार्यरत रहते हैं। लघु उद्योग की परिभाषा । भारतीय अर्थव्यवस्था में कुटीर तथा लघु उद्योगों का महत्त्व 1. रोजगार के स्रोत– भारत में इन उद्योग-धन्धों से लगभग 2.25 करोड़ लोगों को रोजगार प्राप्त | होता है। अकेले हथकरघाउद्योग से ही 75 लाख व्यक्तियों को रोजगार प्राप्त होता है। ⦁ इन उद्योगों को उपभोक्ताओं की रुचि के अनुसार समायोजित किया जा सकता है। ⦁ ये उद्योग औद्योगिक अशान्ति, हड़ताल, तालाबन्दी आदि से मुक्त रहते हैं और सहानुभूति, समानता, सहकारिता, एकता तथा सहयोग की भावना को जन्म देते हैं। ⦁ ये उद्योग विदेशी विनिमय अर्जित करने में अत्यन्त सहायक सिद्ध हुए हैं। ⦁ इन उद्योगों को चलाने के लिए विशेष शिक्षा तथा प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं होती। ⦁ कुटीर तथा लघु उद्योगों का माल अधिक टिकाऊ तथा कलात्मक होता है। ⦁ ये उद्योग बड़े पैमाने के पूरक उद्योगों के रूप में विशेष उपयोगी सिद्ध हुए हैं। ⦁ ये उद्योग कृषकों के लिए वरदान हैं क्योंकि ये उन्हें मौसमी रोजगार प्रदान करते हैं। ⦁ इन उद्योगों में बड़े उद्योगों की अपेक्षा कहीं अधिक स्थिरता तथा सुरक्षा पायी जाती है। ⦁ मानवीय मूल्यों की दृष्टि से भी इन उद्योगों का विशेष महत्त्व है। ये उद्योग सामाजिक न्याय |
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