InterviewSolution
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कृषि के सीमित व्यापारीकरण का क्या कारण था? |
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Answer» कृषि उत्पादन अधिकतर कृषि परिवारों के जीवन निर्वाह के लिए किया जाता था। बाजार में बिक्री के लिए बहुत कम उत्पादन बच पाता था। |
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‘स्वतंत्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था पिछड़ेपन की स्थिति में थी। इसके पक्ष में दो तर्क दीजिए। |
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Answer» 1. कृषि पर अत्यधिक निर्भरता एवं कृषि ही आजीविका का मुख्य साधन थी। |
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स्वतंत्रता के समय भारत की आजीविका का मुख्य स्रोत क्या था?(क) उद्योग(ख) पशुपालन ।(ग) कृषि(घ) इनमें से कोई नहीं |
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Answer» सही विकल्प है (ग) कृषि |
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स्वतंत्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था के औद्योगिक क्षेत्र (द्वितीयक क्षेत्र) की क्या स्थिति थीं । |
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Answer» कृषि की भाँति औपनिवेशिक व्यवस्था के अंतर्गत भारत एक सुदृढ़ औद्योगिक आधार का निर्माण नहीं कर पाया। विश्वप्रसिद्ध शिल्पकलाओं का पतन होता रहा और आधुनिक औद्योगिक आधार की नींव नहीं रखी गई। इसके पीछे ब्रिटिश सरकार के दो उद्देश्य थे— ⦁ इंग्लैण्ड के निर्मित माल के लिए भारत को एक विशाल बाजार बनने देना। इस दौरान जो भी विनियोग हुआ, वह उपभोक्ता उद्योगों के क्षेत्र में ही हुआ; जैसे—सूती वस्त्र, पटसन आदि। आधारभूत उद्योग के रूप में केवल एक उद्योग “टाटा आयरन एण्ड स्टील कम्पनी’ की 1907 में स्थापना की गई। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद चीनी, कागज व सीमेंट के भी कुछ कारखाने स्थापित किए गए। अत: पूँजीगत उद्योगों का अभाव ही बना रहा। न केवल औद्योगिक क्षेत्र की संवृद्धि दर बहुत कम थी अपितु राष्ट्रीय आय में इनका योगदान भी बहुत कम था। सार्वजनिक क्षेत्र रेल, बंदरगाह, विद्युत व संचार तथा कुछ विभागीय उपक्रमों तक ही सीमित था। |
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भारत में प्रथम सरकारी जनगणना किस वर्ष में हुई थी? |
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Answer» भारत में प्रथम सरकारी जनगणना वर्ष 1881 में हुई थी। |
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स्वतंत्रता के समय भारत में आधारिक संरचना की क्या स्थिति थी? |
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Answer» औपनिवेशिक शासन के दौरान देश में रेलों, पत्तनों, जल परिवहन व डाकतार आदि का विकास हुआ किंतु इसके पीछे ब्रिटिश प्रशासकों का उद्देश्य जन-साधारण को अधिक सुविधाएँ उपलब्ध कराना नहीं था बल्कि अपने हितों का संवर्द्धन करना था। सड़कों का निर्माण इसलिए किया गया कि देश के भीतर उनकी सेवाओं के आवागमन में सुविधा हो तथा माल को निकट की मण्डियों तक पहुँचाया जा सके। रेलों के विकास ने कृषि के व्यवसायीकरण को प्रोत्साहित किया, निर्यात व्यापार की माँग में विस्तार हुआ। आंतरिक व्यापार एवं जलमार्गों के विकास पर भी ध्यान दिया गया। डाक सेवाओं का भी विस्तार किया गया। स्वतंत्रता के समय भारत की आधारिक संरचना की स्थिति इस प्रकार थी |
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भारतीय अर्थव्यवस्था के गतिहीन बने रहने के दो कारण दीजिए। |
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Answer» 1. निम्न मजदूरी एवं निम्न क्रय-शक्ति के कारण मजदूरों की दशा अत्यधिक दयनीय थी। |
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स्वतंत्रता से पूर्व भारत में कृषि क्षेत्र की स्थिति पर प्रकाश डालिए। |
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Answer» ब्रिटिश औपनिवेशिक शासनकाल में भारत मूलतः एक कृषिप्रधान अर्थव्यवस्था ही बना रहा। देश की लगभग 85 प्रतिशत जनसंख्या प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर ही निर्भर थी किंतु कृषि उत्पादकता में निरंतर कमी होती गई, यह लगभग गतिहीन बनी रही। इस गतिहीनता का प्रमुख कारण दोषपूर्ण भू-व्यवस्था प्रणालियाँ थीं जिनमें मध्यस्थों की संख्या बढ़ती जा रही थी। कृषि लाभ के अधिकांश भाग को जमींदार ही हड़प जाते थे। राजस्व व्यवस्था भी जमींदारों के पक्ष में जाती थी। परम्परागत तकनीकी, सिंचाई-सुविधाओं का अभाव और उर्वरकों के नगण्य प्रयोग के कारण कृषि उत्पादकता के स्तर में वृद्धि न हो सकी। कृषि का व्यवसायीकरण सीमित था और नकदी फसलें ब्रिटेन के कारखानों में उपयोग के लिए भेज दी जाती थीं। स्वतंत्रता के समय देश के विभाजन ने भी कृषि व्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव डाला। |
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स्वतंत्रता के समय भारत के समक्ष उपस्थित प्रमुख आर्थिक चुनौतियों को रेखांकित करें। |
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Answer» स्वतंत्रता के समय भारत के समक्ष उपस्थित प्रमुख आर्थिक चुनौतियाँ इस प्रकार थीं ⦁ औद्योगिक क्षेत्र में पिछड़ापन। ⦁ पुरानी व परम्परागत तकनीक। ⦁ विदेशी व्यापार पर इंग्लैण्ड का एकाधिकार। ⦁ व्यापक गरीबी। ⦁ व्यापक बेरोजगारी। ⦁ क्षेत्रीय विषमताएँ। ⦁ आधारिक संरचना का अभाव। |
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“औपनिवेशिक शासन के अंतर्गत आर्थिक विकास का स्तर निम्न था।” इस कथन को स्पष्ट कीजिए। |
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Answer» ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन का मुख्य उद्देश्य इंग्लैण्ड में तेजी से विकसित हो रहे औद्योगिक आधार के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था को एक पोषक अर्थव्यवस्था तक ही सीमित रखना था। अत: देश के आर्थिक विकास के स्थान पर वे अपने आर्थिक हितों के संरक्षण एवं संवर्द्धन में ही लगे रहे। भारत इंग्लैण्ड को कच्चे माल की पूर्ति करने तथा वहाँ के बने तैयार माल को आयात करने वाला देश ही बनकर रह गया। एक आकलन के अनुसार, 20वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में भारत की राष्ट्रीय आय की वार्षिक संवृद्धि दर 2 प्रतिशत से कम रही तथा प्रति व्यक्ति उत्पाद वृद्धि दर मात्र आधा प्रतिशत ही रही। |
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ब्रिटिश काल में भारतीय शिल्प उद्योगों के पतन के दो कारण बताइए। |
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Answer» 1. राजदरबारों की समाप्ति होने पर इन उद्योगों को संरक्षण मिलना बंद हो गया। |
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जमींदारी प्रथा के विपक्ष में दो तर्क दीजिए। |
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Answer» 1. मध्यस्थों की संख्या में वृद्धि हुई। |
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आर्थिक नियोजन को परिभाषित कीजिए। इसके मुख्य लक्षण बताइए। भारतीय अर्थव्यवस्था के सन्दर्भ में आर्थिक नियोजन के प्रमुख उददेश्यों की चर्चा कीजिए। |
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Answer» आर्थिक नियोजन : अर्थ एवं परिभाषाएँ एच०डी० डिकिन्सन के अनुसार- ‘आर्थिक नियोजन से अभिप्राय महत्त्वपूर्ण आर्थिक मामलों में विस्तृत तथा सन्तुलित निर्णय लेना है। दूसरे शब्दों में, क्या तथा कितना उत्पादित किया जाएगा तथा उसका वितरण किस प्रकार होगा, इन सभी प्रश्नों का उत्तर एक निर्धारक सत्ता द्वारा समस्त अर्थव्यवस्था को एक ही राष्ट्रीय आर्थिक इकाई (व्यवस्था) मानते हुए तथा व्यापक सर्वेक्षण के आधार पर, सचेत तथा विवेकपूर्ण निर्णय के द्वारा, दिया जाता है।” डॉ० डाल्टन के अनुसार- “विस्तृत अर्थ में आर्थिक नियोजन से अभिप्राय कुछ व्यक्तियों द्वारा, जिनके अधिकार में विशेष प्रसाधन हों, निश्चित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए आर्थिक क्रिया का संचालन करना है।” भारतीय नियोजन आयोग के अनुसार-“आर्थिक नियोजन निश्चित रूप से सामाजिक उद्देश्यों के हितार्थ उपलब्ध साधनों का संगठन तथा लाभकारी रूप से उपयोग करने का एकमात्र ढंग है। नियोजन के इस विचार के दो प्रमुख तत्त्व हैं- (अ) वांछित उद्देश्यों का क्रम जिनकी पूर्ति का प्रयास करना है। आर्थिक नियोजन की विशेषताएँ (लक्षण) ⦁ नियोजन आर्थिक संगठन एवं विकास की एक समन्वित प्रणाली है। ⦁ आर्थिक नियोजन की समस्त क्रिया-विधि एक केन्द्रीय नियोजन सत्ता द्वारा सम्पन्न की जाती है। ⦁ केन्द्रीय नियोजन सत्ता द्वारा देश में उपलब्ध समस्त साधनों का निरीक्षण, सर्वेक्षण तथा संगठन करके, पूर्व-निश्चित उद्देश्यों के साथ समन्वय किया जाता है। भारत के सन्दर्भ में आर्थिक नियोजन के उद्देश्य 1. राष्ट्रीय आय एवं प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि– जनसामान्य के जीवन-स्तर को ऊँचा उठाने की | दृष्टि से आर्थिक नियोजन का प्रमुख उद्देश्य राष्ट्रीय आय एवं प्रति व्यक्ति आय में तीव्र वृद्धि करना रहा है। ⦁ पिछड़े क्षेत्रों का विकास, ⦁ उद्योग एवं सेवाओं का विस्तार, |
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आर्थिक विकास एवं आर्थिक वृद्धि में अन्तर बताइए। |
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Answer» आर्थिक विकास एवं आर्थिक वृद्धि में अन्तर ⦁ विकास के अन्तर्गत उत्पादन में संरचनात्मक परिवर्तन आता है, जबकि वृद्धि के अन्तर्गत संरचनात्मक परिवर्तन स्वाभाविक ढंग से लाए जाते हैं और वर्तमान संरचना को बनाए रखा जाता ⦁ आर्थिक विकास के अन्तर्गत एक स्थिर अर्थव्यवस्था को बाह्य प्रेरणा एवं सरकारी निर्देशन तथा | नियन्त्रण द्वारा गतिशील किया जाता है, जबकि आर्थिक वृद्धि स्वाभाविक एवं स्वचालित परिवर्तनों का संकेतक होती है। ⦁ आर्थिक विकास के अन्तर्गत दीर्घकालीन परिवर्तनों का अध्ययन किया जाता है, जबकि आर्थिक | वृद्धि स्वभाविक परिवर्तनों का अध्ययन करती है। ⦁ आर्थिक वृद्धि का अर्थ है-उत्पादन में वृद्धि, जबकि आर्थिक विकास का अर्थ है-उत्पादन में वृद्धि + प्राविधिक एवं संस्थागत परिवर्तन। |
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भारत में सहकारी कृषि के पक्ष में दो तर्क दीजिए। |
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Answer» (1) जोतों के आकार में वृद्धि होती है। |
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ब्रिटिश राज के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था के औपनिवेशिक शोषण के विभिन्न रूपों का वर्णन कीजिए। |
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Answer» अंग्रेज व्यापार करने आए थे किंतु 1757 में प्लासी के युद्ध के बाद ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने बंगाल पर आधिपत्य स्थापित कर ब्रिटिश शासन की नींव डाली और सन् 1947 ई० तक भारत पर शासन किया। इस उपनिवेश की शासन व्यवस्था के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था का शोषण किया गया। उपनिवेशी शोषण के मुख्य रूप निम्नांकित थे 1. व्यापार नीतियों द्वारा शोषण- ब्रिटिश सरकार ने ऐसी व्यापारिक नीतियों का सहारा लिया कि ब्रिटिश उद्योगों को कच्चे माल की पर्याप्त आपूर्ति की जा सके। |
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औपनिवेशिक काल में भारत की राष्ट्रीय आय का आकलन करने वाले प्रमुख अर्थशास्त्रियों के नाम बताइए। |
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Answer» औपनिवेशिक काल में भारत की राष्ट्रीय आय का आकलन करने वाले प्रमुख अर्थशास्त्री थे ⦁ दादाभाई नौरोजी, ⦁ विलियम डिग्वी, ⦁ फिडले शिराज, ⦁ डॉ० वी०के०आर०वी० राव, ⦁ आर०सी० देसाई। |
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भारत में उपनिवेशी शोषण के परिणाम क्या थे? |
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Answer» उपनिवेशी शोषण के निम्नांकित परिणाम हुए- ⦁ भारत मूलत: ‘कृषि-प्रधान देश ही रहा और चाय, कॉफी, मसाले, तिलहन, गन्ना तथा अन्य सामग्रियों और अन्य कच्चे माल के निर्यात द्वारा ग्रेट ब्रिटेन के हितों की रक्षा के लिए भारतीय कृषि वाणिज्यीकृत हो गई। ⦁ भारत को अपने औद्योगिक ढाँचे का आधुनिकीकरण नहीं करने दिया गया। इसके हस्तशिल्पों को | नष्ट कर दिया गया तथा वह निर्मित माल का आयातक बन गया। ⦁ साम्राज्य अधिमान की भेदमूलक संरक्षण नीति अपनाने का परिणाम यह हुआ कि भारत के ब्रिटिश विनियोक्ताओं के लिए सुरक्षित विश्वस्त क्षेत्र ढूंढने में सहायता मिली। ⦁ उपभोक्ता वस्तु उद्योगों-चाय, कॉफी और रबड़ बागान में प्रत्यक्ष ब्रिटिश विनियोग किया गया, लेकिन भारी और आधारभूत उद्योगों के विकास के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया। ⦁ प्रबन्ध अभिकरण प्रणाली का स्वरूप शोषणकारी ही रहा। ⦁ अंग्रेजों ने गृह ज्ञातव्य (home charges) के रूप में आर्थिक विकास द्वारा भारत का शोषण किया। परिणामस्वरूप भारतीय अर्थव्यवस्था अल्पविकास की स्थिति में ही रह गई। |
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औपनिवेशिक काल में भारत की जनांकिकीय स्थिति का एक संख्यात्मक चित्रण प्रस्तुत करें। |
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Answer» ब्रिटिश भारत की जनसंख्या के विस्तृत ब्यौरे सबसे पहले 1881 की जनगणना के तहत एकत्रित किए गए। बाद में प्रत्येक दस वर्ष बाद जनगणना होती रही। वर्ष 1921 के पूर्व का भारत जनांकिकीय संक्रमण के प्रथम सौपाने पर था। द्वितीय सोपान को आरम्भ 1921 के बाद माना जाता है। कुल मिलाकर साक्षरता दर तो 16 प्रतिशत से भी कम ही थी। इसमें महिला साक्षरता दर नगण्य, केवल 7 प्रतिशत आँकी गई थी। शिशु मृत्यु दर 218 प्रति हजार थी। इस काल में औसत जीवन प्रत्याशा 32 वर्ष थी। देश की अधिकांश जनसंख्या अत्यधिक गरीब थी। |
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1948 की औद्योगिक नीति के दो उद्देश्य बताइए। |
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Answer» (1) समाने अवसर तथा न्याय प्रदान करने वाली सामाजिक-व्यवस्था की स्थापना करना। |
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1956 की औद्योगिक नीति के दो उद्देश्य बताइए। |
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Answer» (1) आर्थिक विकास की दर में वृद्धि करना। |
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औद्योगिक नीति, 1991 के दो उद्देश्य बताइए। |
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Answer» (1) लघु उद्योग के विकास को बल देना ताकि यह क्षेत्र अधिक कुशलता एवं तकनीकी सुधार के वातावरण में विकसित होता रहे |
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“भारत का औद्योगिक विकास मुख्यतः उसके कृषि विकास पर निर्भर करता है। इसके पक्ष में दो तर्क दीजिए। |
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Answer» इसके पक्ष में दो तर्क हैं- (1) कृषि; उद्योगों को कच्चा माल उपलब्ध कराती है। |
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आर्थिक जोत की परिभाषा दीजिए। |
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Answer» “आर्थिक जोत एक ऐसी जोत है, जो किसी परिवार को न्यूनतम जीवन स्तर पर रहने के लिए पर्याप्त आय प्रदान करे।” |
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औद्योगिक नीति प्रस्ताव, 1956 में निजी क्षेत्रक का नियमन क्यों और कैसे किया गया था? |
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Answer» भारी उद्योगों पर नियंत्रण रखने के राज्य के लक्ष्य के अनुसार औद्योगिक नीति प्रस्ताव, 1956 को लाया गया था। इस प्रस्थाव को द्वितीय पंचवर्षीय योजना का आधार बनाया गया। इस प्रस्ताव के अनुसार, उद्योगों को तीन वर्गों में विभक्त किया गया। प्रथम वर्ग में वे उद्योग सम्मिलित थे, जिन पर राज्य का अनन्य स्वामित्व था। दूसरे वर्ग में वे उद्योग शामिल थे, जिनके लिए निजी क्षेत्र, सरकारी क्षेत्र के साथ मिलकर प्रयास कर सकते थे, परंतु जिनमें नई इकाइयों को शुरू करने की एकमात्र जिम्मेदारी राज्य की होती। तीसरे वर्ग में वे उद्योग शामिल थे, जो निजी क्षेत्रक के अंतर्गत आते थे लेकिन इस क्षेत्र को लाइसेंस पद्धति के माध्यम से राज्य के नियंत्रण में रखा गया। इस प्रस्ताव में सरकार के लिए ऐसा करना आवश्यक था। इस नीति का प्रयोग पिछड़े क्षेत्रों में उद्योगों को प्रोत्साहित करने के लिए किया गया। पिछड़े क्षेत्रों में उद्योग लगाने वाले उद्यमियों को प्रोत्साहित करने के लिए अनेक प्रकार से आर्थिक सहायता प्रदान की गई। इस नीति का उद्देश्य क्षेत्रीय समानता को बढ़ावा देना था। |
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भारत में औपनिवेशिक शोषण के दो रूप बताइए। |
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Answer» 1. दोषपूर्ण व्यापारिक नीतियों के फलस्वरूप भारतीय धन का निकास हुआ। |
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विक्रय अधिशेष क्या है? |
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Answer» किसानों द्वारा उत्पादन का बाजार में बेचा गया अंश ही ‘विक्रय अधिशेष’ कहलाता है। |
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दसवीं योजना में औद्योगिक विकास रणनीति के दो बिन्दु बताइए। |
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Answer» (1) औद्योगिक उदारीकरण को राज्य स्तर पर ले जाना। |
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नई राष्ट्रीय कृषि नीति की घोषणा कब की गई? |
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Answer» नई राष्ट्रीय कृषि नीति की घोषणा 29 जुलाई, 2000 को संसद में की गई। |
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योजना अवधि के दौरान औद्योगिक विकास में सार्वजनिक क्षेत्रक को ही अग्रणी भूमिका क्यों सौंपी गई थी? |
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Answer» स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद योजना अवधि के दौरान औद्योगिक विकास में सार्वजनिक क्षेत्र को अग्रणी भूमिका सौंपने के निम्नलिखित कारण थे- ⦁ स्वतंत्रता-प्रप्ति के समय भारत के उद्योगपतियों के पास अर्थव्यवस्था के विकास हेतु उद्योगों में निवेश करने के लिए पर्याप्त पूँजी नहीं थी। ⦁ उस समय बाजार भी इतना बड़ा नहीं था, जिसमें उद्योगपतियों को मुख्य परियोजनाएँ शुरू करने के लिए प्रोत्साहन मिलता। ⦁ भारतीय अर्थव्यवस्था को समाजवाद के पथ पर अग्रसर करने के लिए यह निर्णय लिया गया कि सरकार अर्थव्यवस्था में बड़े तथा भारी उद्योग पर नियंत्रण करेगी। |
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कृषक बीमा आय योजना क्या है? |
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Answer» इस योजना के अन्तर्गत किसानों को उनकी उपज का कुल मूल्य न्यूनतम समर्थन मूल्य पर आधारित’ मिलने की गारण्टी दी जाएगी। |
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विपणन अधिशेष किसे कहते हैं? |
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Answer» किसानों द्वारा उत्पादन का बाजार में बेचा गया अंश ‘विपणन अधिशेष’ कहलाता है। |
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वर्तमान में लघु उद्योग की निवेश सीमा कितनी है? |
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Answer» वर्तमान में लघु उद्योग की निवेश सीमा Rs.5 करोड़ है। |
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भारत जैसे विकासशील देश के रूप में आत्मनिर्भरता का पालन करना क्यों आवश्यक था? |
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Answer» आत्मनिर्भरता का अर्थ है—देश अपनी आवश्यकताओं को खरीदने के लिए पर्याप्त मात्रा में अतिरेक उत्पन्न करे और अपने आयातों का भुगतान करने के लिए सक्षम हो। जो देश अपने आयातों का भुगतान अपने उत्पादन के निर्यातों द्वारा करते हैं, वे आत्मनिर्भर देश कहलाते हैं। विकासशील देश समाान्यतः आत्मनिर्भर नहीं हैं क्योंकि उनके निर्यात उनके आयातों का भुगतान करने के लिए अपर्याप्त हैं। एक विकासशील देश के रूप में भारत को आत्मनिर्भरता का पालन करना-निम्नलिखित कारणों से आवश्यक था| ⦁ विदेशी सहायता अधिकांशतः प्रतिबद्ध होती है। अत: इसका इच्छित उपयोग नहीं हो पाती। भारत में पंचवर्षीय योजनाओं का मूल लक्ष्य आत्मनिर्भरता को प्राप्त करना रहा है। उदाहरण के लिए, प्रथम पंचवर्षीय योजनाओं में कृषि को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई ताकि खाद्यान्नों के मामले में देश आत्मनिर्भर हो सके। बाद में औद्योगिक क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने का लक्ष्य रखा गया |
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भारतीय योजना का निर्माता किसे माना जाता है? |
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Answer» पी० सी० महालनोबिस को। |
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राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना का क्या उद्देश्य है? |
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Answer» इस योजना का उद्देश्य है-सूखा, बाढ़, ओला-वृष्टि, चक्रवात, आग, कीट व बीमारियों आदि प्राकृतिक आपदाओं के कारण फसल को हुई क्षति से किसानों का संरक्षण करना। |
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योजना को परिभाषित कीजिए। |
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Answer» योजना इसकी व्याख्या करती है कि किसी देश के दुर्लभ संसाधनों का प्रयोग किस प्रकार किया जाए ताकि देश के आर्थिक विकास को गति दी जा सके। |
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‘क्या रोजगार सृजन की दृष्टि से योजना उद्देश्य के रूप में आधुनिकीकरण विरोधाभास उत्पन्न करता है?’ व्याख्या कीजिए। |
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Answer» वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन बढ़ाने के लिए उत्पादकों को नई प्रौद्योगिकी अपनानी पड़ती है। जैसे किसान पुराने बीजों के स्थान पर नई किस्म के बीजों का प्रयोग कर खेतों की पैदावार बढ़ा सकते हैं उसी प्रकार एक फैक्ट्री नई मशीनों का प्रयोग कर उत्पादन बढ़ा सकती है। नई प्रौद्योगिकी को अपनाना ही आधुनिकीकरण है। आधुनिकीकरण के जरिए ही नई-नई मशीनों का प्रयोग बढ़ाया जाता है, जिससे विनिर्माण एवं कृषि क्षेत्र में श्रमिकों को स्थान मशीनें ले लेती हैं अर्थात् रोजगार के अवसर इन क्षेत्रों में घटने लगते हैं। किंतु यह प्रभाव अल्पकालीन ही होता है। आधुनिकीकरण द्वारा उत्पादन में वृद्धि होती है, आय बढ़ती है और विविध प्रकार की वस्तुओं की माँग सृजित होती है। इस माँग को संतुष्ट करने के लिए नई-नई वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है जिसके कारण रोजगार के नये अवसर सृजित होने लगते हैं। उपभोक्ता वस्तुओं एवं पूँजीगत वस्तुओं के उत्पादन का विस्तार होता है, नये-नये उद्योगों की स्थापना होती है और द्वितीयक उद्योगों के विस्तार के साथ-साथ तृतीयक क्षेत्र-बैंक, बीमा आदि का विस्तार होता है जिससे रोजगार में वृद्धि होती है। |
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भारत सरकार ने औद्योगिक नीति की घोषणा कब की?(क) 6 अप्रैल, 1948 ई० को(ख) 2 अक्टूबर, 1943 को(ग) 1 अप्रैल, 1999 ई० को(घ) इनमें से कोई नहीं |
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Answer» सही विकल्प है (क) 6 अप्रैल, 1948 ई० को |
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स्वतन्त्रता-प्राप्ति के पश्चात् भारतीय अर्थव्यवस्था मुख्यतः माँग और पूर्ति की सापेक्षिक शक्तियों पर आधारित थी जिसका परिणाम था(क) निर्धनता(ख) असमानता(ग) गतिहीनता(घ) ये सभी |
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Answer» सही विकल्प है (घ) ये सभी |
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औपनिवेशिक शासन काल में कृषि की गतिहीनता के मुख्य कारण क्या थे? |
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Answer» औपनिवेशिक शासन काल में कृषि की गतिहीनता के मुख्य कारण निम्नलिखित थे ⦁ किसानों से अधिक लगान संग्रह। ⦁ प्रौद्योगिकी का निम्न स्तर। ⦁ सिंचाई सुविधाओं का अभाव। |
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स्वतंत्रता पूर्व अंग्रेजों द्वारा भारत के व्यवस्थितवि-औद्योगीकरण का दोहरा ध्येय क्या था? |
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Answer» भारत के वि-औद्योगीकरण के पीछे विदेशी शासकों का दोहरा उद्देश्य यह था कि प्रथम, वे भारत को इंग्लैण्ड में विकसित हो रहे आधुनिक उद्योगों के लिए कच्चे माल का निर्यातक बना सकें तथा द्वितीय, वे उन उद्योगों के उत्पादन के लिए भारत को ही एक विशाल बाजार बना सकें। इस प्रकार, वे अपने उद्योगों के विस्तार द्वारा अपने देश (ब्रिटेन) के लिए अधिकतम लाभ सुनिश्चित करना चाहते थे। |
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स्वतंत्रता के समय भारत में आयात की जाने वाली वस्तुओं के नाम बताइए। |
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Answer» सूती, रेशमी, ऊनी वस्त्रों जैसी अन्तिम उपभोग वस्तुएँ एवं इंग्लैण्ड के कारखानों में बनी हल्की मशीनें। |
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स्वतंत्रता पूर्व भारत की जनसंख्या की व्यावसायिक संरचना की प्रमुख विशेषताएँ बताइए। |
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Answer» औपनिवेशिक काल में विभिन्न औद्योगिक क्षेत्रकों में लगे कार्यशील श्रमिकों के आनुपातिक विभाजन में कोई परिवर्तन नहीं आया। कृषि सबसे बड़ा व्यवसाय था जिसमें 70-75 प्रतिशत जनसंख्या लगी थी। विनिर्माण तथा सेवा क्षेत्रकों में क्रमशः 10 प्रतिशत तथा 15 से 20 प्रतिशत जनसमुदाय को रोजगार मिल रहा था। इस काल में क्षेत्रीय विषमताओं में बड़ी विलक्षणती थी। मद्रास प्रेसीडेंसी के कुछ क्षेत्रों में कृषि पर जनसंख्या की निर्भरता कम हो रही थी। विनिर्माण तथा सेवा श्रेत्रकों का महत्त्व बढ़ रहा था वहीं दूसरी ओर पंजाब, राजस्थान एवं उड़ीसा में कृषि क्षेत्र में श्रमिकों की संख्या में बढोत्तरी हो रही थी। |
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स्वतंत्रता के समय देश में कार्य कर रहे कुछ आधुनिक उद्योगों के नाम बताइए। |
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Answer» स्वतंत्रता के समय देश में कार्य कर रहे कुछ आधुनिक उद्योगों के नाम इस प्रकार हैं ⦁ पटसन उद्योग, ⦁ लोहा और इस्पात उद्योग (TISCO की स्थापना 1907 में हुई), ⦁ चीनी उद्योग, ⦁ सीमेंट उद्योग, ⦁ कागज उद्योग। |
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स्वतंत्रता के समय भारत से निर्यात की जाने वाली वस्तुओं के नाम बताइए। |
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Answer» कच्चे उत्पादे; जैसे-रेशम, कपास, ऊन, चीनी, नील और पटसन। |
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देश विभाजन का भारतीय उद्योगों पर क्या प्रभाव पड़ा? |
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Answer» 15 अगस्त, 1947 को देश स्वतंत्र हुआ, साथ ही वह दो भागों में विभाजित भी हो गया। यद्यपि यह विभाजन राजनीतिक था तथापि आर्थिक दृष्टि से काफी महत्त्वपूर्ण था। भारतीय उद्योगों पर देश विभाजन के निम्नांकित प्रभाव पड़े ⦁ भारत को अविभाजित देश के क्षेत्रफल का 77%, जनसंख्या का 82%, औद्योगिक संस्थाओं का 91% और रोजगार प्राप्त श्रमिकों का 93% भाग मिला। |
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भारत में अंग्रेजी शासन कब तक रहा?(क) सन् 1847 तक(ख) सन् 1740 तक(ग) सन् 1950 तक(घ) सन् 1947 तक |
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Answer» सही विकल्प है (घ) सन् 1947 तक |
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सहायिकी किसानों को नई प्रौद्योगिकी का प्रयोग करने को प्रोत्साहित तो करती है पर उसका सरकारी वित्त पर भारी बोझ पड़ता-इस तथ्य को ध्यान में रखकर सहायिकी की उपयोगिता पर चर्चा करें। |
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Answer» आजकल कृषि क्षेत्र को दी जा रही आर्थिक सहायिकी एक ज्वलंत बहस का विषय बन गथा है। हमारे देश के छोटे किसान अधिकांशत: गरीब हैं; अत: छोटे किसानों को विशेष रूप से HYV प्रौद्योगिकी अपनाने के लिए सहायिकी दी जानी आवश्यक है। सहायता के अभाव में वे नई प्रौद्योकि का उपयोग नहीं कर पाएँगे जिसका कृषि उत्पादन पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। परंतु कुछ अर्थशास्त्रियों का मत है कि एक बार प्रौद्योगिकी का लाभ मिल जाने तथा उसके व्यापक प्रचलन के बाद सहायिकी धीरे-धीरे समाप्त कर देनी चाहिए क्योंकि उर्वरकी सहायता का लाभ बड़ी मात्रा में प्रायः उर्वरक उद्योग तथा अधिक समृद्ध क्षेत्र के किसानों को ही पहुँचता है। अतः यह तर्क दिया जाता है कि उर्वरकों पर सहायिकी जारी रखने का कोई औचित्य नहीं है। इनसे लक्षित समूह को लाभ नहीं होगा और सरकारी कोष पर आवश्यक बोझ पड़ेगा। इसके विपरीत कुछ विशेषज्ञों का मत है कि सरकार को कृषि सहायिकी जारी रखनी चाहिए क्योंकि भारत में कृषि एक बहुत ही जोखिम भरा व्यवसाय है। अधिकतर किसान गरीब हैं और सहायिकी को समाप्त करने से वे अपेक्षित आगतों का प्रयोग नहीं कर पाएँगे। इसका नुकसान यह होगा कि गरीब किसान और गरीब हो जाएँगे, कृषि क्षेत्र में उत्पादन स्तर गिरेगा, खाद्यान्नों की कमी से कीमतें बढ़ने लगेंगी जिससे हम विदेशों से सहायता लेने को मजबूर होंगे। इन विशेषज्ञों का तर्क है कि यदि सहायिकी से बड़े किसानों तथा उर्वरक उद्योगों को अधिक लाभ हो रहा है, तो सही नीति सहायिकी समाप्त करना नहीं है, बल्कि ऐसे कदम उठाना है जिनसे कि केवल निर्धन किसानों को ही इनका लाभ मिले। |
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| 100. |
हरित क्रान्ति से क्या आशय है? भारत में हरित क्रान्ति को जन्म देने वाले घटकों ने बताइए। इसके मार्ग में क्या कठिनाइयाँ आई हैं? इसे सफल बनाने के लिए उपयुक्त सुझाव दीजिए। ” |
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Answer» हरित क्रान्ति का अर्थ हरित क्रान्ति को जन्म देने वाले घटक ⦁ 1961-62 में सघन कृषि जिला कार्यक्रम नामक योजना का प्रारम्भ। ⦁ सघन कृषि क्षेत्र कार्यक्रम का विस्तार।। ⦁ बहु-फसल कार्यक्रम को अपनाना।। ⦁ खाद एवं उर्वरकों का अधिकाधिक उपयोग। ⦁ उन्नत बीजों का प्रयोग। ⦁ आधुनिक कृषि उपकरण एवं संयन्त्रों का प्रयोग। ⦁ प्रभावी पौध संरक्षण कार्यक्रमों को लागू करना। ⦁ सिंचाई सुविधाओं का विस्तार। ⦁ पर्याप्त मात्रा में कृषि साख की उपलब्धि। भारत में हरित क्रान्ति की असफलताएँ/कठिनाइयाँ ⦁ कृषि क्रान्ति का प्रभाव केवल कुछ ही विकसित क्षेत्रों (पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु) के कुछ भागों तक सीमित रहा है। हरित क्रान्ति को सफल बनाने के उपाय ⦁ उर्वरकों के वितरण की व्यवस्था होनी चाहिए। ⦁ उर्वरकों के प्रयोग के बारे में किसानों को उचित प्रशिक्षण सुविधाएँ उपलब्ध होनी चाहिए। ⦁ उपयुक्त व उत्तम बीजों के विकास को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। ⦁ फसल बीमा योजना शीघ्रता एबं व्यापकता से लागू की जानी चाहिए। |
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