InterviewSolution
This section includes InterviewSolutions, each offering curated multiple-choice questions to sharpen your knowledge and support exam preparation. Choose a topic below to get started.
| 1. |
‘कन्यादान’ कविता में किसे दुःख बाँचना नहीं आता और क्यों ? |
|
Answer» ‘कन्यादान’ कविता में बेटी को दुःख बाचना नहीं आता क्योंकि अभी वह सयानी नहीं है। उसे सामाजिक छल-छद्म, वंचना तथा प्रपंच का ज्ञान नहीं है। वह चुपचाप दुःखों को सहन करना ही जानती है। |
|
| 2. |
‘कन्यादान’ कविता में मां की सीख में समाज की किन कुरीतियों की ओर संकेत किया गया है? |
|
Answer» माँ की सीख में समाज की निम्नलिखित कुरीतियों की ओर संकेत किया गया है
|
|
| 3. |
‘कन्यादान’ कविता में किसके दुःख की बात की गई है ? और क्यों ? |
|
Answer» ‘कन्यादान’ कविता में माँ की आंतरिक वेदना की बात की गई है। अपनी बेटी को विदा करते समय बेटी के भविष्य के प्रति आशंकित माँ अपने अनुभवों के आधार पर आनेवाली संकटापन्न परिस्थितियों के प्रति बेटी को सचेत और सजग कर रही है ताकि उसकी भोली बेटी भावी जीवन में आनेवाली परिस्थितियों में दुःख न पाए। |
|
| 4. |
‘बेटी अभी सयानी नहीं थी’ में माँ की चिंता क्या है ? |
|
Answer» बेटी अभी सयानी नहीं थी में माँ की चिंता यह है कि –
|
|
| 5. |
माँ ने बेटी को क्या-क्या सीख दी? |
|
Answer» मां बेटी के भावी जीवन को लेकर चिंतित है, इसलिए वह निम्नलिखित सीख देती है –
|
|
| 6. |
कवि ने बेटी को माँ की अंतिम पूँजी क्यों कहा है ? |
|
Answer» बेटी और माँ का संबंध अत्यंत निकट का होता है। दुःख-सुख में माँ को बेटी का सहयोग प्राप्त होता है, इसलिए कन्यादान में उसे दूसरे को सौंप देने के पश्चात् माँ के पास कुछ भी नहीं बचता, इस कारण बेटी को माँ की अंतिम पूँजी कहा गया है। |
|
| 7. |
कन्यादान कविता में वस्त्र तथा आभूषणों को शाब्दिक भ्रम क्यों कहा गया है? |
|
Answer» विवाह के समय नव वधू को जो वस्त्र और आभूषण दिए जाते हैं उनके आकर्षण को भोली-भाली कन्या स्नेह-प्रेम समझकर फंसती है, इसलिए उन्हें शाब्दिक भ्रम कहा गया है। |
|
| 8. |
माँ ने बेटी को कैसे सावधान किया है ? |
|
Answer» कवि ने वस्रों तथा आभूषणों की तुलना शाब्दिक भ्रमों से की है। जिस तरह वस्त्रों-आभूषणों को देखकर स्त्री उसे स्नेह समझ बंध जाती है, उसी तरह अपनी शाब्दिक प्रशंसा सुनकर भी वह आत्ममुग्ध बन स्नेहजाल में फंसती है। इसलिए उसे इन दोनों से बचकर रहने की सीख माँ के माध्यम से कवि ने बेटी को दिया है। |
|
| 9. |
कविता में आग जलने के लिए नहीं’ का क्या संदर्भ है? |
|
Answer» भारत में प्रति वर्ष बहुत-सी नव विवाहिताएं गृह कलह, दहेज आदि से तंग आकर स्वयं जलकर या जलाकर मार दी जाती हैं। इस दुर्घटना का संदर्भ यहाँ व्यक्त हुआ है। |
|
| 10. |
मां ने बेटी को अपने चेहरे पर न रीझने की सलाह क्यों दी? |
|
Answer» प्रशंसा हर व्यक्ति को पसंद होती है। इसीलिए मां बेटी को यह चेतावनी देती है कि अपने चेहरे की प्रशंसा सुनकर उसके बंधन में बंध न जाना। प्रशंसा को ही स्नेह समझ न लेना अन्यथा बंधन में बंधकर परंपराओं को ही जीवन को सार्थकता समझकर घर को चार दीवारों में आबद्ध होकर रह जाओगी। |
|
| 11. |
‘लड़की होना पर लड़की जैसे दिखाई मत देना’ का क्या आशय है? |
|
Answer» मां बेटी को सावधान रहने की सीख देते हुए कह रही है कि प्रशंसात्मक शब्दों को सुनकर, वस्त्राभूषणों की चकाचौंध में बंधकर अपने अस्तित्व को ही भुला मत देना, जैसा कि सामान्य लड़किया करती हैं। लड़की होना, पर लड़की जैसा कमजोर मत दिखना। |
|
| 12. |
‘बेटी अभी सयानी नहीं थी’ में मां के मन की पीड़ा क्या है ? |
|
Answer» माँ के मन की वेदना यह है कि उसकी बेटी अभी सरल है, भोली है। जीवन-व्यवहार के छल-छम से अनजान है। मानवीय कटु व्यवहारों का उसे अनुभव नहीं है। ससुराल पक्ष के छद्ममय व्यवहारों को किस तरह वह समझ सकेगी, यही माँ की वेदना है। |
|
| 13. |
माँ ने बेटी को सचेत करना क्यों जरूरी समझा ? |
|
Answer» माँ को अपने जीवन में समाज में जो कुछ देखा है, सुना है, अनुभव किया है उससे वह अनेक आशंकाओं से चिंतित है कि ऐसी परिस्थितियां बेटी के जीवन में भी आ सकती हैं। माँ जानती है कि उसकी बेटी भोली है। सामाजिक समस्याओं के बारे में वह कुछ भी नहीं जानती। यहाँ तो माँ की स्नेह छाया उसे परिस्थितियों से बचाने का काम करती थी वहाँ (ससुराल में) वह नहीं होगी। इसलिए माँ उस सभी परिस्थितियों के प्रति सचेत करना चाहती है। |
|
| 14. |
आपके विचार से मां ने ऐसा क्यों कहा कि लड़की होना पर लड़की जैसा मत दिखाई देना ? |
|
Answer» माँ अपने जीवन के अनुभवों के आधार पर बेटी को ससुराल में विवाहित जीवन में आनेवाली कठिनाइयों – समस्याओं के प्रति सचेत कर रही है। ‘लड़की होना पर लड़की जैसा दिखाई मत देना’ ऐसा माँ ने इसलिए कहा ताकि उसकी बेटी ससुराल में उसके जीवन में आनेवाली विषम परिस्थितियों का सामना कर सके एवं अत्याचार का शिकार न हो। |
|
| 15. |
आपकी दृष्टि में कन्या के साथ दान की बात करना कहां तक उचित हैं? |
|
Answer» ‘दान’ शब्द को कन्या के साथ जोड़ देने पर कन्या वस्तु को आभास देने लगती है, वह भी दान को वस्तु बन जाती है। कन्या कोई वस्तु नहीं है, जिसे दान दिया जा सके। एक दृष्टि से यह अर्थ दोषपूर्ण है। दूसरी तरफ कन्या को देते समय मां-बाप अपनी एक कीमती धरोहर वर को सौंपते हैं। इस अर्थ में वह एक पुण्यकर्म है, किन्तु आज की सामाजिक परिस्थितियों में कन्यादान की बात मूल अर्थ में दोषपूर्ण लगती है। |
|