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1.

किन – किन संदर्भो में लोकगीत गाये जाते हैं?

Answer»

त्यौहारों और विशेष अवसरों पर ये लोकगीत गाये जाते हैं।

2.

लोकगीत किसके प्रतीक हैं?

Answer»

लोकगीत हमारी संस्कृति तथा सभ्यता के प्रतीक हैं। आनंद और उल्लास के प्रतीक हैं। लोकगीत उद्दाम जीवन के ही गाँवों के अनंत संख्यक गाने के प्रतीक हैं। ये त्यौहारों के भी प्रतीक हैं। समस्त मानव जीवन के प्रतीक हैं।

3.

वास्तविक लोकगीत कैसे होते हैं?

Answer»

वास्तविक लोकगीत गाँवों और इलाकों की बोलियों में गाये जाते हैं। इसी कारण ये बडे आहलादकर और आनंददायक होते हैं। राग तो इन गीतों के आकर्षक होते ही हैं। इनकी समझी जा सकने वाली भाषा भी इनकी सफलता का कारण है। अतः इसका पूर्व संबंध देहातों की जनता से है।

4.

स्त्रियों के लोकगीत कैसे होते हैं?

Answer»

भारत में स्त्रियों के लोकगीत अनंत संख्या में होते हैं। इनका संबंध स्त्रियों से है। इन्हें अधिकतर स्त्रियाँ ही लिखती और गाती हैं। ये गीत ढोलक की मदद से गाती हैं। गाने के साथ नाच का भी पुट होता है।

5.

लोकगीत के बारे में आप क्या जानते हैं?

Answer»

हमारी संस्कृति में लोकगीत विशिष्ट स्थान रखते हैं। मनोरंजन की दुनिया में इनका महत्वपूर्ण स्थान है। देहाती क्षेत्रों में ये अधिक गाये जाते हैं। लोकगीत सीधे जनता के संगीत हैं। ये घर, गाँव, और नगर की जनता के गीत हैं। ये त्यौहारों और विशेष अवसरों पर गाये जाते हैं। इनके लिए साधना की ज़रूरत नहीं होती । इनके रचनेवाले गाँव के आम पुरुष व महिलाएँ होती हैं। लोकगीत की भाषा जनभाषा है। इन्हें साधारण ढोलक, झाँझ, करताल, बाँसुरी आदि की मदद से गाया जाता है।

6.

सूचना पढ़िए और उसके अनुसार कीजिए।i). लोकगीत, लोकतंत्र (इस तरह ‘लोक’ शब्द के साथ बने दो शब्द लिखिए।)ii). गायक, कवि, लेखक (लिंग बदलिए। याक्य प्रयोग कीजिए।)

Answer»

i). लोकपालक, लोकसभा

ii).

1.    गायक – गायिका, गायनी

2.    कवि – कवइत्री

3.    लेखक – लेखिका

वाक्य प्रयोग

1.    गायक – लताजी एक प्रसिद्ध गायिका हैं।

2.    कवि – हिंदी साहित्य में महादेवी वर्मा सफल कवयित्री मानी जाती है।

3.    लेखक – सरोजिनी नायुडु एक अच्छी लेखिका भी है।

7.

लोकगीत ग्रामीण जनता का मनोरंजक साधन है। कैसे?(या)ग्रामीण जनता के मनोरंजन का साधन लोकगीत है। इस पर अपने विचार बताइए।

Answer»

शीर्षक का नाम : “लोकगीत”
निबन्धकार का नाम : “श्री भगवतशरण उपाध्याय” 

  • लोकगीत लोकप्रियता में शास्त्रीय संगीत से भिन्न हैं। ये जनता के संगीत है।
  • ये घर, गाँव और नगर की जनता के गीत हैं।
  • इनके लिए साधना की ज़रूरत नहीं होती।
  • इनकी रचना करनेवाले भी ज़्यादातर गाँव के लोग हैं।
  • स्त्रियों ने भी इनकी रचना में विशेष भाग लिया है।
  • लोकगीत देश के गाँवों और देहातों में हैं।
  • इनका सम्बन्ध देहात की जनता से है।
  • इनकी रचना करनेवाले अपने गीतों के विषय रोज़मर्रा के जीवन से लेते हैं।
  • लोकगीतों की भाषा गाँवों और इलाकों की बोलियों से संबंधित है।
  • ये ढोलक, झाँझ, करताल, बाँसुरी की मदद से गाये जाते हैं।
  • ये लोकगीत कश्मीर से कन्याकुमारी तक प्रसिद्ध हैं।
  • इसके आधार पर हम कह सकते हैं कि ग्रामीण जनता के मनोरंजन का साधन लोकगीत है।
8.

इन्हें समझिए और अतंर स्पष्ट कीजिए।1. उपेक्षा – अपेक्षा2. कृतज्ञ – कृतघ्न3. बहार – बाहर4. दावत – दवात

Answer»

1. उपेक्षा – अपेक्षा

उपेक्षा = उदासीनता, अवहेलना, तिरस्कार आदि अर्थों में इसका प्रयोग होता है। यह “अपेक्षा” शब्द का विलोम शब्द भी है।

अपेक्षा = तुलना, चाह, आशा आदि अर्थों में इस शब्द का प्रयोग किया जाता है। यह उपेक्षा शब्द का विलोम शब्द है।

2. कृतज्ञ – कृतघ्न

कृतज्ञ = अनुग्रहीत, आभारी, ऋणी आदि अर्थों में इसका प्रयोग होता है। यह कृतघ्न का विलोम शब्द है। उपकार मानने वाले को कृतज्ञ कहा जाता है।

कृतघ्न = उपकार न माननेवाला, ना शुक्रा यह कृतज्ञ का विलोम शब्द भी है।

3. बहार – बाहर

बहार = खिलती हुई जवानी, वंसत ऋतु, शोभा मजा, तमाशा आदि अर्थों में इस शब्द का प्रयोग किया जाता है।

बाहर = स्थान या वस्तु विशेष की सीमा के उस पार, अलग, दूर, अन्यत्र आदि अर्थों में इस शब्द का प्रयोग होता है।

4. दावत – दवात

दावत = भोज का निमंत्रण – इस शब्द का अर्थ है।
दवात = इस शब्द का अर्थ है स्याही रखने का बरतन या शीसा।

9.

‘गरबा’ लोकगीत के बारे में आप क्या जानते हैं?

Answer»

गरबा गुजरात का लोकप्रिय दलीय गायन है। इसमें स्त्रियाँ ढोलक की मदद से गाती हैं। एक विशेष विधि से घेरे में घूम-घूमकर औरतें गाती हैं। इसमें नाच-गान साथ – साथ चलते हैं।

10.

पहाडी लोकगीतों के बारे में आप क्या जानते हैं?

Answer»
  • पहाडियों के अपने – अपने गीत हैं।
  • उनके अपने – अपने भिन्न रूप होते हुए भी अशास्त्रीय होने के कारण उनमें अपनी एक समान भूमिका है।
  • गढ़वाल, किन्नौर, काँगडा आदि के अपने – अपने गीत और उन्हें गाने की अपनी – अपनी विधियाँ हैं।
  • उनका अलग नाम ही पहाड़ी पड गया है।
11.

लोकगीतों में मुख्यतः ग्रामीण जनता की मार्मिक भावनाएँ हैं। अपने शब्दों में इसे सिद्ध कीजिए।

Answer»
  • त्यौहारों और विशेष अवसरों पर लोकगीत गाये जाते हैं। ये गाँवों और देहातों में गाये जाते हैं। इसलिए इन लोकगीतों में मुख्यतः ग्रामीण जनता की मार्मिक भावनाएँ हैं।
  • लोकगीतों को गाने वाली भी अधिकतर गाँवों की स्त्रियाँ ही हैं। इसलिए इन लोकगीतों में मुख्यतः ग्रामीण जनता की मार्मिक भावनाएँ हैं।
  • इनके लिए कोई साधना की जरूरत भी नहीं होती है। * इसलिए इनमें मुख्यतः ग्रामीण जनता की मार्मिक भावनाएं हैं।
  • इन देहाती गीतों के रचयिता कोरी कल्पना को मान न देकर अपने गीतों के विषय रोजमर्रा के बहते जीवन से लेते हैं जिससे वे सीधे मर्म को छू लेते हैं।
  • इनके राग भी साधारणतः पीलु, सारंग, दुर्गा, सावन, सोरठ आदि हैं। इसलिए भी इन गीतों में ग्रामीण जनता की मार्मिक भावनाएँ हैं।
  • इन लोकगीतों की भाषा के संबंध में कहा जा चुका है कि ये सभी लोकगीत गाँवों और इलाकों की बोलियों में गाये जाते हैं।
  • इस कारण ये आलादकारक और आनंददायक होते हैं। इसीलिए भी इनमें ग्रामीण जनता की मार्मिक भावनाएँ हैं।
12.

हमारे जीवन में लोकगीतों का क्या महत्व है? स्पष्ट कीजिए।

Answer»

पाठ का नाम : “लोकगीत” है।
लेखक का नाम : “श्री भागवतशरण उपाध्याय” है।

हमारी संस्कृति में लोकगीत और संगीत का अटूट संबंध है। मनोरंजन की दुनिया में आज भी लोकगीतों का महत्वपूर्ण स्थान है। गीत – संगीत के बिना हमारा मन रसा से नीरस हो जाता है।

लोकगीत अपनी लोच, ताज़गी और लोकप्रियता में शास्त्रीय संगीत से भिन्न हैं। लोकगीत सीधे जनता का संगीत है। ये घर, गाँव और नगर की जनता के गीत हैं इनके लिए साधना की ज़रूरत नहीं होती। त्यौहारों और विशेष अवसरों पर ये गाये जाते हैं।

स्त्री और पुरुष दोनों ही इनकी रचना में भाग लिये हैं। ये गीत बाजों, ढोलक, करताल, झाँझ और बाँसुरी आदि की मदद से गाये जाते हैं।

लोकगीतों के कई प्रकार हैं। इनका एक प्रकार बडा ही ओजस्वी और सजीव है। यह इस देश के आदिवासियों का संगीत है। मध्यप्रदेश, दक्कन और छोटा नागपुर में ये फैले हुए हैं।

पहाडियों के अपने – अपने गीत हैं। वास्तविक लोकगीत देश के गाँवों और देहातों में हैं। सभी लोकगीत गाँवों और इलाकों की बोलियों में गाये जाते हैं। चैता, कजरी, बारहमासा, सावन आदि मीर्जापुर, बनारस और उत्तर प्रेदश के पूरवी जिलों में गाये जाते हैं।

बाउल और भतियाली बंगला के लोकगीत हैं। पंजाब में महिया गायी जाती है। राजस्थानी में ढोला – मारू आदि गीत गाते हैं। भोजपुर में बिदेसिया का प्रचार हुआ है।

इन गीतों में अधिकतर रसिकप्रियों और प्रियाओं की बात रहती हैं। इन गीतों में करुणा और बिरह . का रस बरसता है।

जंगली जातियों में भी लोकगीत गाये जाते हैं। एक दूसरे के जवाब के रूप में दल बाँधकर ये गाये जाते हैं। आल्हा एक लोकप्रिय गान है।

गाँवों और नगरों में गायिकाएँ होती हैं। स्त्रियाँ ढोलक की मदद से गाती हैं। उनके गाने के साथ नाच. का पुट भी होता है।

13.

लोकगीतों की भाषा कैसी होती है?

Answer»

लोकगीतों की भाषा के संबंध में कहा जा चुका है कि ये सभी लोकगीत गाँवों और इलाकों की बोलियों में गाये जाते हैं । इसी कारण ये बडे आलाद कारक और आनंददायक होते हैं ।

14.

लोकगीतों को आज मनोरंजन का साधन कैसे बनाया जा सकता है?

Answer»
  • लोच, ताजगी भरा कर लोकगीतों को मनोरंजन का साधन बनाया जा सकता है।
  • साधारण ढोलक, झाँझ, करताल, बाँसुरी आदि की मदद से लोकगीतों को मनोरंजन का साधन बनाया जा सकता है।
  • गाँवों और इलाकों की बोलियों के कारण इन्हें मनोरंजन का साधन बनाया जा सकता हैं।
  • नाच – गान दोनों साथ-साथ चलाने के कारण इन्हें मनोरंजन का साधन बना सकेंगे।
15.

बारहमासा लोकगीतों के बारे में आप क्या जानते हैं?

Answer»

बारहमासा लोकगीत तो बारह मासों से संबंधित हैं। इन लोकगीतों में बारह मासों से संबंधित प्रकृति वर्णन के बारे में गीत गाये जाते हैं। जिनमें प्राकृतिक विशेषताओं और महत्व का वर्णन किया जाता है।

16.

पंजाब के लोकगीतों के बारे में लिखिए।

Answer»
  • लोकगीत सीधे जनता के संगीत है। ये ओजस्वी और सजीव हैं।
  • पंजाब में माहिया आदि इसी प्रकार के हैं।
  • हीरा – राँझा, सोहनी – महीवाल आदि लोकगीत पंजाब में बड़े चाव से गाये जाते हैं।
17.

शास्त्रीय संगीत की तुलना में लोकगीत अपना एक विशेष स्थान रखते हैं, इस कथन की पुष्टि करते हुए अपने क्षेत्रीय लोकगीतों का उल्लेख कीजिए।

Answer»

मनोरंजन की दुनिया में आज भी लोकगीतों का महत्वपूर्ण स्थान है। ये गीत साधारण ढोलक, झाँझ, करताल, बाँसुरी आदि की मदद से माये जाते हैं। ये घर, गाँव और नगर की जनता के गीत हैं। इनके लिए साधना की ज़रूरत नहीं होती । त्यौहारों और विशेष अवसरों पर ये गाये जाते हैं।

लोकगीतों के कई प्रकार हैं। आदिवासियों का लोकगीत बड़ा ही ओजस्वी और सजीव है। ये मध्य प्रदेश, दक्कन, छोटा नागपुर में गोंड – खांड, भील संथाल आदि में फैले हुए हैं।

इनकी भाषा के संबंध में कहा जाय तो ये सभी लोकगीत गाँवों और इलाकों की बोलियों में गाये जाते हैं। यही इनकी सफलता का कारण है। स्त्रियाँ भी लोकगीतों को सिरजती हैं और गाती हैं। नारियों के गाने साधारणतः दल बाँधकर गाये जाते हैं। विवाह, जन्म, सभी ऋतुओं में, होली, बरसात में ये गीत गाये जाते हैं। सारे देश के कश्मीर से कन्याकुमारी तक और काठियावाड़ गुजरात – राजस्थान से उड़ीसा – आंध्र तक लोकगीत गाये जाते हैं। इनके अपने अपने विद्यापति हैं। गुरजात का दलीय गायन “गरबा” है। होली के अवसर पर ब्रज में रसिया चलता है।

गाँव के गीतों के अनंत प्रकार हैं। जीवन जहाँ इठला – इठलाकर लहराता है, वहाँ भला आनंद के स्रोतों की कमी हो सकती है। उदाम जीवन के ही वहाँ के अनंत संख्यक गाने के प्रतीक हैं।

18.

भगवतशरण उपाध्याय जी ने भारत के विविध प्रकार के लोकगीतों के बारे में क्या बताया?

Answer»

हमारी संस्कृति में लोकगीत और संगीत का अटूट संबंध है । मनोरंजन की दुनिया में आज भी लोकगीतों का महत्वपूर्ण स्थान है । गीत – संगीत के बिना हमारा मन रसा से नीरस हो जाता है ।

लोकगीत अपनी लोच, ताज़गी और लोकप्रियता में शास्त्रीय संगीत से भिन्न हैं । लोकगीत सीधे जनता का संगीत है । ये घर, गाँव और नगर की जनता के गीत हैं | इनके लिए साधना की जरूरत नहीं होती। त्यौहारों और विशेष अवसरों पर ये गाये जाते हैं ।

स्त्री और पुरुष दोनों ही इनकी रचना में भाग लिये हैं । ये गीत बाजे, ढोलक, करताल, झाँझ और बाँसुरी आदि की मदद से गाये जाते हैं ।

लोकगीतों के कई प्रकार हैं | इनका एक प्रकार बडा ही ओजस्वी और सजीव है | यह इस देश के आदिवासियों का संगीत है | मध्यप्रदेश, दक्कन और छोटा नागपुर में ये फैले हुए हैं।

पहाडियों के अपने – अपने गीत हैं । वास्तविक लोकगीत देश के गाँवों और देहातों में हैं | सभी लोकगीत गाँवों और इलाकों की बोलियों में गाये जाते हैं । चैता, कजरी, बारहमासा, सावन आदि मीर्जापुर, बनारस और उत्तर प्रदेश के पूरवी जिलों में गाये जाते हैं ।

बाउल और भतियाली बंगला के लोकगीत हैं । पंजाब में महिया गायी जाती है। राजस्थानी में ढोला – मारू आदि गीत गाते हैं । भोजपुर में बिदेसिया का प्रचार हुआ है ।

इन गीतों में अधिकतर रसिकप्रियों और प्रियाओं की बात रहती है । इन गीतों में करुणा और बिरह का रस बरसता है।

जंगली जातियों में भी लोकगीत गाये जाते हैं । एक – दूसरे के जवाब के रूप में दल बाँधकर ये गाये जाते हैं । आल्हा एक लोकप्रिय गान है ।

गाँवों और नगरों में गायिकाएँ होती हैं । स्त्रियाँ ढोलक की मदद से गाती हैं । उनके गाने के साथ नाच का पुट भी होता है।

19.

लोकगीतों में ग्रामीण जीवन शैली प्रतिबिंबित होती है । कैसे?

Answer»

हमारी संस्कृति में लोकगीत और संगीत का अटूट संबंध है | मनोरंजन की दुनिया में आज भी लोकगीतों का महत्वपूर्ण स्थान है। गीत – संगीत के बिना हमारा मन रसा से नीरस हो जाता है।

ये लोकगीत घर, गाँव और जनता के गीत हैं। इनके लिए कोई साधना की ज़रूरत नहीं होती। त्यौहारों और विशेष अवसरों पर ये गाये जाते हैं। ये गाँवों और इलाकों की बोलियों में गाये जाते हैं। ये बडे आह्लादकर और आनंददायक होते हैं। इसलिए हम कह सकते हैं कि ये ग्रामीण जनता के मनोरंजक साधन हैं।

  • त्यौहारों और विशेष अवसरों पर लोकगीत गाये जाते हैं। ये गाँवों और देहातों में गाये जाते हैं। इसलिए इन लोकगीतों में मुख्यतः ग्रामीण जनता की मार्मिक भावनाएँ हैं।
  • लोकगीतों को गाने वाले भी अधिकतर गाँवों की स्त्रियाँ ही हैं। इसलिए इन लोकगीतों में मुख्यतः ग्रामीण जनता की मार्मिक भावनाएँ हैं।
  • इनके लिए कोई साधना की ज़रूरत भी नहीं होती है।
  • इसलिए इनमें मुख्यतः ग्रामीण जनता की मार्मिक भावनाएं हैं।
  • इन देहाती गीतों के रचयिता कोरी कल्पना को मान न देकर अपने गीतों के विषय रोजमर्रा के बहते जीवन से लेते हैं । जिससे वे सीधे मर्म को छू लेते हैं।
  • इनके राग भी साधारणतः पीलू, सारंग, दुर्गा, सावन, सोरठ आदि हैं।
  • इसलिए भी इन गीतों में ग्रामीण जनता की मार्मिक भावनाएं हैं।
  • इन लोकगीतों की भाषा के संबंध में कहा जा चुका है कि ये सभी लोकगीत गाँवों और इलाकों की बोलियों में गाये जाते हैं।
  • इस प्रकार हम कह सकेंगे कि लोकगीतों में ग्रामीण जीवनशैली प्रतिबिंबित होती है ।
20.

भारत के विविध प्रकार के लोकगीतों के बारे में आप क्या जानते हैं?

Answer»

हमारी संस्कृति में लोकगीत और संगीत का अटूट संबंध है । मनोरंजन की दुनिया में आज भी लोकगीतों का महत्वपूर्ण स्थान है । गीत – संगीत के बिना हमारा मन रसा से नीरस हो जाता है ।

लोकगीत अपनी लोच, ताज़गी और लोकप्रियता में शास्त्रीय संगीत से भिन्न हैं । लोकगीत सीधे जनता का संगीत है । ये घर, गाँव और नगर की जनता के गीत हैं। इनके लिए साधना की ज़रूरत नहीं होती। त्यौहारों और विशेष अवसरों पर ये गाये जाते हैं ।

स्त्री और पुरुष दोनों ही इनकी रचना में भाग लिये हैं । ये गीत बाजे, ढोलक, करताल, झाँझ और बाँसुरी आदि की मदद से गाये जाते हैं ।

लोकगीतों के कई प्रकार हैं । इनका एक प्रकार बडा ही ओजस्वी और सजीव है । यह इस देश के आदिवासियों का संगीत है | मध्यप्रदेश, दक्कन और छोटा नागपुर में ये फैले हुए हैं।

पहाडियों के अपने – अपने गीत हैं । वास्तविक लोकगीत देश के गाँवों और देहातों में हैं । सभी लोकगीत गाँवों और इलाकों की बोलियों में गाये जाते हैं । चैता, कजरी, बारहमासा, सावन आदि मीर्जापुर, बनारस
और उत्तर प्रदेश के पूरवी जिलों में गाये जाते हैं ।

बाउल और भतियाली बंगला के लोकगीत हैं | पंजाब में महिया गायी जाती है | राजस्थानी में ढोला – मारू आदि गीत गाते हैं । भोजपुर में बिदेसिया का प्रचार हुआ है ।

इन गीतों में अधिकतर रसिकप्रियों और प्रियाओं की बात रहती है । इन गीतों में करुणा और बिरह का रस बरसता है।

जंगली जातियों में भी लोकगीत गाये जाते हैं । एक-दूसरे के जवाब के रूप में दल बाँधकर ये गाये जाते हैं । आल्हा एक लोकप्रिय गान है।

गाँवों और नगरों में गायिकाएँ होती हैं । स्त्रियाँ ढोलक की मदद से गाती हैं । उनके गाने के साथ नाच का पुट भी होता है।

21.

भारतीय संस्कृति लोकगीतों में झलकती है । कैसे?

Answer»
  • हमारी संस्कृति में लोकगीत और संगीत का अटूट संबंध है ।
  • मनोरंजन की दुनिया में आज भी लोकगीतों का महत्वपूर्ण स्थान है।
  • लोकगीतों से हमें उत्तेजना, उत्साह आदि मिलते हैं ।
  • भारतीय संस्कृति देश के उत्सव, त्यौहार एवं देश के देहातियों और गाँवों के जनता पर निर्भर रहती है।
  • लोकगीतों में अपने – अपने प्रांत की संस्कृति झलकती है।
  • लोकगीत बडा ही ओजस्वी और सजीव है ।
  • इनके द्वारा विभिन्न प्रांतों के लोगों के रहन – सहन, आचार – व्यवहार, रीति – रिवाज़ आदि हमें मालूम होते हैं । लोकगीत त्यौहारों और विशेष अवसरों पर गाये जाते हैं ।
  • लोकगीतों में लोच, ताज़गी और लोकप्रियता है ।
  • त्यौहारों के समय, नदियों में नहाते समय, विवाह के, मटकोड, ज्यौनार के संबंधियों के प्रेमयुक्त गाली के, जन्म आदि सभी अवसरों के अलग – अलग लोकगीत गाये जाते हैं | जो देश की संस्कृति को प्रतिबिंबित करते हैं। इसीलिए कहा गया कि भारतीय संस्कृति लोकगीतों से झलकती हैं।
22.

लोकगीतों में लोगों की दिलचस्पी कम होने से हमें क्या क्षति हो सकती है, इन्हें बढ़ावा देने के लिए हमें क्या करना चाहिए?

Answer»

लोकगीतों में लोगों की दिलचस्पी कम होने से हम अपनी सभ्यता, संस्कृति और ग्राम्य जीवन की सीधी-सरल शैली से दूर हो जाएँगे। इन्हें बढ़ावा देने के लिए हमें लोक गायकों, नर्तकों आदि को बढ़ावा देना चाहिए।

23.

हाथों में क्या रचनेवाली है?

Answer»

हाथों में मेहंदी रचनेवाली है।