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This section includes InterviewSolutions, each offering curated multiple-choice questions to sharpen your knowledge and support exam preparation. Choose a topic below to get started.

1.

प्राकृतिक आपदाएँ कौन-कौन सी हैं? 

Answer»

बाढ़, सूखा, भूकम्प, भूस्खलन, ज्वालामुखी विस्फोट, चक्रवात, बादल फटना, सुनामी, ओलावृष्टिं आदि प्राकृतिक आपदाएँ हैं।

2.

प्राकृतिक आपदाएँ मानव जीवन के लिए हैं-(क) अभिशाप(ख) खतरनाक(ग) विनाशकारी(घ) उपरोक्त सभी

Answer»

सही विकल्प है (घ) उपरोक्त सभी

3.

बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में नदियों के तट पर बनाया जाता है-(क) वृक्षारोपण(ख) बाँध(ग) मेंड़बंदी(घ) उपरोक्त में कोई नहीं

Answer»

सही विकल्प है (ख) बाँध

4.

बाढ़ की उत्पत्ति में मानवीय क्रियाकलापों की भूमिका स्पष्ट करें।

Answer»

अन्धाधुन्ध वन कटाव, अवैज्ञानिक कृषि पद्धतियाँ, अनियोजित निर्माण कार्य आदि मानवीय क्रियाकलापों से प्राकृतिक अपवाह तन्त्र अवरुद्ध हो जाता है। तथा बाढ़ की विध्वंसता बढ़ जाती है।

5.

बाढ़ आने के क्या कारण हो सकते हैं? स्पष्ट कीजिए

Answer»

वनों की अंधाधुंध कटाई तथा बड़े-बड़े उद्योगों द्वारा अत्यधिक मात्रा में कार्बन-डाइऑक्साइड गैस छोड़े जाने के कारण पृथ्वी के ताप में अत्यधिक वृद्धि हो जाती है जिससे पहाड़ों की बर्फ पिघलने लगती है और बाढ़ का कारण बनती है।

6.

भू-स्खलन के क्या कारण हैं?

Answer»

कभी-कभी कोयले आदि की खानों से इतनी अधिक मात्रा में खनिज पदार्थ निकाल लिए जाते हैं। कि उसका आधार समाप्त हो जाता है और वह फँसने लगता है। इसके अतिरिक्त वर्षा या बाढ़ आने पर बड़ी-बड़ी नदियों के किनारे भारी मात्रा में कटाव हो जाने से भी भू-स्खलन हो जाता है।

7.

निम्नलिखित वाक्यों में खाली जगह भरिए-(क) आँधी चलने पर वायु की गति लगभग ____ किमी प्रतिघण्टा होती है।(ख) वायु उच्च वायुदाब से _____ की ओर चलती है।(ग) तूफान आने पर हवा की गति लगभग ____ किमी प्रतिघण्टा होती है।(घ) वायु के गोलाकार या चक्करदार चलने को ___ कहते हैं।

Answer»

(क) आँधी चलने पर वायु की गति लगभग 85-95 किमी प्रतिघण्टा होती है।
(ख) वायु उच्च वायुदाब से निम्न वायुदाब की ओर चलती है।
(ग) तूफान आने पर हवा की गति लगभग 95-115 किमी प्रतिघण्टा होती है।
(घ) वायु के गोलाकार या चक्करदार चलने को चक्रवात कहते हैं।

8.

नीलगाय और टिड्डी दल फसल को कैसे हानि पहुँचाते हैं?

Answer»

नीलगाय छोटे पौधे और पेड़ों की पत्तियाँ खा जाती हैं। इनके प्रकोप के कारण अरहर, चना, मटर व अन्य दलहनी फसलों की खेती अधिक प्रभावित होती है। थोड़े समय में नीलगायें खड़ी फसल को उजाड़ देती हैं। इसी प्रकार टिडुडियाँ करोड़ों की संख्या में कई किमी0 तक लम्बे दल बनाकर उड़ती हैं और मार्ग में पड़ने वाले हरे-भरे खेतों, बागों व पेड़-पौधों की पत्तियों और फलों को खाकर सम्पूर्ण क्षेत्र को नष्ट कर देती हैं। इनके आक्रमण के पश्चात् प्रायः अकाल पड़ जाता है।

9.

उत्तरांचल की सन् 2013 की प्राकृतिक आपदा का वर्णन कीजिए।

Answer»

उत्तरांचल की प्राकृतिक आपदा-प्राकृतिक आपदा, पृथ्वी की प्राकृतिक प्रक्रियाओं से उत्पन्न एक बड़ी घटना है। हिमस्खलन, भूकम्प, ज्वालामुखी आदि जो कि मानव गतिविधियों को प्रभावित करते हैं, जून 2013 में उत्तरांचली में एकाएक बादल फटने की घटना के साथ मूसलाधर वर्षा हुई। तेज एवं लगातार बारिश के कारण भूस्खलन होने लगा तथा त्वरित बाढ़ आ गयी। त्वरित बाढ़ ने केदारनाथ मन्दिर के आसपास बहुत तबाही की । बाढ़ के पानी का प्रवाह इतना तीव्र था कि जिसमें कई गाँव पूरे-पूरे बह गये। इस केदारनाथ त्रासदी में असीमित जनधन की हानि हुई।

10.

1. जीवन पर गम्भीर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली प्राकृतिक घटनाओं को………….कहा जाता है।2. भूकम्प, ज्वालामुखी का विस्फोट, बादल का फटना तथा सूनामी…………….प्राकृतिक आपदाएँ हैं। 3. युद्ध, दंगा, आतंकवादी हमला………….आपदाएँ हैं।4. आग लगना या अग्निकाण्ड मानवीय……….’या’…………के कारणे घटित होता है।5. अधिकांश प्राकृतिक आपदाएँ………….रूप से घटित होती है।6. सूनामी, चक्रवात, सूखा, बाढ़……………आपदाएँ हैं।7. युद्ध तथा साम्प्रदायिक दंगे…………..आपदा नहीं है।8. सूखा एक………….वाली प्राकृतिक आपदा है।9. सूखे का सर्वाधिक प्रभाव………..पर पड़ता है। 10. बाढ़ से……….:”एवं…………की हानि होती है।11. भूकम्प के कारण सर्वाधिक हानि………….के कारण होती है।12. भूकम्प की तीव्रता की माप के लिए:……….’को अपनाया गया है।13. सुनामी से सर्वाधिक क्षति……………..‘में होती है।14. प्राकृतिक आपदाओं से होने वाली क्षति को कम करने के लिए………….आवश्यक है।15. गम्भीर प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव से व्यक्ति में………..”प्रवृत्ति प्रबल हो जाती है।16. समुद्र में गर्म पानी के तापमान और दबाव के कारण…………”उत्पन्न होता है।17. प्राकृतिक आपदा के दौरान भय, असहायता और भारी हानि के कारण व्यक्ति में …………..विचार उत्पन्न होते हैं

Answer»

1. प्राकृमिक आपदा

2. आकस्मिक

3. मानव जनित

4. लापरवाही,दुर्भावना

5.आकस्मिक

6. प्राकृतिक

7. प्राकृतिक

8. धीरे-धीरे आने

9. कृषि कार्य एवं कृषि उत्पादों

10. फसलों, आवासीय क्षेत्रों

11. भवनों के गिरने

12. रिक्टर स्केल

13. तटीय क्षेत्रों

14, आपदा प्रबन्धन

15. निराशावादी

16. समुद्री तूफान

17. नकारात्मक।

11.

प्राकृतिक आपदाओं के कारण पड़ने वाले किन्हीं दो मनोवैज्ञानिक प्रभावों के बारे में लिखिए।

Answer»

प्राकृतिक आपदाओं के कारण व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। इससे व्यक्ति विभिन्न साधारण अथवा गम्भीर मानसिक रोगों का शिकार हो सकता है। वह निरन्तर चिन्ताग्रस्त रहता है। ऐसे में व्यक्ति कुण्ठा, अकारण भय, अति चिन्ता, तनाव आदि का शिकार हो सकता है। प्राकृतिक आपदाओं के कारण व्यक्ति का सामान्य व्यवहार भी विकृत हो सकता है। व्यक्ति के व्यवहार में अस्थिरता, खीज, आक्रामकता या उत्साहहीनता के लक्ष्य उत्पन्न हो सकते हैं। अति गम्भीर प्राकृतिक आपदाओं के कारण व्यक्ति में निराशावादी प्रवृत्ति प्रबल हो सकती है तथा इसकी प्रबलता इतनी बढ़ सकती है कि व्यक्ति आत्महत्या तक कर सकता है।

12.

आपदा-प्रबन्धन का अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा वर्तमान समय में इसके महत्त्व पर प्रकाश डालिए।

Answer»

यह एक्ल सर्वविदित तथ्य है कि प्राकृतिक आपदाओं से जान-माल की व्यापक हानि होती है। तथा इनके दूरगामीप्रतिकूल प्रभाव भी होते हैं। इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए आज के वैज्ञानिक युग में आपदा-प्रबन्धन के अन्तर्गत विभिन्न आपदाओं के घटित होने की पूर्व जानकारी प्राप्त करने के अधिक-से-अधिक वैज्ञानिक उपाय किये जा रहे हैं। उदाहरण के लिए बाढ़, सूनामी, सूखा, चक्रवात आदि आने से पूर्व जार्नकारी प्राप्त की जाती है। इस जानकारी को ध्यान में रखते हुए सम्बन्धित क्षेत्र में पूर्व तैयारियाँ तथा बचाव के उपाय किये जाते हैं, उदाहरणस्वरूप बाढ़ की चेतावनी प्राप्त होते ही लोग सुरक्षित स्थानों पर पलायन कर जाते हैं। आपदा-प्रबन्धन के अन्तर्गत इस बात के भी सभी सम्भव उपाय किये जाते हैं। जिससे आपदा के कारण कम-से-कम के क्षति है। इसके अतिरिक्त आपदा के आने के उपरान्त किये जाने वाले बचाव-कार्य भी आपदा प्रबन्धन के ही अन्तर्गत आते हैं। उदाहरणस्वरूप बाढ़ के उपरान्त संक्रामक रोगों की रोकथाम के उपाय भी आपदा-प्रबन्धन के ही कार्य हैं।

आपदा-प्रबन्धन का मुख्य महत्त्व यह है कि उत्तम आपदा-प्रबन्धन से आपदा के प्रतिकूल प्रभावों को समाप्त या कम किया जा सकता है।

13.

अनावृष्टि के परिणामस्वरूप कौन-सी आपदा उत्पन्न हो सकती है?

Answer»

अनावृष्टि के परिणामस्वरूप सूखे की आपदा उत्पन्न हो सकती है।

14.

सूखे का सर्वाधिक प्रतिकूल प्रभाव किस पर पड़ता है?

Answer»

सूखे का सर्वाधिक प्रतिकूल प्रभाव कृषि-कार्यों तथा कृषि उत्पादनों पर पड़ता है।

15.

चक्रवातीय तूफानों के मुख्य प्रतिकूल प्रभावों का उल्लेख कीजिए।

Answer»

जैसा कि हम जानते हैं, चक्रवातीय तूफानों की स्थिति में अत्यधिक तेज हवाएँ चलती हैं, वर्षा होती है तथा बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। चक्रवातीय तूफानों के मुख्य प्रतिकूल प्रभाव निम्नलिखित होते हैं

⦁    चक्रवातीय तूफान के समय जो जलयान सम्बन्धित क्षेत्र में होते हैं, उन्हें बहुत अधिक हानि होती है। यह प्रतिकूल प्रभाव समुद्र में चलते हुए जलयान तथा लंगर डाले खड़े जलयान एवं बन्दरगाह सभी पर पड़ता है।

⦁    चक्रवात के सम्मुख आने वाले क्षेत्र में हर प्रकार से जान-माल की भारी क्षति होती है।

⦁    चक्रवातीय तूफान के कारण प्राय: तेज हवाओं के साथ-ही-साथ बाढ़, कीचड़ के प्रवाह तथा भू-स्खलन के माध्यम से भी सम्बन्धित क्षेत्र में गम्भीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ते हैं।

⦁    चक्रवातीय तूफान के बाद सम्बन्धित क्षेत्र में अनेक संक्रामक रोग भी तेजी से फैलने लगते हैं।⦁   

 चक्रवातीय तूफान से सम्बन्धित क्षेत्र में विद्युत आपूर्ति, पेयजल, यातायात सेवाएँ तथा, संचार सेवाएँ भी प्रायः ठप्प हो जाती हैं।

⦁    चक्रवातीय तूफान से फ़सलों तथा अन्य सम्पत्ति को भी बहुत अधिक हानि होती है।

16.

भूकम्प से जान-माल का नुकसान होता है|(क) पृथ्वी की गति से ।(ख) इमारतों के गिरने से(ग) अत्यधिक वर्षा से(घ) डर से

Answer»

(ख) इमारतों के गिरने से

17.

सुनामी लहरें तटवर्ती क्षेत्रों पर क्यों अधिक प्रभावी होती हैं?

Answer»

जल तरंगों की गति उथले समुद्र में अधिक एवं गहरे समुद्र में कम होती है। इसके अतिरिक्त तरंगों की ऊँचाई तट के निकट अत्यधिक बढ़ जाती है, इन्हीं कारणों से सुनामी लहरें तटवर्ती क्षेत्रों पर अधिक प्रभावी होती हैं।

18.

भूकम्प की तीव्रता के मापन के पैमाने को क्या कहते हैं?

Answer»

भूकम्प की तीव्रता के मापन के पैमाने को ‘रिक्टर स्केल’ या ‘रिक्टर पैमाना’ कहते हैं।

19.

सूखा पड़ने के प्रतिकूल प्रभावों का उल्लेख कीजिए। 

Answer»

सूखा एक ऐसी आपदा है जिसके परिणामस्वरूप सम्बन्धित क्षेत्र में जल की कमी या अभाव हो जाता है। यह एक गम्भीर आपदा है तथा इसके विभिन्न प्रतिकूल प्रभाव क्रमशः स्पष्ट होने लगते हैं। सर्वप्रथम सूखे का प्रभाव कृषि-उत्पादनों पर पड़ता है। फसलें सूखने लगती हैं तथा क्षेत्र में खाद्य-पदार्थों की कमी होने लगती है। इस स्थिति में अनाज आदि के दाम बढ़ जाते हैं तथा गरीब परिवारों की आर्थिक स्थिति दयनीय हो जाती है। सूखे का प्रतिकूल प्रभाव क्षेत्र के पशुओं पर भी पड़ता है क्योंकि उनको पर्याप्त मात्रा में चारा तथा जल उपलब्ध नहीं हो पाता।
इससे क्षेत्र में दूध एवं मांस आदि की भी कमी होने लगती है। कृषि-कार्य घट जाने के कारण अनेक कृषि-श्रमिकों को रोजगार मिलना बन्द हो जाता है तथा क्षेत्र की अर्थव्यवस्था बिगड़ने लगती है। सूखे की दशा में कृषि-उत्पादनों में कमी आ जाती है। इस स्थिति में कृषि आधारित कच्चे माल से सम्बन्धित औद्योगिक संस्थानों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इस स्थिति में सम्बन्धित उत्पादनों की कमी हो जाती है तथा उनकी कीमत भी बढ़ जाती है। इसके अतिरिक्त किसी क्षेत्र में निरन्तर सूखे की स्थिति बने रहने से वहाँ के निवासी अन्य क्षेत्रों में चले जाते हैं। इससे सामाजिक ढाँचा प्रभावित होता है तथा जनसंख्या का क्षेत्रीय सन्तुलन बिगड़ने लगता है। सूखे की समस्या विकराल हो जाने की स्थिति में बेरोजगारी तथा भुखमरी की समस्याएँ भी प्रबल होने लगती हैं।

20.

भूकम्प के परिणामस्वरूप सर्वाधिक हानि किस कारण से होती है?

Answer»

भूकम्प के परिणामस्वरूप सर्वाधिक हानि मकानों के गिरने के कारण होती है।

21.

बाढ़ से क्षति होती है। (a) मनुष्य एवं पालतू जानवर की(b) मकान की(C) फसलों की(d) उपरोक्त सभी

Answer»

सही विकल्प है (d) उपरोक्त सभी

22.

बाढ़ से नष्ट होता है। (a) फसल(b) मकान(c) सड़के और रेलमार्ग(d) ये सभी

Answer»

सही विकल्प है (d) ये सभी

23.

आग के नितान्त अभाव में हमारा कौन-सा महत्त्वपूर्ण कार्य सम्पन्न नहीं हो सकता?

Answer»

आग के नितान्त अभाव में भोजन पकाने अर्थात् पाक-क्रिया का कार्य सम्पन्न नहीं हो सकता।

24.

सूखे से क्या आशय है?

Answer»

किसी क्षेत्र में मनुष्यों, पशुओं तथा कृषि-कार्यों के लिए सामान्य आवश्यकता से काफी कम मात्रा में जल की उपलब्ध होना ‘सूखा पड़ना’ कहलाता है।

25.

सुनामी लहरों से बचाव के कोई दो उपाय बताइए।

Answer»

सुनामी लहरों से बचाव के सुरक्षात्मक उपाय के रूप में समुद्रतटवर्ती भागों में पूर्वसूचना केन्द्रों का विकास एवं विस्तार किया जाना चाहिए, इसके अतिरिक्त समुद्री लहरों के प्राकृतिक अवरोधक के रूप में मैंग्रोव वनों को संरक्षित किया जाना आवश्यक है।

26.

आग लगने या ‘अग्निकाण्ड’ से क्या आशय है?

Answer»

आग का अनियन्त्रित होकर विनाशकारी रूप ग्रहण कर लेना ही ‘आग लंगना’ या ‘अग्निकाण्ड’ कहलाती है।

27.

तूफान से कौन-कौन सी हानियाँ होती हैं?

Answer»

तूफान से निम्नलिखित हानियाँ होती हैं

1. यातायात में बाधा आती है।

2. हवाई जहाज दुर्घटनाग्रस्त हो जाते हैं।

3. फलदार वृक्षों एवं व्यावसायिक कृषि को हानि होती है।

4. पेड़ उखड़ जाते हैं, मकान गिर जाते हैं।

5. बिजली/टेलीफोन तार क्षतिग्रस्त हो जाते हैं।

6. सिंचाई के बाद खड़ी फसल गिर जाती है।

28.

प्राकृतिक आपदा पर चार बिन्दु लिखिए। 

Answer»

ऐसी आपदाएँ जिनका सम्बन्ध प्रकृति से होता है, ‘प्राकृतिक आपदाएँ कहलाती हैं। प्राकृतिक आपदा से सम्बन्धित चार बिन्दु निम्नलिखित हैं।

⦁    प्राकृतिक आपदा से जान-माल को बहुत नुकसान होता है।

⦁    इससे समाज में गरीबी एवं बेरोजगारी की समस्याएँ बढ़ती हैं।

⦁    प्राकृतिक आपदाओं को रोकना सम्भव नहीं है, लेकिन इनके प्रभाव को कम किया जा सकता है

⦁    प्राकृतिक आपदा के समय जनता को धैर्य से काम लेना चाहिए व मिलकर कार्य करना चाहिए।
 

29.

आग लगने पर सबसे गम्भीर आशंका क्या होती है?

Answer»

आग लगने पर सबसे गम्भीर आशंका व्यक्तियों के जलने या झुलसने की होती है। इससे व्यक्तियों की मृत्यु भी हो सकती है।

30.

निम्न में से कौन-सी भूकम्प की स्थिति है?(a) मकान गिरने से भूमि का हिलना(b) रेलगाड़ी की धमक से भूमि में कम्पन(C) पृथ्वी की आन्तरिक शक्तियों की उथल-पुथल से भूमि में कम्पन(d) उपरोक्त सभी

Answer»

(c) पृथ्वी की आन्तरिक शक्तियों की उथल-पुथल से भूमि में कम्पन

31.

संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए-‘भूकम्प की भविष्यवाणी 

Answer»

भूकम्प की भविष्यवाणी करने में अग्रलिखित बिन्दुओं का विशेष महत्त्व है

⦁    किसी क्षेत्र में हो रही भूगर्भीय मतियों का उस क्षेत्र में हो रहे भू-आकृति परिवर्तनों से अनुमान लगाया जा सकता है। ऐसे क्षेत्र जहाँ भूमि ऊपर-नीचे होती रहती है, अत्यधिक भूस्खलन होते हैं, नदियों का असामान्य मार्ग परिवर्तन होता है, प्रायः भूकम्प की दृष्टि से संवेदनशील होते हैं।

⦁    किसी क्षेत्र में सक्रिय अंशों, जिन दरारों से भूखण्ड टूटकर विस्थापित भी हुए हों, की उपस्थिति को भूकम्प का संकेत माना जा सकता है। इस प्रकार के भ्रंशों की गतियों को समय के अनुसार तथा अन्य उपकरणों से नाप जा सकता है।

⦁    भूकम्प संवेदनशील क्षेत्रों में भूक़म्पमापी यन्त्र (Seismograph) लगाकर विभिन्न भूगर्भीय गतियों को रिकॉर्ड किया जाता है। इस अध्ययन से बड़े भूकम्प आने की पूर्व चेतावनी मिल जाती है।

32.

सूखे के प्रभावों का उल्लेख करते हुए उसके निवारण के उपाय लिखिए।

Answer»

सूखा आपदा निवारण के उपाय

सूखे से बचाव के लिए निम्नलिखित उपाय सम्भव हैं।

⦁    वर्षाजल का संरक्षण-संवर्द्धन, नदियों एवं नहरों के जल का समुचित उपयोग आदि माध्यमों से जल-प्रबन्धन आवश्यक है।

⦁    वृक्षारोपण के माध्यम से हरित पट्टी को विस्तार किया जाए।

⦁    कुओं, पोखरों एवं तालाबों को स्थानीय जन-सहयोग से पुनर्जीवित किया जाए।

⦁    नदी-जोड़ो परियोजना के माध्यम से बाढ़ एवं सूखा दोनों आपदाओं पर नियन्त्रण किया जा सकता है।

⦁    भूमि उपयोग नियोजन प्रणाली का निर्धारण क्षेत्र विशेष की आवश्यकताओं के अनुरूप किया जाना चाहिए।

33.

समुद्री लहरों के समय समुद्र में विद्यमान जलयानों का बचाव हो सकता है(क) तट की ओर तेजी से बढ़ने पर(ख) तट से दूर खुले समुद्र की ओर चले जाने पर(ग) एक स्थान पर रुक जाने पर(घ) बन्दरगाह पर लंगर डाल देने पर

Answer»

(ख) तट से दूर खुले समुद्र की ओर चले जाने पर

34.

आग लगने से बचाव के लिए अस्थायी पण्डालों में क्या उपाय किए जाने चाहिए?

Answer»

विभिन्न समारोहों के आयोजन के लिए प्रायः पण्डाल लगाये जाते हैं। इन पण्डालों में आग लगने की कुछ अधिक आशंका रहती है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए आग से सुरक्षा के लिए कुछ उपायों को अपनाना आवश्यक माना जाता है। इस प्रकार के कुछ मुख्य उपाय निम्नलिखित हैं

⦁    पण्डाल बनाने में सिन्थेटिक कपड़ों, रस्सियों तथा अन्य सामग्री का इस्तेमाल न किया जाए।

⦁    पण्डाल कभी भी बिजली की तारों के नीचे या बहुत निकट नहीं लगाया जाना चाहिए।

⦁    पण्डाल के चारों ओर पर्याप्त खुला स्थान होना चाहिए ताकि आपदा के समय सरलता से बाहर जा सकें।

⦁    पण्डाल का द्वार कम-से-कम पाँच मीटर चौड़ा होना चाहिए तथा निकास द्वार अधिक-सेअधिक होने चाहिए।

⦁    पण्डाल में लगी कुर्सियों की कतारों में कम-से-कम डेढ़ मीटर की दूरी अवश्य होनी चाहिए।

⦁    बिजली का सर्किट तथा जेनरेटर आदि पण्डाल से कम-से-कम 15 मीट्रर दूर होने चाहिए।

⦁    अग्नि-सुरक्षा के यथासम्भव अधिक-से-अधिक उपाय किये जाने चाहिए। पानी, रेत, आग बुझाने वाली गैस आदि की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए।

⦁    पण्डाल के अन्दर ज्वलनशील पदार्थ नहीं रखे जाने चाहिए।

⦁    पण्डाल में अमोनियम सल्फेट,अमोनियम कार्बोनेट, बोरेक्स, बोरिक एसिड, एलम तथा पानी का घोल बनाकर छिड़काव किया जाना चाहिए।

35.

भूस्खलन आपदा पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।

Answer»

भूस्खलन के कारण

भूस्खलन की घटना को प्रभावित करने वाले कारकों में भूआकृतिक कारक, ढाल, भूमि उपयोग, वनस्पति आवरण और मनव क्रियाकलाप प्रमुख भूमिका निभाते हैं। भूस्खलने की घटना प्रायः असंघटित चट्टानों एवं तीव्र ढालों पर अधिक होती है। भूमि का कटाव भी इसमें योगदान देता है।

भूस्खलन के प्रभाव

⦁    इसका प्रभाव स्थानीय होता है, किन्तु सड़क मार्ग में अवरोध, रेलपटरियों का टूटना और जल वाहिकाओं में चट्टानें गिरने से पैदा हुई रुकावटों के गम्भीर परिणाम हो सकते हैं।

⦁    भूस्खलन के कारण नदी मार्गों में बदलाव, बाढ़ का कारण बनता है।

⦁    विकास कार्यों की गति धीमी पड़ जाती है।

भूस्खलन आपदा के निवारण के उपाय

भूसखलन आपदा के निवारण के लिए निम्न उपाय लिए जा सकते हैं

⦁    भूस्खलन सम्भावी क्षेत्रों में बड़े बाँध बनाने जैसे निर्माण कार्यों पर प्रतिबन्ध होना चाहिए।

⦁    कृषि कार्य, नदी घाटी तथा कम ढाल वले क्षेत्रों तक सीमित होना चाहिए। पर्वतीय क्षेत्रों में सीढ़ीनुमा खेत बनाकर कृषि करनी चाहिए।

⦁    वनीकरण को बढ़ावा देना चाहिए।

⦁    जल बहाव को कम करने के लिए छोटे अवरोधक बाँधों का निर्माण करना
चाहिए।

36.

भूकम्प आपदा द्वारा कौन-कौन सी हानियाँ होती हैं?अथवाप्राकृतिक आपदाओं का प्रभाव व उनसे बचने का उपाय लिखिए।अथवाहमारे समाज में भूकम्प का क्या प्रभाव पड़ता है? इससे बचने के उपायों को समझाइए।अथवाटिप्पणी कीजिए भूकम्प के प्रभाव तथा उससे बचने के उपाय। 

Answer»

भूकम्प

पृथ्वी की आन्तरिक शक्तियों के प्रभाव के कारण से पृथ्वी के किसी भी भाग में होने वाले धीमे या भयंकर कम्पन को भूकम्प कहते हैं। जब पृथ्वी की आन्तरिक परतों में हलचल होती है, तो इसका प्रभाव पृथ्वी की सतह पर खड़ी इमारतों, सड़कों, पुलों, बाँधों आदि पर होता है, जिससे प्रभावित मानवों का जीवन भी अस्त-व्यस्त हो जाता है।

समाज में भूकम्प का प्रभाव

भूकम्प उन प्राकृतिक आपदाओं में से एक है, जिन्होंने हमारे समाज को सबसे अधिक दुष्प्रभावित किया है। वास्तव में, भूकम्प अनेक प्रकार की तबाही का कारण बनता है। भूकम्प से पृथ्वी की बाह्य परत पर भी कम्पन होता है, जिससे प्रभावित क्षेत्र के मकान, सड़कें, टावर, पुल, वन-क्षेत्र इत्यादि को क्षति पहुँचती है। बाँध टूटने से नदियों में बाढ़ आ जाती है, जिससे आस-पास के क्षेत्र भी डूबने लगते हैं।

इन सभी स्थितियों से जन-जीवन बुरी तरह प्रभावित होता है। बहुत-से लोग काल का ग्रास बन जाते हैं, तो बहुत-से जीवनभर के लिए अवसादग्रस्त हो जाते हैं। बहुत-से परिवार बिखर जाते हैं, बच्चे अनाथ हो जाते हैं। इसका सम्पूर्ण सामाजिक जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
प्रभावित क्षेत्रों में सुधार के प्रयासों में देरी होने पर महामारियाँ फैलने लगती हैं, जिसका प्रभाव जन-सामान्य पर पड़ता है। इस प्रकार भूकम्प से प्रभावित समाज के पुनर्वास में बहुत समय लग जाता है।

भूकम्प से बचाव के उपाय

यद्यपि भूकम्प जैसी प्राकृतिक आपदा को टाला नहीं जा सकता है, किन्तु इसके प्रभावों को शीघ्रता से कम अवश्य ही किया जा सकता है। इसके लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं।

⦁    भूकम्प की आशंका होने पर, इसकी चेतावनी जारी कर देनी चाहिए, ताकि प्रभावित क्षेत्रों से लोगों को हटाया जा सके, इससे जान-माल के नुकसान को कम किया जा सकेगी।

⦁    भूकम्प आने पर शीशे की खिड़की आदि नुकीली चीजों से दूर हट जाना चाहिए।

⦁    भूकम्प आते ही घरों से बाहर आकर किसी खुले भाग में चले जाना चाहिए।

⦁    खुला स्थान न मिलने पर मेज या पलंग के नीचे बैठ जाना चाहिए।

⦁    मकान की दीवारों या भारी सामान से दूर हट जाना चाहिए।

⦁    दरवाजों के पास खड़े होकर चौखट को पकड़ लेना चाहिए।

⦁    भूकम्प आने पर खुले स्थान पर भी बिजली के तारों इत्यादि से दूर हट जाना चाहिए।

⦁    भूकम्प से सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्रों में मकान लकड़ी के बनाए जाने चाहिए।
 

37.

आग लगने का कारण है। (a) पानी(b) सूरज की किरण(c) कीचड़(d) लघु परिपथ

Answer»

सही विकल्प है (d) लघु परिपथ

38.

बाढ़ नामक आपदा का स्रोत हैं(क) तालाब(ख) झीलें(ग) नदियाँ(घ) नहरें

Answer»

सही विकल्प है (ग) नदियाँ

39.

आपदाओं से आप क्यों समझते हैं? आपदाओं के विभिन्न प्रकारों का सामान्य परिचय दीजिए।

Answer»

इस जगत में घटित होने वाली असंख्य घटनाओं की निरन्तरता ही जीवन है। घटनाएँ। असंख्य प्रकार की होती हैं। कुछ घटनाएँ सामान्य जीवन की प्रगति के मार्ग पर अग्रसर होने में सहायक होती हैं, जबकि कुछ अन्य घटनाएँ बाधक होती हैं। सामान्य जीवन की गति को अवरुद्ध करने वाली घटनाओं को हम दुर्घटना की श्रेणी में रखते हैं। जब कुछ दुर्घटनाएँ व्यापक तथा विकराल रूप में घटित होती हैं तो उन्हें हम ‘आपदा’ या ‘विपत्ति’ कहते हैं।
सामान्य रूप से जब गम्भीर आपदा या विपत्ति की बात की जाती है तो हमारा आशय मुख्य रूप से उन प्राकृतिक घटनाओं से होता है जो जनजीवन एवं सम्पत्ति आदि पर गम्भीर, प्रतिकूल यो। विनाशकारी प्रभाव डालती हैं। प्राकृतिक आपदाओं के मुख्य रूप या प्रकार हैं-भूकम्प, बाढ़, सूखा, भूस्खलन ज्वालामुखी का फटना, तूफान, समुद्री तूफान, ओलावृष्टि, बादल फटना, सूनामी या समुद्री लहरें, उल्कापात, महामारियाँ। इन सभी प्राकृतिक आपदाओं का यदि विश्लेषण किया जाए तो हम कह सकते हैं कि उन विषम या प्रतिकूल प्रभाव वाली दशाओं को आपदाएँ कहा जाता है जो मनुष्यों, जीव-जगत था सामान्य जनजीवन को व्यापक रूप से प्रभावित करती हैं तथा पहले से चली आ रही जीवन सम्बन्धी सामान्य गतिविधियों में बाधा डालती हैं। इस तथ्य को इन शब्दों में भी कहा जा सकता है, उन समस्त दशाओं को आपदा कहा जाता है, जिनमें मनुष्य तथा जैव समुदाय, प्राकृतिक, मानवीय, पर्यावरणीय या सामाजिक कारणों से गम्भीर जान-माल की क्षति सहन करने के लिए बाध्य हो  जाता है।”
हिन्दी भाषा में प्रयोग होने वाला ‘आपदा’ शब्द का अंग्रेजी पर्याय Disaster है। अंग्रेजी भाषा का यह शब्द वास्तव में फ्रेंच भाषा के शब्द Desastre से लिया गया है, जिसका आशय ग्रह से है। प्राचीन विश्वासों के अनुसार प्राकृतिक आपदाएँ कुछ अनिष्टकारी तारों या ग्रहों के प्रतिकूल प्रभाव के कारण उत्पन्न होती हैं। वर्तमान वैज्ञानिक खोजों ने इस प्राचीन विश्वास को खण्डित कर दिया है। अब यह जान लिया गया है कि प्रायः सभी आपदाएँ अपने आप में प्राकृतिक घटनाएँ ही हैं तथा उनके कारण भी प्राकृतिक ही होते हैं। प्राकृतिक आपदाएँ उन गम्भीर प्राकृतिक घटनाओं को कहा जाता है, जिनके प्रभाव से हमारे सामाजिक ढाँचे व विभिन्न व्यवस्थाओं को गम्भीर क्षति पहुँचती है।
इनसे मनुष्यों एवं अन्य जीव-जन्तुओं का जीवन समाप्त हो जाता है तथा हर प्रकार की सम्पत्ति को भी नुकसान होता है। इस प्रकार की आपदाओं से मनुष्यों का सामाजिक-आर्थिक जीवन भी अस्त-व्यस्त हो जाता है। ऐसे में जनजीवन को पुनः सामान्य बनाने के लिए तथा पुनर्वास के लिए व्यापक स्तर पर बाहरी सहायता की आवश्यकता होती है। वर्तमान समय में विश्व-मानव प्राकृतिक आपदाओं के प्रति पर्याप्त सचेत है तथा इन अवसरों पर विश्व के कोने-कोने से सहायता एवं सहानुभूति प्राप्त हो जाती है।

आपदाओं के प्रकार
(Kinds of Disasters)

यहू सत्य है कि गम्भीर एवं व्यापक आपदाएँ मुख्य रूप से प्राकृतिक कारकों से ही उत्पन्न होती हैं, परन्तु कुछ आपदाएँ अन्य कारकों के परिणामस्वरूप भी उत्पन्न हो सकती हैं। इस स्थिति में आपदाओं के व्यवस्थित अध्ययन के लिए आपदाओं का समुचित वर्गीकरण करना भी आवश्यक माना जाता है। आपदाओं के मुख्य प्रकार या वर्ग निम्नलिखित हो सकते हैं

1. आकस्मिक रूप से घटित होने वाली आपदाएँ- कुछ आपदाएँ या प्राकृतिक घटनाएँ ऐसी हैं। जो एकाएक या आकस्मिक रूप से घटित हो जाती हैं तथा अल्प समय में ही गम्भीर प्रतिकूल प्रभाव डाल  देती हैं। इनकी न तो कोई पक्की पूर्व-सूचना होती है और न निश्चित भविष्यवाणी ही की जा सकती है। इस वर्ग की आपदाओं को आकस्मिक रूप से घटित होने वाली आपदाएँ कहा जाता है। इस वर्ग की मुख्य आपदाएँ हैं-भूकम्प, ज्वालामुखी का विस्फोट, सूनामी, बादल का फटना, चक्रवातीय तूफान, भूस्खलन तथा हिम की आँधी। इन आपदाओं के प्रति सचेत न होने के कारण जान-माल की भारी क्षति हो जाती है।

2. धीरे-धीरे अथवा क्रमशः आने वाली आपदाएँ- दूसरे वर्ग में उन आपदाओं को सम्मिलित किया जाता है जो आकस्मिक रूप से नहीं बल्कि धीरे-धीरे आती हैं तथा उनकी गम्भीरता क्रमशः बढ़ती है। इस वर्ग की आपदाओं की समुचित पूर्व-सूचना होती है तथा उनकी भावी गम्भीरता की भी भविष्यवाणी की जा सकती है। इस वर्ग की आपदाओं के पीछे प्रायः प्राकृतिक कारकों के साथ-ही-साथ मनुष्य के कुप्रबन्धन या पर्यावरण के साथ छेड़छाड़ सम्बन्धी कारक भी निहित होते हैं। इस वर्ग की मुख्य आपदाएँ हैं—सूखा, अकाल, किसी क्षेत्र का मरुस्थलीकरण, मौसम एवं जलवायु सम्बन्धी परिवर्तन, कृषि पर कीड़ों का प्रभाव तथा पर्यावरण-प्रदूषण। इन आपदाओं का मुकाबला किया जा सकता है तथा इन्हें नियन्त्रित करने के भी उपाय किये जा सकते हैं।

3. मानवजनित अथवा सामाजिक आपदाएँ– तीसरे वर्ग की आपदाओं को हम मानव-जनित अथवा सामाजिक आपदाएँ कहते हैं। इस प्रकार की आपदाओं के लिए कोई भी प्राकृतिक कोरक जिम्मेदार नहीं होता बल्कि ये आपदाएँ मानवीय लापरवाही, कुप्रबन्धन, षड्यन्त्र अथवा समाज-विरोधी तत्त्वों की गतिविधियों के परिणामस्वरूप उत्पन्न होती हैं। इस वर्ग की आपदाओं में मुख्य हैं—युद्ध, दंगा, आतंकवाद, अग्निकाण्ड, सड़क दुर्घटनाएँ, वातावरण को दूषित करना तथा जनसंख्या विस्फोट आदि। इस वर्ग की आपदाओं को विभिन्न प्रयासों एवं जागरूकता से नियन्त्रित किया जा सकता है।

4. जैविक आपदाएँ या महामारी- चतुर्थ वर्ग की आपदाओं में उन आपदाओं को सम्मिलित किया जाता है जिनका सम्बन्ध मनुष्यों के शरीर एवं स्वास्थ्य से होता है। साधारण शब्दों में हम कह सकते हैं कि व्यापक स्तर पर फैलने वाले संक्रामक एवं घातक रोगों को इस वर्ग की आपदा माना जा सकता है। उदाहरण के लिए, एक समय था जब प्लेग, हैजा, चेचक आदि संक्रामक रोग प्रायः गम्भीर आपदा के रूप में देखें, जाते थे। इन रोगों के प्रकोप से प्रतिवर्ष लाखों व्यक्तियों की मृत्यु हो जाती थी। वर्तमान समय में एड्स, तपेदिक, हेपेटाइटिस-बी डेगू तथा चिकनगुनिया जैसे रोगों को जैविक आपदा के रूप में देखा जा रहा है।

40.

आग लगने के सम्भावित कारणों का वर्णन करते हुए आग की घटनाओं से बचाव हेतु व्यवहार्य उपायों का सुझाव कीजिए।

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आग लगने के कारण

आग लगने के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं।

⦁    ज्वलनशील पदार्थ एवं उपकरणों से आग लगने की सम्भावना अधिक रहती है। विद्युत हीटर, विद्युत प्रेस आदि इसके प्रमुख उदाहरण हैं।

⦁    रसोईघर में चूल्हे के बर्नर का खुला रह जाना, स्टोव अथवा सिलेण्डर का फटना आदि घटनाएँ भी आग लगने का प्रमुख कारण होते हैं।

⦁    विद्युत धारा के प्रवाह में अनियमितता, बिजली की कमजोर वायरिंग अथवा बहुकेन्द्रीय एडाप्टर शॉर्ट सर्किट (लघु परिपथ) का कारण बनकर आग लगा सकते हैं।

⦁    शीघ्र आग पकड़ने वाले पैकिंग पेपर, पटाखे आदि में भी आग लगने की सम्भावना विद्यमान रहती है। असावधानीपूर्वक धूम्रपान का व्यवहार भी आग लगने का प्रमुख कारण माना जाता है।

आग से बचाव

आग की घटनाओं से बचाव हेतु निम्नलिखित उपायों को अपनाया जा सकता है।

⦁    घर के अन्दर ज्वलनशील पदार्थ रखने से बचना चाहिए यदि रखना आवश्यक ‘: हो तो पूरी सावधानी अपनानी चाहिए।

⦁    घर में आग बुझाने वाले सिलिण्डर को आवश्यक रूप से रखना चाहिए एवं सभी सदस्यों को इसका प्रयोग करना आना चाहिए।

⦁    घर से बाहर निकलते समय विद्युत तथा गैस उपकरणों को ध्यान से बन्द कर देना चाहिए एवं घर में प्रवेश करने पर सर्वप्रथम गैस आदि के रिसाव की जाँच कर लेनी चाहिए।

⦁    बिजली के एक सॉकिट से अनेक विद्युत उपकरणों को नहीं जोड़ना चाहिए अन्यथा शॉर्ट सर्किट होने की सम्भावना हो सकती है।

⦁    आग लगने के कारण को जानकर, तद्नुसार तत्काल आवश्यक कदम उठाना चाहिए। यदि बिजली के शॉर्ट सर्किट से आग लगी हैं, तो आग बुझाने में पानी का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

⦁    आग लगने की घटना की सूचना तत्काल ही फायर बिग्रेड को दी जानी चाहिए।
 

41.

एक प्राकृतिक आपदा के रूप में समुद्री लहरों का सामान्य परिचय दीजिए। इनके मुख्य कारण क्या होते हैं? समुद्री लहरों की चेतावनी तथा बचाव के लिए आवश्यक सावधानियों का भी उल्लेख कीजिए।

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समुद्री लहरें : प्राकृतिक आपदा
(Sea Waves : Natural Disaster)

समुद्री लहरें कभी-कभी विनाशकारी रूप धारण कर लेती हैं। इनकी ऊँचाई 15 मीटर और कभी-कभी इससे भी अधिक तक होती है। ये तट के आस-पास की बस्तियों को तबाह कर देती हैं। ये
लहरें मिनटों में ही तट तक पहुँच जाती हैं। जब ये लहरें उथले पानी में प्रवेश करती हैं, तो, झ्यावह शक्ति के साथ तट से टकराकर कई मीटर ऊपर तक उठती हैं। तटवर्ती मैदानी इलाकों में इनकी रफ्तार 50 किमी प्रति घण्टा तक हो सकती है।
इन विनाशकारी समुद्री लढेरों को ‘सूनामी कहा जाता है। ‘सूनामी’, जापानी भाषा का शब्द है, जो दो शब्दों ‘सू’ अर्थात् ‘बन्दरगंह’ और ‘नामी’ अर्थात् ‘लहर’ से बना है। सूनामी लहरें अपनी भयावह शक्ति के द्वारा विशाल चट्टानों, नौकाओं तथा अन्य प्रकार के मलबे को भूमि पर कई मीटर अन्दर तक धकेल देती हैं। ये तटवर्ती इमारतों, वृक्षों आदि को नष्ट कर देती हैं। 26 दिसम्बर, 2004 को दक्षिण-पूर्व एशिया के 11 देशों में सूनामी’ द्वारा फैलाई गयी विनाशलीला से हम सब परिचित हैं।

समुद्री लहरों के कारण
(Causes of Sea Waves)

1. ज्वालामुखी विस्फोट- वर्ष 1993 में इण्डोनेशिया में क्रकटू नामक विख्यात ज्वालामुखी में भयानक विस्फोट हुआ और इसके कारण लगभग 40 मीटर ऊँची सूनामी लहरें उत्पन्न हुईं। इन लहरों ने जावा व सुमात्रा में जन-धन की अपार क्षति पहुँचायी।

2. भूकम्प– समुद्र तल के पास या उसके नीचे भूकम्प आने पर समुद्र में हलचल पैदा होती है। और यही हलचल विनाशकारी सूनामी का रूप धारण कर लेती है। 26 दिसम्बर, 2004 को दक्षिण-पूर्व एशिया में आई विनाशकारी सूनामी लहरें, भूकम्प का ही परिणाम थीं।।

3. भूस्खलन– समुद्र की तलहटी में भूकम्प व भूस्खलन के कारण ऊर्जा निर्गत होने से बड़ी-बड़ी लहरें उत्पन्न होती हैं जिनकी गति अत्यन्त तेज होती है। मिनटों में ही ये लहरें विकराल रूप धारण कर, तट की ओर दौड़ती हैं।

चेतावनी व अन्य युक्तियाँ
(Warning and Other Means)

सूनामी लहरों की उत्पत्ति को रोकना मानव के वश में नहीं हैं। समय से इसकी चेतावनी देकर, लोगों की जान व सम्पत्ति की रक्षा की जा सकती है।

1. उपग्रह प्रौद्योगिकी– उपग्रह प्रौद्योगिकी के प्रयोग से सूनामी सम्भावित भूकम्पों की तुरन्त चेतावनी देना सम्भब हो गया है। चेतावनी का समय तट रेखा से अभिकेन्द्र की दूरी पर निर्भर करता है। फिर भी उन तटवर्ती क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को जहाँ सूनामी कुछ घण्टों में विनाश फैला सकती है, सूनामी के अनुमानित समय की सूचना दे दी जाती है।

2. तटीय ज्वार जाली– तटीय ज्वार जाली का निर्माण करके सूनामियों को तट के निकट रोको जा सकता है। गहरे समुद्र में इसका प्रयोग नहीं किया जा सकता।

3. सूनामीटर- सूनामीटर के द्वारा समुद्र तल में होने वाली हलचलों का पता लगाकर, उपग्रह के माध्यम से चेतावनी प्रसारित की जा सकती है। इसके लिए सूनामी सतर्कता यन्त्र समुद्री केबुलों के द्वारा भूमि से जोड़े जाते हैं और उन्हें समुद्र में 50 किमी तक आड़ा-तिरछा लगाया जाता है

सूनामी की आशंका पर सावधानियाँ
(Precautions on the Probability of Tsunami)

यदि आप ऐसे तटवर्ती क्षेत्र में रहते हैं जहाँ सूनामी की आंशका है, तो आपको निम्नलिखित सावधानियाँ बरतनी चाहिए

⦁    तट के समीप न तो मकान बनवाएँ और न ही किसी तटवर्ती बस्ती में रहें।
⦁    तंट के समीप रहना आवश्यक हो, तो घर को ऊँचे स्थान पर बनवाएँ। ये स्थान 10 फुट से ऊँचे स्थान पर ही हों, क्योंकि सूनामी लहरें अधिकांशतः इससे कम ऊँची होती हैं।
⦁    अपने घरों को बनाते समय भवन निर्माण विशेषज्ञ की राय लें तथा मकान को सूनामी निरोधक बनाएँ।
⦁    सूनामी के विषय में प्राप्त चेतावनी के प्रति लापरवाही न बरतें तथा आने वाली बाढ़ को रोकने के लिए तैयारी रखें।

42.

निम्नलिखित में से कौन प्राकृतिक आपदा नहीं है? (क) सूखा(ख) भुखमरी/युद्ध(ग) बाढ़(घ) भूकम्प।

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(ख) भुखमरी/युद्ध

43.

बाढ़ के उपरान्त किये जाने वाले कार्यों का उल्लेख कीजिए।

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सामान्य रूप से बाढ़ का प्रकोप कुछ समय में घटने लगता है, परन्तु बाढ़ग्रस्त क्षेत्र में पानी, कीचड़, गन्दगी तथा सीलन बहुत अधिक हो जाती है। इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए कुछ महत्त्वपूर्ण, कार्य अति आवश्यक होते हैं। घरों तथा गलियों में सफाई की व्यवस्था करें। पानी की निकासी के उपाय करें तथा कीटनाशक दवाओं का छिड़काव करें। इससे संक्रामक रोगों से बचाव हो सकता है। साफ पेय जल की व्यवस्था करें। जहाँ तक हो सके जल उबालकर ही पिएँ। चिकित्सकों से सम्पर्क बनाये रखें तथा संक्रामक रोगों से बचने के सभी सम्भव उपाय करें। बाढ़ग्रस्त लोगों को भारी नुकसान हो जाता है। अतः अन्य क्षेत्रों में रेहने वाले लोगों तथा सरकारी तन्त्र को बाढ़ग्रस्त लोगों की हर सम्भव सहायता करनी चाहिए। भोजन एवं कपड़ों आदि की तुरन्त पूर्ति होनी चाहिए।

44.

आग लगना या अग्निकाण्ड किस प्रकार की आपदा है? इसके कारणों, बचाव तथा । सम्बन्धित प्रबन्धन के उपायों का विवरण प्रस्तुत कीजिए।

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सभ्य मानव-जीवन तथा आग का घनिष्ठ सम्बन्ध है। सभ्यता के विकास से पूर्व मनुष्य आग से परिचित नहीं था। वह आग जलाना नहीं जानता था। इस ज्ञान के अभाव में वह जंगल के कन्द-मूल, फल तथा पशुओं का कच्चा मांस खाकर ही जीवन-यापन करता था। स्पष्ट है कि आग जलाने के ज्ञान के अभाव में व्यक्ति का जीवन पशु-तुल्य ही था। जैसे ही मनुष्य ने आग जलाना सीख लिया, वैसे ही उसने सभ्यता के मार्ग पर अग्रसर होना प्रारम्भ कर दिया। आज हमारे जीवन की असंख्य गतिविधियाँ आग पर ही निर्भर हैं। सर्वप्रथम हमारा आहार या भोजन पूर्ण रूप से आग (ताप) पर ही निर्भर है। पाक-क्रिया की चाहे जिस विधि को अपनाया जाए, प्रत्येक दशा में ताप अर्थात् आग एक अनिवार्य कारक है। इस प्रकार आग हमारे रसोईघर का अनिवार्य साधन है। आहार के अतिरिक्त जीवन के अन्य सभी क्षेत्रों में भी आग की महत्त्वपूर्ण एवं अनिवार्य भूमिका है। औद्योगिक क्षेत्र में, परिवहन एवं यातायात के क्षेत्र में भी आग या ईंधन को अनिवार्य कारक माना जाता है।
इस प्रकार स्पष्ट है कि आग एक अति महत्त्वपूर्ण एवं प्रबल कारक है जो मानव-जीवन के लिए उपयोगी एवं सहायक है। अग्नि का उपयोग मानव आदिकाल से कर रहा है। अग्नि यदि नियन्त्रण में रहे तो मानव की सबसे अच्छी सेवक व मित्र है। मानव के लिए यह ऊर्जा का प्रमुख स्रोत है। यदि मानव के नियन्त्रण से अग्नि.
निकल जाए, तो यह विनाशकारी रूप धौरण कर लेती है। उस अवस्था में यह मानव की सबसे बड़ी शत्रु और संहारक बन जाती है। प्रत्येक वर्ष अग्नि लाखों लोगों के प्राण लेती है तथा लाखों को विकलांग बना देती है। लाखों इमारतें तथा अनेक वन प्रतिवर्ष अग्नि की भेंट चढ़ जाते हैं। एक बार अग्नि अपनी जकड़ बना ले तो इसको नियन्त्रित करना आसान नहीं होता। आग के अनियन्त्रित रूप को आग लगना’ या
अग्निकाण्ड कहा जाता है। आग लगना भी एक गम्भीर आपदा है। यह एक ऐसी आपदा है जो किसी-न-किसी रूप में मनुष्य द्वारा उत्पन्न की गयी आपदा है। आग लगना प्राकृतिक आपदा नहीं है। यह मानवकृत आपदा है। यह लापरवाही से, दुर्घटनावश अथवा दुर्भावनाजनित भी हो सकती है।

अग्निकाण्ड के कारण
(Causes of Fire)

आग लगाने के लिए तीन बातों का एक स्थान पर होना आवश्यक है। ये हैं
1. ऑक्सीजन गैस।
2. ईंधन; जैसे-पेट्रोल, कागज, लकड़ी आदि।
3. ऊष्मा; शेष दो वस्तुएँ एक साथ हों, तो अग्नि को जन्म देती हैं। आग लगने के मुख्य कारण

1. मानव लापरवाही

⦁    घर पर हम आग का प्रयोग खाना पकाने के लिए करते हैं। खाना पकाते समय ढीले-ढाले तथा ज्वलनशील कपड़े पहनने पर बहुधा आग लग जाती है। महिलाएँ अक्सर साड़ी या चुनरी पहनकर खाना बनाती हैं और इसी कारण वे रसोईघर में आग पकड़ लेती हैं तथा इसका शिकार हो जाती हैं।
⦁    हम, धूम्रपान करने के लिए अक्सरे माचिस को जलाते हैं। सिगरेट-बीड़ी सुलगा लेने पर जलती हुई तिल्ली को बिना सोचे-समझे इधर-उधर फेंक देते हैं। इसके कारण भी आग लग जाती है।
⦁    कभी-कभी हम घर पर कपड़ों पर बिजली की इस्तरी करते-करते, इस्तरी को बिना बन्द किये उसे खुला छोड़कर किसी और काम में लग जाते हैं। परिणामस्वरूप गर्म इस्तरी कपड़ों में आग लगा देती है।
⦁    त्योहारों और खुशी के अन्य अवसरों पर नवयुवक व बच्चे आतिशबाजी चलाते हैं। यह आतिशबाजी भी आग लगने का कारण बन जाती है।
⦁    प्रायः झुग्गी-झोंपड़ियों में आग लग जाया करती है। यह भी लापरवाही के ही कारण लगती है।

2. बिजली के दोषपूर्ण उपकरण व फिटिंग

⦁    बिजली सम्बन्धी दोषपूर्ण वायरिंग, शॉर्ट सर्किट व ओवरलोड आग लगने के कारण हैं। दुकानों व वर्कशॉपों में, जो रात को बन्द रहते हैं तथा कोई व्यक्ति उनकी देखभाल नहीं करता, अक्सर शॉर्ट सर्किट से आग लगने की दुर्घटनाएँ होती हैं।
⦁    दोषपूर्ण तथा अनाधिकृत विद्युत उपकरण भी आग लगने के कारण । मल्टी प्वाइंट अडॉप्टर भी शीघ्र गर्म हो जाने के कारण आग पकड़ लेते हैं।

3. ज्वलनशील पदार्थों के प्रति लापरवाही

कुछ पदार्थ ऐसे हैं जो अत्यन्त ज्वलनशील हैं; जैसे-पेट्रोल, सरेस, ग्रीस तथा ज्वलनशील गैसें। इनके भण्डारण में लापरवाही के कारण प्रायः आग लग जाती है।

4. अन्य कारण 

(1) आज के आतंकवादी समय में शरारती तत्त्व भी आगजनी करते हैं। वे बहुधा धार्मिक स्थलों, बाजारों व बस्तियों में आग लगा देते हैं।
(2) वनों की आग का मुख्य कारण जैविक अथवा मानवजनित लापरवाही है। बाँस के वनों में आपसी घर्षण से उत्पन्न चिंगारी द्वारा अथवः थण्डरबोल्ट से भी दावाग्नि उत्पन्न हो जाती है।
(3) वनाग्नि कभी-कभी निम्नलिखित व्यक्तियों द्वारा लगाई जाती है।
(क) शहद निकालने वाले श्रमिक
(ख) शाक-बीज एकत्र करने वाले श्रमिक
(ग) अवैध कटान को छिपाने वाले व्यक्ति
(घ) अवैध शिकारी
(ङ) वन भूमि पर अतिक्रमण करने वाले व्यक्ति।

आग से बचाव
(Protection from Fire

1. हमें आग से बचाव के नियमों का सख्ती से पालन करना चाहिए।
2. हमें अपने कार्यस्थल, घर (विशेषकर रसोई में), फैक्ट्री आदि में अग्नि-शमन उपकरण लगाने चाहिए।
3. घर में ज्वलनशील पदार्थों का भण्डारण नहीं करना चाहिए। यदि यह अपरिहार्य हो, तो पूरी सावधानी बरतनी चाहिए।
4. रसोई में खाना पकाते समय कृत्रिम रेशों के ज्वलनशील कपड़े व ढीले-ढाले कपड़े नहीं पहनने चाहिए।
5. बिजली के I.S.I. मार्का उपकरण ही प्रयोग करने चाहिए तथा बिजली के तारों की फिटिंग भी निपुण व्यक्ति से करानी चाहिए।
6. जलती हुई बीड़ी, सिगरेट व माचिस की तिल्ली इधर-उधर नहीं फेंकनी चाहिए। इन्हें बुझाकर फेंकने की ही आदेत डालनी चाहिए।
7. बिजली के उपकरणों को सावधानीपूर्वक प्रयोग करना चाहिए।
8. आतिशबाजी खुले स्थान पर सावधानीपूर्वक की जानी चाहिए।
9. घर से बाहर जाने से पहले बिजली तथा गैस के सभी उपकरण बन्द कर देने चाहिए।

आग लगने पर प्रबन्धन– यदि आग लग जाए तो उसके कारण क्षति को कम करने तथा उसकी पुनरावृत्ति को रोकने के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए
⦁    आग बुझाना एक खतरनाक काम है। इसके लिए तभी प्रयास करें जब आपका जीवन खतरे में न पड़े।

⦁    सर्वप्रथम आग में फँसे व्यक्ति को वहाँ से निकालना चाहिए।
⦁    101 पर फोन करके फायर ब्रिगेड को बुलाना चाहिए तथा आग की सूचना आस-पास के व्यक्तियों को शोर मचाकर दे देनी चाहिए।
⦁    यदि आग छोटी है तो अग्निशमन उपकरण का प्रयोग करना चाहिए।

⦁    यदि आग फैल चुकी है तो उस स्थान से निकलकर सुरक्षित जगह आ जाना चाहिए।

⦁    आग लगने के स्थान की बिजली आपूर्ति बन्द कर देनी चाहिए।
⦁    आग के धुएँ से दूर रहना चाहिए अन्यथा आपका दम घुट सकता है।

⦁    बिजली के जलते हुए उपकरणों पर पानी मत डालिए, बल्कि रेत व मिट्टी डालिए। आग बुझने के पश्चात् निम्नलिखित बातों का ध्यान रखिए
⦁    आग लगने के कारणों का पता लगाइए।

⦁    घायल व्यक्ति के उपचार का प्रबन्ध कीजिए।

⦁    भविष्य में आग से बचने के लिए आवश्यक उपाय कीजिए।

⦁    अग्निशमन उपकरण, पंखों और बिजली के तारों का पूरा निरीक्षण कीजिए। जहाँ कहीं कोई दोष मिले, उसे दूर कीजिए।

45.

भूकम्प से आप क्या समझते हैं? भूकम्प के मुख्य कारणों का उल्लेख कीजिए। भूकम्प से होने वाली क्षति से बचाव के उपायों का भी उल्लेख कीजिए।

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भूकम्प : एक प्राकृतिक आपदा
(Earthquake : A Natural Disaster) 

भूकम्प भूतलकी आन्तरिक शक्तियों में से एक है। भूगर्भ में प्रतिदिन कम्पन होते हैं। जब ये कम्पन तीव्र होते हैं तो ये भूकम्प कहलाते हैं।
साधारणतया भूकम्प एक प्राकृतिक एवं आकस्मिक घटना है जो भू-पटल में हलचल पैदा कर देती है। इन हलचलों के कारण पृथ्वी अनायास ही वेग से काँपने लगती है जिसे भूचाल या भूकम्प कहते हैं। यह एक विनाशकारी घटना है। हमारे देश में भी विभिन्न क्षेत्रों में समय-समय पर हल्के या तीव्र भूकम्प आते रहते हैं।

भूकम्प मूल एवं भूकम्प केन्द्र- भूगर्भ में भूकम्पीय लहरें चलती रहती हैं। जिस स्थान से इन लहरों का प्रारम्भ होता है, उसे भूकम्प मूल कहते हैं। जिस स्थान पर भूकम्पीय लहरों का अनुभव सर्वप्रथम किया जाता है, उसे अभिकेन्द्र या भूकम्प केन्द्र कहते हैं। (भूकम्प की तीव्रता की माप के लिए रिक्टर स्केल’ का निर्धारण किया गया है।)
भूकम्प के कारण

(Causes of Earthquake)
भूगर्भशास्त्रियों ने भूकम्प के निम्नलिखित कारण बताये हैं

1. ज्वालामुखी उद्गार- जब विवर्तनिक हलचलों के कारण भूगर्भ में गैसयुक्त द्रवित लावा भूपटल की ओर प्रवाहित होती है तो उसके दबाव से भू-पटल की शैलें हिल उठती हैं। यदि लावा के मार्ग में कोई भारी चट्टान आ जाए तो प्रवाहशील लावा उस चट्टानं को वेग से ढकेलता है, जिससे भूकम्प आ जाता है।

2. भू-असन्तुलन में अव्यवस्था- भू-पटल पर विभिन्न बल समतल समायोजन में लगे रहते हैं जिससे भूगर्भ की सियाल एवं सिमा की परतों में परिवर्तन होते रहते हैं। यदि ये परिवर्तन एकाएक तथा तीव्र हो जाएँ तो पृथ्वी का कम्पन प्रारम्भ हो जाता है तथा उस क्षेत्र में भूकम्प के झटके आने प्रारम्भ हो जाते हैं।

3. जलीय भार- मानव द्वारा निर्मित जलाशय, झील अथवा तालाब के धरातल के नीचे की चट्टा के भार एवं दबाव के कारण अचानंक़ परिवर्तन आ जाते हैं तथा इनके कारण ही भूकम्प आ जाता है। 1967 ई० में कोयना भूकम्प (महाराष्ट्र) कोयना जलाशय में जले भर जाने के कारण ही आया था।

4. भू-पटल में सिकुड़न– विकिरण के माध्यम से भूगर्भ की गर्मी धीरे-धीरे कम होती रहती है। जिसके कारण पृथ्वी की ऊपरी पपड़ी मैं सिकुड़न आती है। यह सिकुड़न पर्वत निर्माणकारी क्रिया को जन्म देती है। जब यह प्रक्रिया तीव्रता से होती है, तो भू-पटल पर कम्पन प्रारम्भ हो जाता है।

5. प्लेट विवर्तनिकी- महाद्वीप तथा महासागरीय बेसिन विशालकाय दृढ़ भूखण्डों से बने हैं, जिन्हें प्लेट कहते हैं। सभी प्लेटें विभिन्न गति से सरकती रहती हैं। कभी-कभी दो प्लेटें परस्पर टकराती हैं तब भूकम्प आते हैं। 26 जनवरी, 2001 को गुजरात के भुज क्षेत्र में उत्पन्न भूकम्प की उत्पत्ति का कारण प्लेटों का टकरा जाना ही था।

भूकम्प से भवन-सम्पत्ति की क्षति का बचाव
(Protection of Damaged Land and Property from Earthquake)

भूकम्प अपने आप में किसी प्रकार से नुकसान नहीं पहुँचाता, परन्तु भूकम्प के प्रभाव से हमारे भवन एवं इमारतें टूटने लगती हैं तथा उनके गिरने से जान-माल की अत्यधिक हानि होती है। अतः भूकम्प से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए भवन-निर्माण में ही कुछ सावधानियाँ अपनायी जानी चाहिए तथा आवश्यक उपाय किये जाने चाहिए। |

1. भवनों की आकृति- भवन का नक्शा साधारणतया आयताकार होना चाहिए। लम्बी दीवारों को सहारा देने के लिए ईंट-पत्थर या कंक्रीट के कॉलम होने चाहिए। जहाँ तक हो सके T, LL, U और X आकार के नक्शों वाले बड़े भवनों को उपयुक्त स्थानों पर अलग-अलग खण्डों में बाँटकर। आयताकार खण्ड बना लेना चाहिए। खण्डों के बीच खास अन्तर से चौड़ी जगह छोड़ दी जानी चाहिए ताकि भूकम्प के समय भवन हिल-डुल सके और क्षति न हो।

2. नींव- जहाँ आधार भूमि में विभिन्न प्रकार की अथवा नरम मिट्टी हो वहीं नींव में कॉलमों को भिन्न-भिन्न व्यवस्था में स्थापित करना चाहिए। ठण्डे देशों में मिट्टी में आधार की गहराई जमाव-बिन्दु क्षेत्र के काफी नीचे तक होनी चाहिए, जबकि चिकनी मिट्टी में यह गहराई दरार के सिकुड़ने के स्तर से नीचे तक होनी चाहिए। ठोस मिट्टी वाली परिस्थितियों में किसी भी प्रकार के आधार का प्रयोग कर सकते हैं। चूने या सीमेण्ट के कंक्रीट से बना इसका ठोस आधार होना चाहिए।

3. दीवारों में खुले स्थान- दीवारों में दरवाजों और खिड़कियों की बहुलता के कारण, उनकी भार-रोधक क्षमता कम हो जाती है। अत: ये कम संख्या में तथा दीवारों के बीचोंबीच स्थित होने चाहिए।

4. कंक्रीट से बने बैंडों का प्रयोग- भूकम्प संवेदनशील क्षेत्रों में, दीवारों को मजबूती प्रदान करने तथा उनकी कमजोर जगहों पर समतल रूप से मुड़ने की क्षमता को बढ़ाने के लिए कंक्रीट के मजबूत बैंड बनाए जाने चाहिए जो स्थिर विभाजक दीवारों सहित सभी बाह्य तथा आन्तरिक दीवारों पर लगातार काम करते रहते हैं। इन बैंडों में प्लिन्थ बैंड, लिटल बैंड, रूफ बैंड तथा गेबल बैंड आदि सम्मिलित हैं।

5. वर्टिकल रीइन्फोर्समेंट- दीवारों के कोनों और जोड़ों में वर्टिकल स्टील लगाया जाना चाहिए। भूकम्पीय क्षेत्रों, खिड़कियों तथा दरवाजों की चौखट में भी वर्टिकल रीइन्फोर्समेंट की व्यवस्था की जानी चाहिए।

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बाढ़ से आप क्या समझते हैं? बाढ़ के मुख्य कारणों का उल्लेख कीजिए तथा बाढ शमन की प्रमुख युक्तियों का भी वर्णन कीजिए।याबाढ़ आने के मुख्य कारणों का उल्लेख कीजिए।याबाढ़ से बचने के उपाय लिखिए। 

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बाढ़ : एक प्राकृतिक आपदा
(Flood : A Natural Disaster) 

बाढ़ का अर्थ किसी क्षेत्र में निरन्तर वर्षा होने या नदियों का जल फैल जाने से उस क्षेत्र का जलमग्न होना है। वर्षाकाल में अधिक वर्षा होने पर नदी प्रायः अपने सामान्य जल-स्तर से ऊपर बहने लगती है। उनका जल तटबन्धों को तोड़कर आस-पास के निम्न क्षेत्रों में फैल जाता है, जिससे वे क्षेत्र जलमग्न हो जाते हैं। नदियों या धाराओं के मुहाने पर, तेज ढालों पर या जलमार्ग के अत्यन्त निकट बस्तियों को बाढ़ का खतरा बना रहता है।
बाढ़ एक प्राकृतिक घटना है, किन्तु जब यह मानव- जीवन व सम्पत्ति को क्षति पहुँचाती है तो यह प्राकृतिक आपदा कहलाती है। बाढ़ों के कारण दामोदर नदी ‘बंगाल का शोक’, कोसी बिहार का शोक तथा ब्रह्मपुत्र ‘असम का शोक’ कहलाती है। ह्वांग्हो नदी ‘चीन का शोक’ कहलाती है।

बाढ़ के कारण
(Causes of Flood)

1. निरन्तर भारी वर्षा– जब किसी क्षेत्र में निरन्तर भारी वर्षा होती है तो वर्षा का जल धाराओं के रूप में मुख्य नदी में मिल जाता है। यह जल नदी के तटबन्धों को तोड़कर आस-पास के क्षेत्रों को जलमग्न कर देता है। भारी मानसूनी वर्षा तथा चक्रवातीय वर्षा बाढ़ों के प्रमुख कारण हैं। |

2. भूस्खलन भूस्खलन भी कभी- कभी बाढ़ों का कारण बनते हैं। भूस्खलन के कारण नदी का मार्ग अवरुद्ध हो जाता है, परिणामस्वरूप नदी का जल मार्ग बदलकर आस-पास के क्षेत्रों को जलमग्न कर देता है।

3. वन-विनाश- वन पानी के वेग को कम करते हैं। नदी के ऊपरी भागों में बड़ी संख्या में वृक्षों की अन्धाधुन्ध कटाई से भी बाढ़े आती हैं। हिमालय में बड़े पैमाने पर वन विनाश ही हिमालय-नदियों में बाढ़ का मुख्य कारण है।

4. दोषपूर्ण जल निकास प्रणाली– मैदानी क्षेत्रों में उद्योगों और बहुमंजिले मकानों की परियोजनाएँ बाढ़ की सम्भावना को बढ़ाती हैं। इसका कारण यह है कि पक्की सड़कें, नालियाँ, निर्मित क्षेत्र, पक्के पार्किंग स्थल आदि के कारण यहाँ जल रिसकर भू-सतह के नीचे नहीं जा पाता। यहाँ पर जल निकास की भी पूर्ण व्यवस्था नहीं होने के कारण, वर्षा का पानी नीचे स्थानों पर भरता चला जाता है तथा बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

5. बर्फ का पिघलना- सामान्य से अधिक बर्फ का पिघलना भी बाढ़ का एक कारण है। बर्फ के अत्यधिक पिघलने से नदियों में जल की मात्री उसी अनुपात में अधिक हो जाती है तथा नदियों का जल तट-बन्ध तोड़कर आस-पास के इलाकों को जलमग्न कर देता है।
देश भर में केन्द्रीय जल आयोग के लगभग 132 पूर्वानुमान केन्द्र हैं। ये केन्द्र देश में लगभग सभी बाढ़-सम्भावी नदियों पर नजर रखते हैं। जल-स्तरों पर खतरे का निशान चिह्नित होता है। खतरे वाले जल-स्तर बढ़ने के विषय में टी० वी०, रेडियो तथा पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से चेतावनी प्रसारित की जाती है। समय रहते ही बाढ़ सम्भावित क्षेत्रों को लोगों से खाली करा लिया जाता है।

बाढ़ शमन की प्रमुख युक्तियाँ
(Means to Prevent Flood)

1. सीधा जलमार्ग – बाढ़ की स्थिति में जलमार्ग को सीधा रखना चाहिए जिससे वह तेजी से एक सीमित मार्ग से बह सके। टेढ़ी-मेढ़ी धारों में बाढ़ की सम्भावना अधिक होती है।

2. जल मार्ग परिवर्तन- बाढ़ के छन क्षेत्रों की पहचान की जानी चाहिए जहाँ प्रायः बाढ़े आती हैं। ऐसे स्थानों से जल के मार्ग को मोड़ने के लिए कृत्रिम ढाँचे बनाये जाने हैं। यह कार्य वहाँ किया जाता है जहाँ कोई बड़ा जोखिमंन हो।

3. कृत्रिम जलाशयों का निर्माण- वर्षा के जल से आबादी-क्षेत्र को बचाने के लिए कृत्रिम जलाशयों का निर्माण किया जाना चाहिए। इन जलाशयों में भण्डारित जल को बाद में सिंचाई अथवा पीने के लिए प्रयोग किया जा सकता है।इन जलाशयों में बाढ़ के जल को मोड़ने के लिए जल कपाट लगे होते हैं।

4. बाँध निर्माण– आबादी वाले क्षेत्रों को बाढ़ से बचाने के लिए तथा जल का प्रवाह उस ओर रोकने के लिए रेत के थैलों का बाँध बनाया जा सकता है।

5. कच्चे तालाबों का निर्माण– अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में कच्चे तालाबों का अधिक-से-अधिक निर्माण कराया जाना चाहिए। ये तालाब वर्षा के जल को संचित कर सकते हैं तथा संचित जल आवश्यकता के समय उपयोग में लाया जा सकता है।

6. नदियों को आपस में जोड़ना– विभिन्न क्षेत्रों में बहने वाली नदियों को आपस में जोड़कर बाढ़ के प्रकोप को कम किया जा सकता है। अधिक जल वाली नदियों का जल कम जल वाली नदियों में चले जाने से बाढ़ की स्थिति से बचा जा सकता है।

7. बस्तियों का बुद्धिमत्तापूर्ण निर्माण– बस्तियों का निर्माण नदियों के मार्ग से हटकर किया जाना चाहिए। नदियों के आस-पास अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में, सुरक्षा के लिए मकान ऊँचे चबूतरों पर बनाये जाने चाहिए।

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सूखा नामक आपदा से आप क्या समझते हैं? इसके मुख्य कारणों तथा सूखा शमन की युक्तियों का उल्लेख कीजिए।या सूखे के प्रभाव को कम करने के उपायों के बारे में लिखिए। 

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सूखा : एक आपदा
(Draught : Apisaster)

सूखा वह स्थिति है जिसमें किसी स्थान पर अपेक्षित तथा सामान्य वर्षा से कहीं कम वर्षा पड़ती है। यह स्थिति एक लम्बी अवधि खुक रहती है। सूखा गर्मियों में भयंकर रूप धारण कर लेता है जब सूखे के साथ-साथ ताप भी आक्रमण करता है। सूखा मानव, वनस्पति व पशु-पक्षियों को भूखा मार देता है। सूखे की स्थिति में कृषि, पशुपालन तथा मनुष्यों को सामान्य आवश्यकता से कम जल प्राप्त होता है।
शुष्क तथा अर्द्ध-शुष्क प्रदेशों में सूखी एक सामान्य समस्या है, किन्तु पर्याप्त वर्षा वाले क्षेत्र भी इससे अछूते नहीं हैं। मानसूनी वर्षा के क्षेत्र सूखे से सर्वाधिक प्रभावित होते हैं। सूखा एक मौसम सम्बन्धी आपदा है तथा किसी अन्य विपत्ति की अपेक्षा अधिक धीमी गति से आती है।

सूखा के कारण
(Causes of Draught)

वैसे यूँ तो सूखा के अनेक कारण हैं, परन्तु प्रकृति तथा मानव दोनों ही इसके मूल में हैं। सूखा के कारण इस प्रकार हैं|

1. अत्यधिक चराई तथा जंगलों की केंटाई- अत्यधिक चराई तथा जंगलों की कटाई के कारण हरियाली की पट्टी धीरे-धीरे समाप्त हो रही है, परिणामस्वरूप वर्षा कम मात्रा में होती है। यदि होती भी है, तो जल भूतल पर तेजी से बह जाता है। इसके कारण मिट्टी का कटाव होता है तथा सतह से नीचे जल-स्तर कम हो जाता है, परिणामस्वरूप कुएँ, नदियाँ और जलाशय सूखने लगते हैं।

2. ग्लोबल वार्मिंग- ग्लोबल वार्मिंग वर्षा की प्रवृत्ति में बदलाव का कारण बन जाती है। परिणामस्वरूप वर्षा वाले क्षेत्र सूखाग्रस्त हो जाते हैं।

3. कृषि योग्य समस्त भूमि का उपयोग – बढ़ती हुई आबादी के लिए खाद्य-सामग्री उगाने के लिए लगभग समस्तं कृषि योग्य भूमि पर जुताई व खेती की जाने लगी है, परिणामस्वरूप मृदा की उर्वरा शक्ति क्षीण होती जा रही है तथा वह रेगिस्तान में परिवर्तित होती जा रही है। ऐसी स्थिति में वर्षा की थोड़ी कमी भी सूखे का कारण बन जाती है।

4. वर्षा का असमान वितरण दोनों तरीके से व्याप्त है। विभिन्न स्थानों पर न तो वर्षा की मात्रा समान है और न ही अवधि। हमारे देश में कुल जोती जाने वाली भूमि का लगभग 70 प्रतिशत भाग सूखा सम्भावित क्षेत्र है। इस क्षेत्र में यदि कुछ वर्षों तक लगातार वर्षा न हो तो सूखे की अत्यन्त दयनीय स्थिति पैदा हो जाती है।

सूखा शमन की प्रमुख युक्तियाँ (साधन)
(Means to Prevent Draught)

1. हरित पट्टियाँ– हरित पट्टी कालान्तर में वर्षा की मात्रा में वृद्धि तो करती ही है, साथ में ये वर्षा जल को रिसकर भूतल के नीचे जाने में सहायक भी होती हैं। परिणामस्वरूप कुओं, तालाबों आदि में जल-स्तर बढ़ जाता है और मानव उपयोग के लिए अधिक जल उपलब्ध हो जाता है।

2. जल संचय– वर्षा कम होने की स्थिति में जल आपूर्ति को बनाये रखने के लिए, जल को संचय करके रखना एक दूरदर्शी युक्ति है। जल का संचय बाँध बनाकर या तालाब बनाकर किया जा सकता है।

3. प्राकृतिक तालाबों का निर्माण- यह भी सूखे की स्थिति से निबटने के लिए एक उत्तम उपाय है। प्राकृतिक तालाबों में जल संचय भू-जल के स्तर को भी बढ़ाता है।

4. विभिन्न नदियों को आपस में जोड़ने- से उन क्षेत्रों में भी जल उपलब्ध किया जा सकता है। जहाँ वर्षा का अभाव रहा हो। भारत सरकार नदियों को जोड़ने की एक महत्त्वाकांक्षी योजना अगस्त 2005 ई० में प्रारम्भ कर चुकी है।

5. भूमि का उपयोग– सूखा सम्भावित क्षेत्रों में भूमि उपयोग पर विशेष ध्यान देना आवश्यक्त है, विशेषकर हरित पट्टी बनाने के लिए कम-से-कम 35 प्रतिशत भूमि को आरक्षित कर दिया जाना चाहिए। इस भूमि पर अधिकाधिक वृक्षारोपण किया जाना चाहिए।