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1.

सामाजिक नियन्त्रण में धर्म के किन्हीं दो कार्यों को स्पष्ट कीजिए।यासामाजिक नियन्त्रण के साधन के रूप में धर्म की भूमिका पर प्रकाश डालिए।

Answer»

सामाजिक नियन्त्रण में धर्म की अहम भूमिका है। इसके दो कार्य निम्नलिखित हैं-

1. धर्म मानव-व्यवहार को नियन्त्रित करता है-धर्म मानव के व्यवहार को नियन्त्रित करने का महत्त्वपूर्ण अभिकरण है। अलौकिक सत्ता के भय से व्यक्ति स्वतः अपने व्यवहार को नियन्त्रित रखता है। धर्म का जादुई प्रभाव व्यक्ति को सत्य भाषण, अचौर्य, अहिंसक, दयावान, निष्ठावान तथा आज्ञाकारी बनने की प्रेरणा देकर सामाजिक आदर्शों के पालन में सहायक होता है। नियन्त्रित मानव-व्यवहार सामाजिक नियन्त्रण का पथ प्रशस्त करता है।
उदाहरणार्थ-ईसाइयों और मुसलमानों में पादरी और मुल्ला-मौलवी अपने-अपने अनुयायियों के सामाजिक जीवन के नियन्त्रक के रूप में कार्य करते हैं। वास्तव में, धर्म के नियमों के विरुद्ध आचरण ईश्वर की आज्ञा का उल्लंघन माना जाता है जो कि पाप है। इससे व्यक्ति का न केवल इहलोक, वरन् परलोक भी बिगड़ जाता है। हिन्दुओं में व्याप्त जाति-प्रथा का आधार भी धर्म है, जो व्यक्ति के जीवन का सम्पूर्ण सन्दर्भ बन गयी है; अतः भारतीय राजनीति भी जातिवाद से कलुषित हो गयी है।

2. सामाजिक संघर्षों पर नियन्त्रण-समाज सहयोग और संघर्ष का गंगा-जमुनी मेल है। व्यक्तिगत स्वार्थ समाज में संघर्ष को जन्म देते हैं। धर्म व्यक्ति को कर्तव्य-पालन, त्याग और बलिदान के पथ पर अग्रसर करके व्यक्तिगत स्वार्थों को छोड़ने की प्रेरणा देता है। व्यक्ति के स्थान पर यह समष्टि के कल्याण की राह दिखाता है, जिससे संघर्ष टल जाते हैं। और सामाजिक नियन्त्रण बना रहता है।

2.

सामाजिक नियन्त्रण कितने प्रकार का होता है ? वर्णन कीजिए।यासामाजिक नियन्त्रण के दो प्रकार क्या हैं? 

Answer»

सामाजिक नियन्त्रण के स्वरूप को लेकर समाजशास्त्री एकमत नहीं हैं। विभिन्न समाजशास्त्रियों ने इसे निम्नलिखित रूप में वर्गीकृत किया है

1. प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष सामाजिक नियन्त्रण-प्रसिद्ध समाजशास्त्री कार्ल मॉनहीम ने सामाजिक नियन्त्रण को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष सामाजिक नियन्त्रण के रूप में वर्गीकृत किया है। जब कोई नियन्त्रण व्यक्ति पर उसके निकटतम सदस्यों द्वारा लागू किया जाता है तब उसे प्रत्यक्ष नियन्त्रण कहा जाता है। प्रशंसा, आलोचना, दण्ड और पुरस्कार प्रत्यक्ष नियन्त्रण के ही उदाहरण हैं। माता-पिता, भाई-बहन, मित्र, पड़ोसी तथा अध्यापक प्रत्यक्ष नियन्त्रण के अभिकरण होते हैं। प्राकृतिक पर्यावरण अथवा अन्य समितियों द्वारा लागू किया गया नियन्त्रण अप्रत्यक्ष सामाजिक नियन्त्रण कहलाता है। अप्रत्यक्ष नियन्त्रण में नियन्त्रण का
स्रोत दूर होते हुए भी यह सम्पूर्ण समूह को नियन्त्रित बनाये रखता है।

2. चेतन और अचेतन सामाजिक नियन्त्रण-चार्ल्स कूले और एल०एल० बर्नार्ड ने सामाजिक नियन्त्रण को चेतन और अचेतन दो भागों में वर्गीकृत किया है। सोच-समझकर लागू किया गया नियन्त्रण चेतन’ नियन्त्रण कहलाता है। इस नियम में प्रथाएँ, कानुन और परम्पराएँ प्रमुख भूमिका निभाती हैं। सामाजिक अन्त:क्रियाओं द्वारा लागू किया गया नियन्त्रण अचेतन नियन्त्रण कहलाता है। धर्म, संस्कार, विश्वास और मानव का व्यवहार अचेतन नियन्त्रण में सहभागिता निभाते हैं। अचेतन सामाजिक नियन्त्रण के अभिकरण मानव व्यक्तित्व के अंग बन जाते हैं; अत: मानव उनका पालन स्वतः करने लगता है।

3. सकारात्मक और नकारात्मक नियन्त्रण-प्रसिद्ध समाजशास्त्री किम्बाल यंग ने सामाजिक नियन्त्रण को सकारात्मक नियन्त्रण और नकारात्मक नियन्त्रण के रूप में दो भागों में वर्गीकृत किया है। परम्पराओं, मूल्यों तथा आदर्शों द्वारा व्यवहार को नियन्त्रित करना सकारात्मक सामाजिक नियन्त्रण है। दण्ड के भय से व्यक्ति जब सामाजिक नियमों का पालन करता है, तो उसे नकारात्मक नियन्त्रण कहते हैं।

4. औपचारिक और अनौपचारिक सामाजिक नियन्त्रण-लिखित कानूनों और निश्चित नियमों द्वारा किया जाने वाला नियन्त्रण सामाजिक नियन्त्रण कहलाता है। राज्य, कानून, न्यायालय, पुलिस, प्रशासन, शिक्षा और जेल आदि अभिकरण औपचारिक नियन्त्रण में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। | प्रथाओं, परम्पराओं, लोकाचारों, विश्वासों, संस्कारों, धर्म, नैतिक आदर्शों, मित्र-मण्डली और परिवार द्वारा जो नियन्त्रण लागू किया जाता है उसे अनौपचारिक नियन्त्रण कहा जाता है। अनौपचारिक नियन्त्रण केवल प्राथमिक समूहों द्वारा ही लागू होता है।

3.

सामाजिक नियन्त्रण की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

Answer»

सामाजिक नियन्त्रण में पायी जाने वाली विशेषताओं का वर्णन निम्नलिखित है

⦁    सामाजिक नियन्त्रण एक सतत घटित होने वाली प्रक्रिया है।
⦁    सामाजिक नियन्त्रण सार्वभौमिक प्रक्रिया है। कोई भी समाज ऐसा नहीं है जिसमें सामाजिक नियन्त्रण न होता हो।
⦁    सामाजिक नियन्त्रण और आत्म-नियन्त्रण (Self-control) में अन्तर होता है। आत्म नियन्त्रण सदैव अन्तर्जनित होता है। व्यक्ति अपनी स्वेच्छा से अपने ऊपर नियन्त्रण लगाता है। अपना कानूनी हक होते हुए भी वह उसे त्याग सकता है। सामाजिक नियन्त्रण सदैव बाहरी दबाव होता है। वह बाध्यकारी होता है।
⦁    समाज सामाजिक सम्बन्धों की व्यवस्था है। अतः वह अमूर्त है। वह स्वयं नियन्त्रण लागू करने नहीं आता। इसीलिए अन्ततोगत्वा, सामाजिक नियन्त्रण समाज के नाम में और समाज की ओर व्यक्ति या समूहों द्वारा अन्य व्यक्तियों और समूहों पर लगाया जाता है।
⦁    सामाजिक नियन्त्रण तभी महसूस होता है जब कोई व्यक्ति समाज के किसी नियम का विरोध करता है या उसका उल्लंघन करता है; समाज द्वारा निर्देशित पथ से हटकर विपथगामी होता है।
⦁    सामाजिक नियन्त्रण सामाजिक व्यवस्था की अनिवार्य दशा है।
⦁    यह सामाजिक एकीकरण का प्रमुख साधन है।
⦁    सामाजिक नियन्त्रण समाज में समरूपता और स्थायित्व बनाये रखता है।
⦁    सामाजिक नियन्त्रण सामाजिक परिवर्तन लाने में भी सहायक है, क्योंकि वह परिवर्तनकारी शक्तियों को परिवर्तन के लिए उचित साधन और तरीके अपनाने के लिए बाध्य करता है।
⦁    सामाजिक नियन्त्रण व्यक्ति को समाज के आदर्शों के अनुरूप व्यवहार करने के लिए प्रेरणा देता है।
⦁    सामाजिक नियन्त्रण के अनेक साधन और अभिकरण हैं। 12. दण्ड और पुरस्कार दोनों का इस कार्य में समान महत्त्व होता है।

4.

सामाजिक नियन्त्रण में दण्ड की भूमिका पर टिप्पणी लिखिए।

Answer»

वर्तमान समय में कानून और दण्ड सामाजिक नियन्त्रण के प्रमुख साधन हैं। जब किसी समाज में धर्म का महत्त्व कम हो जाता है, परम्पराएँ और प्रथाएँ जीवन को नियन्त्रित करने में असफल हो जाती हैं तब कानून ही व्यक्ति के व्यवहारों को नियन्त्रित करते हैं और समाज-विरोधी व्यवहार करने वाले व्यक्तियों के लिए दण्ड की व्यवस्था करते हैं। दण्ड से व्यक्ति के समाजविरोधी कार्यों पर प्रभावी अंकुश लगाया जा सकता है, समाज के अन्य व्यक्ति दण्डित व्यक्ति से शिक्षा लेते हैं तथा समाज-विरोधी कार्य करने से डरते व बचते हैं। इस प्रकार कानून व दण्ड व्यक्ति और समूह के व्यवहारों पर नियन्त्रण स्थापित करने वाले प्रभावी साधन हैं। यह कार्य न्यायालय और पुलिस की सहायता से होता है। दण्ड प्रक्रिया में व्यक्तिगत इच्छा और अनिच्छा पर कोई प्रश्न नहीं उठता। दण्ड प्रक्रिया में धनी, निर्धन, निर्बल और सबल सभी एक समान होते हैं।

5.

सामाजिक नियन्त्रण में ‘नैतिकता’ एवं ‘प्रथाओं की भूमिका का वर्णन कीजिए।

Answer»

सामाजिक नियन्त्रण में ‘नैतिकता’ एवं ‘प्रथाओं की भूमिका

नैतिकता-सामाजिक नियन्त्रण के अनौपचारिक अभिकरण के रूप में नैतिकता का स्थान भी बहुत महत्त्वपूर्ण माना जाता है। उचित-अनुचित का विचार ही नैतिकता है। नैतिकता व्यक्ति को सदाचार का मार्ग दिखाती है। नैतिकता की भावना सामाजिक नियन्त्रण को एक सुदृढ़ आधार प्रदान करती है। नैतिकता के द्वारा व्यक्ति बुद्धि और तर्क की कसौटी पर उचित-अनुचित का निर्णय करना सीख जाता है। सत्य का अनुपालन, हिंसा से बचाव, न्याय, दया, त्याग, सहानुभूति और सम्मान नैतिक आदर्श हैं। इनका अनुपालन करके व्यक्ति सामाजिक नियन्त्रण में स्वत: सहायक बन जाता है।

प्रथाएँ-धर्म की तरह प्रथाएँ भी सामाजिक नियन्त्रण का एक महत्त्वपूर्ण अनौपचारिक अभिकरण हैं। जनरीतियाँ पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलती हुई जब समूह के व्यवहार का अंग बन जाती हैं, तब उन्हें प्रथाएँ कहा जाता है। मनुष्य जन्म से ही अनेक प्रथाओं से घिरा रहता है; अत: उनकी अवहेलना करना उसकी शक्ति से बाहर है। प्रथाएँ मानव संस्कृति का अभिन्न अंग होती हैं; अतः मानवव्यवहार उन्हीं के द्वारा निर्धारित होता है। प्रथाओं को सामाजिक स्वीकृति प्राप्त होती है। जाति में विवाह करना, जाति निषेधों का पालन करना, मृत्यु पर सम्बन्धी के यहाँ शोक प्रकट करना तथा मृत्युभोज देना आदि प्रथाएँ हैं। व्यक्ति बिना तर्क आँख मूंदकर प्रथा का अनुपालन कर सामाजिक नियन्त्रण में सहायक बने रहते हैं।

6.

सामाजिक नियन्त्रण के अभिकरण के रूप में परिवार की भूमिका स्पष्ट कीजिए।यासामाजिक नियन्त्रण में प्राथमिक समूह की क्या भूमिका है ? यासामाजिक नियन्त्रण के किन्हीं दो अनौपचारिक साधनों की विवेचना कीजिए। यापरिवार सामाजिक नियन्त्रण का एक शक्तिशाली अभिकरण है।टिप्पणी लिखिए। सामाजिक नियन्त्रण में परिवार की भूमिका स्पष्ट कीजिए।यासामाजिक नियन्त्रण के अभिकरण के रूप में परिवार का महत्त्व घट रहा है। इस कथन का मूल्यांकन कीजिए। 

Answer»

परिवार समाज की प्रथम इकाई है और सामाजिक नियन्त्रण का प्रमुख साधन है। सामजिक नियन्त्रण के क्षेत्र में कोई भी दूसरा समूह व्यक्ति के जीवन को इतना प्रभावित नहीं करता जितना कि परिवार। इसी आधार पर परिवार को सामाजिक नियन्त्रण का प्रमुख अभिकर्ता कहा जाता है। व्यक्ति के विकास में परिवार की अहम भूमिका है। परिवार ही व्यक्ति को समाज सम्बन्धी आदर्शों, रूढ़ियों और प्रचलित रीति-रिवाजों से परिचित कराती है। त्याग, बलिदान, सहायता, दया, सहनशीलता, धैर्य आदि की शिक्षा व्यक्ति को परिवार के माध्यम से ही प्राप्त होती है। परिवार व्यक्ति के बुरे कार्यों की निन्दा और अच्छे कार्यों की प्रशंसा करता है। परिवार की परिस्थितियाँ ही व्यक्ति को अच्छा या बुरा बना देती हैं। इस प्रकार से हम कह सकते हैं कि सामाजिक नियन्त्रण में परिवार अहम भूमिका निभाता है। संक्षिप्त रूप में सामाजिक नियन्त्रण में परिवार की भूमिका का वर्णन निम्न प्रकार से है

1. शिक्षा द्वारा नियन्त्रण-परिवार शिक्षा की सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण तथा प्रभावशाली पाठशाला है। अनेक महापुरुषों का चरित्र-गठन उनके परिवार में ही हुआ है। इटली के प्रजातन्त्र के जन्मदाता मैजिनी का कथन है, “नागरिकता का प्रथम पाठ माता के चुम्बन और पिता के दुलार में ही सीखा जाता है।” अब्राहम लिंकन ने परिवार की महत्ता स्पष्ट करते हुए कहा है, जो कुछ भी मैं आज हूँ और जो कुछ भी बनने की आशा करता हूँ, वह सब कुछ मेरी देवीस्वरूप माता के कारण है।” परिवार में ही हम आत्म-संयम की अमूल्य शिक्षा प्राप्त करते हैं। हमारा सामाजिक विकास परिवार में ही होता है। यदि परिवार का नियन्त्रण शिथिल पड़ जाता है तो समाज में विघटने प्रारम्भ हो जाता है।

2. दण्ड-व्यवस्था द्वारा नियन्त्रण-व्यक्ति को अनुशासित और सामाजिक नियन्त्रण में रखने के लिए प्रत्येक परिवार में दण्ड की व्यवस्था होती है, जिसके भय से व्यक्ति सामाजिक नियन्त्रण में बँधा रहता है। परिवार कभी भी अपने सदस्यों को शारीरिक दण्ड नहीं देता और न ही उत्पीड़न का सहारा लेता है, बल्कि सहानुभूति के द्वारा सदस्यों पर नियन्त्रण लगाता है। साधारणतया, आलोचना, व्यंग्य तथा परिहास आदि साधनों के द्वारा ही सदस्यों को दण्डित किया जाता है और इस प्रकार उनके व्यवहारों पर नियन्त्रण लगाया जाता है।

3. यौन-व्यवहारों का नियन्त्रण-प्राणिशास्त्रीय कार्य के रूप में यौन-इच्छाओं की पूर्ति को एकमात्र साधन परिवार ही है। परिवार ही विवाह संस्कार के माध्यम से युवक-युवतियों को दाम्पत्य सूत्र में बाँधकर उन्हें यौन-इच्छाओं की सन्तुष्टि करने के अवसर जुटाता है। परिवार ही यह निश्चित करता है कि एक विशेष सदस्य का विवाह कब और किसके साथ तथा किस प्रकार हो। परिवार अपनी जाति में ही विवाह करने को बाध्य करता है। इस प्रकार परिवार विवाह सम्बन्धी नियन्त्रण लगाता है। इस प्रकार के नियन्त्रण के कारण व्यक्ति अनेक बुराइयों से बच जाता है तथा स्त्रियों को बुरी दृष्टि से नहीं देखता, जिससे समाज में व्यवस्था बनी रहती है।

4.समाजीकरण और सामाजिक नियन्त्रण-समाजीकरण के दृष्टिकोण से सामाजिक नियन्त्रण में परिवार का महत्त्वपूर्ण स्थान है। परिवार ही व्यक्ति को समाजीकरण करता है। वह समाजीकरण की प्रक्रिया के द्वारा व्यक्ति को सामाजिक नियमों के अनुकूल बनाता है। इस प्रक्रिया द्वारा व्यक्ति को सामाजिक आदर्शों, संस्कृति, परम्पराओं, रूढ़ियों आदि का ज्ञान प्राप्त होता है तथा वह आगे चलकर जीवन में इन सीखी हुई बातों को प्रयोग में लाता। है, जो सामाजिक नियन्त्रण में सहायक होती हैं।

5. सांस्कृतिक मूल्यों की शिक्षा द्वारा नियन्त्रण-प्रत्येक समाज की अपनी संस्कृति होती है। परिवार में उसी संस्कृति के अनुसार कार्य किये जाते हैं। उदाहरण के लिए भारतीय समाज में वृद्ध व्यक्तियों के सम्मान और संयुक्त परिवार व्यवस्था को अच्छा समझा जाता है। परिवार में व्यक्ति को इसी के अनुसार कार्य करने की शिक्षा दी जाती है। इस प्रकार वह वृद्ध व्यक्तियों तथा संयुक्त परिवार का आदर करना सीख जाता है। इस तरह सामाजिक जीवन संगठित बना रहता है। वास्तविकता तो यह है कि समाज में नियन्त्रण का अभाव तभी उत्पन्न होता है जब व्यक्ति अपने सांस्कृतिक मूल्यों के अनुसार कार्य नहीं करते। परिवार ही अपने सदस्यों को समाज के सांस्कृतिक मूल्यों से अवगत कराता है। इस प्रकार परिवार के सदस्य सांस्कृतिक प्रतिमानों को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरित करके सांस्कृतिक कार्य के रूप में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इससे सामाजिक संस्कृति के अस्तित्व के साथ-ही-साथ सामाजिक संगठन तथा नियन्त्रण बना रहता है।

6. सामंजस्य तथा सुरक्षा द्वारा नियन्त्रण-पारिवारिक जीवन में सुख, दु:ख, बीमारी, बेकारी आदि अनेक प्रकार की समस्याएँ जन्म लेती हैं। इन परिस्थितियों से सामंजस्य करने की प्रेरणा भी परिवार में ही दी जाती है। पारिवारिक समायोजन का यह कार्य व्यक्ति को विघटित होने से बचाता है।

7. सदस्यों की देख-रेख द्वारा नियन्त्रण-परिवार अपने सदस्यों की सामान्य देख-रेख करके यह विश्वास दिलाता है कि उनकी वास्तविक आवश्यकताएँ परिवार में ही पूरी हो सकती हैं। साथ ही परिवार व्यक्ति को इस प्रकार की शिक्षा भी देता है जो जीवन के लिए सबसे अधिक उपयोगी होती है। इससे व्यक्ति यह समझने लगता है कि उसका सामाजिक जीवन तभी प्रगतिशील बन सकेगा जब वह परिवार के आदर्शों का पालन करेगा। इस भावना ‘ के साथ ही व्यक्ति जीवन नियन्त्रण में बँध जाता है।

8. मानवीय गुणों का विकास द्वारा नियन्त्रण-परिवार बालक में अनेक मानवीय गुणों को विकसित करता है। मानवीय गुणों में प्रेम, सहयोग, दया, सहानुभूति, आत्म-त्याग, सहिष्णुता, परोपकार, कर्तव्यपालन तथा आज्ञापालन प्रमुख हैं। ये सभी ऐसे गुण हैं जिनके द्वारा व्यक्ति का जीवन स्वयं नियन्त्रित हो जाता है।
उपर्युक्त विवेचन के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि परिवार सामाजिक नियन्त्रण में प्रमुख भूमिका निभाता है। परिवार का नियन्त्रण अधिक स्थायी और प्रभावशाली सिद्ध होता है। संक्षेप में हम यह कह सकते हैं कि परिवार केवल सामाजिक नियन्त्रण में सहायता ही नहीं करता वरन् यह समाजीकरण की प्रक्रिया को भी सम्भव बनाता है।

सामाजिक नियन्त्रण के एक अभिकरण के रूप में परिवार के महत्त्व में कमी

यद्यपि सामाजिक नियन्त्रण के एक अभिकरण के रूप में परिवार की सदैव से ही महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। परन्तु औद्योगीकरण, नगरीकरण, लोकतन्त्रीकरण, शिक्षा का प्रसार, आर्थिक स्वतन्त्रता, व्यक्तिवादिता आदि कारकों के परिणामस्वरूप आज अनेक क्रान्तिकारी परिवर्तन हुए हैं। इन परिवर्तनों का परिवार की संरचना पर भी प्रभाव पड़ा है, जिसके फलस्वरूप आज परिवार सामाजिक नियन्त्रण के अभिकरण के रूप में अपना महत्त्व खोता जा रहा है, क्योंकि इन सभी तथा अन्य और भी कई कारकों ने परिवारिक नियन्त्रण एवं बन्धनों को सर्वथा शिथिल कर दिया है

उदाहरणार्थ-आज के परिवारों में पिता की शक्ति का ह्रास हुआ है। परिवारों में न तो पिता की आज्ञाओं को अन्तिम माना जाता है और न ही उसकी शक्ति को ईश्वरीय समझा जाता है; अतः एक ही परिवार के सदस्य पृथक्-पृथक् मार्गों पर चलकर अपने उद्देश्य की प्राप्ति करना चाहने लगे हैं। परिवार के सभी सदस्यों में एकमत का अभाव होता जा रहा है, किसी के ऊपर किसी को नियन्त्रण नहीं है। अब परिवार के सभी सदस्य अपनी इच्छा, दृष्टि, विचार तथा हित को ध्यान में रखकर कार्य करने लगे हैं। इन सभी बातों से स्पष्ट है कि वर्तमान युग में सामाजिक नियन्त्रण के अभिकरण के रूप में परिवार का महत्त्व घटता जा रहा है।

7.

सामाजिक नियन्त्रण से सामाजिक सुरक्षा कैसे प्राप्त होती है ?

Answer»

सामाजिक नियन्त्रण लोगों को मानसिक एवं बाह्य सुरक्षा प्रदान करता है। व्यक्ति को जब यह विश्वास होता है कि उसके हितों की रक्षा होगी तो वह मानसिक रूप से सन्तुष्ट एवं सुरक्षित अनुभव करता है। सामाजिक नियन्त्रण के द्वारा व्यक्ति की शारीरिक एवं धन-सम्पत्ति की रक्षा की जाती है।

8.

सामाजिक नियन्त्रण के अभिकरण से क्या तात्पर्य है ? इसके उदाहरण भी दीजिए।

Answer»

अभिकरण का तात्पर्य उन समूहों, संगठनों एवं सत्ता से है, जो नियन्त्रण को समाज पर लागू करते हैं। नियमों को लागू करने का माध्यम अभिकरण कहलाता है। उदाहरण के लिए, परिवार, राज्य, शिक्षण आदि।

9.

सामाजिक नियन्त्रण के साधन से क्या तात्पर्य है ? इसके उदाहरण भी दीजिए।

Answer»

साधन से तात्पर्य किसी विधि या तरीके से है, जिसके द्वारा कोई भी अभिकरण या एजेन्सी अपनी नीतियों और आदेशों को लागू करती है। उदाहरण के लिए-प्रथा, परम्परा, लोकाचार आदि।

10.

सकारात्मक और नकारात्मक नियन्त्रण से क्या तात्पर्य है ?

Answer»

सकारात्मक नियन्त्रण में पुरस्कार प्रदान कर अन्य लोगों को भी वैसा ही व्यवहार करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। नकारात्मक नियन्त्रण में समाज-विरोधी कार्य करने वाले व्यक्ति को दण्डित किया जाता है।

11.

सामाजिक नियन्त्रण के चार प्रमुख साधन एजेन्सियाँ बताएँ।यासामाजिक नियन्त्रण के दो अभिकरणों को उल्लेख कीजिए। 

Answer»

सामाजिक नियन्त्रण के चार प्रमुख साधन निम्नलिखित हैं–

⦁    परिवार,
⦁    धर्म,
⦁    कानून तथा
⦁    दण्ड।

12.

सोशल कण्ट्रोल’ किसकी कृति है ? 

Answer»

‘सोशल कण्ट्रोल’ जोसेफ रोसेक की कृति है।

13.

समाजशास्त्र सामाजिक व्यवस्था और प्रगति का विज्ञान है? यह कथन किसका है?

Answer»

आगस्त कॉम्टे।   

14.

मैरिज एण्ड फैमिली इन इण्डिया’ नामक पुस्तक के लेखक का नाम बताइए।

Answer»

मैरिज एण्ड फैमिली इन इण्डिया’ नामक पुस्तक के लेखक हैं-के० एम० कपाड़िया।

15.

सामाजिक नियन्त्रण के औपचारिक साधन कौन-कौन से हैं ?

Answer»

सामाजिक नियन्त्रण के औपचारिक साधनों में कानून, न्याय-व्यवस्था, पुलिस, प्रशासन, शिक्षा आदि आते हैं।

16.

शिक्षा सामाजिक नियन्त्रण का औपचारिक साधन है/ ‘हाँ या नहीं लिखिए।

Answer»

सही विकल्प है हाँ।

17.

“धर्म अलौकिक शक्तियों पर विश्वास है।” यह किसका कथन है ?

Answer»

यह हॉबेल का कथन है।

18.

“परिवार, सामाजिक नियन्त्रण का साधन है।” क्या यह सत्य है ?

Answer»

हाँ, यह सत्य है। परिवार, सामाजिक नियन्त्रण का एक अनौपचारिक साधन है।

19.

सामाजिक नियन्त्रण के दो अनौपचारिक साधन लिखिए।

Answer»

सामाजिक नियन्त्रण के दो अनौपचारिक साधन निम्नलिखित है|

⦁    धर्म-धर्म सामाजिक नियन्त्रण का सदैव से ही एक प्रमुख अभिकरण रहा है।
⦁    परिवार-सामाजिक नियन्त्रण में परिवार सबसे महत्त्वपूर्ण अभिकरण हैं।

20.

सामाजिक नियन्त्रण के अनौपचारिक साधन स्पष्ट कीजिए।

Answer»

यह सच है कि आधुनिक जटिल और बड़े समाजों में औपचारिक साधनों के द्वारा सामाजिक नियन्त्रण स्थापित किया जाता है, लेकिन प्रत्येक समाज में नियन्त्रण के औपचारिक साधनों के साथ कुछ ऐसे अनौपचारिक साधनों को भी उपयोग में लाया जाता है जिनके द्वारा आत्म-नियन्त्रण को प्रोत्साहन दिया जा सके। नियन्त्रण के औपचारिक साधनों में जहाँ बाध्यता, दबाव और शक्ति का समावेश होता है, वहीं नियन्त्रण के अनौपचारिक साधने अपनी प्रकृति से सामाजिक होते हैं। इनका उद्देश्य शक्ति के द्वारा लोगों के व्यवहारों को प्रभावित करना नहीं होता, बल्कि लोगों में स्वेच्छा से सामाजिक मानदण्डों और मूल्यों के अनुसार व्यवहार करने की आदत को विकसित करना होता है।

इनका दूसरा उद्देश्य व्यक्तित्व के आन्तरिक पक्ष को अनुशासित बनाना होता है, क्योंकि अनौपचारिक साधनों के प्रभाव को व्यक्ति स्वेच्छा से स्वीकार करता है। यही कारण है कि समूह-कल्याण में वृद्धि करने के लिए औपचारिक साधनों की तुलना में सामाजिक नियन्त्रण के अनौपचारिक साधनों को महत्त्वपूर्ण समझा जाता है। सामाजिक नियन्त्रण के अनौपचारिक साधन मुख्यतः सरल और छोटे समाजों में अधिक प्रभावपूर्ण होते हैं, लेकिन जटिल और बड़े समाजों में भी इनका उपयोग करना उतना ही आवश्यक समझा जाता है। साधारणतया नियन्त्रण के अनौपचारिक साधन किन्हीं लिखित नियमों के द्वारा व्यक्ति के व्यवहारों को नियन्त्रित नहीं करते, लेकिन इनके अनुसार व्यवहार करना लोग अपना नैतिक कर्तव्य मानते हैं।

प्रथाएँ, परम्पराएँ, लोकाचार, नैतिक नियम, धार्मिक विश्वास, सामूहिक निर्णय, प्रशंसा, तिरस्कार आदि वे तरीके हैं जिनके माध्यम से नियन्त्रण के अनौपचारिक साधन समाज में एकरूपता लाते हैं। इसका अर्थ यह नहीं है कि नियन्त्रण के अनौपचारिक साधनों द्वारा नियमों का उल्लंघन करने वाले लोगों को दण्डित करते हैं, लेकिन यह दण्ड राज्य के द्वारा नहीं बल्कि समूह के द्वारा दिया जाता है। ऐसे दण्ड का उद्देश्य व्यक्ति के विचारों और व्यवहारों में रचनात्मक सुधार लाना होता है। समाज व्यक्ति से यह आशा करता है कि सामाजिक नियन्त्रण के अनौपचारिक साधनों के अनुसार वह अपनी प्रवृत्तियों और इच्छाओं को स्वयं नियन्त्रित करे। इसके बाद भी सामाजिक नियन्त्रण के अनौपचारिक साधनों की प्रकृति औपचारिक साधनों की तुलना में कम परिवर्तनशील होती है, क्योंकि यह साधन सामाजिक मूल्यों, सांस्कृतिक मानदण्डों तथा परम्पराओं के आधार पर व्यक्तिगत व्यवहारों को नियन्त्रित करते हैं। परिवार, धर्म, प्रचार, जनमत, पुरस्कार, हास्य तथा व्यंग्य आदि सामाजिक नियन्त्रण के कुछ प्रमुख अनौपचारिक साधन हैं।

21.

निम्नलिखित में से किसने प्रजाति चेतना’ की अवधारणा दी है? (क) एल०एफ० वार्ड।(ख) एफ०एच० गिडिंग्स(ग) एम० जिन्सबर्ग।(घ) आर०एम० मैकाइवर

Answer»

(ख) एफ०एच० गिडिग्स

22.

सामाजिक नियन्त्रण का अनौपचारिक साधन कौन-सा है ?(क) प्रथा(ख) कानून(ग) राज्य(घ) शिक्षा

Answer»

सही विकल्प है (क) प्रथा

23.

निम्नलिखित में सामाजिक नियन्त्रण का अनौपचारिक साधन है(क) कानून(ख) शिक्षा-व्यवस्था(ग) परिवार(घ) राज्य

Answer»

सही विकल्प है (ग) परिवार

24.

सामाजिक नियन्त्रण से आप क्या समझते हैं ?  इसके क्या उद्देश्य हैं? सामाजिक नियन्त्रण में धर्म की भूमिका पर प्रकाश डालिए। यासामाजिक नियन्त्रण क्या है? धर्म सामाजिक नियन्त्रण को कैसे प्रभावित करता है?यासामाजिक नियन्त्रण में धर्म की भूमिका की विवेचना कीजिए।याधर्म से आप क्या समझते हैं? सामाजिक नियन्त्रण में धर्म की भूमिका की व्याख्या कीजिए।यासामाजिक नियन्त्रण पर आत्म-नियन्त्रण के प्रभाव को दर्शाइए। 

Answer»

सामाजिक नियन्त्रण का अर्थ

समाज एक व्यवस्था का नाम है। समाज का अस्तित्व तभी तक है जब तक उसमें व्यवस्था बनी रहती है। समाज के सदस्यों के व्यवहारों को नियन्त्रित करके ही यह व्यवस्था बनी रह सकती है। इस व्यवस्था के बनाने में कुछ शक्तियाँ प्रभावी होती हैं। वास्तव में, ये शक्तियाँ ही सामाजिक नियन्त्रण के रूप में जानी जाती हैं। समाज के प्रत्येक व्यक्ति का प्रयास रहता है कि वह अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए दूसरों के हितों को कुचल डाले। वह अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने में उचित-अनुचित का विचार न करके अव्यवस्था को जन्म देता है। सामाजिक नियन्त्रण ही वह शक्ति है जो उसे उच्छंखलता करने से रोकती है। जिस विधि से समाज के सदस्यों के व्यवहारों को सुव्यवस्थित तथा नियन्त्रित किया जाता है, उसे ही सामाजिक नियन्त्रण कहा जाता है। दूसरे शब्दों में, समाज द्वारा व्यक्तियों एवं समूहों के सामान्य व्यवहारों पर जो नियन्त्रण लगाया जाता है, सामान्य रूप से उसे ही सामाजिक नियन्त्रण की संज्ञा दी जाती है। वास्तव में सामाजिक नियन्त्रण समाजीकरण का पालक व रक्षक है तथा मानव के
सामाजिक जीवन की एक अनिवार्य दशा है।

सामाजिक नियन्त्रण की परिभाषा सामाजिक नियन्त्रण का वास्तविक अर्थ जानने के लिए हमें इसकी परिभाषाओं पर दृष्टि निक्षेप करना। होगा। विभिन्न समाजशास्त्रियों ने सामाजिक नियन्त्रण को निम्न प्रकार से परिभाषित किया है|
मैकाइवर एवं पेज के अनुसार, सामाजिक नियन्त्रण का तात्पर्य उस तरीके से है जिससे सम्पूर्ण सामाजिक व्यवस्था की एकता और उसका स्थायित्व बना रहता है। इसके द्वारा यह समस्त व्यवस्था एक परिवर्तनशील सन्तुलन के रूप में क्रियाशील रहती है।”
जोसेफ रोसेक के अनुसार, “सामाजिक नियन्त्रण उन नियोजित या अनियोजित क्रियाओं के लिए प्रयोग किया जाने वाला सामूहिक शब्द है जिससे व्यक्ति को समूह के मूल्यों एवं रीति-रिवाजों को सिखाया जाता है, उन्हें मानने का अनुरोध किया जाता है अथवा विवश किया जाता है।’
लुण्डबर्ग के अनुसार, “सामाजिक नियन्त्रण एक दशा है जिसमें व्यक्तियों को अन्य व्यक्तियों द्वारा कार्य या विश्वास के सामूहिक प्रमापों को मानने के लिए, जब अन्य आदर्श भी प्राप्त हों, विवश किया जाता है।

जॉर्ज एटबरी व अन्य के अनुसार, “सामाजिक नियन्त्रण से तात्पर्य उस तरीके से है जिससे समाज सामाजिक सम्बन्धों में एकरूपता एवं स्थिरता प्राप्त करता है।”
ऑगबर्न एवं निमकॉफ के अनुसार, “दबाव के वे प्रतिमान जो व्यवस्था एवं प्रस्थापित नियमों को बनाये रखने का प्रयत्न करते हैं, सामाजिक नियन्त्रण कहे जा सकते हैं।”

धर्म

धर्म कुछ अलौकिक विश्वासों और ईश्वरीय सत्ता पर आधारित एक शक्ति है जिसके नियमों का पालन व्यक्ति “पाप और पुण्य” अथवा ईश्वरीय शक्ति के भय के कारण करता है। धर्म एक आन्तरिक अलौकिक प्रभाव के द्वारा व्यक्ति और समूह के जीवन को नियन्त्रित करता है।
सामाजिक नियन्त्रण में धर्म की भूमिका तथा उद्देश्य या महत्त्व
सामाजिक जीवन में धर्म का महत्त्व बहुत अधिक है। यह व्यक्ति को बुरे कार्यों से बचाकर सामाजिक मूल्यों और आदर्शों की रक्षा करता है। सामाजिक नियन्त्रण के क्षेत्र में धर्म की भूमिका बड़ी महत्त्वपूर्ण रहती है। धर्म धार्मिक मूल्यों की सुरक्षा करके समाज को संगठित रखते हैं। धार्मिक नियमों को तोड़ना, पाप बटोरना है। धर्म के विरुद्ध जाकर ईश्वर को नाराज करना है। इन सब भावनाओं से अभिभूत मानव सामाजिक आदर्शों का पालन करके सामाजिक नियन्त्रण को एक सुदृढ़ आधार प्रदान करता है। सामाजिक नियन्त्रण की भूमिका के रूप में धर्म के महत्त्व को निम्नवत् प्रस्तुत किया जा सकता है

1. धर्म मानव-व्यवहार को नियन्त्रित करता है-धर्म मानव के व्यवहार को नियन्त्रित करने का महत्त्वपूर्ण अभिकरण है। अलौकिक सत्ता के भय से व्यक्ति स्वत: अपने व्यवहार को नियन्त्रित रखता है। धर्म का जादुई प्रभाव व्यक्ति को सत्य भाषण, अचौर्य, अहिंसक, दयावान, निष्ठावान तथा आज्ञाकारी बनने की प्रेरणा देकर सामाजिक आदर्शों के पालन में सहायक होता है। नियन्त्रित मानव-व्यवहार सामाजिक नियन्त्रण का पथ प्रशस्त करता है।
उदाहरणार्थ-ईसाइयों और मुसलमानों में पादरी और मुल्ला-मौलवी अपनेअपने अनुयायियों के सामाजिक जीवन के नियन्त्रक के रूप में कार्य करते हैं। वास्तव में, धर्म के नियमों के विरुद्ध आचरण ईश्वर की आज्ञा का उल्लंघन माना जाता है। वह पाप है। इससे व्यक्ति का न केवल इहलोक, वरन् परलोक भी बिगड़ जाता है। हिन्दुओं में व्याप्त जाति-प्रथा का आधार भी धर्म है, जो व्यक्ति के जीवन का सम्पूर्ण सन्दर्भ बन गयी है; अतः भारतीय राजनीति भी जातिवाद से कलुषित हो गयी है।

2. सामाजिक संघर्षों पर नियन्त्रण-समाज सहयोग और संघर्ष का गंगा-जमुनी मेल है। व्यक्तिगत स्वार्थ समाज में संघर्ष को जन्म देते हैं। धर्म व्यक्ति को कर्तव्य-पालन, त्याग और बलिदान के पथ पर अग्रसर करके व्यक्तिगत स्वार्थों को छोड़ने की प्रेरणा देता है। व्यक्ति के स्थान पर यह समष्टि के कल्याण की राह दिखाता है, जिससे संघर्ष टल जाते हैं। और सामाजिक नियन्त्रण बना रहता है

3. सदगुणों का विकास-सभी धर्म आदर्शों और मूल्यों की खान होते हैं। धर्म का पालन व्यक्ति में सद्गुणों का बीज रोप देता है। व्यक्ति प्रेम, त्याग, दया, सच्चाई, ईमानदारी, अहिंसा और सहयोग आदि सद्गुणों का संचय करके सदाचरण द्वारा सामाजिक नियन्त्रण को अक्षुण्ण बनाये रखता है।

4. पवित्रता की भावना का उदय-धर्म पवित्रता की पृष्ठभूमि से उदित होता है। धर्म-पालन से मन में पवित्रता का भाव अंकुरित होता है। पवित्रता का यह भाव व्यक्ति को दुष्कर्म करने से बचाता है। अपवित्र कार्य सामाजिक मूल्यों का हनन कर विघटन उत्पन्न करते हैं। धर्म पवित्र भाव जगाकर सामाजिक नियन्त्रण में सहयोग देता है।

5. संस्कारों का उदय-धर्म संस्कार और कर्मकाण्डों की डोर से बँधा है। व्यक्ति विभिन्न संस्कारों की पूर्ति के लिए धर्माचरण करता है। इस प्रकार संस्कारों का निर्वहन करने वाला व्यक्ति स्वतः सामाजिक नियन्त्रण” बन जाता है।

6. सामाजिक परिवर्तन-की प्रक्रिया तीव्र होने के साथ ही सामाजिक टने लगता है। धर्म सामाजिक परिवर्तन पर अंकुश लगाकर सामाजिक, को, ये रखता है। धर्म मनुष्यों को सामाजिक आदर्शों को ग्रहण कर की प्रेरणा सांस्कृतिक धरोहर की सुरक्षा करता है। धार्मिक विश्वास सामाजिक नियन्त्रण में प्रमुख भूमिका निभाते हैं।

7. आर्थिक जीवन पर नियन्त्रण-आर्थिक क्रियाएँ सामाजिक अभिन्न अंग हैं। धनोत्पादन में व्यक्ति उचित-अनुचित भूल जाता है, परन्तु धर्म उसके आर्थिक जीवन पर भी अपना नियन्त्रण बनाये रखता है। हिन्दू दर्शन में भोग के स्थान पर त्याग का आदर्श है। हिन्दू धर्म भौतिक विकास के स्थान पर आध्यात्मिक विकास पर बल देता है। जैन धर्म ने अपरिग्रह का सिद्धान्त देकर त्याग का महत्त्व स्पष्ट किया है। मैक्स वेबर के अनुसार, प्रत्येक धर्म में कुछ ऐसे नैतिक नियम या आधारे होते हैं जो कि उस धर्म के मानने वाले समुदाय के सदस्यों की आर्थिक व्यवस्था को निश्चित करते हैं। सभी धर्म उचित ढंग से धन कमाने और व्यय करने की प्रेरणा देकर सामाजिक नियन्त्रण में सहयोग प्रदान करते

8. व्यक्तित्व के विकास में सहायक-व्यक्तित्व के विकास में धर्म का योगदान बहुत महत्त्वपूर्ण होता है। धर्म व्यक्तित्व के सम्मुख जो आदर्श प्रस्तुत करता है वे सब उसे ज्ञान, धैर्य, साहस, दया, क्षमा आदि गुणों से विभूषित करते हैं। ये सब गुण व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास में सहायक होते हैं। निराशा और कुण्ठाओं से ग्रस्त व्यक्ति समाज को विघटित करता है, जबकि प्रबुद्ध नागरिक सामाजिक नियन्त्रण को आधार स्तम्भ होता है।

9. अपराध पर नियन्त्रण-धर्म व्यक्ति में सद्गुणों का विकास करके अपराध बोध कराने में सहायक होता है। धर्म से अभिभूत व्यक्ति का अन्त:करण कभी भी उसे आपराधिक एवं समाज-विरोधी कार्य करने की अनुमति ही नहीं देता। धार्मिक नियमों के उल्लंघन मात्र से ही धर्मानुरागी व्यक्ति को अपराध बोध हो जाता है। धर्म अपराध पर नियन्त्रण लगाकर सामाजिक नियन्त्रण के कार्य में सहायता प्रदान करता है।

10. राजनीतिक क्रिया-कलापों पर नियन्त्रण-राजनीति और धर्म का सम्बन्ध अटूट है। धर्म राजा और राज्य का मार्गदर्शक होता है। धर्माचरण सत्तासीन व्यक्तियों का प्रथम कर्तव्य होता है। राजा धर्म के सिद्धान्तों के अनुरूप शासन चलाता है। राजा को पृथ्वी पर ईश्वर का प्रतिनिधि माना जाता था। धर्म के सिद्धान्तों पर आधारित राज्य और राजनीति दीर्घगामी होते हैं। धर्म वह कवच है जो राजा और राज्य दोनों की सुरक्षा करता है। धर्म मूल्यविहीन राजनीति की आज्ञा नहीं देता। इस प्रकार धर्म सामाजिक आदर्शों का उल्लंघन करने वाली राजनीति एवं राजनेता पर अंकुश लगाकर सामाजिक नियन्त्रण को दृढ़ बनाता है। इस प्रकार भारतीय समाज में सामाजिक नियन्त्रण में धर्म की भूमिका का बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान है। धर्म के सन्दर्भ को बिना ध्यान में रखे भारतीय समाज को समझना कठिन है।

25.

सर्वप्रथम किसने ‘सामाजिक नियन्त्रण’ शब्द का प्रयोग किया?(क) रॉस(ख) समनर(ग) कॉम्टे(घ) कुले

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सही विकल्प है (क) रॉस

26.

सामाजिक नियन्त्रण का उद्देश्य है(क) व्यापार का विकास करना(ख) व्यक्ति की राजनीतिक आवश्यकताओं की पूर्ति(ग) सामाजिक सुरक्षा की स्थापना(घ) मनुष्य को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करना।

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(ग) सामाजिक सुरक्षा की स्थापना

27.

‘द साइकोलॉजी ऑफ सोसायटी’ नामक पुस्तक के लेखक का नाम बताइए।

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‘द साइकोलॉजी ऑफ सोसायटी’ नामक पुस्तक के लेखक हैं—मॉरिस जिन्सबर्ग।