InterviewSolution
This section includes InterviewSolutions, each offering curated multiple-choice questions to sharpen your knowledge and support exam preparation. Choose a topic below to get started.
| 1. |
“स्वतन्त्रता अति-शासन की विरोधी है।” यह कथन किसका है?(क) कोल(ख) सीले(ग) लॉस्की(घ) ग्रीन |
|
Answer» सही विकल्प है (ख) सीले। |
|
| 2. |
‘लिबर्टी’ (स्वतन्त्रता) की व्युत्पत्ति लिबर’ शब्द से हुई है, जो शब्द है(क) संस्कृत भाषा का(ख) लैटिन भाषा का(ग) फ्रांसीसी भाषा का(घ) हिब्रू भाषा का |
|
Answer» सही विकल्प है (ख) लैटिन भाषा का। |
|
| 3. |
‘ऑन लिबर्टी’ (स्वतन्त्रता) नामक ग्रन्थ किसने लिखा? |
|
Answer» ‘ऑन लिबर्टी’ (स्वतन्त्रता) नामक ग्रन्थ जे०एस० मिल ने लिखा। |
|
| 4. |
“आर्थिक समानता के बिना राजनीतिक स्वतन्त्रता एक भ्रम है।” यह कथन किसका है?(क) लॉस्की को(ख) प्रो० जोड का(ग) रूसो को(घ) क्रोचे का |
|
Answer» सही विकल्प है (ख) प्रो० जोड का। |
|
| 5. |
स्वतन्त्रता और सत्ता के पारस्परिक सम्बन्धों की विवेचना कीजिए। |
|
Answer» कतिपय विद्वानों का विचार है कि राजनीतिक स्वतन्त्रता एवं सत्ता परस्पर विरोधी हैं। प्रभुसत्ता असीम है परन्तु स्वतन्त्रता पर कोई अंकुश नहीं होना चाहिए। सत्ता एवं स्वतन्त्रता साथ-साथ नहीं रह सकती हैं। वास्तव में न तो प्रभुसत्ता असीमित होती है और न ही स्वतन्त्रता अप्रतिबन्धित होती है। राज्य की प्रभुसत्ता के ऊपर अनेक प्रतिबन्ध होते हैं। स्वतन्त्रता की प्रकृति में ही प्रतिबन्ध निहित है, अन्यथा स्वतन्त्रता उच्छंखलता में परिवर्तित हो जाएगी। स्वतन्त्रता के ऊपर अंकुश इसलिए जरूरी है कि अन्य नागरिकों को समान अवसर प्राप्त हों और सबल वर्ग समाज के विरुद्ध आचरण न कर सके। गैटिल ने इस सम्बन्ध में कहा है, “बिना प्रतिबन्धों के प्रभुसत्ता निरंकुश बन जाती है और बिना सत्ता के स्वतन्त्रता अराजकता को जन्म देती है।” |
|
| 6. |
संक्षेप में स्वतन्त्रता के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए। |
|
Answer» यदि यह सत्य है कि बिना सत्ता के सामाजिक शक्ति और व्यवस्था नहीं रह सकतीं, तो यह भी उतना ही आवश्यक है कि सत्ता द्वारा स्थापित इस व्यवस्था के अन्तर्गत नागरिकों को अपने व्यक्तित्व के पूर्ण विकास के लिए स्वतन्त्रता उपलब्ध हो। मानव के व्यक्तित्व के विकास में स्वतन्त्रता एक अनमोल निधि है। वैयक्तिक व राष्ट्रीय स्वतन्त्रता की प्राप्ति के लिए हजारों लोगों के अनेक प्रकार की यातनाएँ हँसते हुए झेली हैं। बर्टेण्ड रसेल के अनुसार, “स्वतन्त्रता की इच्छा व्यक्ति की एक स्वाभाविक प्रकृति है और इसी के आधार पर सामाजिक जीवन का निर्माण सम्भव है।” प्रसिद्ध विधिवेत्ता पालकीवाला के शब्दों में, “मनुष्य सदा ही स्वतन्त्रता की बलिवेदी पर सर्वाधिक बहुमूल्य बलिदान देते रहे हैं। वे भाषण व अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता तथा आत्मा व धर्म की स्वतन्त्रता के लिए अपने प्राण तक देते रहे हैं।” संक्षेप में, स्वतन्त्रता यदि मानव-जाति का अन्तिम लक्ष्य नहीं, तब उसकी प्रेरणा का अन्तिम स्रोत तो सदा ही रही है। |
|
| 7. |
आँग सान सू की पुस्तक का शीर्षक क्या है? |
|
Answer» आँग सान सू की पुस्तक का शीर्ष ‘फ्रीडम फ्रॉम फीयर (भय की मुक्ति) है। |
|
| 8. |
स्वतन्त्रता के मार्क्सवादी दृष्टिकोण का संक्षेप में वर्णन कीजिए। |
|
Answer» मार्क्सवादी दृष्टिकोण के अनुसार स्वतन्त्रता ऐसी स्थिति नहीं है जिसमें व्यक्ति को अकेला छोड़ दिया जाए। इसके विपरीत, स्वतन्त्रता की स्थितियाँ सामाजिक-आर्थिक सन्दर्भो से सम्बद्ध होती हैं। मार्क्सवादी विचारकों के अनुसार तर्कसंगत उत्पादन प्रणाली के अन्तर्गत ही व्यक्ति सच्चे अर्थों में स्वतन्त्र हो सकते हैं, क्योंकि ऐसी स्थिति में उत्पादन के प्रमुख साधनों पर सम्पूर्ण समाज का स्वामित्व होगा, कोई किसी का शोषण नहीं करेगा और उत्पादन की शक्तियाँ इतनी विकसित हो जाएँगी कि प्रत्येक व्यक्ति अपनी इच्छा और आवश्यकता की पूर्ति आसानी से कर सकेगा। माक्र्सवाद के अनुसार व्यक्ति के लिए स्वतन्त्रता का सच्चा अर्थ तो उस समय सम्भव हो सकता है जब वह अभावों से मुक्त हो। उसे आत्मविश्वास के लिए जिन चीजों की जरूरत हो वे सब भरपूर मात्रा में उपलब्ध हों। मार्क्स नकारात्मक स्वतन्त्रता का विरोधी व सकारात्मकं स्वतन्त्रता का समर्थक है। |
|
| 9. |
नेल्सन मण्डेला की आत्मकथा का शीर्षक क्या है? |
|
Answer» नेल्सन मण्डेला की आत्मकथा का शीर्षक ‘लाँग वाक टू फ्रीडम’ (स्वतन्त्रता के लिए लम्बी यात्रा) है। |
|
| 10. |
‘लाँग वाक टू फ्रीडम’ पर टिप्पणी कीजिए। |
|
Answer» 20वीं शताब्दी के एक महानतम व्यक्ति नेल्सन मण्डेला की आत्मकथा को शीर्षक ‘लाँग वाक टू फ्रीडम’ (स्वतन्त्रता के लिए लम्बी यात्रा) है। इस पुस्तक में उन्होंने दक्षिण अफ्रीका के रंगभेदी शासन के विरुद्ध अपने व्यक्तित्व संघर्ष, गोरे लोगों के शासन की अलगाववादी नीतियों के विरुद्ध लोगों के प्रतिरोध और दक्षिण अफ्रीका के काले लोगों द्वारा झेले गए अपमान, कठिनाइयों और पुलिस अत्याचार के विषय में बातें की हैं। इन अलगाववादी नीतियों में एक शहर में घेराबन्दी किए जाने और देश में मुक्त आवागमन पर रोक लगाने से लेकर विवाह करने में मुक्त चयन तक पर प्रतिबन्ध लगाना । शामिल है। सामूहिक रूप से इन सभी प्रतिबन्धों को नस्ल के आधार पर भेदभाव करने वाली रंगभेदी सरकार ने जबरदस्ती लागू किया था। मण्डेला और उनके साथियों के लिए इन्हीं अन्यायपूर्ण प्रतिबन्धों और स्वतन्तत्रा के रास्ते की बाधाओं को दूर करने का संघर्ष ‘लाँग वाक टू फ्रीडम’ (स्वतन्त्रता के लिए लम्बी यात्रा) था। विशेष बात यह कि मण्डेला का संघर्ष केवल काले या अन्य लोगों के लिए ही नहीं वरन् श्वेत लोगों के लिए भी था। |
|
| 11. |
नकारात्मक स्वतन्त्रता का समर्थक विचारक कौन है? |
|
Answer» नकारात्मक स्वतन्त्रता का समर्थक विचारक जे०एस० मिला है। |
|
| 12. |
अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता पर राजनीतिक विचारक मिल के विचार लिखिए। |
|
Answer» 19वीं सदी के ब्रिटेन के एक राजनीतिक विचारक जॉन स्टुअर्ट मिल ने अभिव्यक्ति तथा विचार और विवाद की स्वतन्त्रता का बहुत ही भावपूर्ण पक्ष प्रस्तुत किया है। अपनी पुस्तक ‘ऑन लिबर्टी’ में उसने केवल चार कारण प्रस्तुत किए हैं कि अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता उन्हें भी होनी चाहिए जिनके विचार आज की स्थितियों में गलत या भ्रामक लग रहे हों। प्रथम कारण तो यह कि कोई भी विचार पूर्ण रूप से गलत नहीं होता। जो हमें गलत लगता है उसमें सच्चाई को तत्त्व होता है। अगर हम गलत विचार को प्रतिबन्धित कर देंगे तो इसमें छिपे सच्चाई के अंश को भी खो देंगे। द्वितीय कारण पहले कारण से सम्बन्धित है। सत्य स्वयं में उत्पन्न नहीं होता। सत्य विरोधी विचारों के टकराव से उत्पन्न होता है। जो विचार आज गलत प्रतीत होता है, वह सही तरह के विचारों के उदय में बहुमूल्य हो सकती है। तृतीय, विचारों का यह संघर्ष केवल अतीत में ही मूल्यवान नहीं था, बल्कि हर समय इसका सतत महत्त्व है। सत्य के विषय में यह खतरा हमेशा होता है कि वह एक विचारहीन और रूढ़ उक्ति में परिवर्तित हो जाए। जब हम इसे विरोधी विचार के समक्ष रखते हैं तभी इस विचार का विश्वसनीय होना। सिद्ध होता है। |
|
| 13. |
स्वतन्त्रता के नकारात्मक पहलू का विचारक था(क) ग्रीन(ख) गांधी जी(ग) लॉस्की(घ) रूसो |
|
Answer» सही विकल्प है (घ) रूसो। |
|
| 14. |
स्वतन्त्रता से आप क्या समझते हैं? स्वतन्त्रता कितने प्रकार की होती है? विवेचना कीजिए।या स्वतन्त्रता की परिभाषा देते हुए इसके विभिन्न प्रकारों की व्याख्या कीजिए।या स्वतन्त्रता क्यों आवश्यक है? सकारात्मक स्वतन्त्रता तथा नकारात्मक स्वतन्त्रता की ‘ अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।या स्वतन्त्रता से आप क्या समझते हैं। नागरिकों को प्राप्त विभिन्न स्वतन्त्रताओं का उल्लेख कीजिए। |
|
Answer» स्वतन्त्रता जीवन का सबसे महत्त्वपूर्ण अधिकार है। बर्स के अनुसार-“स्वतन्त्रता न केवल सभ्य जीवन का आधार है, वरन् सभ्यता का विकास भी व्यक्तिगत स्वतन्त्रता पर ही निर्भर करता है।’ स्वतन्त्रता मानव की सर्वप्रिय वस्तु है। व्यक्ति स्वभाव से स्वतन्त्रता चाहता है क्योंकि व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास के लिए स्वतन्त्रता सबसे आवश्यक तत्त्व है। मानव के समस्त अधिकारों में स्वतन्त्रता का अधिकार सबसे महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसके अभाव में अन्य अधिकारों का उपयोग नहीं हो सकता है। स्वतन्त्रता का अर्थ स्वतन्त्रता का अर्थ दो रूपों में स्पष्ट किया जाता है 1. स्वतन्त्रता का निषेधात्मक अर्थ- स्वतन्त्रता की परिभाषाएँ स्वतन्त्रता की कुछ महत्त्वपूर्ण परिभाषाओं का विवेचन निम्नलिखित है ⦁ लॉस्की के अनुसार- “स्वतन्त्रता का वास्तविक अर्थ राज्य की ओर से ऐसे वातावरण का निर्माण करना है, जिसमें कि व्यक्ति आदर्श नागरिक जीवन व्यतीत करने योग्य बन सके तथा अपने व्यक्तित्व का पूर्ण विकास कर सके। स्वतन्त्रता के प्रकार (रूप) स्वतन्त्रता के विभिन्न रूप तथा उनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है |
|
| 15. |
अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का क्या अर्थ है? आपकी राय में इस स्वतन्त्रता पर समुचित प्रतिबन्ध क्या होंगे? उदाहरण सहित बताइए। |
|
Answer» अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता से आशय यह है कि प्रत्येक नागरिक को विचाराभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता है, परन्तु शर्त यह है कि अभिव्यक्ति समाज में अव्यवस्था उत्पन्न न करे। अपने विचार पत्र-पत्रिकाओं, समाचार पत्रों में प्रकाशित करने और करवाने की दृष्टि से लेखक और प्रकाशक दोनों स्वतन्त्र हैं, लेकिन ये विचार अश्लील और विघटनकारी नहीं होने चाहिए। |
|
| 16. |
कानून किस प्रकार स्वतन्त्रता का रक्षक है? |
|
Answer» कानून स्वतन्त्रता को जन्म देते हैं और उन्हें मर्यादित करते हैं। |
|
| 17. |
सामाजिक प्रतिबन्धों से क्या आशय है? क्या किसी भी प्रकार के प्रतिबन्ध स्वतन्त्रता के लिए आवश्यक हैं? |
|
Answer» सामाजिक प्रतिबन्धों से आशय है; वे प्रतिबन्ध जिनसे समाज की व्यवस्था भंग न हो और समाज निरन्तर गतिशील रहे। स्वतन्त्रता मानव समाज के केन्द्र में है और गरिमापूर्ण मानव-जीवन के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इसलिए स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्ध विशेष परिस्थितियों में ही लगाए जा सकते हैं। प्रतिबन्ध स्वतन्त्रता के लिए अत्यन्त आवश्यक हैं। बिना प्रतिबन्धों के स्वतन्त्रता उद्दण्डता में बदल जाएगी। |
|
| 18. |
“स्वतन्त्रता और कानून एक-दूसरे के पूरक हैं।” स्पष्ट कीजिए। |
|
Answer» स्वतन्त्रता और कानून एक-दूसरे के पूरक हैं, क्योंकि कानूनों के पालन में ही मनुष्य की स्वतन्त्रता सुरक्षित रहती है। |
|
| 19. |
“स्वतन्त्रता तथा समानता परस्पर विरोधी हैं।” इस विचारधारा का समर्थक था(क) लॉस्की(ख) सी० ई० एम० जोड(ग) क्रोचे(घ) पोलार्ड |
|
Answer» सही विकल्प है (ग) क्रोचे। |
|
| 20. |
प्राकृतिक स्वतन्त्रता का समर्थक कौन था? । |
|
Answer» प्राकृतिक स्वतन्त्रता का समर्थक रूसो था। |
|
| 21. |
स्वतन्त्रता की नकारात्मक और सकारात्मक अवधारणा में क्या अन्तर है? |
|
Answer» सकारात्मक स्वतन्त्रता के पक्षधरों का मानना है कि व्यक्ति केवल समाज में ही स्वतन्त्र हो सकता है, समाज से बाहर नहीं और इसीलिए वह इस समाज को ऐसा बनाने का प्रयास करते हैं, जो व्यक्ति के विकास का मार्ग प्रशस्त करे। दूसरी ओर नकारात्मक स्वतन्त्रता का सम्बन्ध अहस्तक्षेप के अनुलंघनीय क्षेत्र से है, इस क्षेत्र से बाहर समाज की स्थितियों से नहीं। नकारात्मक स्वतन्त्रता अहस्तक्षेप के इस छोटे क्षेत्र का अधिकतम विस्तार करना चाहेगी। साधारणतया दोनों प्रकार की स्वतन्त्रताएँ साथ-साथ चलती हैं और एक-दूसरे का समर्थन करती हैं। |
|
| 22. |
स्वतन्त्रता की एक परिभाषा लिखिए। |
|
Answer» बार्कर के अनुसार, “स्वतन्त्रता प्रतिबन्धों का अभाव नहीं, वरन् वह ऐसे नियन्त्रणों का अभाव है, जो मनुष्य के विकास में बाधक हों।” |
|
| 23. |
यदि किसी व्यक्ति को आवागमन की स्वतन्त्रता नहीं प्राप्त है, तो उसे निम्नांकित में से किस स्वतन्त्रता से वंचित किया जा सकता है?(क) नागरिक स्वतन्त्रता(ख) प्राकृतिक स्वतन्त्रता(ग) आर्थिक स्वतन्त्रता(घ) धार्मिक स्वतन्त्रता |
|
Answer» सही विकल्प है (ख) प्राकृतिक स्वतन्त्रता। |
|
| 24. |
नागरिकों की स्वतन्त्रता को बनाए रखने में राज्य की क्या भूमिका है? |
|
Answer» नागरिकों की स्वतन्त्रता बनाए रखने में राज्य की भूमिका को निम्नलिखित बिन्दुओं में स्पष्ट किया जा सकता है- ⦁ यदि नागरिकों की स्वतन्त्रता की रक्षा करनी है तो राज्य द्वारा नागरिकों के कार्यों पर नियन्त्रण किया जाना चाहिए। राज्य का कर्तव्य है कि वह व्यक्ति को ऐसे कार्यों को करने से रोक दे जो दूसरों के हितों का उल्लघंन करते हैं। |
|
| 25. |
स्वतन्त्रता का वास्तविक अर्थ क्या है? |
|
Answer» अनुचित बन्धनों के स्थान पर उचित बन्धनों की व्यवस्था ही स्वतन्त्रता का वास्तविक अर्थ है। |
|
| 26. |
स्वतन्त्रता से क्या आशय है? क्या व्यक्ति के लिए स्वतन्त्रता और राष्ट्र के लिए स्वतन्त्रता में कोई सम्बन्ध है? |
|
Answer» व्यक्ति पर बाहरी प्रतिबन्धों का अभाव ही स्वतन्त्रता है। बाहरी प्रतिबन्धों का अभाव और ऐसी स्थितियों का होना जिसमें लोग अपनी प्रतिभा का विकास कर सकें, स्वतन्त्रता के ये दोनों ही पहलू महत्त्वपूर्ण हैं। एक स्वतन्त्र समाज वह होगा, जो अपने सदस्यों को न्यूनतम सामाजिक अवरोधों के साथ अपनी सम्भावनाओं के विकास में समर्थ बनाएगा। राष्ट्र की स्वतन्त्रता और व्यक्ति की स्वतन्त्रता में घनिष्ठ सम्बन्ध है। यदि राष्ट्र स्वतन्त्र नहीं होगा तो व्यक्ति की स्वतन्त्रता का कोई अर्थ नहीं रह जाता है। स्वतन्त्र राष्ट्र में ही व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का विकास और उत्तरदायित्वों का निर्वाह भली-भाँति कर सकता है। |
|
| 27. |
“जहाँ कानून नहीं है, वहाँ स्वतन्त्रता नहीं हो सकती।” यह मत किस विद्वान् का है। |
|
Answer» यह मत उदारवादी विचारक लॉक का है। |
|
| 28. |
स्वतन्त्रता के दो प्रकार लिखिए। |
|
Answer» (i)राजनीतिक स्वतन्त्रता- राज्य के कार्यों में सक्रिय रूप से भाग लेने की शक्ति ही राजनीतिक स्वतन्त्रता है। |
|
| 29. |
“स्वतन्त्रता अति शासन की विरोधी है।” यह मत किसने व्यक्त किया है। |
|
Answer» “स्वतन्त्रता अति शासन की विरोधी है।” यह मत सीले ने व्यक्त किया है। |
|
| 30. |
आँग सान सू कौन है? |
|
Answer» आँग सान सू म्यांमार की राष्ट्रवादी नेता हैं। उन्हें म्यांमार सरकार ने नजरबन्द कर रखा है। |
|
| 31. |
जे०एस० मिल ने ‘स्वसम्बद्ध’ और ‘परसम्बद्ध’ कार्यों में क्या अन्तर बताया है? |
|
Answer» पाश्चात्य विचारक जे०एस० मिल ने ‘स्वसम्बद्ध’ और ‘परसम्बद्ध कार्यों में अन्तर बताया है। स्वसम्बद्ध वे कार्य हैं, जिनके प्रभाव केवल इन कार्यों को करने वाले व्यक्ति पर पड़ते हैं जबकि परसम्बद्ध वे कार्य हैं जो कर्ता के अलावा शेष लोगों पर भी प्रभाव डालते हैं। मिल का तर्क है कि स्वसम्बद्ध कार्य और निर्णयों के मामले में राज्य या किसी बाहरी सत्ता को कोई हस्तक्षेप करने की जरूरत नहीं है। सरल शब्दों में कहें तो, स्वसम्बद्ध कार्य वे हैं जिनके बारे में कहा जा सके कि ये मेरा काम है, मैं इसे वैसे करूंगा, जैसा मेरा मन होगा।’ परसम्बद्ध कार्य वे हैं जिनके बारे में कहा जा सके कि अगर तुम्हारी गतिविधियों से मुझे कुछ नुकसान होता है तो किसी-न-किसी बाहरी सत्ता को चाहिए कि मुझे इन नुकसानों से बचाए।” |
|
| 32. |
“स्वतन्त्रता और कानून की घनिष्ठता के कारण इन्हें एक-दूसरे का पूरक कहा जाता है।” इस कथन पर टिप्पणी लिखिए।याकानून तथा स्वतन्त्रता के मध्य सम्बन्धों की विवेचना कीजिए। |
|
Answer» स्वतन्त्रता के सकारात्मक स्वरूप का तात्पर्य है- व्यक्ति को व्यक्तित्व के विकास हेतु आवश्यक सुविधाएँ प्रदान करना। कानून व्यक्तियों के व्यक्तित्व के विकास की सुविधाएँ प्रदान करते हुए उन्हें वास्तविक स्वतन्त्रता प्रदान करते हैं। वर्तमान समय में लगभग सभी राज्यों द्वारा जनकल्याणकारी राज्य के विचार को अपना लिया गया है और राज्य कानूनों के माध्यम से एक ऐसे वातावरण के निर्माण में संलग्न है जिसके अन्तर्गत व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का पूर्ण विकास कर सके। राज्य के द्वारा की गयी अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था, अधिकतम श्रम और न्यूनतम वेतन के सम्बन्ध में कानूनी व्यवस्था, जनस्वास्थ्य का प्रबन्ध आदि कार्यों द्वारा नागरिकों को व्यक्तित्व के विकास की सुविधाएँ प्राप्त हो रही हैं और इस प्रकार राज्य नागरिकों को वास्तविक स्वतन्त्रता प्रदान कर रहा है। यदि राज्य सड़क पर चलने के सम्बन्ध में किसी प्रकार के नियमों का निर्माण करता है, मद्यपान पर रोक लगाता है या टीके की व्यवस्था करता है तो राज्य के इन कार्यों से व्यक्तियों की स्वतन्त्रता सीमित नहीं होती, वरन् उसमें वृद्धि ही होती है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि साधारण रूप से राज्य के कानून व्यक्तियों की स्वतन्त्रता की रक्षा और उसमें वृद्धि करते हैं। स्वतन्त्रता और कानून के इस घनिष्ठ सम्बन्ध के कारण ही रैम्जे म्योर ने लिखा है कि “कानून और स्वतन्त्रता इस प्रकार अन्योन्याश्रित और एक-दूसरे के पूरक हैं।” |
|
| 33. |
“स्वतन्त्रता व्यक्तित्व के पूर्ण विकास के लिए आवश्यक है।” विवेचना कीजिए। |
|
Answer» स्वतन्त्रता अमूल्य वस्तु है और उसका मानवीय जीवन में बहुत अधिक महत्त्व है। स्वतन्त्रता का मूल्य व्यक्तिगत तथा राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर समान है। स्वतन्त्रता का महत्त्व न होता तो विभिन्न देशों में लाखों व्यक्तियों द्वारा स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान न दिया जाता। मनुष्य के व्यक्तित्व के विकास के लिए अधिकारों का अस्तित्व नितान्त आवश्यक है और इन विविध अधिकारों में स्वतन्त्रता का स्थान निश्चित रूप से सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। मनुष्य का सम्पूर्ण भौतिक, मानसिक एवं नैतिक विकास स्वतन्त्रता के वातावरण में ही सम्भव है। स्वतन्त्रता की व्याख्या करते हुए लास्की ने भी कहा है कि “स्वतन्त्रता उस वातावरण को बनाए रखना है जिसमें व्यक्ति को जीवन का सर्वोत्तम विकास करने की सुविधा प्राप्त हो।’ इस प्रकार स्वतन्त्रता का । तात्पर्य ऐसे वातावरण और परिस्थितियों की विद्यमानता से है जिसमें व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का पूर्ण विकास कर सके। स्वतन्त्रता निम्नलिखित आदर्श दशाएँ प्रस्तुत करती हैं ⦁ न्यूनतम प्रतिबन्ध– स्वतन्त्रता का प्रथम तत्त्व यह है कि व्यक्ति के जीवन पर शासन और समाज के दूसरे सदस्यों की ओर से न्यूनतम प्रतिबन्ध होने चाहिए, जिससे व्यक्ति अपने विचार और कार्य-व्यवहार में अधिकाधिक स्वतन्त्रता का उपभोग कर सके तथा अपना विकास सुनिश्चित कर सके। |
|
| 34. |
प्रतिबन्धों के स्रोत क्या हैं? |
|
Answer» व्यक्ति की स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्ध प्रभुत्व और बाहरी नियन्त्रण से लग सकते हैं। ये प्रतिबन्ध . बलपूर्वक या सरकार द्वारा ऐसे कानून की सहायता से लगाए जा सकते हैं, जो शासकों की ताकत का । प्रतिनिधित्व करें। ऐसे प्रतिबन्ध उपनिवेशवादी शासकों ने या दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद की व्यवस्था ले लगाए। सरकार की कोई-न-कोई जरूरत हो सकती है, लेकिन सरकार लोकतान्त्रिक हो तो राज्य के नागरिकों का अपने शासकों पर कुछ नियन्त्रण हो सकता है। इसलिए लोकतान्त्रिक सरकार लोगों की स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए एक आवश्यक माध्यम मानी गई है। |
|
| 35. |
स्वराज से आप क्या समझते हैं? |
|
Answer» भारतीय राजनीतिक विचारों में स्वतन्त्रता की समानार्थी अवधारणा ‘स्वराज’ है। स्वराज का अर्थ ‘स्व’ का शासन भी हो सकता है और ‘स्व’ के ऊपर शासन भी। भारत के स्वतन्त्रता संघर्ष के सन्दर्भ में ‘स्वराज’ राजनीतिक और संवैधानिक स्तर पर स्वतन्त्रता की माँग है और सामाजिक स्तर पर यह एक मूल्य है। इसीलिए स्वराज स्वतन्त्रता आन्दोलन में एक महत्त्वपूर्ण नारा बन गया जिसने तिलक के प्रसिद्ध कथन “स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा” को प्रेरित किया। |
|
| 36. |
उदारवाद क्या है? |
|
Answer» एक राजनीतिक विचारधारा के रूप में उदारवाद को सहनशीलता के मूल्य के साथ जोड़कर देखा जाता है। उदारवादी चाहे किसी व्यक्ति से असहमत हों, तब भी वे उसके विचार और विश्वास रखने और व्यक्त करने के अधिकार का पक्ष लेते हैं। लेकिन उदारवाद इतना भर नहीं है और न ही उदारवाद एकमात्र आधुनिक विचारधारा है जो सहिष्णुता का समर्थन करती है। आधुनिक उदारवाद की विशेषता यह है कि इसमें केन्द्र बिन्दु व्यक्ति है। उदारवाद के लिए परिवार, समाज या समुदाय जैसी इकाइयों का स्वयं में कोई महत्त्व नहीं है। उनके लिए इन इकाइयों का महत्त्व तभी है, जब व्यक्ति इन्हें महत्त्व दे। उदाहरण के लिए, उदारवादी कहेंगे कि किसी से विवाह करने का निर्णय व्यक्ति को लेना चाहिए, परिवार, जाति या समुदाय को नहीं। उदारवादी व्यक्तिगत स्वतन्त्रता को समानता जैसे अन्य मूल्यों से अधिक वरीयता देते हैं। वे साधारणतया राजनीतिक सत्ता को भी संदेह की दृष्टि से देखते हैं। |
|
| 37. |
स्वतन्त्रता को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक विधियों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।या “स्वतन्त्रता का मूल्य निरन्तर सतर्कता है।” इस कथन की व्याख्या कीजिए। |
|
Answer» स्वतन्त्रता को सुनिश्चित करने की विधियाँ नागरिकों की स्वतन्त्रता की सुरक्षा के लिए निम्नलिखित विधियों को अपनाया गया है 1. विशेषाधिकार- विहीन समाज की स्थापना–स्वतन्त्रता की सुरक्षा उसी समय सम्भव है। जबकि समाज में कोई वर्ग अथवा समूह विशेषाधिकारों से युक्त नहीं होता है तथा सभी व्यक्ति एक-दूसरे के विचारों का आदर तथा सम्मान करते हैं। व्यक्तियों में ऊँच-नीच की भावना स्वतन्त्रता का हनन करती है। यदि समाज में कोई विशेषाधिकारयुक्त वर्ग होता है तो वह अन्य वर्गों के विकास में बाधक बन जाता है तथा दूसरे वर्ग अपनी सामाजिक व राजनीतिक स्वतन्त्रता का उपभोग नहीं कर सकते हैं। |
|