InterviewSolution
This section includes InterviewSolutions, each offering curated multiple-choice questions to sharpen your knowledge and support exam preparation. Choose a topic below to get started.
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लोकसभा और राज्यसभा के संयुक्त अधिवेशन की अध्यक्षता कौन करता है?(क) राष्ट्रपति(ख) प्रधानमंत्री(ग) उपराष्ट्रपति(घ) लोकसभा का अध्यक्ष |
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Answer» सही विकल्प है (घ) लोकसभा का अध्यक्ष। |
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नीचे संसद को ज्यादा कारगर बनाने के कुछ प्रस्ताव लिखे जा रहे हैं। इनमें से प्रत्येक के साथ अपनी सहमति या असहमति का उल्लेख करें। यह भी बताएँ कि इन सुझावों को मानने के क्या प्रभाव होंगे?(क) संसद को अपेक्षाकृत ज्यादा समय तक काम करना चाहिए।(ख) संसद के सदस्यों की सदन में मौजूदगी अनिवार्य कर दी जानी चाहिए।(ग) अध्यक्ष को यह अधिकार होना चाहिए कि सदन की कार्यवाही में बाधा पैदा करने पर सदस्य को दण्डित कर सकें। |
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Answer» (क) संसद को अपेक्षाकृत ज्यादा समय तक काम करना चाहिए-हम इससे पूर्ण सहमत हैं। जब भी सदन की बैठक 4 घण्टे से कम चले तो सदस्यों को उस दिन का भत्ता न दिया जाए। सांसद को बिना काम-काज के भत्ता दिया जाना उचित नहीं है, यह आम-आदमी की जेब पर डाका है। यदि संसद अपेक्षाकृत अधिक समय तक काम करेगी तो देश के विकास कार्य नियत समय पर पूर्ण हो सकेंगे। |
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लोकसभा का कार्यकाल कितना है? |
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Answer» सामान्यतया लोकसभा का कार्यकाले 5 वर्ष होता है। संकटकाल में इस अवधि को संसद एक वर्ष के लिए बढ़ा भी संकती है तथा प्रधानमंत्री के परामर्श पर राष्ट्रपति इसे निर्धारित अवधि से पूर्व भंग भी कर सकता है। |
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राज्यसभा में वर्तमान में कितने सदस्य हैं? |
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Answer» राज्यसभा में वर्तमान में 245 सदस्य हैं। |
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राज्यसभा का अध्यक्ष अथवा सभापति कौन होता है? |
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Answer» राज्यसभा का अध्यक्ष अथवा सभापति भारत का उपराष्ट्रपति होता है। उपराष्ट्रपति ही राज्यसभा की बैठकों की अध्यक्षता करती है। |
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राज्यसभा का कार्यकाल कितने वर्ष का होता है? |
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Answer» राज्यसभा एक स्थायी संगठन है। इसके सदस्यों की पदावधि 6 वर्ष है और इसके एक-तिहाई सदस्य प्रति दो वर्ष पश्चात् पदमुक्त होते रहते हैं। |
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जर्मनी के बुन्देसरैट में कितने संघीय राज्यों को प्रतिनिधित्व प्राप्त है?(क) 16(ख) 17(ग) 18(घ) 20 |
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Answer» सही विकल्प है (क) 16 |
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राज्यसभा में कितने सदस्य किसके द्वारा मनोनीत हो सकते हैं? |
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Answer» राज्यसभा में 12 सदस्य, राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किए जाते हैं। |
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संसद की विभिन्न समितियों का संक्षेप में वर्णन कीजिए। |
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Answer» संसद की समितियाँ भारतीय संसद की निम्नलिखित समितियाँ हैं – 1. कार्य परामर्शदात्री समिति – यह समिति संसद के समस्त कार्यों के संचालन में सहायता करती है। इस समिति में 15 सदस्य होते हैं तथा लोकसभा का अध्यक्ष ही इस समिति का अध्यक्ष होता है। सदन का कार्य आरम्भ होते ही इस समिति का गठन किया जाता है। यह समिति सदन के कार्यों को संचालित करके उसके लिए नियमों का निर्माण करती है। इस समितियों के अतिरिक्त लोकसभा के अध्यक्ष या राज्यसभा के सभापति द्वारा कृषि सम्बन्धी समिति (22 सदस्य), पर्यावरण और वन सम्बन्धी समिति (22 सदस्य), विज्ञान और प्रौद्योगिकी सम्बन्धी समिति (22 सदस्य), सामान्य प्रयोजन समिति, आवास समिति (12 सदस्य), पुस्तकालय समिति (6 सदस्य), सांसदों के वेतन-भत्ते सम्बन्धी संयुक्त समिति तथा अन्य संसदीय समितियों का गठन किया जा सकता है। |
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अविश्वास प्रस्ताव पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। |
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Answer» अविश्वास प्रस्ताव मंत्रिपरिषद् संसद के निम्न सदन (लोकसभा) के प्रति उत्तरदायी है। मन्त्रिपरिषद् लोकसभा के विश्वास पर ही अपने पद पर बनी रह सकती है। यदि लोकसभा यह अनुभव करती है कि सरकार अपने प्रशासनिक दायित्वों का संचालन समुचित रूप से नहीं कर रही है तो लोकसभा के सदस्य सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव रख सकते हैं। यह प्रस्ताव प्रायः विपक्ष के सदस्यों द्वारा रखा जाता है। अविश्वास का प्रस्ताव लोकसभा के अध्यक्ष (Speaker) की अनुमति के पश्चात् सदन के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है। इस पर सदन में सत्ता पक्ष तथा विपक्षी सदस्यों द्वारा विस्तृत चर्चा की जाती है। इस विस्तृत चर्चा के उपरान्त उस पर मतदान किया जाता है। यदि सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव सदन में बहुमत से पारित हो जाता है तो प्रधानमंत्री सहित सम्पूर्ण मन्त्रिपरिषद् को तुरन्त अपने पद से त्यागपत्र देना पड़ती है। |
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| 11. |
भारतीय संसद में कितनी स्थायी समितियाँ हैं?(क) 25(ख) 20(ग) 21(घ) 24 |
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Answer» सही विकल्प है (क) 25 |
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भारतीय संसद की विधि-निर्माण प्रक्रिया का उल्लेख कीजिए। |
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Answer» भारतीय संसद की विधि-निर्माण प्रक्रिया सरकार के तीन अंगों में संसद विधि-निर्माण सम्बन्धी दायित्वों को पूर्ण करती है। विधायी क्षेत्र में संसद को सर्वोच्च शक्ति प्रदान की गयी है। संसद द्वारा निर्मित कानून एक विशेष प्रक्रिया से गुजरने के पश्चात् विधि का रूप धारण करते हैं। इस सम्बन्ध में साधारण विधेयकों व वित्तीय विधेयकों के सम्बन्ध में पृथक्-पृथक् प्रक्रियाओं को अपनाया गया है। विधि-निर्माण सम्बन्धी सभी विधेयक संसद के सम्मुख प्रस्तुत किये जाते हैं। तत्पश्चात् प्रत्येक विधेयक निम्नलिखित तीन वाचनों से होकर गुजरता है – ⦁ प्रथम वाचन – प्रथम वाचन का आशय गजट में प्रकाशित विधेयक को संसद में प्रस्तुत करने से होता है। विधेयकों के प्रकार साधारण विधेयक (1) प्रथम वाचन – साधारण विधेयक को संसद में प्रस्तुत करने के लिए एक माह पूर्व सूचना देनी पड़ती है। मंत्री द्वारा विधेयक के प्रस्तुतीकरण करने की तिथि अध्यक्ष द्वारा निश्चित की जाती है। निश्चित तिथि पर अध्यक्ष मंत्री को बुलाता है तथा मंत्री विधेयक के सम्बन्ध में समस्त जानकारी सदन के समक्ष प्रस्तुत करता है। इस वाचन के अन्तर्गत विधेयक पर किसी प्रकार का कोई वाद-विवाद नहीं होता, अपितु केवल यह निर्णय किया जाता है कि विधेयक पर आगे की कार्यवाही की जाए या नहीं। सदन में स्वीकृत हो जाने पर विधेयक पर आगे की कार्यवाही की जाती है। विधेयक को प्रस्तुत करने व उसे विचारार्थ आगे प्रेषित करने की इस सम्पूर्ण प्रक्रिया को प्रथम वाचन कहा जाता है। (3) तृतीय वाचन – प्रवर समिति की रिपोर्ट पर विचार करने के पश्चात् विधेयक के तृतीय वाचन की तिथि निश्चित कर दी जाती है। यह वाचन विधेयक को अन्तिम चरण होता है। इस वाचने में प्रस्तावक द्वारा विधेयक को पारित करने का प्रस्ताव प्रस्तुत किया जाता है। इस वाचन में विधेयक के सामान्य सिद्धान्तों पर बहस कर उसकी भाषा को अधिक-से-अधिक स्पष्ट व सरल बनाने का प्रयत्न किया जाता है। वास्तव में, विधेयक पर तृतीय वाचन की अवस्था मात्र औपचारिकता पूर्ण करने की होती है। इस अवस्था में विधेयक को रद्द करने की सम्भावनाएँ बहुत कम होती हैं। इस प्रकार कोई भी अवित्तीय विधेयक अन्ततः कानून का रूप धारण कर लेता है। वित्त विधेयक वित्त विधेयकों के सम्बन्ध में कुछ आवश्यक तथ्य निम्नलिखित हैं – ⦁ धन विधेयक राष्ट्रपति की स्वीकृति के पश्चात् ही लोकसभा में प्रस्तुत किये जाते हैं। |
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संसदीय समिति की व्यवस्था से संसद के विधायी कामों के मूल्यांकन और देखरेख पर क्या प्रभाव पड़ता है? |
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Answer» कानून-निर्माण संसद का काम है और प्रत्येक सदन अपनी समितियों की सहायता से उसे निभाता है। प्रायः बिलों को विस्तृत विचार के लिए किसी समिति को सौंपा जाता है और सदन उस समिति की सिफारिशों के आधार पर उस पर विचार करके उसे पास या अस्वीकृत करता है। अधिकतर मामलों में सदन समिति की सिफारिशों के आधार पर ही उसका निर्णय करता है और इसी आधार पर लोगों का मत है कि इससे संसद की कानून बनाने की शक्ति कुप्रभावित हुई है। परन्तु वास्तविकता यह नहीं है। संसद के पास इतना समय नहीं होता कि वह प्रत्येक बिल पर, उसकी प्रत्येक धारा पर विचार कर सके और उस पर प्रत्येक दृष्टिकोण से विश्लेषण कर सके। अत: बिल की विस्तृत समीक्षा समिति अवस्था में ही हो जाती है जो सदन को उस पर विस्तार से विचार करने और निर्णय करने में सहायक होती है। यह आवश्यक नहीं है कि संसद प्रत्येक बिल पर समिति की रिपोर्ट को स्वीकार करे। सदन में समिति की रिपोर्ट पर विचार करते समय यदि सदन अनुभव करे कि बिल पर भली-भाँति विचार नहीं हुआ है या उस पर पक्षपातपूर्ण रिपोर्ट दी गई है तो वह उसे उसी समिति या किसी नई समिति को भेज सकता है, समिति की रिपोर्ट को स्वीकार न करके अपना स्वतन्त्र निर्णय भी ले सकता है। |
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राज्यसभा व लोकसभा किन क्षेत्रों में बराबर की शक्तियाँ रखती हैं? |
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Answer» राज्यसभा व लोकसभा के कार्यों की अगर हम तुलना करें तो स्पष्ट होता है कि कुछ क्षेत्रों में लोकसभा, राज्यसभा के मुकाबले अधिक शक्तिशाली है। कुछ क्षेत्रों में राज्यसभा की अपनी विशेष शक्तियाँ हैं परन्तु कुछ क्षेत्रों में लोकसभा व राज्यसभा की बराबर की शक्तियाँ हैं। ये क्षेत्र निम्नलिखित हैं। ⦁ विचार-विमर्श, विभिन्न विषयों पर चर्चा व जनमत-निर्माण में लोकसभा व राज्यसभा की बराबर की शक्तियाँ हैं। |
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लोकसभा में कितने सदस्य नामित (मनोनीत) किए जा सकते हैं? |
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Answer» लोकसभा में दो एंग्लो-इण्डियन सदस्य नामित किए जा सकते हैं। |
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भारतीय संसद में कितने सदन हैं?(क) दो(ख) तीन(ग) चार(घ) एक |
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Answer» सही विकल्प है (क) दो। |
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लोकसभा राज्यसभा से शक्तिशाली क्यों है? |
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Answer» लोकसभा निम्नलिखित कारणों से राज्यसभा से अधिक शक्तिशाली है – ⦁ लोकसभा में वित्त विधेयक पहले प्रस्तुत किए जा सकते हैं, जबकि राज्यसभा में ऐसा नहीं होता है। |
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दल-बदल क्या है? इसे रोकने के क्या उपाय किए गए हैं? |
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Answer» भारतीय राजनीति में सर्वाधिक प्रचलित राजनीतिक खेल का नाम है-दल-बदल। इसे पक्ष परिवर्तन, एक पार्टी छोड़कर दूसरी पार्टी में शामिल हो जाना, सदन में सरकारी दल छोड़कर विरोधी दल में मिल जाना, खेमा बदल लेना कुछ भी कह सकते हैं। दल-बदल रोकने के लिए सन् 1985 में संविधान का 52वाँ संशोधन किया गया। इसे दल-बदल निरोधक कानून’ कहते हैं। इसे बाद में 91वें संविधान संशोधन द्वारा पुनः संशोधित किया गया। |
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राज्यसभा किस प्रकार एक स्थायी सदन है? |
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Answer» राज्यसभा भारतीय संसद का उच्च सदन है। इसके सदस्य राज्यों की विधानसभाओं द्वारा चुने जाते हैं। यह स्थायी सदन है जिसका अस्तित्व निरन्तर बना रहता है। इसका स्थायी सदन होना निम्नलिखित तथ्यों द्वारा पुष्ट होता है – ⦁ राज्यसभा को राष्ट्रपति विघटित नहीं कर सकता। इसके सदस्य अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद सेवानिवृत्त होते हैं। |
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राज्यसभा के संगठन तथा शक्तियों की विवेचना कीजिए।याराज्यसभा के कार्यों एवं शक्तियों को स्पष्ट कीजिए।याराज्यसभा के संगठन तथा कार्यों का वर्णन कीजिए।याराज्यसभा के संगठन तथा कार्यों की समीक्षा कीजिए। सिद्ध कीजिए कि लोकसभा की तुलना में राज्यसभा एक कमजोर एवं शक्तिहीन सदन है? |
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Answer» राज्यसभा – संसद के तीन घटक होते हैं-(1) राष्ट्रपति, (2) लोकसभा तथा (3) राज्यसभा। संविधान के अनुच्छेद 79 के अनुसार, “संघ के लिए एक संसद होगी जो राष्ट्रपति और दोनों सदनों को मिलाकर बनेगी, जिनके नाम राज्यसभा और लोकसभा होंगे। इससे स्पष्ट है कि भारत में व्यवस्थापिका के दो सदन होते हैं। उच्च सदन को राज्यसभा और निम्न सदन को लोकसभा के नाम से पुकारा जाता है। लोकसभा समस्त भारत का प्रतिनिधित्व करती है और राज्यसभा राज्यों तथा संघीय क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करती है। दोनों सदनों को सम्मिलित रूप से संसद कहा जाता है। राज्यसभा के सम्बन्ध में विस्तृत वर्णन इस प्रकार है – राज्यसभा की संरचना – राज्यसभा एक स्थायी सदन है। इसका कभी विघटन नहीं होता। राज्यसभा में संघ के इकाई राज्यों के प्रतिनिधि होते हैं। संविधान के अनुच्छेद 80 में स्पष्ट लिखा है कि राज्यसभा में अधिक-से-अधिक 250 सदस्य होंगे जिनमें अधिक-से-अधिक 238 सदस्य राज्यों की ओर से निर्वाचित होंगे और 12 सदस्यों को राष्ट्रपति मनोनीत करेगा। राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत 12 सदस्य साहित्य, विज्ञान, कला, समाज-सेवा या सहकारिता के क्षेत्र में विशेष ज्ञान या अनुभव तथा ख्याति प्राप्त व्यक्ति होंगे। इस समय राज्यसभा में कुल सदस्य 245 हैं, जिनमें से 233 राज्यों तथा केन्द्र-शासित प्रदेशों का प्रतिनिधित्व करते हैं और 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किये गये हैं। राज्यसभा के कार्य एवं अधिकार राज्यसभा के अधिकारों को निम्नलिखित सन्दर्भो में स्पष्ट किया जा सकता है – निष्कर्ष – राज्यसभा की शक्तियों और कार्यों से यह स्पष्ट है कि लोकसभा की अपेक्षा राज्यसभा शक्तिहीन सदन सिद्ध होता है, परन्तु फिर भी इस सदन के पास इतनी शक्तियाँ हैं कि यह एक आदर्श सदन कहीं जा सकता है। इसकी अपनी पृथक् गरिमा है। लोकसभा के भंग होने की स्थिति में तो यह सदन महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है तथा कार्यपालिका की शक्तियों पर अंकुश लगाता है। इसे किसी भी प्रकार अनावश्यक सदन नहीं कहा जा सकता। राज्यसभा की उपयोगिता के विषय में श्री गोपाल स्वामी आयंगर ने कहा था, “संविधान-निर्माताओं का राज्यसभा की रचना का उद्देश्य यह था कि यह सदन महत्त्वपूर्ण विषयों पर वाद-विवाद करे और उन विधेयकों को पारित करने में देरी करे जो लोकसभा में शीघ्रता से पारित कर दिये जाते हैं।” |
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संसदीय समितियों की क्या उपयोगिता है? |
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Answer» वर्तमाने में प्रायः समस्त देशों में विधानमण्डल अपने कार्यों को अधिक कुशलता तथा शीघ्रता से करने के लिए अनेक समितियों का प्रयोग करते हैं। इन समितियों की निम्नलिखित उपयोगिता है – (1) वर्तमान में विधि-निर्माण का कार्य अत्यन्त जटिल एवं तकनीकी (Technical) हो गया है। विधानमण्डलों के सभी सदस्य इस कार्य में निपुण नहीं होते हैं। अतः विशेषज्ञों की समितियों द्वारा विधि-निर्माण कार्य अधिक सरलतापूर्वक किया जा सकता है। |
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राज्यसभा में अधिक-से-अधिक कितने सदस्य हो सकते हैं? |
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Answer» राज्यसभा में अधिक-से-अधिक 250 सदस्य हो सकते हैं। |
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भारतीय संसद की स्थिति और भूमिका का परीक्षण कीजिए। |
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Answer» भारतीय संसद की स्थिति और भूमिका भारतीय संसद ब्रिटिश संसद के समान सम्प्रभु नहीं है। नॉर्मन डी० पामर के अनुसार, “भारतीय संसद विस्तृत शक्तियों का प्रयोग करती है तथा महत्त्वपूर्ण कार्यों का सम्पादन करती है, तथापि इसके कार्यों पर अनेक प्रतिबन्ध हैं। संघीय प्रणाली तथा संविधान द्वारा उच्चतम न्यायालय को न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति प्रदान करने से इसकी शक्तियाँ सीमित हो गई हैं।” वास्तव में, लिखित संविधान, संविधान की सर्वोच्चता तथा न्यायिक पुनरावलोकन की प्रक्रिया ने संसद पर सीमाएँ अवश्य लगाई हैं, परन्तु संसद देश की सर्वोच्च प्रतिनिधि संस्था है, उसे संविधान में संशोधन करने का अधिकार है। अतः स्पष्ट है कि भारतीय संसद की स्थिति ‘संसदीय सम्प्रभुता’ तथा ‘न्यायिक सर्वोच्चता के बीच की है। भारत में संसद की प्रभावी भूमिका के सम्बन्ध में समय-समय पर सारगर्भित आलोचनाएँ की जाती रही हैं। इसका प्रमुख कारण यह है कि प्रधानमंत्री और मंत्रिमण्डल का संसद पर सदा दबाव बना रहा है। प्रधानमंत्री और मंत्रिमण्डल जो भी निर्णय लेते हैं, संसद उनका अनुमोदन कर देती है। डॉ० लक्ष्मीलाल सिंघवी के अनुसार, “यह सत्य है कि कानून बनाने की तथा कर व शुल्क लगाने की सर्वोपरि सत्ता संसद में निहित है, किन्तु वास्तविकता यह है कि अधिनियमों का बीजारोपण और अभ्युदय मंत्रालयों में होता है, संसद में केवल मंत्रोच्चारण के साथ उपनयन संस्कार होता है और उन्हें औपचारिक यज्ञोपवीत दे दिया जाता है। इस कथन से स्पष्ट होता है कि मंत्रिमण्डल के प्रभावशाली व्यक्तित्व तथा उसके दल के संसद में बहुमत होने से संसद के अधिकार प्रधानमंत्री और मंत्रिमण्डल ने ग्रहण कर लिए हैं। शक्तिशाली विपक्ष के अभाव में संसद; प्रधानमंत्री और मंत्रिमण्डल की इच्छानुसार ही कार्य करती है। पिछले कुछ वर्षों में लोकसभा के स्तर में जो अभूतपूर्व गिरावट देखने को मिली है, वह लोकतन्त्र के लिए चिन्ता का विषय है। सांसदों के आचरण को देखकर हीरेन मुकर्जी ने कहा है, भारतीय संसद स्वर्ण युग प्राप्त किए बिना ही पतन की ओर अग्रसर हो रही है।” भारतीय संसद के पराभव के लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायी माने जा सकते हैं – ⦁ संसद सदस्य पारस्परिक वाद-विवाद तथा आरोप-प्रत्यारोपों के कारण अपना बहुमूल्य समय नष्ट कर देते हैं, जिससे वे कानून सम्बन्धी मामलों पर गम्भीरता से विचार नहीं कर पाते। |
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क्या अनुशासनहीनता एवं अव्यवस्था के होते हुए भी भारतीय संसद को राष्ट्र की प्रतिनिधि सभा कहा जा सकता है? |
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Answer» संसद में अनुशासनहीनता एवं अव्यवस्था की घटनाओं के बाद भी भारतीय संसद राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था है, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता। ये घटनाएँ संसद की अस्थायी घटनाएँ हैं, स्थायी विशेषताएँ नहीं। भारत संसार का सबसे बड़ा लोकतन्त्रात्मक देश है और विगत 70 वर्षों से निरन्तर सफलता की ऊँचाइयों की ओर अग्रसर है। अब तक संसद के 14 आम चुनाव सम्पन्न हो चुके हैं और स्वतन्त्र व निष्पक्ष रूप से हुए हैं। इनके कारण संसद के सदस्य समाज के सभी क्षेत्रों, वर्गों, धर्मों और समुदायों से चुने जाते हैं और संसद में अपना स्थान ग्रहण करते हैं और विचाराधीन विषयों पर विचार प्रकट करते हैं। संसद ही जनता का प्रतिनिधित्व करती है और राष्ट्र की प्रतिनिधि सभा कहलाने का अधिकार रखती है। कभी-कभी ऐसा लगता है कि संसद के सदस्य अपने आचरण से राष्ट्र का समय नष्ट करते हैं, जनता के धन का अपव्यय करते हैं और राष्ट्र तथा विश्व के समक्ष गलत आदर्श प्रस्तुत करते हैं, परन्तु यह भी लोकतन्त्र की एक विशेषता है और इसके द्वारा विपक्ष बहुमत की तानाशाही स्थापित नहीं होने देता और संसद कार्यपालिका पर अपना नियन्त्रण बनाए रखती है। अनुशासन और अव्यवस्था की घटनाएँ हर रोज नहीं घटतीं और कभी-कभी की घटनाओं के आधार पर संसद के पूर्ण अस्तित्व को ही आलोचना का केन्द्र बनाना उचित नहीं है। संसद राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करती है, वह सरकार के तीनों अंगों में अधिक शक्तिशाली स्थिति अपनाए हुए है। यह राष्ट्रीय विकास में गति देने की भूमिका का भी निर्वाह करती है। |
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भारतीय संसद के सदनों के नाम लिखिए। |
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Answer» भारतीय संसद में दो सदन हैं – ⦁ उच्च सदन – राज्यसभा तथा |
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विधायिका का कार्य नहीं है –(क) कानून बनाना(ख) बजट पास करना(ग) कार्यपालिका पर नियन्त्रण रेखना(घ) बजट बनाना |
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Answer» सही विकल्प है (घ) बजट बनाना। |
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राज्यसभा में केवल एक सीट किस राज्य को दी गई है?(क) मध्य प्रदेश(ख) उत्तर प्रदेश(ग) सिक्किम(घ) झारखण्ड |
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Answer» सही विकल्प है (ग) सिक्किम। |
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आधुनिक राज्य में विधायिका के प्रमुख कार्य समझाइए। |
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Answer» वर्तमान कल्याणकारी राज्यों में सरकार के कार्य, जिम्मेदारियाँ व चुनौतियाँ अत्यधिक बढ़ गई हैं जिसे पूरा करने का वैधानिक आधार विधायिका प्रदान करती है। इसके कार्यों को हम निम्नलिखित रूपों में बाँट सकते हैं – ⦁ विचार-विमर्श, चर्चा व वाद-विवाद का मंच। |
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जर्मनी की द्वि-सदनात्मक विधायिका को क्या कहा जाता है? |
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Answer» जर्मनी में द्वि-सदनात्मक विधायिका है। दोनों सदनों को बुन्देस्टैग (फेडरल एसेम्बली) और बुन्देसरैट (फेडरल कौन्सिल) कहते हैं। |
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निम्नलिखित राज्यों में से किसमें द्वि-सदनात्मक व्यवस्था है?(क) मध्य प्रदेश(ख) आन्ध्र प्रदेश(ग) छत्तीसगढ़(घ) उत्तर प्रदेश |
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Answer» सही विकल्प है (घ) उत्तर प्रदेश। |
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भारत के किन राज्यों में द्वि-सदनात्मक विधायिका है? |
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Answer» बिहार, जम्मू-कश्मीर, कर्नाटक, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश एवं आन्ध्र प्रदेश में द्वि-सदनात्मक विधायिका है। |
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द्वि-सदनात्मक व्यवस्थापिका के गुण एवं दोषों (पक्ष एवं विपक्ष) का वर्णन कीजिए।याव्यवस्थापिका के द्वितीय सदन की उपयोगिता पर एक निबन्ध लिखिए। |
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Answer» द्वि-सदनात्मक व्यवस्थापिका के गुण/उपयोगिता (पक्ष में तर्क) द्वि-सदनात्मकं या द्वि-सदनीय व्यवस्थापिका के पक्ष में जो तर्क दिये जाते हैं, वे निम्नलिखित हैं – 1. उतावलेपन से उत्पन्न भूलों पर पुनर्विचार – द्वितीय सदन का प्रमुख कार्य प्रथम सदन के उतावलेपन से उत्पन्न भूलों पर विचार करना है। प्रथम सदन में नवयुवक तथा जोशीले सदस्यों की प्रधानता रहती है। वे आवेश में आकर ऐसे कानूनों का निर्माण कर डालते हैं जो जनहित में नहीं होते। द्वितीय सदन में, जिसमें अधिकांश अनुभवी तथा गम्भीर व्यक्ति होते हैं, प्रथम सदन द्वारा पारित कानूनों का पुनरावलोकन करके उत्पन्न भूलों को दूर कर देते हैं। ब्लंटशली ने ठीक ही लिखा है-“दो आँखों की अपेक्षा चार आँखें सदा अच्छा देखती हैं, विशेषतया जब किसी विषय पर विभिन्न दृष्टिकोणों पर विचार करना आवश्यक हो।” लॉस्की के अनुसार, “नियन्त्रण संशोधन तथा रुकावट डालने में जो काम द्वितीय सदन करता है, उससे उसकी आवश्यकता स्वयं सिद्ध है।” द्वि-सदनात्मक व्यवस्थापिका के दोष (विपक्ष में तर्क) द्वि-सदनात्मक व्यवस्थापिका के विपक्ष में निम्नलिखिते तर्क दिये जाते हैं – 1. रूढ़िवादिता – द्वितीय सदन रूढ़िवादी होता है, क्योंकि उसके अधिकांश सदस्य धनी एवं अनुदार प्रवृत्ति के होते हैं। इसलिए वे प्रगतिशील एवं सुधारात्मक विधेयकों के पारित होने में बाधक सिद्ध होते हैं। इस सम्बन्ध में लॉस्की ने लिखा है-“अत्यन्त उपयोगी सुधारों में द्वितीय सदन को विलम्ब लगाने की शक्ति देना सम्भवतः कालान्तर में विनाश को जन्म देना है और जन-क्रान्ति का मार्ग निर्मित करना है।” उपर्युक्त तर्को में सत्य का अंश है, फिर भी अधिकांश देशों में द्वि-सदनात्मक व्यवस्थापिका की स्थापना की गयी है। शायद इसका कारण यह है कि उच्च सदन के निर्माण से बहुत-सी समस्याओं का समाधान हो जाता है। इसमें सन्देह नहीं कि द्वितीय सदन पूर्ण जागरूकता के साथ प्रथम सदन द्वारा पारित किये गये विधेयकों पर पुनर्विचार करे तो लोकप्रिय सदन की जल्दबाजी और मनमानी पर उपयोगी एवं आवश्यक प्रतिबन्ध लग सकता है, इसके अतिरिक्त विभिन्न वर्गों को प्रतिनिधित्व दिये जाने पर कानून-निर्माण का कार्य अधिक पूर्णता के साथ किये जाने की आशा की जा सकती है। रैम्जे म्योर के अनुसार, द्वितीय सदन का महत्त्वपूर्ण उपयोग यह है कि उसमें राष्ट्रीय नीति के सामान्य प्रश्नों पर ठण्डे वातावरण में शान्ति के साथ विचार होता है जैसा कि निम्न सदन में असम्भव है।” क्रिन्तु यह आवश्यक है कि द्वितीय सदन की रचना में कुछ सुधार हो। जे०एस० मिल के शब्दों में, “यदि एक सदन जनता की सभा हो तो दूसरा सदन राजनीतिज्ञों की सभा हो।” |
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लोकसभा के सदस्यों के विशेषाधिकारों की संक्षेप में विवेचना कीजिए। |
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Answer» लोकसभा के सदस्यों को निम्नलिखित विशेषाधिकार प्राप्त हैं – ⦁ भाषण की स्वतन्त्रता – लोकसभा के प्रत्येक सदस्य को स्वतन्त्रतापूर्वक भाषण देने का अधिकार प्राप्त है। उसके भाषण के विरुद्ध न्यायालय में किसी भी प्रकारे का अभियोग नहीं लगाया जा सकता। |
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साधारण विधेयक तथा धन विधेयक के पारित होने की प्रक्रिया के प्रमुख अन्तर लिखिए। |
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Answer» जिन विधेयकों का सम्बन्ध धन से होता है, उन्हें धन विधेयक कहा जाता है तथा जिन विधेयकों का सम्बन्ध धन से नहीं होता है, उन्हें साधारण विधेयक कहा जाता है। धन विधेयक, साधारण विधेयकों से अनेक बातों में भिन्न है; जैसे – ⦁ धन विधेयकों का लोकसभा के अध्यक्ष द्वारा प्रमाणित होना आवश्यक है, जबकि साधारण विधेयकों के लिए यह आवश्यक नहीं है। |
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