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This section includes InterviewSolutions, each offering curated multiple-choice questions to sharpen your knowledge and support exam preparation. Choose a topic below to get started.

1.

नवयुवकों को किसकी तरह सहनशील होना चाहिए?

Answer»

नवयुवकों को पृथ्वी की तरह सहनशील होना चाहिए।

2.

जो अपने आपमें विश्वास नहीं करता, वह क्या है?

Answer»

जो अपने आप में विश्वास नहीं करता, वह नास्तिक है।

3.

स्वामी विवेकानंद का विश्वास किन पर है?

Answer»

स्वामी विवेकानंद का विश्वास नवीन पीढ़ी के नवयुवकों पर है।

4.

स्वामी विवेकानंद के अनुसार भारत के राष्ट्रीय आदर्श क्या हैं? 

Answer»

स्वामी विवेकानंद के अनुसार भारत के राष्ट्रीय आदर्श त्याग और सेवा है।

5.

वीर युवकों के लिए स्वामी विवेकानंद जी क्या कहते हैं?

Answer»

विवेकानंद युवाओं को कहते हैं- उठो, जागो, स्वयं जगकर औरों को जगाओं। मेरे तरुण मित्रों शक्तिशाली बनो, मेरी तुम्हें यही सलाह है। तुम अध्ययन से पहले मजबूत बनो। शारीरिक रूप से मजबूत बनों। एक विचार को लो। फिर उसी विचार के अनुसार अपने जीवन को बनाओं। उसी के बारे में सोचो। उसी का सपना देखों। यही सफलता का रास्ता है। मरते दम तक गरीबों और पददलितों के लिए कार्य करों। प्रतिज्ञा करों कि अपना सारा जीवन इन तीस करोड़ लोगों की भलाई के लिए लगा दोगे।

6.

किस शक्ति के सामने सब शक्तियाँ दब जाएँगी? 

Answer»

इच्छाशक्ति के सामने सब शक्तियाँ दब जाएँगी।

7.

‘यह याद रखो कि तुम स्वयं अपने भाग्य के निर्माता हो।

Answer»

प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य वैभव’ के ‘युवाओं से’ नामक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक स्वामी विवेकानंद हैं।
संदर्भ : प्रस्तुत वाक्य को स्वामी विवेकानंद जी नवयुवकों को मार्गदर्शन देते हुए अपने भाषण में कहते है।
स्पष्टीकरण : स्वामी विवेकानंद कहते है कि युवा दुर्बल नहीं हैं। वे सब ईश्वर की संतान हैं, उनकी आत्मा पवित्र और पूर्ण है। वे स्वयं अपने भाग्य के निर्माता हैं। उनका बल उन्ही के भीतर है। इन शब्दों द्वारा वे युवकों को राष्ट्र निर्माण की प्रेरणा दे रहे हैं।

8.

त्याग और सेवा के बारे में स्वामी विवेकानंद जी के क्या विचार हैं?

Answer»

स्वामी विवेकानंद के अनुसार “भारत के राष्ट्रीय आदर्श हैं- त्याग और सेवा। तुम काम में लग जाओ, फिर देखोगे इतनी शक्ति आयेगी कि तुम उसे सँभाल नहीं सकोगे। दूसरों के प्रति सोचने से व काम करने से भीतर की शांति जाग उठती है और धीरे-धीरे हृदय में सिंह का-सा बल आ जाता है। दुखियों का दर्द समझो और ईश्वर से सहायता की प्रार्थना करो। प्रतिज्ञा करो कि अपना सारा जीवन लोगों के उद्धार कार्य में लगा देंगे।”

9.

‘मैं तुम सबसे यही चाहता हूँ कि तुम आत्मप्रतिष्ठा, दलबंदी और ईर्ष्या को सदा के लिए छोड़ दो।’

Answer»

प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य वैभव’ के ‘युवाओं से’ नामक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक स्वामी विवेकानंद हैं।
संदर्भ : प्रस्तुत वाक्य में स्वामी विवेकानंद ने कहा है कि स्वार्थ भावना को त्यागकर उचित मार्ग पर चलना अनिवार्य है।
स्पष्टीकरण : स्वामीजी के अनुसार संगठन के लिए जो बातें चाहिए, आज उनका अभाव है। वास्तव में देशभक्तों की एकता के लिए आपसी ईर्ष्या, द्वेष, अहंकार – ये सारी बातें नहीं होनी चाहिए। इनसे एकता में बाधा पहुँचती है।

10.

सर्व धर्म सहिष्णुता के बारे में स्वामी विवेकानंद जी के विचार लिखिए।

Answer»

सर्व धर्म सहिष्णुता के बारे में स्वामीजी का विचार है- मैं सभी धर्मों को स्वीकार करता हूँ। और उन सबकी पूजा करता हूँ। मैं उनमें से प्रत्येक के साथ ईश्वर की उपासना करता हूँ। वे स्वयं चाहे किसी भी रूप में उपासना करते हो, मैं मुसलमानों की मस्जिद में जाऊँगा, मैं ईसाइयों के गिरिजा में क्रास के सामने घुटने टेककर प्रार्थना करूँगा, मैं बौद्धमंदिरों में जाकर बुद्ध और उनकी शिक्षा की शरण लूँगा। मैं जंगल में जाकर हिन्दुओं के साथ ध्यान करूँगा, जो हृदयस्थ ज्योतिस्वरूप परमात्मा को प्रत्यक्ष करने में लगे हुए हैं।

11.

स्वदेश-भक्ति के बारे में स्वामी विवेकानंद जी का आदर्श क्या है?

Answer»

स्वदेशभक्ति के बारे में स्वामीजी कहते हैं- बड़े काम करने के लिए तीन चीजों की आवश्यकता होती है- बुद्धि, विचारशक्ति और हृदय की महाशक्ति। अतः युवकों को चाहिए कि वे हृदयवान बने। यदि युवकों ने जान लिया है कि भारत के अपने गरीब, दीन-बन्धुओं की कई समस्याएँ हैं, तो समझ लो कि यही देशभक्ति की प्रथम सीढ़ी है। देशभक्ति का पहला पाठ है- स्वदेश-हितैषी होना। “उठो, जागो और तब-तक रुको नहीं, जब-तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाय।”

12.

निम्नलिखित वाक्य किसने किससे कहा?“मेरी आशा, मेरा विश्वास नवीन पीढ़ी के नवयुवकों पर है।”“तुम तो ईश्वर के संतान हो, अमर आनंद के भागी हो, पवित्र और पूर्ण आत्मा हो।’“प्रत्येक आत्मा ही अव्यक्त ब्रह्म है।” 

Answer»

विवेकानंद ने नवयुवकों से कहा।

विवेकानंद ने नवयुवकों से कहा।

विवेकानंद ने नवयुवकों से कहा।

13.

“शक्ति ही जीवन और कमज़ोरी ही मृत्यु है।” 

Answer»

प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य वैभव’ के ‘युवाओं से’ नामक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक स्वामी विवेकानंद हैं।
संदर्भ : विवेकानंद कहते है शक्ति जीवन का ही दूसरा नाम है। वे युवाओं को शक्तिवान होने का संदेश देते हैं।
स्पष्टीकरण : विवेकानंद कहते हैं कि शक्ति परम सुख है। शक्ति आपको गर्वित करती है। वह आपमें आत्मविश्वास, स्वाभिमान का संचार करती है। कमजोर होना, कायर होने का स्वभाव है। कायरता या कमजोरी कभी न हटने वाला बोझ और मानसिक यंत्रणा है। वे कहते हैं कमजोरी मृत्यु के समान है और शक्ति ही जीवन है।

14.

समानार्थक शब्द लिखिए:नवीन, पुरोहित, जंगल, पहाड़, ईश्वर, साहस, तरुण, अधिक। 

Answer»
  • नवीन – नया
  • पुरोहित – पुजारी
  • जंगल – वन
  • पहाड़ – पर्वत
  • ईश्वर – भगवान
  • साहस – हिम्मत, बहादुरी
  • तरुण – युवक
  • अधिक – ज्यादा
15.

विलोम शब्द लिखिए:आशा, साधारण, स्वदेश, स्वार्थी, कीर्ति, शिक्षित, पवित्र, जन्म, निर्धन, मजबूत, धर्म, नास्तिक।

Answer»
  • आशा × निराशा
  • साधारण × असाधारण
  • स्वदेश × विदेश
  • स्वार्थी × निस्वार्थी
  • कीर्ति × अपकीर्ति
  • शिक्षित × अशिक्षित
  • पवित्र × अपवित्र
  • जन्म × मरण (मृत्यु)
  • निर्धन × धनवान
  • मजबूत × कमजोर
  • धर्म × अधर्म
  • नास्तिक × आस्तिक