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| 1. | “अर्थशास्त्र वह विज्ञान है जो आवश्यकताविहीन अवस्था प्राप्त करने में मानव व्यवहार का एक साधन के रूप में अध्ययन करता है।” प्रो० जे०के० मेहता द्वारा प्रस्तुत अर्थशास्त्र की इस परिभाषा का आलोचनात्मक अध्ययन कीजिए।अथवा‘अर्थशास्त्र आवश्यकताविहीनता का शास्त्र है।’ आलोचनात्मक टिप्पणी कीजिए। | 
| Answer» प्रो० जे० के० मेहता द्वारा प्रतिपादित अर्थशास्त्र की परिभाषा परिभाषा की व्याख्या – उपर्युक्त परिभाषा मूलतः भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता के अनुरूप है.तया भारतीय धर्म, दर्शन एवं परम्परा से प्रेरित है। प्रो० मेहता के अनुसार, अर्थशास्त्र का प्रमुख उद्देश्य ‘वास्तविक सुख’ को अधिकतम करना है, जो आवश्यकताओं को न्यूनतम करके ही प्राप्त किया जा सकता है। वे सादा जीवन उच्च विचार के आदर्श में विश्वास रखते हुए आवश्यकताओं को न्यूनतम करके अन्ततः उन्हें समाप्त कर देने पर बल देते हैं। जे०के० मेहता के शब्दों में-“आवश्यकता से मुक्ति पाने की समस्या ही आर्थिक समस्या है।” प्रो० मेहता के अनुसार, सुख वह अनुभव है, जो मनुष्य को उस स्थिति में प्राप्त होता है जब उसे आवश्यकता का अनुभव ही न हो। प्रो० मेहता के अनुसार, इच्छारहित अवस्था में जबकि मानव का मस्तिष्क पूर्ण सन्तुलन में होता है, जो अनुभव प्राप्त होता है, उसे ‘सुख’ कहते हैं। अर्थशास्त्र का उद्देश्य इसी सुख को अधिकतम करना है। सुख की स्थिति प्राप्त करने के निम्नलिखित दो उपाय हैं परिभाषा की विशेषताएँ परिभाषा की आलोचना वास्तव में, जब मनुष्य आवश्यकताविहीनता की स्थिति में पहुँच जाता है तो उसके लिए अर्थशास्त्र का अध्ययन ही व्यर्थ हो जाता है। अत: इस परिभाषा का कोई व्यावहारिक महत्त्व नहीं है। | |