| Answer» अर्थशास्त्र की धन सम्बन्धी परिभाषाएँप्राचीन अर्थशास्त्रियों ने अर्थशास्त्र को ‘धन का विज्ञान माना है। प्रो० एडम स्मिथ, जिन्हें ‘अर्थशास्त्र को जनक’ कहा जाता है, ने अपनी पुस्तके An Enquiry into the Nature and Causes of wealth of Nations’ में अर्थशास्त्र को इन शब्दों में परिभाषित किया है-
 “अर्थशास्त्र राष्ट्रों के धन के स्वरूप तथा कारणों की खोज से सम्बन्धित है।” उपर्युक्त परिभाषा के समर्थन में स्मिथ के समर्थकों द्वारा दी गई कुछ प्रमुख परिभाषाएँ निम्नांकित हैं (i) जे०बी० से के अनुसार –“अर्थशास्त्र वह विज्ञान है जो धन की विवेचना करता है।”(ii) एफ०एल० वाकर के अनुसार –“अर्थशास्त्र ज्ञान की वह शाखा है जो धन से सम्बन्धित है।” धन सम्बन्धी परिभाषाओं की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
 ⦁    ‘धन’ ही अर्थशास्त्र की विषय-सामग्री का केन्द्र-बिन्दु है।
 ⦁    मनुष्य की अपेक्षा धन अधिक महत्त्वपूर्ण है क्योंकि मानवीय सुख का एकमात्र आधार धन ही है। धन के अभाव में मानवीय सुख की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
 ⦁    ‘धन’ के अन्तर्गत केवल भौतिक वस्तुओं को शामिल किया जाता है, सेवाओं को नहीं।
 ⦁    व्यक्तिगत समृद्धि द्वारा ही राष्ट्रीय धन एवं सम्पत्ति में वृद्धि सम्भव है।
 ⦁    मनुष्य केवल स्व:हित (Self-interest) की भावना से प्रेरित होकर आर्थिक क्रियाएँ करता है।
 अतः वह ‘आर्थिक मनुष्य’ (Economic Man) की भाँति है। उसका उद्देश्य मात्र धन कमाना होता है।
 धन सम्बन्धी परिभाषाओं की आलोचनाधन सम्बन्धी परिभाषाएँ दोषपूर्ण थीं। अतः इनकी निम्नलिखित आधारों पर तीव्र आलोचनाएँ की गईं–
 ⦁    मनुष्य की अपेक्षा धन पर अधिक बल-धन सम्बन्धी परिभाषाओं में धन पर जो कि साधन है, आवश्यकता से अधिक बल दिया गया है और मानव, जो कि साध्य है, की उपेक्षा की गई है। वास्तव में, धन तो केवल ‘साधन है जिसकी सहायता से मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है, ‘साध्य’ (end) नहीं।।⦁    अर्थशास्त्र का संकुचित क्षेत्र-धन सम्बन्धी परिभाषाओं ने अर्थशास्त्र के क्षेत्र को संकुचित कर दिया है क्योंकि प्राचीन अर्थशास्त्रियों ने धन के अन्तर्गत केवल भौतिक पदार्थों को ही शामिल किया था, सेवाओं (डॉक्टर, वकील, अध्यापक आदि की सेवाएँ) को नहीं। यह अनुचित था।
 ⦁    आर्थिक मनुष्य की कल्पना प्राचीन अर्थशास्त्रियों ने एक ऐसे आर्थिक मनुष्य (Economic Man) की कल्पना की थी, जो केवल धन की प्रेरणा और अपने स्वार्थ से प्रेरित होकर कार्य करता है तथा जिस पर देशप्रेम, धर्म, परोपकार आदि भावनाओं को कोई प्रभाव नहीं पड़ता। आर्थिक मनुष्य की यह धारणा पूर्णतः कल्पित थीं।
 ⦁    धन के न्यायपूर्ण वितरण की उपेक्षा-इन परिभाषाओं में केवल धनोत्पादन एवं धन संग्रह पर ही बल दिया गया है तथा धन के उचित वितरण तथा प्रयोग द्वारा मानव-कल्याण में होने वाली वृद्धि पर कोई ध्यान नहीं दिया गया।
 उपर्युक्त दोषों के कारण कार्लाइल (Carlyle), रस्किन (Ruskin), विलियम मॉरिस (William Morris) आदि विद्वानों ने अर्थशास्त्र को ‘कुबेर की विद्या’, ‘घृणित विज्ञान’, ‘रोटी और मक्खन का विज्ञान’ कहकर इसकी कड़ी आलोचना की। |