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 बालू के साँपों से अंकितगंगा की सतरंगी रेतीसुंदर लगती सरपत छाईतट पर तरबूजों की खेती;अँगुली की कंघी से बगुलेकलँगी संवारते हैं कोई,तिरते जल में सुरवाब, पुलिन परमगरौठी रहती सोई !भावार्थ : कवि कहते हैं कि गंगा के किनारे सतरंगी रेत पर बनी टेढ़ी-मेढ़ी लकीरें देखकर लगता है जैसे वे लकीरें साँपों के आनेजाने से बनी हों। नदी किनारे पर तरबूजों की खेती और रखवाली के लिए बनाई गई सरपत की झोपड़ियों बड़ी सुंदर लग रही हैं। तट पर पानी में खड़े बगुले सिर खुजला रहे हैं, जिसे देखकर लगता है कि वे अपनी अंगुली से अपनी कलँगी में कंघी कर रहे हैं। पानी में सुरखाब तैर रहे हैं और किनारे पर मुरगाबी (मगरौठी) नामक पक्षी सोई हुई है।\1. गंगा की रेती को सतरंगी क्यों कहा गया है ?2. बालू पर साँपों के चलने से बने निशान जैसे क्यों दिखाई दे रहे हैं ?3. पानी में खड़े बगुले क्या कर रहे हैं ?4. कौन-सा पक्षी तट पर सोया पड़ा है ?5. ‘बालू के साँपों से अंकित’ में कौन-सा अलंकार है ?

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1. गंगा की रेती सूर्यप्रकाश में चमकती है और प्रकाश विभाजन के कारण रंग-बिरंगी दिखाई देती है इसीलिए गंगा की रेती को सतरंगी कहा गया है।

2. बालू पर पानी की लहरों से टेढ़े-मेढ़े निशान बन जाते हैं, उन टेढ़ी-मेढ़ी रेखाओं को देख्नने से लगता है कि जैसे ये साँपों के चलने से बनी हों।

3. पानी में खड़े बगुले पैर से सिर खुजला रहे हैं, ऐसा लगता है जैसे बालों में कंधी कर रहे हों।

4. मगरौठी (गुरगाबी) पक्षी तट पर सोई पड़ी है।

5. ‘बालू के साँपों से अंकित’ में उपमा अलंकार है।



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