InterviewSolution
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एक उपवन को पाकर भगवान को धन्यवाद देते हुए उसका आनन्द नहीं लेना और बराबर इस चिन्ता में निमग्न रहना कि इससे भी बड़ा उपवन क्यों नहीं मिला, एक ऐसा दोष है, जिससे ईष्र्यालु व्यक्ति का चरित्र भी भयंकर हो उठता है। अपने अभाव पर दिन-रात सोचते-सोचते वह सृष्टि की प्रक्रिया को भूलकर विनाश में लग जाता है और अपनी उन्नति के लिए उद्यम करना छोड़कर वह दूसरों को हानि पहुँचाने को ही अपना श्रेष्ठ कर्त्तव्य समझने लगता है।(अ) प्रस्तुत गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।(ब) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।(स)⦁ प्रस्तुत गद्यांश में लेखक क्या कहना चाहता है ?⦁ ईष्र्यालु व्यक्ति का चरित्र क्यों भयंकर हो जाता है ?⦁ ईर्ष्यालु व्यक्ति किस बात को अपना श्रेष्ठ कर्त्तव्य समझता है ?[ ईर्ष्यालु = वह व्यक्ति जो दूसरे के सुख को देखकर दुःखी होता है। अभाव = कमी। उद्यम = कार्य, रोजगार।] |
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Answer» (अ) प्रस्तुत गद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी’ के ‘गद्य-खण्ड में संकलित एवं श्री रामधारी सिंह ‘दिनकर’ द्वारा लिखित ‘ईष्र्या, तू न गयी मेरे मन से’ नामक मनोवैज्ञानिक निबन्ध से उद्धृत है। अथवा अग्रवत् लिखिए पाठ का नाम-ईष्र्या, तू न गयी मेरे मन से। लेखक का नाम-श्री रामधारी सिंह ‘दिनकर’। (ब) प्रथम रेखांकित अंश की व्याख्या–प्रस्तुत अंश में लेखक ने ईष्र्या से विमुक्ति का यही साधन बताया है कि ईश्वर ने जो वस्तुएँ कम अथवा अधिक, छोटी अथवा बड़ी, मोहक अथवा कुरूप प्रदान की हैं उनके लिए हमें ईश्वर का धन्यवाद करना चाहिए और उन उपलब्ध वस्तुओं से जीवन को आनन्दमय और सुखमय बनाना चाहिए। इसके विपरीत यदि हम दिन-रात इसी चिन्ता में अपना समय व्यर्थ गॅवाते रहेंगे कि मेरे पड़ोसी के पास सुख-सुविधाओं के साधन मुझसे कहीं अधिक हैं, वे सब मेरे पास क्यों द्वितीय रेखांकित अंश की व्याख्या-लेखक कहता है कि उत्थान-पतन, जीवन-मृत्यु; ये सब ईश्वर अर्थात् उस अदृश्य शक्ति के अधीन हैं। हमें उसके लिए प्रयास करना चाहिए, लेकिन दिन-रात उसके बारे में चिन्तामग्न रहकर अपने जीवन को दु:खमय और कष्टों से युक्त नहीं बनाना चाहिए। सृष्टि की रचना-प्रक्रिया को भूलकर मनुष्य दिन-रात दूसरे की ईष्र्या में समय गॅवाता है और उद्यम करना छोड़ देता है। वह इसी मन्थन में लगा रहता है कि मैं अमुक व्यक्ति को किस प्रकार हानि पहुँचा सकता हूँ। इसी कार्य को वह अपने जीवन का श्रेष्ठ कर्तव्य समझने लगता है, जो कि एक संकीर्ण विचारधारा है। इससे ऊपर उठकर व्यक्ति को सबके हित की सोच रखनी चाहिए। (स) |
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