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मगर ऐसा न आज तक हुआ है और न होगा। दूसरों को गिराने की कोशिश तो अपने को बढ़ाने की कोशिश नहीं कही जा सकती। एक बात और है कि संसार में कोई भी मनुष्य निन्दा से नहीं गिरता। उसके पतन का कारण सद्गुणों का ह्रास होता है। इसी प्रकार कोई भी मनुष्य दूसरों की निन्दा करने से अपनी उन्नति नहीं कर सकता। उन्नति तो उसकी तभी होगी, जब वह अपने चरित्र को निर्मल बनाये तथा अपने गुणों का विकास करे।(अ) प्रस्तुत गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।(स)⦁    किसी व्यक्ति की उन्नति कैसे हो सकती है ?⦁    कौन-सी बात है जो आज तक न हुई है और न होगी ?⦁    प्रस्तुत गद्यांश में लेखक क्या कहना चाहता है ?

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(अ) प्रस्तुत गद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी’ के ‘गद्य-खण्ड में संकलित एवं श्री रामधारी सिंह ‘दिनकर’ द्वारा लिखित ‘ईष्र्या, तू न गयी मेरे मन से’ नामक मनोवैज्ञानिक निबन्ध से उद्धृत है। अथवा अग्रवत् लिखिए पाठ का नाम-ईष्र्या, तू न गयी मेरे मन से। लेखक का नाम-श्री रामधारी सिंह ‘दिनकर’।

(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या-लेखक का कथन है कि जो व्यक्ति ऊँचा उठना चाहता है, वह अपने ही अच्छे कार्यों से ऊँचा उठ सकता है, दूसरों की निन्दा आदि करके कभी कोई ऊपर नहीं उठ सकता। यदि किसी व्यक्ति का पतन होता है तो किसी की निन्दा से नहीं, अपितु उसके अच्छे गुणों के नष्ट हो जाने के कारण होता है। इसलिए उन्नति के लिए आवश्यक है कि मनुष्य निन्दा करना छोड़ दे और अपने चरित्र को स्वच्छ  बनाये तथा अपने अन्दर मानवीय गुणों का विकास करे।

(स)
⦁    प्रस्तुत गद्यांश में लेखक का कहना है कि व्यक्ति अपने अन्तर्गुणों का विकास करके ही उन्नति कर सकता है, निन्दा से दूसरों को गिराकर नहीं हो सकती। |
⦁    दूसरों को नीचा दिखाने के प्रयास द्वारा स्वयं को ऊँचा उठाने की प्रक्रिया न आज तक सफल हुई है। और न होगी।
⦁    किसी व्यक्ति की उन्नति तब ही हो सकती है जब वह अपने चरित्र को निर्मल बनाएगा तथा अपने अन्दर सद्गुणों का विकास करेगा।



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