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रामधारी सिंह ‘दिनकर’ के जीवन-परिचय एवं साहित्यिक योगदान पर प्रकाश डालिए।यारामधारी सिंह ‘दिनकर’ का जीवन-परिचय दीजिए एवं उनकी एक रचना का नामोल्लेख कीजिए।

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हिन्दी के प्रसिद्ध कवि व क्रान्ति-गीतों के अमर गायक श्री रामधारी सिंह हिन्दी-साहित्याकाश के दीप्तिमान् ‘दिनकर’ हैं। इन्होंने अपनी प्रतिभा की प्रखर किरणों से हिन्दी-साहित्य-गगन को आलोकित किया है। ये हिन्दी के महान् विचारक, निबन्धकार, आलोचक और भावुक कवि हैं। इनके द्वारा कई ऐसे ग्रन्थों की रचना की गयी है, जो हिन्दी-साहित्य की अमूल्य निधि हैं।

जीवन-परिचय–दिनकर जी का जन्म सन् 1908 ई० में बिहार के मुंगेर जिले के सिमरिया’ नामक ग्राम में एक साधारण कृषक परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री रवि सिंह तथा माता का नाम श्रीमती मनरूप देवी था। अल्पायु में ही इनके पिता का देहान्त हो गया था। इन्होंने पटना विश्वविद्यालय से बी० ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की और इच्छा होते हुए भी पारिवारिक कारणों से आगे न पढ़ सके और नौकरी में लग गये। कुछ दिनों तक इन्होंने माध्यमिक विद्यालय मोकामाघाट में प्रधानाचार्य के पद पर कार्य किया। फिर सन् 1934 ई० में बिहार के सरकारी विभाग में सब-रजिस्ट्रार की नौकरी की। इसके बाद  प्रचार विभाग में उपनिदेशक के पद पर स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद तक कार्य करते रहे। सन् 1950 ई० में इन्हें मुजफ्फरपुर के स्नातकोत्तर महाविद्यालय के हिन्दी विभाग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। सन् 1952 ई० में ये राज्यसभा के सदस्य मनोनीत हुए। इसके बाद इन्होंने भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति, भारत सरकार के गृहविभाग में हिन्दी सलाहकार और आकाशवाणी के निदेशक के रूप में कार्य किया। सन् 1962 ई० में भागलपुर विश्वविद्यालय ने इन्हें डी० लिट्० की मानद उपाधि प्रदान की। सन् 1972 ई० में इनकी काव्य-रचना ‘उर्वशी’ पर इन्हें भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। हिन्दी साहित्य-गगन का यह दिनकर 24 अप्रैल, सन् 1974 ई० को हमेशा के लिए अस्त हो गया।

रचनाएँ–साहित्य के क्षेत्र में ‘दिनकर’ जी का उदय कवि के रूप में हुआ था। बाद में गद्य के क्षेत्र में भी वे आगे आये। इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नवत् हैं|

⦁    दर्शन एवं संस्कृति-धर्म’, ‘भारतीय संस्कृति की एकता’, ‘संस्कृति के चार अध्याय’-ये दर्शन और संस्कृति पर आधारित ग्रन्थ हैं। संस्कृति के चार अध्याय ‘साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत रचना

⦁    निबन्ध-संग्रह–अर्द्धनारीश्वर’, ‘वट-पीपल’, ‘उजली आग’, ‘मिट्टी की ओर’, रेती के फूल आदि इनके निबन्ध-संग्रह हैं। इसके अतिरिक्त विविध पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित इनके अन्य निबन्ध भी हैं।

⦁    आलोचना-ग्रेन्थ-शुद्ध कविता की खोज’, इसमें कविता के प्रति शुद्ध और व्यापक दृष्टिकोण व्यक्त हुआ है।

⦁    यात्रा-साहित्य-‘देश-विदेश’।

⦁    बाल-साहित्य-‘मिर्च का मजा’, ‘सूरज का ब्याह’ आदि।

⦁    काव्य-रेणुका’, ‘हुंकार’, ‘रसवन्ती’, ‘कुरुक्षेत्र’, “सामधेनी’, ‘प्रणभंग’ (प्रथम काव्यरचना), ‘उर्वशी’ (महाकाव्य); ‘रश्मिरथी’ और ‘परशुराम की प्रतीक्षा’ (खण्डकाव्य)-ये दिनकर जी के राष्ट्रप्रेम और क्रान्ति की ओजस्वी भावना से पूर्ण काव्य-ग्रन्थ हैं।

⦁    शुद्ध कविता की खोज-दिनकर जी का एक आलोचनात्मक ग्रन्थ है, जिसमें इन्होंने काव्य के सम्बन्ध में अपना व्यापक दृष्टिकोण व्यक्त किया है।

साहित्य में स्थान-क्रान्ति का बिगुल बजाने वाले दिनकर जी कवि ही  नहीं अपितु एक सफल गद्यकार भी थे। इनकी कृतियों में इनका चिन्तक एवं मनीषी रूप प्रतिबिम्बित होता है। राष्ट्रीय भावनाओं से संकलित इनकी कृतियाँ हिन्दी-साहित्य की अमूल्य निधि हैं, जो इन्हें हिन्दी साहित्याकाश का दिनकर सिद्ध करती हैं।



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