InterviewSolution
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गजराज के किसान. |
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Answer» गजराज के किसान [प्रस्तावना – खेतीप्रधान देश – राज्य – वातावरण की अनिश्चितता -खेती की उपयोगिता -किसान का कार्यभार -किसान की चिंता] किसान श्रम, सेवा और त्याग की साक्षात् मूर्ति है। फटे-पुराने कपड़े, दुबला-पतला शरीर और नंगे पैर उसके दीन-हीन जीवन की कहानी सुनाते हैं। वह हमारा अन्नदाता कहा जाता है, फिर भी उसकी झोपड़ी में अकसर दरिद्रता का ही साम्राज्य रहता है! किसान बड़े सबेरे हल-बैल लेकर अपने खेत में चला जाता है और दिनभर वहाँ खेती के काम में जुटा रहता है। दोपहर तक लगातार वह परिश्रम करता है। भोजन और थोड़ा आराम करके वह काम में लगता है और शाम तक सख्त मेहनत करता है। वैशाख-जेठ की कड़ी धूप पड़ रही हो, तब भी किसान अपने प्यारे बगीचे (खेत) को अपने खून से (पसीने से) सींचता रहता है। भयंकर शीत में या दिल दहला देनेवाली बिजली की कड़कड़ाहट और वर्षा की झड़ियों में भी वह अपने काम में लगा रहता है। इस कठोर श्रम के बाद भी जब भाग्यदेवता उस पर प्रसन्न नहीं होते तो उसे मन मसोसकर रह जाना पड़ता है। भारतीय किसान का रहन-सहन बड़ा सीधा-सादा और सरल होता है। एक छोटी-सी झोपड़ी में या मिट्टी से बने कच्चे मकान में वह अपने परिवार के साथ रहता है। उसे जीवनोपयोगी वस्तुएं भी पर्याप्त मात्रा में नहीं प्राप्त होती. फिर भी वह संतोष से अपना जीवन बिताता है। उसके जीवन में आए दिन बदलते हुए फैशन का नाम तक नहीं होता। वह तो प्रकृति के पालने में ही पलता है। साहस और आत्मसम्मान की उसमें कमी नहीं। परिश्रम और सेवा का तो वह अवतार ही है। वह दानधर्म करने में कोई कसर उठा नहीं रखता। वह दिल खोलकर आतिथ्य करता है। हमारे अधिकांश किसान अशिक्षित और अंधविश्वासी हैं। भूत-प्रेत और जादू-टोने पर उसका अटूट विश्वास रहता है। मृत्युभोज, विवाह आदि में अपने खून की कमाई को पानी की तरह बहा देने में वह अपना गौरव समझता है, लकीर का फकीर जो ठहरा । इस तरह बेशुमार खर्च करने के कारण वह प्रायः साहूकारों एवं जमींदारों के चंगुल में फैसा रहता है। ललितकलाओं और उद्योगों में रुचि न होने से वर्ष में चार मास तो वह हाथ पर हाथ धरे बैठा रहता है। ताड़ी, भांग, तंबाकू और शराब जैसी नशीली चीजों का सेवन करके कभी-कभी वह अपने सोने के संसार में आग लगा देता है। देश को आजादी मिलने के बाद हमारे किसानों की दशा में काफी सुधार हुआ है। आज वे भले ही गरीब हों, पर लाचार नहीं हैं। अब उन्हें खेती के नए तरीके सिखाए जा रहे हैं। सरकार भी उनको उत्तम बीज, रासायनिक खाद और मशीन खरीदने के लिए भरपूर सहायता दे रही है। उन्हें सेठ-साहूकारों और जमींदारों के पंजे से छुड़ाने की भी भरसक कोशिश हो रही है। ग्रामपंचायतों की स्थापना उनके जीवन को बड़ी तेजी से बदल रही है। सचमुच, कृषिप्रधान भारत में किसान का बड़ा महत्त्व है। जिस दिन किसान सुख से झूमेगा, उस दिन भारत का भाग्य मुस्कराएगा। जय किसान! |
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