InterviewSolution
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ईष्र्या से बचने का उपाय मानसिक अनुशासन है। जो व्यक्ति ईर्ष्यालु स्वभाव का है, उसे फालतू बातों के बारे में सोचने की आदत छोड़ देनी चाहिए। उसे यह भी पता लगाना चाहिए कि जिस अभाव के कारण वह ईष्र्यालु बन गया है, उसकी पूर्ति का रचनात्मक तरीका क्या है। जिस दिन उसके भीतर यह जिज्ञासा आएगी, उसी दिन से वह ईष्र्या करना कम कर देगा। .(अ) प्रस्तुत गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।(स)⦁ ईर्ष्या से बचने के लिए क्या उपाय करना चाहिए ?⦁ ईष्र्यालु व्यक्ति कब से ईर्ष्या करना कम कर सकता है ?⦁ प्रस्तुत गद्यांश में लेखक क्या कहना चाहता है ?[ मानसिक अनुशासन = मन पर नियन्त्रण। जिज्ञासा = जानने की इच्छा।] |
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Answer» (अ) प्रस्तुत गद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी’ के ‘गद्य-खण्ड में संकलित एवं श्री रामधारी सिंह ‘दिनकर’ द्वारा लिखित ‘ईष्र्या, तू न गयी मेरे मन से’ नामक मनोवैज्ञानिक निबन्ध से उद्धृत है। अथवा अग्रवत् लिखिए पाठ का नाम-ईष्र्या, तू न गयी मेरे मन से। लेखक का नाम-श्री रामधारी सिंह ‘दिनकर’। (ब) रेखांकित अंश की व्याख्या-लेखक कहता है कि ईष्र्या से बचने का एकमात्र उपाय अपने मन पर नियन्त्रण करना है। मन का स्वभाव चंचल होता है। इसको वश में रखकर ही ईर्ष्या से बचा जा सकता है। जो चीजें हमारे पास नहीं हैं, उनके बारे में सोचना व्यर्थ है। जिसके मन में ईष्र्या जन्म ले लेती है, उसे यह जानना चाहिए कि किस अभाव के कारण उसके मन में ईष्र्या उत्पन्न हुई है। उसके बाद उसे उन अभावों को दूर करने का सकारात्मक प्रयत्न करना चाहिए। उसे ऐसे उपायों का पता लगाना चाहिए, जिससे उन अभावों की पूर्ति हो सके। अपने अभावों को दूर करने के लिए कोई रचनात्मक उपाय करना चाहिए। (स) |
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