InterviewSolution
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कर्तव्यनिष्ठ सिपाही की आत्मकथा. |
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Answer» कर्तव्यनिष्ठ सिपाही की आत्मकथा [प्रस्तावना – जन्म – बचपन – शिक्षा – नौकरी-प्राप्ति धर्म-धन-घूस न लेना-ईमानदारी का फल-सुख] मुझे गर्व है मेरे जीवन पर। मेरा जन्म सफल हो चुका है। मेरी आत्मकथा रंगीन नहीं, रोमांचक है, साहस से भरी है। मैं एक भूतपूर्व सिपाही! मैंने कई लड़ाइयों में हिस्सा लिया है। मेरे लिए मेरा देश ही ईश्वर है। मेरा जन्म कांगड़ी के पहाड़ी प्रदेश में हुआ था। हमारे इलाके में खेतीबाड़ी के लायक जमीन बहुत कम है, इसलिए बहुत-से लोग सेना में भर्ती हो जाते हैं। इसीलिए हमें बचपन से ही व्यायाम की तालीम विशेष रूप से दी जाती थी। मेरे पिताजी भी एक सिपाही थे और वर्षों तक सेना में रहकर उन्होंने भारतमाता की सेवा की थी। मेरे मन में भी उनकी तरह एक सैनिक बनने की इच्छा थी। युवा होते-होते मैंने घुडसवारी, तैरना, पहाड़ पर चढ़ना आदि सीख लिया था। आखिर एक दिन मैं देहरादून के सैनिक स्कूल में भर्ती हो गया। थोड़े दिनों में ही मैंने काफी अच्छी सैनिक-शिक्षा प्राप्त कर ली। राइफल, मशीनगन, तोप और टैंक आदि चलाने की मैंने पूरी तालीम ली। मोटरड्राइविंग में भी मैंने कई प्रमाणपत्र प्राप्त किए। युद्ध-स्थल की कार्यवाही, फायरिंग और गोलंदाजी का काफी अनभव प्राप्त किया। आज़ादी के बाद मुझे सबसे पहले हैदराबाद की पुलिस कार्यवाही में निजाम की सेना का सामना करना पड़ा। इसके बाद कुछ वर्ष शांति से गुजरे। फिर चीन ने एकाएक हमारी उत्तरी सीमा पर हमला कर दिया। उसका मुकाबला करने के लिए हमारे डिवीजन को वहाँ भेजा गया। बर्फीले प्रदेशों में हमने चौकियां बना ली और पड़ाव डाले। हमें आधुनिक शस्त्रास्त्रों से सज्ज हजारों चीनी सैनिकों का सामना करना था। एक बार हम कुछ सैनिक पहरा दे रहे थे, इतने में अचानक दुश्मन देश के सैनिक आ धमके। हमें प्यार से समझाकर सोने के सिक्कों से भरी थैली देना चाह रहे थे। मैंने उस दिन अपने प्राण हथेली पर रखकर उन सबका काम तमाम कर दिया। उनकी रिश्वत को ठोकर मार उनके एक सैनिक को जख्मी कर सारा धन लेकर वापिस उनकी सीमा में फेंक दिया। युद्धविराम पश्चात् अपने घर वापस लौटा। माँ खुशी से पागल हो गई। पत्नी और मुन्ना बहुत खुश हुए। गाँव के लोगों ने बड़े चाव से अनुभव सुने। मुझे अपनी इस वीरता के बदले भारत सरकार ने ‘वीरचक्र’ से सम्मानीत किया। इसके बाद सन् 1971 में पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध में मुझे भेजा गया। उस युद्ध में मैंने बहुत वीरता दिखाई, पर मैं बुरी तरह घायल हो गया। मुझे महीनों अस्पताल में रहना पड़ा। अब मैंने अवकाश पा लिया है। मैं अपने गांव में रहकर लोगों की छोटी-मोटी सेवा करता हूँ। आज भी देश के लिए प्राण न्यौछावर करने की तमन्ना रखता हूं। यह थी मेरी कहानी। अच्छा, तो अब मैं चलता हूँ। जय हिंद! जय भारत! |
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