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मेरा प्रिय हिन्दी लेखक.

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[परिचय – साहित्य का रूप – कहानियाँ और उपन्यास – विशेषताएं – अन्य बातें – प्रिय होने का कारण]

हिन्दी में अनेक महान लेखक हैं। सबकी अपनी अपनी विशेषताएं हैं। उन्होंने उत्तम कोटि के साहित्य का निर्माण कर सारे संसार में नाम कमाया है, किंतु इन सबमें मुझे सबसे अधिक प्रिय हैं हिन्दी कथा-साहित्य के अमर सम्राट मुंशी प्रेमचंदजी।

प्रेमचंदजी लोकजीवन के कथाकार हैं। किसानों, हरिजनों और अन्य दलितों के जीवन पर उन्होंने अपनी कलम चलाई। किसानों के दुःख, उनके जीवन-संघर्ष, उन पर जमीनदारों द्वारा होनेवाले जुल्म आदि को उन्होंने स्वाभाविक ढंग से पढ़े-लिखे समाज के सामने रखा। इसके साथ ही उन्होंने भारतीय किसानों के अंधविश्वास, अशिक्षा, करुणा, प्रेम और सहानुभूति के भी वास्तविक चित्र प्रस्तुत किए। इस प्रकार प्रेमचंदजी का साहित्य भारत के ग्रामीण जीवन का दर्पण है।

प्रेमचंदजी की कहानियाँ बड़ी सरल, सरस और मार्मिक हैं। ‘कफन’, ‘बोध’, ‘ईदगाह’, ‘सुजान भगत’, ‘नमक का दारोगा’, ‘शतरंज के खिलाड़ी’, ‘बड़े घर की बेटी’, ‘दूध का दाम’, ‘पूस की रात’ आदि अनेक कहानियों में प्रेमचंदजी की स्वाभाविक और रोचक शैली के दर्शन होते हैं। उनके उपन्यास भी बेजोड़ हैं। ‘गोदान’ तो किसानों के जीवन का महाकाव्य ही है। ‘गबन’ में मध्यम वर्ग के समाज का मार्मिक चित्र अंकित हुआ है।

‘रंगभूमि’, ‘सेवासदन’, ‘निर्मला’ आदि उपन्यासों ने प्रेमचंदजी और उनकी कला को अमर बना दिया है। सचमुच, प्रेमचंदजी के साहित्य को पढ़ने से सदगुणों और अच्छे संस्कारों का विकास होता है। प्रेमचंदजी का चरित्र-चित्रण अनूठा है। कथोपकथन भी बहुत स्वाभाविक और सुंदर हैं। चलती-फिरती मुहावरेदार भाषा उनकी सबसे बड़ी विशेषता है। गांधीजी के विचारों का प्रेमचंदजी पर बड़ा भारी असर पड़ा है।

सत्याग्रह और असहयोग आंदोलन ने उनकी रचनाओं को काफी प्रभावित किया है। प्रेमचंदजी के साहित्य में राष्ट्रीय जागरण का महान संदेश है, हमारे सामाजिक जीवन के आदर्शों का निरूपण है। देशप्रेम के आदर्शों की झलक है। गुलामी का विरोध और राष्ट्र को उन्नत बनाने की प्रेरणा है। उनकी कलम जाति-पाति या ऊंच-नीच के भेदभाव तथा प्रांतीयता आदि सामाजिक बुराइयों को दूर करने की सदा कोशिश करती रही।

साहित्य-सृजन द्वारा वे हिन्दू-मुस्लिम की एकता के लिए हमेशा प्रयत्न करते रहे। इस प्रकार साहित्यकार के साथ ही साथ वे बहुत बड़े समाजसुधारक भी थे। स्वतंत्रता-आंदोलन के दिनों में उनकी कलम ने तलवार का काम किया। लोकजीवन के ऐसे महान कथाकार और सच्चे साहित्यकार प्रेमचंदजी यदि मेरे प्रिय लेखक हों तो इसमें आश्चर्य ही क्या!



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