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नीलाम्बर परिधान हरित पट पर सुंदर है,सूर्य-चंद्र युग मुकुट मेखला रत्नाकर हैं।नदियाँ प्रेम-प्रवाह, फूल तारे मंडल हैं,बंदीजन खग-वृंद, शेषफल सिंहासन हैकरते अभिषेक पयोद हैं, बलिहारी इस देश कीहे मातृभूमि ! तू सत्य ही सगुण मूर्ति सर्वेश की।जिसके रज में लोट-लोटकर बड़े हुए हैं।घुटनों के बल सरक-सरक कर खड़े हुए है,परम हंस सम बाल्यकाल में सब सुख पाये,जिसके कारण ‘धूल भरे हीरे’ कहलाए।हम खेल-कूदे हर्षयुत, जिसकी प्यारी गोद मेंहे मातृभूमि ! तुझको निरख, मग्न क्यों न हो मोद मोद में !निर्मल तेरा नीर अमृत के सम उत्तम है,शीतल मंद सुगंध पवन हर लेता श्रम है,षट्ऋतुओं का विविध दृश्य युत अद्भुत क्रम है,शुचि सुधा सींचता रात में, तुम पर चंद्रकाश हैहे मातृभूमि ! दिन में तरणि करता तम का नाश है।उपर्युक्त काव्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए1. काव्यांश में ‘हरित पट’ किसे कहा गया है ?2. ‘बलिहारी इस देश की’ – कवि ऐसा क्यों कहता है ?3. ‘बलिहारी इस देश की’ – कवि ऐसा क्यों कहता है ?4. कवि ने निर्मल जल को किसके सदृश बताया है ?5. ‘हे मातृभूमि ! तू सत्य ही सगुण मूर्ति सर्वेश की’ में कौन-सा अलंकार है ?

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1. काव्यांश में हरित पट हरी-भरी फसलोंवाली धरती को कहा गया है।

2. कवि अपनी सुंदर मातृभूमि से प्यार करता है, जो साक्षात् ईश्वर का रूप है। इसलिए कवि कहता है कि बलिहारी इस देश की।

3. कवि ने मातृभूमि का सिंहासन शेषनाग के फन को बताया है।

4. कवि ने निर्मल जल को अमृत सदृश बताया है।

5. ‘हे मातृभूमि ! तू सत्य ही सगुण मूर्ति सर्वेश की’ में ‘स’ वर्ण की आवृत्ति होने से अनुप्रास अलंकार है।



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