1.

निम्नांकित गद्यांशों में रेखांकित अंशों की सन्दर्भ सहित व्याख्या और तथ्यपरक प्रश्नों के उत्तर दीजिये –साँप को चक्षुःश्रवा कहते हैं। मैं स्वयं चक्षुःश्रवा हो रहा था। अन्य इन्द्रियों ने मानो सहानुभूति से अपनी शक्ति आँखों को दे दी हो। साँप के फन की ओर मेरी आँखें लगी हुई थीं कि वह कब किस ओर को आक्रमण करता है, साँप ने मोहनीसी डाल दी थी । शायद वह मेरे आक्रमण की प्रतीक्षा में था, पर जिस विचार और आशा को लेकर मैंने कुएँ में घुसने की ठानी थी, वह तो आकाश-कुसुम था । मनुष्य का अनुमान और भावी योजनाएँ कभी-कभी कितनी मिथ्या और उल्टी निकलती हैं। मुझे साँप का साक्षात् होते ही अपनी योजना और आशा की असम्भवता प्रतीत हो गयी। डण्डा चलाने के लिए स्थान ही न था। लाठी या डण्डा चलाने के लिए काफी स्थान चाहिए, जिसमें वे घुमाये जा सकें। साँप को डण्डे से दबाया जा सकता था, पर ऐसा करना मानो तोप के मुहरे पर खड़ा होना था।(1) उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए। |(2) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।(3) चक्षुःश्रवा के नाम से कौन-सा जीव जाना जाता है?

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1.सन्दर्भप्रस्तुत गद्यावतरण पं० श्रीराम शर्मा द्वारा लिखित स्मृति नामक संस्मरणात्मक निबन्ध से अवतरित है। प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक ने कुएँ से पत्र निकालने की योजना का वर्णन किया है।

2.रेखांकित अंशों की व्याख्यालेखक का कहना है कि “साँप एक ऐसा जीव है जिसे चक्षुःश्रवा के नाम से जाना जाता है। वहाँ मैं स्वयं चक्षुःश्रवा हो रहा था। मुझे कुएँ में ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे अन्य इन्द्रियों ने अपनी सम्पूर्ण शक्ति नेत्रों को दे दी है। मेरी आँखें साँप के फन पर थीं कि साँप किस तरफ से आक्रमण कर सकता है। इसलिए मैं बिल्कुल चौकन्ना था। उधुर साँप भी मेरे आक्रमण की प्रतीक्षा में था। मैंने जिस संकल्प के साथ कुएँ में प्रवेश किया था, लगता था संकल्प अधूरा ही रह जायेगा। साँप से सामना होते ही मेरी योजना एवं आशा असम्भव-सी प्रतीत होने लगी। लाठी-डण्डा चलाने के लिए पर्याप्त स्थान चाहिए। कुएँ में डण्डा चलाने के लिए स्थान बहुत कम था, वहाँ केवल साँप को डण्डे से दबाया जा सकता था, लेकिन ऐसा करना तोप के आगे खड़ा होना था।”

3.चक्षुःश्रवा के नाम से साँप को जाना जाता है। माना जाता है कि सर्प कर्णविहीन होने के कारण आँख से सुनता भी है।



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