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Answer» “बरसते बादल” नामक कविता के कवि हैं श्री सुमित्रानंदन पंत । प्रस्तुत इस कविता पाठ में आप बच्चों में प्रकृति के प्रति प्रेम उत्पन्न कराते हैं । इस कविता में प्रकृति का रमणीय तथा सुंदर चित्रण है।
वर्षा ऋतु हमेशा से सबकी प्रिय ऋतु रही है । वर्षा के समय प्रकृति की सुंदरता देखने लायक होती है। पेड़ – पौधे, पशु – पक्षी, मनुष्य और यहाँ तक कि धरती भी खुशी से झूम उठती है ।
सावन (श्रावण) के मेघ आसमान में झम – झम – झम बरसते हैं । बूंदें छम – छम पेडों पर गिरती हैं। चम – चम बिजली चमक रही है । जिसके कारण अंधेरा होने पर भी उजाला है ।
दादुर टर – टर करते रहते हैं । झिल्ली झन – झन बजती है मोर म्यव – म्यव नाच दिखाते हैं । चातक के गण “पीउ” “पीउ” कहता मेघों की ओर देख रहे हैं । आर्द सुख से क्रंदन करते सोनबालक उड़ते हैं । मेघ गगन में गर्जन करते घुमड – घुमड़ कर गिर रहे हैं ।
वर्षा की बूंदों से रिमझिम – रिमझिम का स्वर निकल रहा है । उन्हें छूने पर किसी भेद के बिना सबके रोम सिहर उठते हैं । वर्षा की धाराओं पर धाराएँ धरती पर झरती हैं । इस कारण मिट्टी के कण – कण से तृण – तृण (कोमल अंकुर) फूट रहे हैं ।
कवि कहते हैं कि वर्षा की धाराओं को पकडने से उसका मन झूलता है । वह सबको संबोधित करते हुए कहते हैं कि उसे घेर ले और सावन के गीत गालें । इंद्रधनुष के झूले में सब मिलकर झूलें । अंत में कवि यह सावन जीवन में फिर – फिर आकर मनभावन करने के लिए कहते हैं ।
इसलिए इस कविता के सारांश के आधार पर हम कह सकते हैं कि पंतजी प्रकृति सौंदर्य चित्रण में बेजोड कवि हैं।
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