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 रोमांचित सी लगती वसुधाआई जौ गेहूँ में बाली,अरहर सनई की सोने कीकिंकिणियाँ हैं शोभाशाली !उड़ती भीनी तैलाक्त गंधफूली सरसों पीली पीली,लो, हरित धरा से झाँक रहीनीलम की कलि, तीसी नीली !भावार्थ : कवि कहते हैं कि जौ और गेहूँ में बालियाँ आ जाने से धरती खुशी और रोमांच से भर गई है। अरहर और सनई में फलियाँ लग गई हैं, वे पक कर सुनहली हो गई हैं, हिलने पर उनमें से मधुर ध्वनि निकलती है। ऐसा लगता है कि धरती की करधनी में लगे घुघरूँ हों, जो बजकर रोमांच को बढ़ा रहे हैं। चारों ओर सरसों के फूल हैं, जो समूचे वातावरण में अपनी तैलीय गंध बिखेर रहे हैं। इसी समय हरी-भरी धरती से अलसी के नीले फूल नीलम पत्थर के नगीने की तरह दिखाई दे रहे हैं।1. वसुधा रोमांचित सी क्यों लगती है ?2. अरहर और सनई खेत कवि को कैसे दिखाई देते हैं ?3. सरसों का वातावरण पर क्या प्रभाव पड़ा है ?4. ‘तीसी नीली’ से क्या अभिप्राय है ?5. काव्यांश में किन फसलों का उल्लेख किया गया है ?

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1. वसुधा पर इस समय गेहूँ और जौ में बालियाँ लग गई हैं। अरहर और सनई की फलियाँ पककर दानेदार हो गई हैं जो हर हवा के झोंके पर करधनी में लगे धुंघरूओं की तरह बजती हैं। हर दिशा में सरसों के पीले-पीले फूल नजर आ रहे हैं, जो समूचे वातावरण में अपनी तैलीय गंध बिखेर रहे हैं। इस तरह, अपना ऐसा सौन्दर्य देखकर वसुधा रोमांचित-सी लग रही है।

2. अरहर और सनई की फसलों में लगी फलियाँ अब पककर सुनहली हो गई है। उनमें दाने पुष्ट हो गए हैं। हवा के हर छोके। के साथ करधनी में लगे धुंघरुओं की तरह बजते हैं। इस तरह, अरहर और सनई के खेत के कारण पृथ्वी का रोमांच प्रदर्शित हो रहा है।

3. समूची धरती सरसों के पीले-पीले फूलों से सुशोभित हो रही है। उन सरसों के पीले फूलों से तैलीय गंध निकल रही है, जिसने वातावरण को सुगंधित और मादक बना दिया है।

4. तीसी के पौधे छोटे होते हैं और उनके फूल नीले होते है। हरी-भरी धरती के बीच उनके नीले-नीले फूलों को देखकर लगता है कि जैसे वे छोटे-छोटे नीलम पत्थर के नगीने हों।

5. काव्यांश में गेहूँ, जौ, अरहर, सनई, सरसों और तीसी की फसल का उल्लेख किया गया है।



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