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स्वतंत्रता के पश्चात् के भारतीय अर्थतंत्र की चर्चा कीजिए ।

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स्वतंत्रता के पश्चात् भारतीय अर्थतंत्र का विकास हो इसलिए भारत सरकार ने योजना आयोग (अब नीति आयोग) की रचना की, परिणामस्वरूप भारतीय अर्थतंत्र का उल्लेखनीय विकास हुआ जो नीचे के मद्दों से फलित होता है :

(1) प्रति व्यक्ति आय : स्वतंत्रता के बाद भारत की प्रतिव्यक्ति आय में वृद्धि हुयी है । जैसे 2013 में भारत की प्रतिव्यक्ति आय 5150 डॉलर थी जबकि चीन की प्रतिव्यक्ति आय 11477 डॉलर, श्रीलंका की 9250 डॉलर, अमेरिका 52,308 डॉलर और नोर्वे 63,909 डॉलर की अपेक्षा बहुत कम है । विकसित देशों की तुलना में भारत की प्रतिव्यक्ति आय लगभग 10 गुना कम है । पिछड़े देशों की अपेक्षा विशेष वृद्धि नहीं है । भारतीय चलन में भारत की प्रति व्यक्ति आय 2014-15 में स्थिर कीमत 74,193 रु. है ।

(2) कृषि : भारत एक कृषि प्रधान देश है । स्वतंत्रता के समय भारत के लगभग 72% और 2001-02 में 58% लोग कृषि क्षेत्र में रोजगार प्राप्त करते थे । जो अब 2013-14 में घटकर 49% रह गया है । राष्ट्रीय आय में 1950-51 में कृषि क्षेत्र का हिस्सा 55% था वह घटकर अब 14% रह गया है । इस प्रकार भारतीय अर्थतंत्र में कृषि क्षेत्र का हिस्सा या महत्त्व कम हुआ है ।

(3) उद्योग : स्वतंत्रता के बाद भारत में औद्योगिक झुकाव बढ़ा है । 1950-51 में रोजगार में उद्योगों का हिस्सा 10.6% था वह बढ़कर 2011-12 में 24.3% हो गया । उसी प्रकार राष्ट्रीय आय में उद्योगों का हिस्सा 1950-51 में 16.6% था वह बढ़कर 2013-14 में 26% हो गया है । 2/3 निर्यात कमाई उद्योग क्षेत्र से होती है ।

(4) सेवा क्षेत्र : भारत में उद्योगों के साथ-साथ सेवा क्षेत्र का भी विकास हुआ है । जैसे 1951 में भारत की रोजगारी में सेवाक्षेत्र का हिस्सा 17.3% था जो बढ़कर 2011-12 में 27% हो गया है । राष्ट्रीय आय में सेवाक्षेत्र का योगदान 30.3% था जो बढ़कर 201415 में 52.7% हो गया है । इस प्रकार भारत में सेवाक्षेत्र का अभूतपूर्व विकास हुआ है ।

(5) जनसंख्या : स्वतंत्रता के बाद भारत में आरोग्य सुविधाएँ बढ़ने से मृत्युदर में कमी आई है परिणामस्वरूप जनसंख्या तीव्रता से बढ़ी है जैसे 1901 में भारत की जनसंख्या 23.84 करोड़, 1951 में 36.1 करोड़, 2001 में 102.7 करोड़ और अंत में 2011 की जनगणना के अनुसार 121.02 करोड़ थी । इस प्रकार भारत में स्वतंत्रता के बाद जनसंख्या विस्फोट हुआ है जो चिंता का विषय है ।

(6) गरीबी : भारत निरपेक्ष गरीबी की समस्या रखनेवाला देश है । भारत में 1973-74 में 54.9% लोग गरीब थे । यह प्रमाण 1993-94 में घटकर 45.3% रह गया । वर्ष 2004-05 में 37.2% तथा 2011-12 में यह प्रमाण घटकर 21.9% रह गया है । इस प्रकार भारत की गरीबी में कमी आयी है । परंतु गरीबी का प्रमाण अभी भी चिंताजनक है ।

(7) बेरोजगारी : भारत में बेरोजगारी की समस्या अभी भी देखने को मिलती है । 1951 में 33 लाख लोग बेरोजगार थे । 19992000 में भारत में 7.31% लोग बेरोजगार थे । यह प्रमाण बढ़कर 2004-05 में 8.2% हो गया । परंतु 2009-10 में घटकर 6.6% और 2011-12 में 5.6% रह गया है । भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में प्रच्छन्न बेकारी का प्रमाण विशेष है, जो छिपी या अदृश्य होने से मापना कठिन है ।

(8) मानव विकास : मानव विकास अंक की रचना संयुक्त राष्ट्र संघ ने की । औसत आयु, साक्षरता और जीवन स्तर जैसे मापदण्डों के आधार पर मानव विकास अंक की रचना की जाती है । वर्ष 2000 में मानव विकास की रिपोर्ट के अनुसार भारत का मानव विकास अंक 0.463 था जो सुधरकर 2010 में 0.547, 2012 में 0.554 और 2013 में 0.586 अंक हो गया । भारत विश्व के 187 देशों में मानव विकास अंक की दृष्टि से 136 वे क्रम पर था ।



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