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स्वतंत्रता से पूर्व भारतीय अर्थतंत्र की चर्चा कीजिए ।

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स्वतंत्रता से पूर्व भारत में जब अंग्रेज आये तब भारतीय कृषि, उद्योग और व्यापार में समृद्ध था । भारत का विश्व में नाम था । भारत के सूती कपड़े, मलमल का कपड़ा, ताँबे-पीतल के बर्तन, गरम कपड़े, गर्म मसाला, तेजपता, लोहे के साधनों की विश्व बाजार में माँग थी । भारत के ग्राम्य विस्तार सुखी और संपन्नता के साथ स्वावलंबी थे । इस समृद्धता को देखकर विदेशी प्रजा का भारत के प्रति आकर्षण बढ़ा और प्रथम व्यापार के अर्थ से भारत में आगमन हुआ । अंग्रेजों ने व्यापार के साथ सत्ता हांसिल की और वर्ष 1757 से 1947 तक भारत अंग्रेज शासन का शिकार था ।

ब्रिटिश शासन दरम्यान भारत ने कुछ कम प्रमाण में अच्छे परिणाम और अधिक प्रमाण में खराब परिणामों का सामना करना पड़ा, जो निम्नानुसार है :

(1) रेलवे : ब्रिटिश शासन दरम्यान भारत को मिला रेलवे लाभ देनेवाली व्यवस्था बनी । भारत के परिवहन को तीव्र और मजबूत . बनाने में रेलवे का महत्त्वपूर्ण योगदान है । 16 अप्रैल, 1853 में मुम्बई से थाना के बीच प्रथम रेलवे लाइन शुरू हुयी । 1947 तक 53000 किमी लम्बाई थी और 68 लाख यात्रियों की लाभ देनेवाली निजी संस्था थी ।

(2) मार्ग परिवहन : ब्रिटिश शासन के दरम्यान 1855 में सार्वजनिक निर्माण विभाग (PWD) की रचना की गयी थी । भारत में सड़क-रास्तों के निर्माण की जवाबदारी ब्रिटिश शासन ने ले ली । 19वीं सदी के अंत तक रास्तों की लम्बाई कुल 2,78,420 कि.मी. थी वह बढ़कर 1943 में 4,47,105 कि.मी. हो गई । जिससे 32.% पक्की सडके और 68% कच्ची सडके थी ।

(3) बैंक : भारत में निजी क्षेत्र में बैंक की शुरुआत 1750 में हुयी । जो 1946 तक 700 से अधिक थी । 1935 में रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया (RBI) की रचना उल्लेखनीय थी ।

(4) सामाजिक ढाँचा : अंग्रेज शासन दरम्यान अन्य उल्लेखनीय कार्यों में लड़की का दूध-पीती का रिवाज को समाप्त करना, लुटेरों का नाश, सतीप्रथा पर रोकने में भारतीयों ने दिये साथ-सहकार उल्लेखनीय थे ।

(5) कृषि : ब्रिटिश शासन दरम्यान भारतीय किसानों के पास ऊँचा महसूल वसूल करते थे, जमीनदारी प्रथा को प्रोत्साहन, जोत के अधिकार असुरक्षित आदि से किसानों का शोषण हुआ । जिससे भारतीय किसान गरीब बने और कृषि मजदूर बन गये । इस प्रकार ब्रिटिश शासन के दरम्यान भारतीय किसान दयनीय बने ।

(6) महेसूल दर : ईस्ट इण्डिया कंपनी विभिन्न राजाओं के पास महेसूल वसूल करने की सत्ता प्राप्त करके जमीन मालिकों के पास ऊँची दर से महसूल प्राप्त करने की परवानगी ली, जो जमीनदारों के पास थी । ब्रिटिश सरकार किसानों से कृषि आय का आधा भाग हो इतना अधिक महसूल रकम वसूली की नीति अपनायी । ब्रिटिश सरकार अत्याचारी थी । किसानों पर दंड करती संपत्ति जप्त कर लेती, जमीन हड़प कर लेती, ऐसे मनमानी निर्णयों से भारतीय कृषि को बहुत नुकसान हुआ ।

(7) कर की ऊँची दर : ब्रिटिश शासन के दरम्यान टेक्स की आय के सम्बन्ध में दादाभाई नवरोजी के गणना के अनुसार 1876 में अधिक आयवालों से ब्रिटन में टेक्स द्वारा राष्ट्रीय आय का 8% जितना हिस्सा प्राप्त होता था जब कि भारत में ब्रिटिश सरकार नीची आयवालों के पास से 15% जितना राष्ट्रीय आय हिस्सा टेक्स द्वारा वसूल करते थे । जैसे नमक पर कर, भारत में नमक समुद्री किनारे से सरलता से मिल जाता था फिर भी अंग्रेज इंग्लैण्ड से जहाजों द्वारा नमक लाकर अधिक मात्रा में कर द्वारा आय प्राप्त करती थी । जिसके लिए गाँधीजी ने दांडीकुच करके सविनय नमक सत्याग्रह किया था ।

(8) टेक्स (कर) नीति : आयात और निर्यात होनेवाली वस्तुओं पर जो कर डाला जाता है उसे जकात (चंगी) कहते हैं । ईस्ट इण्डिया कंपनी ने मुगल बादशाह के पास से 1716 में सनद (लाइसन्स) प्राप्त करके प्रदेश मर्यादित जकात माफी ले ली थी । इसके विरुद्ध भारतीय व्यापारियों को विभिन्न प्रदेशों के कर भरने पड़ते थे । भारत के सूती कपड़े के निर्यात पर 15% जकात और ब्रिटेन से आनेवाले सूती कपड़े पर मात्र 2.5% जकात थी इस भेदभाव भरी नीति के कारण भारतीय उद्योग नष्ट हो गये ।

(9) उद्योग नीति : ब्रिटेन में ई.स. 1750 से 1830 के बीच औद्योगिक क्रांति हुयी । इसी समय दरम्यान ईस्ट इण्डिया कंपनी ने व्यापार के साथ सत्ता स्थापित करने की शुरूआत कर दी थी । 1858 तक भारत का बड़ा भाग अंग्रेजों के शासन के अंतर्गत आ गया था । जिससे ब्रिटिश सरकार ने ऐसी नीति अपनायी जिससे ब्रिटेन की उत्पादित वस्तुओं का अधिक से अधिक विक्रय हो, जिससे भारतीय उद्योग नष्ट हुए ।

(10) आर्थिक शोषण : ब्रिटिश अर्थतंत्र को सुदृढ़ करने के उद्देश्य से कंपनी और ब्रिटिश सरकार ने इस प्रकार की व्यूहरचना अपनायी की जिसके द्वारा मात्र ब्रिटिश सरकार को लाभ हो । उन्होंने विशेष कर के ऐसी व्यापार नीति अपनायी, जिसके द्वारा भारतीय साधनों का महत्तम उपयोग करके ब्रिटेन के उद्योगों का विकास हो ।

(11) हस्तकला कारीगरों का शोषण : ईस्ट इण्डिया कंपनी हस्तकला कारीगरों के पास से बाजार कीमत से 15 से 40% कम कीमत पर वस्तु खरीद लेती । जो कारीगर तैयार नहीं होता उस पर अंग्रेजों द्वारा शारीरिक अत्याचार किये जाते थे । इस प्रकार हस्तकला कारीगरों का शोषण किया ।

(12) पूँजी निवेश का प्रवाह : ब्रिटिश शासन द्वारा भारत और ब्रिटेन की जो पूँजी निवेश किया गया उसकी दिशा ब्रिटेन के पक्ष में तथा भारत विरोधी रखी गयी थी । अर्थात् कि पूँजी निवेश से भारत पर अंग्रेजों का साम्राज्य कायम रहे और ब्रिटिश अर्थतंत्र को उसका पूरा लाभ मिले ऐसा आयोजन किया गया ।

(13) विविध भरण का भार : भारत को ब्रिटिश सरकार को प्रशासन का चार्ज भरना पड़ता था जिसे ‘होमचार्जिस’ अर्थात् भरण के नाम से जानते है । भारत को अनेक ब्रिटिशों को कितना ही भुगतान करना पड़ता था । जैसे ब्रिटिश अधिकारियों को वेतन, पेन्शन तथा भथ्था, सेना का खर्च, ऋण पर ब्याज भुगतान आदि का समावेश होता था । ई.स. 1924-25 के वर्ष में 300 लाख्न पाउण्ड जितनी रकम भरनी पड़ी थी जो बढ़कर 1945 में 1350 लाख पाउण्ड हो गयी थी । जिसके कारण भारत अधिक गरीब और ब्रिटेन अधिक धनवान बनता चला गया ।



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