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51.

कीमत भेदभाव किस बाजार का लक्षण है ?(A) पूर्ण स्पर्धा(B) एकाधिकार(C) एकाधिकारयुक्त स्पर्धा(D) अल्पहस्तक बाजार

Answer»

सही विकल्प है (B) एकाधिकार

52.

पूर्ण स्पर्धा अर्थात् क्या ?

Answer»

पूर्ण स्पर्धा एक ऐसी बाजार-व्यवस्था है कि जिसमें बाजार कीमत को प्रभावित कर सके इतनी बड़ी इकाई समग्र बाजार में न होने के साथ बहुत-सी इकाईयाँ समगुणी वस्तुओं का विक्रय करती है ।

53.

विक्रय खर्च किस बाजार का महत्त्वपूर्ण लक्षण है ?(A) एकाधिकार(B) उभयपक्षी एकाधिकार(C) एकाधिकारयुक्त स्पर्धा(D) पूर्ण स्पर्धा

Answer»

सही विकल्प है (B) उभयपक्षी एकाधिकार

54.

एकाधिकार अर्थात् क्या ?

Answer»

जब वस्तु की पूर्ति पर किसी एक इकाई का अंकुश हो तो उसे एकाधिकार कहते हैं ।

55.

बाजार का सामान्य अर्थ समझाइए ।

Answer»

सामान्य रूप से जिस स्थान पर वस्तुओं और सेवाओं का क्रय-विक्रय होता है उसे बाजार कहते हैं ।

56.

अति-अल्पकालीन बाजार क्या है ?

Answer»

जब किसी वस्तु की माँग बढ़ने से उसका लेशमात्र भी सम्भरण (पूर्ति) बढ़ाने का समय नहीं मिलता तब ऐसे ब्राजार को अति-अल्पकालीन बाजार कहते हैं अर्थात् पूर्ति की मात्रा केवल भण्डार तक ही सीमित होती है। इसे दैनिक बाजार भी कहते हैं। शीघ्र नष्ट हो जाने वाली वस्तुओं – दूध, सब्जी, मछली, बर्फ आदि – का बाजार अति-अल्पकालीन बाजार होता है।

57.

बाजार की परिभाषा दीजिए। याअर्थशास्त्र में बाजार से क्या तात्पर्य होता है?

Answer»

कून के शब्दों में, “अर्थशास्त्र में ‘बाजार’ शब्द का अर्थ किसी ऐसे विशिष्ट स्थान से नहीं लगाते हैं जहाँ पर वस्तुओं का क्रय-विक्रय होती है, बल्कि उस समस्त क्षेत्र से लगाते हैं जिसमें क्रेताओं और विक्रेताओं के मध्य आपस में इस प्रकार का सम्पर्क हो कि किसी वस्तु का मूल्य सरलता एवं शीघ्रता से समान हो जाए।”

58.

किसी वस्तु के बाजार को विस्तृत बनाने वाले किन्हीं दो प्रमुख कारणों का उल्लेख कीजिए।याबाजार के विस्तार को प्रभावित करने वाले दो तत्त्व बताइए।

Answer»

वस्तु के बाजार को विस्तृत करने वाले तत्त्व निम्नलिखित हैं।

⦁    यातायात व सन्देशवाहन के साधन – किसी वस्तु के बाजार के विस्तार के लिए देश में यातायात व सन्देशवाहन के अच्छे, सस्ते व विकसित साधनों का उपलब्ध होना आवश्यक है।
⦁     वस्तु की विस्तृत मॉग – किसी वस्तु के बाजार के विस्तार के लिए वस्तु की मॉग विस्तृत होनी चाहिए।
⦁    टिकाऊपन – बाजार के विस्तार के लिए वस्तु को टिकाऊ होना चाहिए।

59.

क्षेत्र के आधार पर बाजार का विभाजन कीजिए।

Answer»

क्षेत्र के आधार पर बाजार को निम्नलिखित बाजारों में विभाजित किया जा सकता है

⦁     स्थानीय बाजार,
⦁    प्रादेशिक बाजार,
⦁    राष्ट्रीय बाजार,
⦁    अन्तर्राष्ट्रीय बाजार।

60.

बाजार के आवश्यक तत्त्व बताइए।याबाजार की दो प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।

Answer»

बाजार के आवश्यक तत्त्व निम्नलिखित हैं।

⦁     एक क्षेत्र – वह समस्त क्षेत्र जिसमें किसी वस्तु के क्रेता व विक्रेता क्रय-विक्रय करते हैं।
⦁    एक वस्तु – अर्थशास्त्र में प्रत्येक वस्तु का बाजार अलग-अलग माना जाता है। बाजार के लिए एक वस्तु का होना आवश्यक है।
⦁     क्रेता व विक्रेताओं का होना – बाजार में क्रेता व विक्रेताओं का होना आवश्यक है। इसके अभाव में बाजार नहीं हो सकता है।
⦁    स्वतन्त्र प्रतियोगिता – बाजार में क्रेताओं और विक्रेताओं में स्वतन्त्र प्रतियोगिता होनी चाहिए।
⦁    एक कीमत – बाजार में वस्तु की कीमत की प्रवृत्ति समान होनी चाहिए।

61.

किसी वस्तु के बाजार को प्रभावित करने वाले तत्वों की व्याख्या कीजिए।

Answer»

वस्तु के बाजार का विस्तार निम्नलिखित दो बातों पर निर्भर करता है

(क) वस्तु के गुण – किसी वस्तु के गुणों का प्रभाव बाजार पर पड़ता है जो अग्रवत् है
⦁     वस्तु की विस्तृत माँग।
⦁     वस्तु की पर्याप्त पूर्ति।
⦁    वस्तु का टिकाऊपन।
⦁    वहनीयता।
⦁    वस्तुओं को ग्रेड या नमूनों में बाँटने की सुविधा
⦁    वस्तु का स्थानापन्न न होना।
⦁    वस्तु का विशेष उपयोग एवं फैशन।
(ख) देश की आन्तरिक दशाएँ
⦁    अन्तर्राष्ट्रीय मैत्री एवं सहयोग।
⦁    यातायात के साधन व उत्तम संचार-व्यवस्था।
⦁    देश में शान्ति, सुरक्षा तथा सुव्यवस्थित शासन-व्यवस्था।
⦁    उत्पादकों एवं व्यापारियों में विश्वास व नैतिकता।
⦁    कुशल मुद्रा व बैंकिंग प्रणाली
⦁     सरकार की व्यापारिक नीति।
⦁     पैकिंग का ढंग व शीत भण्डार की व्यवस्था।

62.

पूर्ण प्रतियोगी बाजार की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।

Answer»

पूर्ण प्रतियोगी बाजार की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

⦁     क्रेताओं और विक्रेताओं की संख्या अधिक होती है।
⦁    व्यक्तिगत रूप से कोई भी वस्तु की कीमत को प्रभावित नहीं कर सकता।
⦁     क्रेता और विक्रेताओं को बाजार का पूर्ण ज्ञान होता है।
⦁     पूर्ण प्रतियोगी बाजार में वस्तु की एक ही कीमत होने की प्रवृत्ति पायी जाती है।

63.

प्रादेशिक बाजार अर्थात् क्या ?

Answer»

जब वस्तु या सेवा का क्रय-विक्रय किसी एक निश्चित प्रदेश तक सीमित हो तो उसे प्रादेशिक बाजार कहते हैं ।

64.

वस्तु-विभेद किस बाजार में पाया जाता है? (क) पूर्ण प्रतियोगिता(ख) एकाधिकार(ग) अपूर्ण प्रतियोगिता(घ) इनमें से कोई नहीं

Answer»

सही विकल्प है  (ख) एकाधिकार।

65.

बाजार की परिभाषा दीजिए। बाजार के वर्गीकरण की रूपरेखा प्रस्तुत कीजिए।याबाजार को परिभाषित कीजिए। समय के आधार पर बाजार के विभिन्न प्रकारों का उल्लेख कीजिए।

Answer»

बाजार का वर्गीकरण
अर्थशास्त्र में बाजार का वर्गीकरण निम्नलिखित दृष्टिकोणों से किया जाता है
(क) क्षेत्र की दृष्टि से,
(ख) समय की दृष्टि से,
(ग) बिक्री की दृष्टि से,
(घ) प्रतियोगिता की दृष्टि से,
(ङ) वैधानिकता की दृष्टि से।

(क) क्षेत्र की दृष्टि से
क्षेत्र की दृष्टि से बाजार के वर्गीकरण का आधार यह होता है कि वस्तु-विशेष के क्रेता व विक्रेता । कितने क्षेत्र में फैले हुए हैं। इस दृष्टिकोण से बाजार चार प्रकार का होता है
1. स्थानीय बाजार – जब किसी वस्तु की माँग स्थानीय होती है अथवा उसके क्रेता और विक्रेता किसी स्थान-विशेष तक ही सीमित होते हैं, तब उस वस्तु का बाजार स्थानीय होता है। प्रायः भारी एवं कम मूल्य वाली वस्तुओं तथा शीघ्र नष्ट होने वाली वस्तुओं का बाजार स्थानीय होता है; जैसे-ईंट, दूध, गोश्त, सब्जी आदि का बाजार स्थानीय होता है। परिवहन के विकास एवं वस्तुओं को सुरक्षित रखने के साधनों के विकास के कारण अब स्थानीय बाजार वाली वस्तुओं का बाजार धीरे-धीरे विकसित होकर प्रादेशिक बाजार का स्थान लेता जा रहा है।
2. प्रादेशिक बाजार – जब वस्तु के क्रेता और विक्रेता केवल एक ही प्रदेश तक सीमित हों तब ऐसा बाजार प्रादेशिक होता है। उदाहरण के लिए हमारे देश में राजस्थानी पगड़ी तथा लाख की चूड़ियाँ केवल राजस्थान में ही प्रयोग में लायी जाती हैं, अन्य राज्यों में नहीं। अत: इन वस्तुओं का बाजार प्रादेशिक कहा जाएगा।
3. राष्ट्रीय बाजार – जब किसी वस्तु का क्रय-विक्रय केवल उस राष्ट्र तक ही सीमित हो, जिस राष्ट्र में वह वस्तु उत्पन्न की जाती है तब वस्तु का बाजार राष्ट्रीय होगा। गांधी टोपी, जवाहरकट धोतियाँ आदि कुछ ऐसी वस्तुएँ हैं जिनका क्रय-विक्रय केवल भारत तक ही सीमित है; अत: इन वस्तुओं का बाजार राष्ट्रीय बाजार कहा जाता है।
4. अन्तर्राष्ट्रीय बाजार – जब किसी वस्तु के क्रेता-विक्रेता विश्व के विभिन्न राष्टों से वस्तुओं का क्रय-विक्रय करते हैं या जब किसी वस्तु की माँग देश व विदेश में हो तो उस वस्तु का बाजार अन्तर्राष्ट्रीय होता है; जैसे – सोना, चाँदी, चाय, गेहूं आदि वस्तुओं के बाजार अन्तर्राष्ट्रीय हैं।

(ख) समय की दृष्टि से
प्रो० मार्शल ने समय के अनुसार बाजार को चार वर्गों में विभाजित किया है
1. अति-अल्पकालीन बाजार या दैनिक बाजार – जब किसी वस्तु की माँग बढ़ने से उसका लेशमात्र भी सम्भरण (पूर्ति) बढ़ाने का समय नहीं मिलता, तब ऐसे बाजार को अति-अल्पकालीन बाजार कहते हैं अर्थात् पूर्ति की मात्रा केवल भण्डार तक ही सीमित होती है। इसे दैनिक बाजार भी कहते हैं। शीघ्र नष्ट हो जाने वाली वस्तुओं – दूध, सब्जी, मछली, बर्फ आदिका बाजार अति-अल्पकालीन होता है।
2. अल्पकालीन बाजार – अल्पकालीन बाजार में माँग और पूर्ति के सन्तुलन के लिए कुछ समय मिलता है, किन्तु यह पर्याप्त नहीं होता। पूर्ति में माँग के अनुसार कुछ सीमा तक घट-बढ़ की जा सकती है, किन्तु यह पर्याप्त नहीं होती। यद्यपि पूर्ति का मूल्य-निर्धारण में प्रभाव अति अल्पकालीन बाजार की अपेक्षा अधिक होता है, किन्तु फिर भी माँग की अपेक्षा कम ही रहता है।
3. दीर्घकालीन बाजार – जब किसी वस्तु का बाजार कई वर्षों के लम्बे समय के लिए होता है, तो उसे दीर्घकालीन बाजार कहते हैं। दीर्घकालीन बाजार में वस्तु की माँग में होने वाली वृद्धि इतने समय तक रहती है कि पूर्ति को बढ़ाकर माँग के बराबर करना सम्भव होता है। इस प्रकार के बाजार में माँग और पूर्ति का पूर्ण साम्य स्थापित किया जा सकता है। दीर्घकालीन बाजार में मूल्य-निर्धारण पर माँग की अपेक्षा पूर्ति का अधिक प्रभाव पड़ता है और वस्तु का मूल्य उसके उत्पादन व्यय के बराबर होता है।
4. अति-दीर्घकालीन बाजार – अति-दीर्घकालीन बाजार में उत्पादकों को पूर्ति बढ़ाने के लिए इतना लम्बा समय मिल जाता है कि उत्पादन विधि तथा व्यवसांय की आन्तरिक व्यवस्था में क्रान्तिकारी परिवर्तन किये जा सकते हैं। ऐसे बाजार में पूर्ति को स्थायी रूप से माँग के बराबर किया जा सकता है। इस बाजार में समय की अवधि इतनी अधिक होती है कि उत्पादक उपभोक्ता के स्वभाव, रुचि, फैशन आदि के अनुरूप उत्पादन कर सकता है। इसके लिए नये-नये उद्योग स्थापित किये जा सकते हैं तथा उत्पादन में वृद्धि की जा सकती है।

(ग) बिक्री अथवा कार्यों की दृष्टि से
बिक्री की दृष्टि से या कार्यों के आधार पर बाजार का वर्गीकरण निम्नलिखित प्रकार किया गया है।
1. सामान्य अथवा मिश्रित बाजार- मिश्रित बाजार उस बाजार को कहते हैं जिसमें अनेक एवं विविध प्रकार की वस्तुओं का क्रय-विक्रय होता है। यहाँ क्रेताओं को प्रायः आवश्यकता की सभी वस्तुएँ उपलब्ध हो जाती हैं।

2. विशिष्ट बाजार – विशिष्ट बाजार वे बाजार होते हैं जहाँ किसी वस्तु-विशेष का क्रय-विक्रय होता है; जैसे–सर्राफा बाजार, बाजार बजाजा, दालमण्डी, गुड़मण्डी आदि। इस प्रकार के बाजार प्रायः बड़े-बड़े नगरों में पाये जाते हैं।

3. नमूने द्वारा बिक्री का बाजार – ऐसे बाजार में विक्रेता को अपना सम्पूर्ण माल नहीं ले जाना पड़ता है, वह माल को देखकर सौदा तय करते हैं तथा सौदा तय होने पर माल गोदामों से भिजवा देते हैं। इससे बाजारों का विस्तार होता है। क्रेता अपने घर बैठे ही नमूना देखकर तथा उसमें चुनाव करके, बहुत-सा सामान मँगा लेता है।
4. ग्रेड द्वारा बिक्री का बाजार – इस प्रकार के बाजार में वस्तुओं की बिक्री उनके विशेष नाम अथवा ग्रेड द्वारा होती है। विक्रेता को न तो वस्तुओं के नमूने दिखाने पड़ते हैं और न ही क्रेता को कुछ बताना पड़ता है। उदाहरण के लिए-गेहूँ R. R. 21, K-68, फिलिप्स रेडियो, हमाम साबुन आदि।
5. निरीक्षण बाजार- जहाँ वस्तुओं का निरीक्षण करके क्रय किया जाता है उसे निरीक्षण द्वारा बिक्री का बाजार कहते हैं; जैसे-गाय, बैल, भेड़, बकरी, घोड़े आदि का बाजार।
6. ट्रेडमार्का बिक्री बाजार – बिक्री की सुविधा के लिए बहुत-से व्यापारियों के माल व्यापार-चिह्न के आधार पर बिक्री होते हैं; जैसे-बिरला सीमेण्ट, उषा मशीन, लिरिल साबुन, मदन कैंची आदि। जब ट्रेडमार्क द्वारा वस्तु की बिक्री की जाती है तो इसे ट्रेडमार्का बाजार कहते हैं।

(घ) प्रतियोगिता की दृष्टि से
प्रतियोगिता के आधार पर बाजार निम्नलिखित प्रकार के होते हैं
1. पूर्ण बाजार – पूर्ण बाजार उस बाजार को कहते हैं जिसमें पूर्ण प्रतियोगिता पायी जाती है। इस स्थिति में क्रेताओं और विक्रेताओं की संख्या अधिक होती है, कोई भी व्यक्तिगत रूप से वस्तु की कीमत को प्रभावित नहीं कर सकता। क्रेता और विक्रेताओं को बाजार का पूर्ण ज्ञान होता है, जिसके कारण वस्तु की बाजार में एक ही कीमत होने की प्रवृत्ति पायी जाती है। यदि किसी स्थान पर मूल्य में भिन्नता होती है तो दूसरे स्थान से वहाँ तुरन्त माल आ जाता है और सबै स्थानों पर मूल्य समान हो जाता है।
2. अपूर्ण बाजार – जब किसी बाजार में प्रतियोगिता सीमित मात्रा में पायी जाती है, क्रेताओं और विक्रेताओं को बाजार को पूर्ण ज्ञान नहीं होता है, तब उसे अपूर्ण बाजार कहते हैं। इस बाजार में अपूर्ण प्रतियोगिता पायी जाती है, जिसके परिणामस्वरूप बाजार-कीमत में भिन्नता होती है।
3. एकाधिकार – एकाधिकार बाजार में प्रतियोगिता का अभाव होता है। बाजार में वस्तु का क्रेता या विक्रेता केवल एक ही होता है। एकाधिकारी का वस्तु की कीमत तथा पूर्ति पर पूर्ण नियन्त्रण होता है। एकाधिकारी बाजार में वस्तु की भिन्न-भिन्न कीमतें निश्चित कर सकता है।

(ङ) वैधानिकता की दृष्टि से
वैधानिक दृष्टि से बाजार निम्नलिखित प्रकार के होते हैं
1. अधिकृत या उचित बाजार – अधिकृत बाजार में सरकार द्वारा अधिकृत दुकानें होती हैं तथा वस्तुओं का क्रय-विक्रय नियन्त्रित मूल्यों पर होता है। युद्धकाल अथवा महँगाई के समय में वस्तुओं की कीमतें अधिक हो जाती हैं। ऐसी दशा में सरकार आवश्यक वस्तुओं का मूल्य नियन्त्रित कर देती है। और उनके उचित वितरण की व्यवस्था करती है।
2. चोर बाजार – युद्धकाल अथवा महँगाई के समय में, वस्तुओं की कमी एवं अन्य कारणों से वस्तुओं के मूल्य बढ़ जाते हैं। तब सरकार वस्तुओं के मूल्य नियन्त्रित कर उनके वितरण की व्यवस्था करती है। कुछ दुकानदार चोरी से सरकार द्वारा निश्चित मूल्य से अधिक मूल्य पर वस्तुएँ बेचते रहते हैं। अधिकांशतः ऐसा कार्य अनधिकृत दुकानदार ही करते हैं। ये बाजार अवैध होते हैं।
3. खुला बाजार – जब बाजार में वस्तुओं के मूल्य पर सरकार द्वारा कोई नियन्त्रण नहीं होता है। तथा क्रेताओं और विक्रेताओं की परस्पर प्रतियोगिता के आधार पर वस्तुओं का मूल्य-निर्धारण होता है, तब इस प्रकार के बाजार को खुला या स्वतन्त्र बाजार कहते हैं।

66.

किसी शहर की दूध-मण्डी, उदाहरण है (क) स्थानीय बाजार का(ख) स्थानीय प्रतियोगी बाजार का(ग) स्थानीय प्रतियोगी अल्पकालीन बाजार का(घ) स्थानीय प्रतियोगी अल्पकालीन विशिष्ट बाजार का

Answer»

(घ) स्थानीय प्रतियोगी अल्पकालीन विशिष्ट बाजार का।

67.

पूर्ण प्रतियोगी बाजार में (क) सीमान्त आगम से औसत आगम अधिक होती है।(ख) सीमान्त आगम से औसत आगम कम होती है।(ग) सीमान्त आगम औसत आगम के समान होती है।(घ) औसत आगम और सीमान्त आगम में कोई सम्बन्ध नहीं होता है।

Answer»

(ग) सीमान्त आगम औसत आगम के समान होती है।

68.

वस्तु बाजार को विस्तृत करने वाले तत्त्वों (कारकों) का वर्णन कीजिए।याबाजार के विस्तार को प्रभावित करने वाले तत्त्वों (कारकों) का वर्णन कीजिए।

Answer»

बाजार के विस्तार को प्रभावित करने वाले तत्त्व (कारक)
वस्तु के बाजार का विस्तार निम्नलिखित दो बातों पर निर्भर करता है
(अ) वस्तु के गुण तथा
(ब) देश की आन्तरिक दशाएँ।

(अ) वस्तु के गुण
किसी वस्तु के गुण उस वस्तु के बाजार-विस्तार को निम्नवत् प्रभावित करते हैं
1. वस्तु की विस्तृत माँग – किसी वस्तु के बाजार का विस्तृत अथवा संकुचित होना उस वस्तु की माँग पर निर्भर करता है। जिस वस्तु की माँग जितनी अधिक विस्तृत होती है उस वस्तु का बाजार उतना ही विस्तृत होता है। उदाहरण के लिए-गेहूँ, सोना, चाँदी आदि वस्तुओं की माँग विश्वव्यापी होने से इनका बाजार अन्तर्राष्ट्रीय है।
2. वस्तु की पर्याप्त पूर्ति – वस्तु के बाजार-विस्तार के लिए वस्तु की पूर्ति माँग के अनुरूप होनी आवश्यक है। यदि किसी वस्तु की माँग अधिक है और पूर्ति कम है तब वस्तु का बाजार विस्तृत नहीं हो सकेगा। इसलिए वस्तु की पर्याप्त पूर्ति बाजार के विस्तार को प्रभावित करती है।
3. वस्तु का टिकाऊपन – टिकाऊ वस्तुओं का बाजार क्षेत्र विस्तृत होता है। इसके विपरीत शीघ्र नष्ट होने वाली वस्तुओं का बाजार संकुचित होता है। उदाहरणार्थ-सोना वे चॉदी का बाजार दूध व सब्जी के बाजार से अधिक विस्तृत होती है।
4. वहनीयता – जिन वस्तुओं को एक स्थान से दूसरे स्थान तक सरलतापूर्वक ले जाया जा सकता है, उनका बाजार विस्तृत होता है। जिन वस्तुओं का मूल्य अधिक होता है परन्तु भार एवं तौल में बहुत कम होती हैं, उनका बाजार विस्तृत होता है। ऐसी वस्तुओं को लाने में ले जाने का यातायात व्यय कम होता है।
5. वस्तु को ग्रेड या नमूनों में बाँटने की सुविधा – जिन वस्तुओं का उनके गुणों के आधार पर विभिन्न प्रकारों व ग्रेडों में वर्गीकरण किया जा सकता है, उन वस्तुओं का बाजार विस्तृत हो जाता है। इस प्रकार की वस्तुओं के ट्रेडमार्क निश्चित करके उनका विज्ञापन कर, उस वस्तु की मॉग देश-विदेश में उत्पन्न की जा सकती है।
6. वस्तु का स्थानापन्न न होना – बाजार में यदि किसी वस्तु के अधिक स्थानापन्न विद्यमान हैं। तब उस वस्तु का बाजार संकीर्ण होगा। इसके विपरीत यदि वस्तु को स्थानापन्न विद्यमान नहीं है तब उस वस्तु का बाजार विस्तृत होगा।
7. वस्तु का विशेष उपयोग एवं फैशन – किसी वस्तु का उपयोग किसी कार्य-विशेष के लिए होने लगने पर वस्तु को बाजार विस्तृत हो जाता है; जैसे-टेलीफोन आदि। इसके अतिरिक्त यदि कोई वस्तु फैशन में आ जाती है तो उस वस्तु का बाजार भी विस्तृत हो जाता है; जैसे-आज फैशन के युग में क्रीम, पाउडर व चाय आदि का उपयोग निरन्तर बढ़ता जा रहा है। इसके विपरीत, उन वस्तुओं का बाजार स्वतः सीमित हो जाता है, जो वस्तुएँ प्रचलन में नहीं रहती।

(ब) देश की आन्तरिक दशाएँ
वस्तु के बाजार के विस्तार को देश की आन्तरिक दशाएँ निम्नवत् प्रभावित करती हैं
1. अन्तर्राष्ट्रीय मैत्री एवं सहयोग – किसी वस्तु का बाजार विस्तृत होने के लिए आवश्यक है। कि विभिन्न राष्ट्रों में परस्पर सहयोग एवं मित्रता की भावना हो। यदि एक देश दूसरे देश के आयात एवं निर्यात को प्रोत्साहित करता है तब वस्तु का बाजार विस्तृत होगा। आज अन्तर्राष्ट्रीय बाजार का विस्तार तथा विकास होता जा रहा है।
2. यातायात के साधन व उत्तम संचार-व्यवस्था – यदि देश में यातायात व संचार के अच्छे, सस्ते व विकसित साधन उपलब्ध हैं तो बाजार का विस्तार होता है, क्योंकि इन साधनों के द्वारा किसी एक स्थान-विशेष पर उत्पन्न वस्तु को न केवल स्थानीय बाजारों में, वरन् देश-विदेश में भेजा जा सकता है।
3. देश में शान्ति, सुरक्षा तथा सुव्यवस्थित शासन-व्यवस्था – जब देश में सर्वत्र शान्ति एवं सुरक्षा होती है तथा शासन-व्यवस्था उत्तम होती है तब व्यापारियों में व्यापार के प्रति विश्वास व उत्साह बना रहता है, जिसके परिणामस्वरूप वस्तुओं का बाजार विस्तृत हो जाता है।
4. उत्पादकों व व्यापारियों में विश्वास व नैतिकता – आज के युग में अधिकांश व्यापारिक कार्य विश्वास पर आधारित होते हैं। व्यापारिक भुगतान नकद न होकर चेक या बिल ऑफ एक्सचेंज के द्वारा होते हैं। ऐसी स्थिति में देश के उत्पादक व व्यापारी एक-दूसरे की साख पर विश्वास करके ही लेन-देन करते हैं। यदि वह विश्वास समाप्त हो जाए तो व्यापार का क्षेत्र संकुचित हो जाएगा। अतः विस्तृत बाजार के लिए उत्पादकों व व्यापारियों का चरित्रवान् व ईमानदार होना आवश्यक है।
5. कुशल मुद्रा व बैकिंग प्रणाली – किसी वस्तु के बाजार का विस्तार अच्छी बैंकिंग प्रणाली तथा मुद्रा प्रणाली पर निर्भर करता है। मुद्रा मूल्य में स्थिरता होनी चाहिए तथा बीमा-व्यवस्था का भी प्रबन्ध होना चाहिए, जिससे कि जो माल एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजा जाए, उसका बीमा करायो जा सके। जिस देश में बैंकिंग, मुद्रा तथा बीमा की व्यवस्था उत्तम है, उस देश में वस्तुओं के बाजार विस्तृत होते हैं।
6. व्यापार के आधुनिक एवं वैज्ञानिक ढंग – आधुनिक युग में व्यापार वैज्ञानिक ढंग से किया जाता है, अतः जिस देश में वस्तुओं का विज्ञापन, प्रचार व प्रसार नई व आधुनिक प्रणाली से समाचार-पत्रों, रेडियो, टेलीविजन आदि के द्वारा किया जाता है, उस देश में वस्तुओं का बाजार विस्तृत हो जाता है।
7. सरकार की व्यापारिक नीति – वस्तु के बाजार-विस्तार पर सरकार की व्यापारिक नीति का पर्याप्त प्रभाव पड़ता है। स्वतन्त्र व्यापार नीति के परिणामस्वरूप अनेक वस्तुओं के बाजार विस्तृत हो जाएँगे। इसके विपरीत संरक्षण की नीति में वस्तुओं का बाजार संकुचित रहेगा। अतः यदि सरकार की व्यापार नीति अनुकूल है और कर अधिक नहीं हैं तो बाजार विस्तृत किया जा सकता है।
8. पैकिंग का ढंग व शीत भण्डार की व्यवस्था – शीत भण्डार-गृहों की उचित व्यवस्था होने पर क्षयशील वस्तुओं को दीर्घकाल तक सुरक्षित रखा जा सकता है। वस्तुओं को उत्तम पैकिंग-व्यवस्था के द्वारा दूर-दूर स्थानों तक भेजा जा सकता है। ऐसी स्थिति में वस्तुओं का बाजार विस्तृत होगा।

69.

समान कीमत किस बाजार की विशेषता है? (क) एकाधिकार(ख) पूर्ण प्रतियोगिता(ग) एकाधिकारिक प्रतियोगिता(घ) इनमें से कोई नहीं

Answer»

सही विकल्प है  (ख) पूर्ण प्रतियोगिता।

70.

विक्रय खर्च अर्थात् क्या ? ।

Answer»

विक्रय के पीछे किये जानेवाले खर्च को विक्रय खर्च कहते हैं । जैसे : विज्ञापन खर्च, सेल्समेन खर्च, पेकिंग आदि ।

71.

निम्नलिखित में से कौन-सी पूर्ण प्रतियोगिता बाजार की विशेषता नहीं है?(क) क्रेताओं-विक्रेताओं की संख्या अत्यधिक होना(ख) वस्तु का समरूप होना(ग) फर्मों के प्रवेश एवं बहिर्गमन की स्वतन्त्रता(घ) विज्ञापन एवं गैर-कीमत प्रतियोगिता का होना

Answer»

(घ) विज्ञापन एवं गैर-कीमत प्रतियोगिता का होना।

72.

अपूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति उत्पन्न होने का कारण है(क) क्रेता और विक्रेताओं की संख्या का अधिक होना(ख) क्रेता तथा विक्रेताओं की कम संख्या होना।(ग) क्रेता तथा विक्रेताओं को बाजार का पूर्ण ज्ञान होना(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं

Answer»

(ख) क्रेता तथा विक्रेताओं की कम संख्या होना।

73.

बाजार का विस्तार होता है(क) आतंकवाद से(ख) असुरक्षा से(ग) अशान्ति से(घ) देश में शान्ति एवं सुरक्षा से

Answer»

सही विकल्प है  (घ) देश में शान्ति एवं सुरक्षा से।

74.

पूर्ण बाजार की विशेषताएँ हैं।(क) क्रेताओं और विक्रेताओं की अधिक संख्या(ख) गलाकाट प्रतियोगिता(ग) (क) और (ख) दोनों(घ) इनमें से कोई नहीं

Answer»

सही विकल्प है  (ग) (क) और (ख) दोनों।

75.

‘जब वस्तुओं की माँग बढ़ने पर इतना समय मिल जाए कि उत्पादकों द्वारा उत्पादन में वृद्धि करके पूर्ति को माँग के अनुसार बढ़ाया जा सके ऐसे बाजार को कहते हैं(क) अति-अल्पकालीन बाजार(ख) अति-दीर्घकालीन बाजार(ग) दीर्घकालीन बाजार(घ) अल्पकालीन बाजार

Answer»

सही विकल्प है  (ख) अति-दीर्घकालीन बाजार।

76.

किस बाजार में बाजार का संपूर्ण ज्ञान होता है ?(A) पूर्ण स्पर्धा का बाजार(B) अपूर्ण स्पर्धा का बाजार(C) एकाधिकारयुक्त बाजार(D) अल्पहस्तक बाजार

Answer»

सही विकल्प है (A) पूर्ण स्पर्धा का बाजार

77.

निम्नलिखित में से किस बाजार में औसत आगम एवं सीमान्त आगम सदैव बराबर होता है?याAR = MR निम्नलिखित में से किस व्यापार की एक आवश्यक दशा है?(क) एकाधिकार बाजार(ख) पूर्ण प्रतियोगिता का बाजार(ग) अपूर्ण प्रतियोगिता का बाजार(घ) इनमें से कोई नहीं

Answer»

सही विकल्प है  (ख) पूर्ण प्रतियोगिता का बाजार।

78.

समगुणी वस्तु किस बाजार का लक्षण है ?(A) पूर्ण स्पर्धा(B) एकाधिकार(C) एकाधिकारयुक्त स्पर्धा(D) तीव्र स्पर्धा

Answer»

सही विकल्प है (A) पूर्ण स्पर्धा

79.

सोने एवं चाँदी का बाजार होता है(क) दैनिक(ख) अल्पकालीन(ग) दीर्घकालीन(घ) अति-दीर्घकालीन

Answer»

सही विकल्प है  (घ) अति-दीर्घकालीन।

80.

अल्पहस्तक एकाधिकार बाजार में माँग रेखा कैसी होती है ?(A) त्रुटक माँगरेखा(B) सापेक्ष माँगरेखा(C) निरपेक्ष माँगरेखा(D) समांतर माँगरेखा

Answer»

सही विकल्प है (A) त्रुटक माँगरेखा

81.

पूर्ण स्पर्धा के संदर्भ में परिवहन खर्च को समझाइए ।

Answer»

पूर्ण स्पर्धावाले बाजार में असंख्य विक्रेता और असंख्य क्रेता होते हैं । पूर्ण स्पर्धा के विश्लेषण में बाजार में परिवहन खर्च कुल खर्च का खूब ही अल्प अंश होने से गणना में नहीं लिया जाता है । इसलिए परिवहन खर्च शून्य है ऐसा स्वीकार कर लिया गया है । इसलिए परिवहन खर्च की अनुपस्थिति यह पूर्ण स्पर्धा का एक महत्त्वपूर्ण लक्षण है ।

82.

माँग और पूर्ति ………………………… होने पर संतुलित कीमत का निर्धारण होता है ।(A) घटती(B) समान(C) अधिक(D) एक भी नहीं

Answer»

सही विकल्प है (B) समान

83.

“बाजार किसी स्थान को नहीं बताता, वरन वह किसी वस्तु अथवा वस्तुओं तथा उनके ग्राहकों और विक्रेताओं की ओर संकेत करता है, जो एक-दूसरे के साथ सीधी प्रतियोगिता करते हों।” यह परिभाषा किस अर्थशास्त्री की है ?

Answer»

यह परिभाषा चैपमैन की है।

84.

ग्रामीण बढ़ई की सेवाएँ किस बाजार का प्रकार है ?(A) राष्ट्रीय(B) अन्तर्राष्ट्रीय(C) प्रादेशिक(D) स्थानीय

Answer»

सही विकल्प है (D) स्थानीय

85.

गुजराती चलचित्रों का बाजार किस प्रकार का बाजार है ?(A) स्थानीय(B) राष्ट्रीय(C) प्रादेशिक(D) अन्तर्राष्ट्रीय

Answer»

सही विकल्प है (C) प्रादेशिक

86.

उत्पादन प्रक्रिया अर्थात् क्या ?

Answer»

वस्तु के स्थान, स्वरूप या समय में परिवर्तन करके तुष्टिगुण या उपयोगिता बढ़ाने की प्रक्रिया अर्थात् उत्पादन प्रक्रिया ।

87.

बाजार का एक आधुनिक स्वरूप है …………………………..(A) दुकान(B) ऑनलाइन शोपिंग(C) घर(D) मेला

Answer»

सही विकल्प है (B) ऑनलाइन शोपिंग

88.

असामान्य मुनाफा अर्थात् क्या ?

Answer»

एकाधिकारवाले बाजार में वस्तु कीमत निश्चित उत्पादक या विक्रेता करता है । अन्य इकाईयों के प्रवेश पर प्रतिबंध होता है । इसलिए अल्पकालीन और दीर्घकालीन समय में भी स्पर्धा के अभाव में कीमत अधिक रनकर असामान्य लाभ या मुनाफा प्राप्त करती है ।

89.

कीमत – भेदभाव का अर्थ समझाइए ।

Answer»

एकाधिकारवाले बाजार में उत्पादक या विक्रेता कीमत निश्चित करनेवाला होता है, इसलिए स्पर्धा का तत्त्व देखने को नहीं । मिलती । इसलिए एकाधिकारवाला उत्पादक या विक्रेता इस अवसर का लाभ लेकर एक ही वस्तु की कीमत अलग-अलग वसूल करता है । जिसे कीमत भेदभाव कहते हैं ।

90.

सन्तुलित कीमत किसे कहते हैं ?

Answer»

जिस कीमत पर माँग और पूर्ति दोनों समान न हों ऐसी स्थिति में ग्राहक और विक्रेता दोनों असंतुष्ट रहते हैं । लेकिन जिस कीमत पर माँग और पूर्ति दोनों समान होते हैं उस कीमत पर ग्राहक और व्यापारी दोनों संतुष्ट रहते हैं । अर्थात् ग्राहक जितनी इकाई की माँग करता है विक्रेता भी उतनी ही इकाई की पूर्ति करना चाहते हैं । इसलिए इस कीमत को संतुलित कीमत कहते हैं ।

91.

सामान्यतः ईंट का बाजार होता है (क) स्थानीय बाजार(ख) प्रादेशिक बाजार(ग) राष्ट्रीय बाजार(घ) अन्तर्राष्ट्रीय बाजार

Answer»

सही विकल्प है (क) स्थानीय बाजार।

92.

व्यापार चक्र क्या है ?

Answer»

व्यापार में आनेवाले अच्छे और बुरे सोपान जो चक्राकार गति में होते है यह व्यापार चक्र हैं ।

93.

नेहरू जी की आत्मकथा’ पुस्तक का बाजार है(क) स्थानीय बाजार(ख) प्रादेशिक बाजार(ग) राष्ट्रीय बाजार(घ) अन्तर्राष्ट्रीय बाजार

Answer»

सही विकल्प है  (घ) अन्तर्राष्ट्रीय बाजार।

94.

क्रेता किसे कहते हैं ?

Answer»

वस्तु या सेवा खरीदनेवाले को क्रेता कहते हैं ।

95.

पूर्ण स्पर्धावाला बाजार किसे कहते हैं ?

Answer»

समगुणी वस्तु के असंख्य क्रेता और विक्रेता होने से कोई एक या कुछ उत्पादक वस्तु की कीमत को प्रभावित नहीं कर सकता ऐसा बाजार अर्थात् पूर्ण स्पर्धावाला बाजार ।

96.

बाजार कीमत किसे कहते हैं ?

Answer»

बाजार कीमत अर्थात् ऐसी कीमत जो क्रेता या विक्रेता दोनों को स्वीकृत हो ।

97.

पूर्ण बाजार की दो आवश्यक दशाएँ लिखिए।

Answer»

(1) क्रेता-विक्रेताओं को बाजार का पूर्ण ज्ञान होता है।
(2) पूर्ण प्रतियोगिता पायी जाती है।

98.

आर्थिक बाजार के दो आवश्यक गुण बताइए।

Answer»

(1) क्रेता तथा विक्रेताओं का होना।
(2) परस्पर प्रतियोगिता का पाया जाना।

99.

किस प्रकार के बाजार में वस्तुओं का क्रय-विक्रय नियन्त्रित मूल्यों पर होता है ?

Answer»

अधिकृत या वैधानिक बाजार में।

100.

जब बाजार में प्रतियोगिता का अभाव हो तो उस बाजार को किस प्रकार का बाजार कहते हैं?

Answer»

एकाधिकार बाजार।