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This section includes InterviewSolutions, each offering curated multiple-choice questions to sharpen your knowledge and support exam preparation. Choose a topic below to get started.

1.

पूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति है(क) वास्तविक(ख) काल्पनिक(ग) वास्तविक और काल्पनिक(घ) इनमें से कोई नहीं

Answer»

सही विकल्प है  (ख) काल्पनिक।

2.

गेहूँ व सब्जियों के बाजार को क्षेत्र के आधार पर कौन-से बाजार की संज्ञा दी जाती है?

Answer»

स्थानीय बाजार।

3.

सोने-चाँदी का बाजार है(क) स्थानीय बाजार(ख) प्रादेशिक बाजार(ग) राष्ट्रीय बाजार(घ) अन्तर्राष्ट्रीय बाजार

Answer»

सही विकल्प है  (घ) अन्तर्राष्ट्रीय बाजार।

4.

विक्रेता किसे कहते हैं ?

Answer»

वस्तु या सेवा का विक्रय करनेवाले को विक्रेता कहते हैं ।

5.

अण्डे के बाजार को किस वर्गीकरण में रखा जाएगा?

Answer»

स्थानीय बाजार।

6.

अल्पहस्तक एकाधिकार की परिभाषा दीजिए ।

Answer»

अल्पहस्तक एकाधिकार यह एक ऐसा बाजार है जिसमें कुछ विक्रेताओं में से कुछ विक्रेता बाजार में इतना बड़ा कद रखते हैं कि जो बाजार कीमत को असर पहुँचा सकते हैं ।

7.

वस्तु-विभेद किस बाजार का प्रमुख लक्षण होता है?

Answer»

वस्तु-विभेद अपूर्ण प्रतियोगिता वाले बाजार का प्रमुख लक्षण है।

8.

किस बाजार में विक्रेता मात्र Price Taker होता है ?(A) अपूर्ण स्पर्धा(B) एकाधिकारयुक्त बाजार(C) अल्पहस्तक एकाधिकार(D) पूर्ण स्पर्धा का बाजार

Answer»

सही विकल्प है (D) पूर्ण स्पर्धा का बाजार

9.

किस बाजार में उत्पादक-विक्रेताओं की संख्या असंख्य होती है ?(A) अपूर्ण स्पर्धावाला बाजार(B) एकाधिकारयुक्त बाजार(C) एकाधिकारवाला बाजार(D) पूर्ण स्पर्धावाला बाजार

Answer»

सही विकल्प है (D) पूर्ण स्पर्धावाला बाजार

10.

राष्ट्रीय बाजार अर्थात् क्या ?

Answer»

जब वस्तुएँ या सेवाएँ समग्र राष्ट्र में क्रय-विक्रय होता हो ऐसे बाजार को राष्ट्रीय बाजार कहते हैं । जैसे : डेरी प्रोडक्ट, साडी, बाजार, हिन्दी भाषा के उपन्यास आदि ।

11.

वस्तु-विभिन्नता का अर्थ दीजिए ।

Answer»

वस्तु-विभिन्नता अर्थात् एक ही प्रकार की वस्तु अन्य वस्तु के स्वरूप, गुणधर्म या गुणवत्ता में भिन्न है ऐसा दर्शाना ।

12.

किस बाजार में इकाईयों का प्रवेश बंद होता है ?(A) सादा स्पर्धा(B) पूर्ण स्पर्धा(C) एकाधिकार(D) एकाधिकारयुक्त स्पर्धा

Answer»

सही विकल्प है (C) एकाधिकार

13.

एकाधिकार युक्त स्पर्धा अर्थात् क्या ?

Answer»

बाजार में वास्तव में न तो पूर्ण स्पर्धा होती है न पूर्ण एकाधिकार बल्कि दोनों का सहअस्तित्व देखने को मिलता है । अर्थात कुछ स्पर्धा और कुछ एकाधिकार होता है । जिसे एकाधिकारयुक्त स्पर्धा के नाम से जानते है । प्रो. चेम्बरलीन के शब्दों में ‘पूर्ण स्पर्धा और पूर्ण एकाधिकार न हो परंतु दोनों का सहअस्तित्व हो ऐसे बाजार को एकाधिकार युक्त स्पर्धा कहा जाता है ।’

14.

अति-दीर्घकालीन बाजार में पूर्ति का स्वरूप हो सकता है(क) पूर्ति को स्थायी रूप से माँग के बराबर किया जा सकता है।(ख) पूर्ति को माँग के बराबर नहीं बढ़ाया जा सकता है।(ग) पूर्ति को माँग के अनुसार बढ़ाने के लिए समय नहीं मिल पाता है।(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं

Answer»

(क) पूर्ति को स्थायी रूप से माँग के बराबर किया जा सकता है।

15.

एकाधिकारवाले बाजार में विक्रेताओं की संख्या कितनी होती है ?(A) एक(B) अधिक(C) असंख्य(D) पाँच

Answer»

सही विकल्प है (A) एक

16.

असामान्य लाभ किस बाजार का सामान्य लक्षण है ?(A) एकाधिकारयुक्त स्पर्धा(B) अल्पहस्तक एकाधिकार(C) एकाधिकार(D) पूर्ण स्पर्धा

Answer»

सही विकल्प है (C) एकाधिकार

17.

‘पूर्ण स्पर्धावाले बाजार में इकाईयों का मुक्त आवागमन अपने आप बंद हो जाता है ।’ विधान समझाइए ।

Answer»

एकाधिकार युक्त स्पर्धावाले बाजार में मुक्त आवागमन अल्पकालीन समय के लिए देखने को मिलता है । अर्थात इकाईयाँ अल्पकालीन समय में उद्योगों के लाभ से आकर्षित होकर प्रवेश करती है अथवा नुकसान के कारण निकास करती हैं । परंतु दीर्घकालीन में जब एकाधिकारयुक्त स्पर्धावाले बाजार सामान्य लाभ की स्थिति उत्पन्न होती है । तब इकाईयों की उद्योग में आवागमन अपने आप बंद हो जाता है । कारण कि जब उद्योग सामान्य मुनाफा की स्थिति में पहुँचता है तब इकाईयाँ ऐसे उद्योगों में प्रवेश के लिए आकर्षित नहीं होती है इसलिए प्रवेश बंद करती हैं । उसी प्रकार उद्योग में सामान्य लाभ की स्थिति पर इकाई घाटा न होने से उद्योग छोड़कर नहीं जाती है । इस प्रकार दीर्घकाल समय के बाद पूर्ण स्पर्धा में इकाईयाँ मुक्त आवागमन अपने आप बंद हो जाता है ।

18.

एकाधिकार युक्त स्पर्धा के तीन लक्षणों को समझाइए ।

Answer»

पूर्ण स्पर्धा और एकाधिकारवाले बाज़ार के मध्य की तमाम स्थितियाँ एकाधिकारयुक्त स्पर्धावाले बाज़ार में दिखाई देती हैं । जैसे : द्विहस्तक एकाधिकार, अल्पहस्तक एकाधिकार, एकाधिकार युक्त स्पर्धा की स्थिति ।

ऐसे बाज़ार के लक्षण निम्नलिखित हैं –

(1) असंख्य क्रेता और बड़ी संख्या में विक्रेता : एकाधिकार युक्त स्पर्धावाले बाजार में उत्पादक या विक्रेता बहुत कम या बहुत अधिक नहीं परंतु बड़ी संख्या में होते हैं । इसलिए एकाधिकारयुक्त स्पर्धा में स्पर्धा का तत्त्व बड़े पैमाने पर देखने को मिलता है । जबकि क्रेता असंख्य होते हैं इसलिए बाजार में व्यक्तिगत स्तर पर बड़े पैमाने पर परिवर्तन नहीं ला सकते हैं । इस प्रकार क्रेता वस्तु की कीमत पर प्रभाव नहीं डाल सकता है ।

(2) वस्तु विकलन (वस्तु भिन्नता) : जिन वस्तुओं का उत्पादन होता हैं वे एकसमान गुणधर्मवाली नहीं होतीं । वस्तुएँ संपूर्ण रूप से प्रतिस्थापन नहीं बल्कि निकटतम प्रतिस्थापन के गुण रखती हैं । ऐसी परिस्थिति को वस्तु विकलन की स्थिति कहते हैं । जैसे : टूथपेस्ट, नहाने के साबुन इत्यादि ।

(3) इकाईयों का मुक्त आवागमन : एकाधिकारयुक्तवाले बाजार में इकाईयों का मुक्त प्रवेश या निकास देखने को मिलता है । जब कोई एक अधिक मुनाफा कमाती है तब उस ओर अन्य इकाईयाँ प्रवेश करती है । घाटा होता है तब उस उद्योग को छोड़कर (व्यवसाय बंद . – करके) चली जाती है । इस प्रकार इकाईयों का आवागमन बना रहता है ।

(4) विक्रय खर्च : ‘विक्रय खर्च अर्थात् वस्तु के विक्रय के लिए होनेवाला खर्च जिसमें वस्तु का आकर्षक पेकिंग, परिवहन खर्च, विक्रय कर, शॉ-रुम और सेल्समेन के पीछे होनेवाला खर्च आदि का समावेश होता है । इस प्रकार विक्रय खर्च उत्पादन खर्च का हिस्सा नहीं है । एकाधिकारयुक्त स्पर्धा में विक्रय खर्च एक विशिष्ट लक्षण होता है । इस बाजार में स्पर्धा अधिक होने से व्यापारी या विक्रेता ग्राहक को आकर्षित करने के लिए विक्रय खर्च अधिक करते हैं । वस्तु भिन्नता के कारण वस्तु को एक निश्चित पहचान मिलती है । इसलिए विक्रय खर्च अनुकूल होता है ।

(5) बिनकीमत स्पर्धा : एकाधिकारयुक्त बाजार में इकाईयाँ कीमत स्थिर रखकर अन्य खर्च जैसे विक्रय खर्च, गुणवत्ता खर्च में परिवर्तन . करके वस्तु को विक्रय करके लाभ कमा सकते हैं । जिसे बिन कीमत स्पर्धा कहते हैं ।

(6) बाजार की अपर्याप्त ज्ञान : इस बाजार में वस्तु विक्रेता ओर क्रेता को बाजार का सम्पूर्ण ज्ञान नहीं होता है । बाजार में प्रतिस्थापन वस्तुओं के गुणधर्म या गुणवत्ता से अपरिचित होते हैं । इसलिए एकसमान वस्तुओं की कीमत कम या अधिक होती है अर्थात् समान नहीं होती है ।

19.

एकाधिकार युक्त स्पर्धा के लक्षणों की चर्चा कीजिए ।

Answer»

पूर्ण स्पर्धा और एकाधिकारवाले बाज़ार के मध्य की तमाम स्थितियाँ एकाधिकारयुक्त स्पर्धावाले बाज़ार में दिखाई देती हैं । जैसे : द्विहस्तक एकाधिकार, अल्पहस्तक एकाधिकार, एकाधिकार युक्त स्पर्धा की स्थिति । ऐसे बाज़ार के लक्षण निम्नलिखित हैं –

(1) असंख्य क्रेता और बड़ी संख्या में विक्रेता : एकाधिकार युक्त स्पर्धावाले बाजार में उत्पादक या विक्रेता बहुत कम या बहुत अधिक नहीं परंतु बड़ी संख्या में होते हैं । इसलिए एकाधिकारयुक्त स्पर्धा में स्पर्धा का तत्त्व बड़े पैमाने पर देखने को मिलता है । जबकि क्रेता असंख्य होते हैं इसलिए बाजार में व्यक्तिगत स्तर पर बड़े पैमाने पर परिवर्तन नहीं ला सकते हैं । इस प्रकार क्रेता वस्तु की कीमत पर प्रभाव नहीं डाल सकता है ।

(2) वस्तु विकलन (वस्तु भिन्नता) : जिन वस्तुओं का उत्पादन होता हैं वे एकसमान गुणधर्मवाली नहीं होतीं । वस्तुएँ संपूर्ण रूप से प्रतिस्थापन नहीं बल्कि निकटतम प्रतिस्थापन के गुण रखती हैं । ऐसी परिस्थिति को वस्तु विकलन की स्थिति कहते हैं । जैसे : टूथपेस्ट, नहाने के साबुन इत्यादि ।

(3) इकाईयों का मुक्त आवागमन : एकाधिकारयुक्तवाले बाजार में इकाईयों का मुक्त प्रवेश या निकास देखने को मिलता है । जब कोई एक अधिक मुनाफा कमाती है तब उस ओर अन्य इकाईयाँ प्रवेश करती है । घाटा होता है तब उस उद्योग को छोड़कर (व्यवसाय बंद . – करके) चली जाती है । इस प्रकार इकाईयों का आवागमन बना रहता है ।

(4) विक्रय खर्च : ‘विक्रय खर्च अर्थात् वस्तु के विक्रय के लिए होनेवाला खर्च जिसमें वस्तु का आकर्षक पेकिंग, परिवहन खर्च, विक्रय कर, शॉ-रुम और सेल्समेन के पीछे होनेवाला खर्च आदि का समावेश होता है । इस प्रकार विक्रय खर्च उत्पादन खर्च का हिस्सा नहीं है । एकाधिकारयुक्त स्पर्धा में विक्रय खर्च एक विशिष्ट लक्षण होता है । इस बाजार में स्पर्धा अधिक होने से व्यापारी या विक्रेता ग्राहक को आकर्षित करने के लिए विक्रय खर्च अधिक करते हैं । वस्तु भिन्नता के कारण वस्तु को एक निश्चित पहचान मिलती है । इसलिए विक्रय खर्च अनुकूल होता है ।

(5) बिनकीमत स्पर्धा : एकाधिकारयुक्त बाजार में इकाईयाँ कीमत स्थिर रखकर अन्य खर्च जैसे विक्रय खर्च, गुणवत्ता खर्च में परिवर्तन . करके वस्तु को विक्रय करके लाभ कमा सकते हैं । जिसे बिन कीमत स्पर्धा कहते हैं ।

(6) बाजार की अपर्याप्त ज्ञान : इस बाजार में वस्तु विक्रेता ओर क्रेता को बाजार का सम्पूर्ण ज्ञान नहीं होता है । बाजार में प्रतिस्थापन वस्तुओं के गुणधर्म या गुणवत्ता से अपरिचित होते हैं । इसलिए एकसमान वस्तुओं की कीमत कम या अधिक होती है अर्थात् समान नहीं होती है ।

20.

एकाधिकार के लक्षण समझाइए ।

Answer»

आधुनिक समय में इस प्रकार के बाजार का क्षेत्र सीमित हैं । अब तो ऐसे बाजार सिर्फ कुछ ही क्षेत्र में उपलब्ध हैं । एकाधिकार अर्थात् उत्पादक-विक्रेताओं के बीच स्पर्धा का अभाव हो । जिसमें किसी वस्तु या सेवा का एक ही उत्पादक हो ऐसे बाजार को एकाधिकार का बाजार कहते हैं । एकाधिकार बाजार के लक्षण निम्नानुसार हैं :

(1) एक ही उत्पादक या विक्रेता : एकाधिकारवाले बाजार में वस्तु का उत्पादक या विक्रेता मात्र एक ही होता है, पूर्ति पर उसका नियंत्रण होता है । इस बाजार में वस्तु का उत्पादक या विक्रेता एक ही होने से स्पर्धा का तत्त्व नहीं होता है । इसलिए उसका कीमत पर संपूर्ण नियंत्रण होता है । इस प्रकार उत्पादक या विक्रेता वस्तु की कीमत पर प्रभावित करने से उसे कीमत निश्चित करनेवाले Price Maker के नाम से जानते हैं ।

(2) असंख्य क्रेता : एकाधिकारवाले बाजार में क्रेता असंख्य होते है । एकाधिकार में स्पर्धा क्रेताओं (ग्राहकों) के बीच देखने को मिलती हैं । इसलिए क्रेता वस्तु की कीमत पर असर नहीं डाल सकते हैं ।

(3) प्रतिस्थापन वस्तु का अभाव : एकाधिकारवाले बाजार में नजदीक की प्रतिस्थापन वस्तु का अभाव देखने को मिलता है । परंतु वास्तव में शुद्ध एकाधिकार काल्पनिक होने से उसका अस्तित्व नहीं होता है । व्यवहार में अशुद्ध एकाधिकार देखने को मिलता है ।

(4) नयी इकाईयों के प्रवेश पर निषेध : एकाधिकारवाले बाजार में नयी इकाईयों के प्रवेश पर प्रतिबंध होता है । ऐसा तभी संभव होता है जब सरकार की आर्थिक नीति ऐसा ही होता है । जैसा – अहमदाबाद में Torent Power कंपनी ।

(5) कीमत अथवा विक्रय पर नियंत्रण : एकाधिकारवाले बाजार में एक ही विक्रेता या उत्पादक होता है इसलिए उसका कीमत अथवा विक्रय पर नियंत्रण होता है । परंतु यह दोनों एकसाथ संभव नहीं है ।

(6) असामान्य मुनाफा : एकाधिकारवाले बाजार में उत्पादक या विक्रेता एक ही होता है । इसके उपरांत नयी इकाईयों के प्रवेश पर प्रतिबंध होता है । इसलिए एकाधिकारवाला अल्पकालीन समय असामान्य लाक्ष कमाता है ।

(7) कीमत में भेदभाव : एकाधिकारवाले बाजार में वस्तु कीमत उत्पादक या विक्रेता ही निश्चित करता है इसलिए वह अपनी इच्छा अनुसार कीमत वसूल करता है । इसलिए कीमत में भेदभाव देखने को मिलता है । जैसे : डॉक्टर

(8) इकाई ही उद्योग है : वास्तव में इकाई अर्थात् उत्पादन करनेवाली एक स्वतंत्र इकाई, जबकि उद्योग अर्थात् एकसमान वस्तुओं का उत्पादन करनेवाली इकाईयों का समूह । परंतु एकाधिकारवाले बाजार में उत्पादक या विक्रेता एक ही होने से वह इकाई है । ऐसे उद्योग में इकाईयों का समूह भी एक ही इकाई होती है ।

21.

अल्प एकाधिकारवाले बाजार के लक्षण समझाइए ।

Answer»

अल्प एकाधिकार बाजार के लक्षण निम्नानुसार है :

(1) कम विक्रेता और असंख्य क्रेता : इस बाजार में विक्रेताओं की संख्या खूब ही कम होती हैं । सामान्य रूप से बाजार में इकाईयों की संख्या दो या उससे अधिक और लगभग दस से बीस तक मर्यादित होती है । कम विक्रेता होने के कारण एकाधिकारशाही प्रकार का नियंत्रण होता है तथा क्रेता असंख्य होते हैं । इसलिए क्रेता वस्तु की कीमत को प्रभावित नहीं कर सकता है ।

(2) समानगुणी या प्रतिस्थापन वस्तुएँ : अल्पहस्तकवाले बाजार में समगुणी अथवा प्रतिस्थापन वस्तुओं का उत्पादन और विक्रय किया जाता है । जब बाजार में इकाईयाँ समगुणी वस्तुओं का उत्पादन और विक्रय करती है तब बाजार को संपूर्ण अल्पहस्तक एकाधिकार कहते हैं । जैसे : नमक, क्रूड ऑयल, चाय आदि ।

(3) इकाईयों का प्रवेश : अल्पहस्तक एकाधिकारवाले बाजार में नयी इकाईयों का प्रवेश मुक्त या प्रतिबंधित होती है । यदि बाजार में मुक्त अल्पहस्तक एकाधिकारवाले बाजार के उद्योग में नयी इकाईयों के प्रवेश मुक्त होते हैं । जबकि प्रतिबंधित अल्पहस्तकवाले बाजार में प्रतिबंध होता है ।

(4) विक्रय खर्च : अल्पहस्तक एकाधिकारवाले बाजार में विक्रय खर्च भी देखने को मिलता है । विक्रय खर्च अर्थात् वस्तु के विक्रय के लिए किया जानेवाले खर्च । जिसमें वस्तु की आकर्षक पेकिंग, परिवहन खर्च, विक्रय कर, थोक व्यापारी और फुटकर व्यापारी को भुगतान की गयी रकम, शॉ रूम और सेल्समेन के पीछे किया जानेवाले खर्च का समावेश किया जाता है ।
इस बाजार में ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए विक्रय खर्च खूब उपयोगी होता है ।

(5) परस्पर अवलंबन : अल्पहस्तक एकाधिकारवाले बाजार में उत्पादक या विक्रेताओं की संख्या बहुत ही कम होती है । इसलिए एकदूसरे की जानकारी रखती हैं । जैसे कार उत्पादक, टेलीविजन उत्पादक आदि यह अपनी स्पर्धक इकाईयों के प्रकार और गुणवत्ता पर ध्यान रखते हैं और कीमत निर्धारण करते समय स्पर्धक इकाईयों पर परोक्ष या प्रत्यक्ष आधार रखते हैं ।

(6) कीमत स्थिरता (त्रुटक मांग रेखा) : अल्पहस्तक एकाधिकारवाले बाजार में माँग रेखा त्रुटक (मोड़दार) देखने को मिलती हैं ।

22.

किस परिस्थिति में एकाधिकारवाले बाजार में प्रतिस्थापन वस्तुओं का अभाव लागू नहीं पड़ता है ?’ समझाइए ।

Answer»

एकाधिकारवाले बाजार में प्रतिस्थापन वस्तुओं का अभाव एक महत्त्वपूर्ण लक्षण देखने को मिलता है । शुद्ध एकाधिकार वास्तव में एक कल्पना है, उसका कोई अस्तित्व नहीं होता है । इसलिए व्यवहार में अशुद्ध एकाधिकार देखने को मिलता है । जिसमें नजदिकी प्रतिस्थापन वस्तुओं का अभाव देखने को मिलता है, अर्थात् उसके दूर की प्रतिस्थापन वस्तुओं की संभावना देखने को मिलती हैं । जैसे रेलवे में किसी एक निश्चित समय और तारीख पर आरक्षण उपलब्ध न हो तथा नजदीक की प्रतिस्थापन अर्थात् दूसरी रेलवे कंपनी में टिकट नहीं मिल सकती कारण कि ऐसी किसी कंपनी का अस्तित्व ही नहीं है । जबकि निश्चित समय और तारीख पर यात्रा करना अनिवार्य हो तो रेलवे की दूर की प्रतिस्थापन विमानी सेवा अथवा अन्य परिवहन सेवा का उपयोग कर सकते हैं । इस प्रकार दूर की प्रतिस्थापन वस्तुओं पर नियम लागू नहीं पड़ता है ।

23.

बाजार का अर्थ समझाकर उसके लक्षण बताइए ।

Answer»

सामान्य रूप से जिस स्थल पर वस्तु या सेवा का क्रय-विक्रय हो तो उसे बाजार कहते हैं । अर्थात सामान्य परिभाषा भौगोलिक विस्तार तक मर्यादित है । अर्थशास्त्र में बाजार की परिभाषा निम्नानुसार है : ‘वस्तु या सेवा के क्रय-विक्रय के उद्देश्य से क्रेता और विक्रेता एक-दूसरे के प्रत्यक्ष या परोक्ष सम्पर्क में आये, वह व्यवस्था अर्थात् बाजार ।’

प्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रो. सेम्युअलसन के शब्दों में “बाजार अर्थात् एक ऐसी कार्यव्यवस्था कि जहाँ क्रेता और विक्रेता वस्तु और सेवा की कीमत और प्रमाण (जत्था) निश्चित करने के उद्देश्य से एकदूसरे के सम्पर्क में आते हैं ।”

बाजार के लक्षण निम्नानुसार है :

1. क्रेता और विक्रेता : बाजार में क्रेता और विक्रेता का होना अनिवार्य है । वे अपने व्यक्तिगत उद्देश्य से जो विनिमय करते हैं उसे क्रय-विक्रय की प्रक्रिया कहते हैं । विक्रेता का मुख्य उद्देश्य अधिक लाभ कमाना तथा क्रेता वस्तु या सेवा में से महत्तम संतोष प्राप्त करने के उद्देश्य से इस प्रक्रिया का जन्म होता है ।

2. वस्तु या सेवाएँ : बाजार तभी अस्तित्व में आयेगा जब कोई वस्तु या सेवा उत्पादित स्वरूप में मौजूद होगी । अर्थात् वस्तु की अनुपस्थिति में बाजार अस्तित्व में नहीं आता है । विक्रेता महत्तम लाभ के लिए विभिन्न प्रकार की वस्तुओं को अस्तित्व में लाता है । तथा क्रेता महत्तम संतोष प्राप्त करने के लिए आदर्श वस्तु और सेवा का संयोजन करता है ।

3. क्रेता-विक्रेता का प्रत्यक्ष या परोक्ष सम्पर्क : बाजार के अस्तित्व के लिए क्रेता-विक्रेता का सम्पर्क आवश्यक है । फिर चाहे वह प्रत्यक्ष या परोक्ष । वर्तमान समय में प्रत्यक्ष के साथ-साथ परोक्ष रूप से भी सम्पर्क होता है ।

जैसे :

  • टेलीशोपिंग : इसमें वस्तु और सेवा की खरीदी टेलीफोन द्वारा होती है । वस्तु या सेवा पसंद करके टेलीफोन पर क्रेता विक्रेता
    को ऑर्डर (आदेश) देता है ।
  • ऑनलाइन शोपिंग : इसमें क्रेता इन्टरनेट के माध्यम से सम्बन्धित वस्तु या सेवा की विक्रेता की वेबसाइट पर जाकर वस्तु या सेवा का चयन करता है और उसीके अनुसार आदेश (ऑर्डर) देता है ।
    इस प्रकार वर्तमान समय में टेलीशोपिंग और ऑनलाइन शोपिंग द्वारा क्रेता-विक्रेता परोक्ष रूप से सम्पर्क में आते हैं ।

4. कीमत : बाज़ार में निश्चित समय पर किसी एक वस्तु या सेवा की कीमत निश्चित होनी चाहिए । बाजार में वस्तु और सेवा की कीमत माँग और पूर्ति के परिबलों द्वारा निश्चित होती है । वस्तु की कीमत सर्वस्वीकृत होनी चाहिए ।

5. बाजार का संपूर्ण ज्ञान : बाजार के अस्तित्व के लिए बाजार का सम्पूर्ण ज्ञान क्रेता-विक्रेता को होना आवश्यक है । बाजार में मुद्रास्फीति अथवा मंदी हो अथवा प्राकृतिक या मानवीय दुर्घटनाएँ हो इस परिस्थिति में उत्पादन, विक्रय या क्रय के संदर्भ में उचित समय, उचित प्रमाण के सम्बन्ध में उचित निर्णय ले सकते है ।

24.

‘पूर्ण स्पर्धावाले बाजार में माँग रेखा संपूर्ण मूल्य सापेक्ष बनती है ।’ विधान समझाइए ।

Answer»

पूर्ण स्पर्धावाले बाजार में उत्पादक या व्यापारी किस कीमत पर विक्रय करता है, प्रतिस्थापन या पूरक वस्तु किस गुणवत्ता पर बेचता है आदि बातों से परिचित होते हैं । इसलिए ऐसी समानगुणी वस्तुएँ रखनेवाले बाजार में कोई एक उत्पादक या व्यापारी वस्तु की अलग-अलग कीमत लेकर कीमत भेदभाव सर्जित करने में असमर्थ होता है । इसलिए बाजार में कीमत एकसमान होती है साथ क्रेता भी कीमत और गुणवत्ता में संपूर्ण परिचित होते हैं । जिसके कारण कोई एक उत्पादक का व्यापारी क्रेता (ग्राहक) से अधिक कीमत नहीं ले सकता है ।

इस प्रकार क्रेता, विक्रेता और उत्पादक सभी पक्षों को बाजार का संपूर्ण ज्ञान होने से बाजार में एकसमान कीमत प्रवर्तित होती हैं । जिसके कारण पूर्ण स्पर्धावाले बाजार की माँग रेखा संपूर्ण मूल्य सापेक्ष होती है ।

25.

भौगोलिक दृष्टि से बाजार के वर्गीकरण को समझाइए ।

Answer»

भौगोलिक दृष्टि से या स्थान के आधार पर बाजार का वर्गीकरण निम्नानुसार है :

(1) स्थानीय बाज़ार : जिन चीज-वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन जिस स्थान पर होता हो वहीं उसकी बिक्री भी हो जाए ऐसे . स्थान पर होनेवाले बाज़ार को स्थानीय बाज़ार कहते हैं । अधिकांशतः शीघ्र नष्ट होनेवाली वस्तुओं का बाज़ार स्थानीय होता है । जैसे : साग-सब्जी, दूध, माँस-मछली, अण्डा, गाँव के धोबी, नाई, कुम्हार, बढ़ई इत्यादि का बाज़ार ।

(2) प्रान्तीय बाज़ार : जिन वस्तुओं के क्रेता एक प्रांत या राज्यभर में फैलें हों उन वस्तुओं का बाज़ार अर्थात् वस्तु का उत्पादन जिस प्रान्त में होता हो और अधिकांश विक्रय उसी प्रांत में होता हो ऐसी वस्तुओं के बाज़ार को प्रान्तीय बाज़ार कहते हैं । जैसे : राजस्थान का लहँगा-चुन्नी, पंजाब में पघड़ी का बाज़ार, गुजरात के चणिया-चोली का बाज़ार, उत्तर प्रदेश की कुर्ता-धोबी का बाज़ार इत्यादि ।

(3) राष्ट्रीय बाज़ार : जिस राष्ट्र में वस्तुओं का उत्पादन हो और उसी राष्ट्र में उसका विक्रय अधिकांशतः हो तो ऐसी वस्तुओं के बाज़ार को राष्ट्रीय बाज़ार कहते हैं । जैसे : भारत की साड़ियों का बाज़ार, भारतीय चूड़ियों का बाज़ार इत्यादि ।

(4) अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ार : जिस वस्तु का उत्पादन किसी एक राष्ट्र में होता है लेकिन उसका विक्रय विश्व के अन्य देशों में होता । हो ऐसी वस्तुओं के बाज़ार को अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ार कहते हैं । जैसे : ब्राज़िल की कॉफी का बाज़ार, हिन्दुस्तानी चाय, सोना-चांदी का बाज़ार इत्यादि ।

परंतु आज के आधुनिक संदेशा व्यवहार और यातायात की सुविधाओं के विकास के कारण बाज़ार को स्थान की दृष्टि से बाँध पाना उचित नहीं है ।

26.

पूर्ण स्पर्धा और एकाधिकार (अपूर्ण स्पर्धा) के बीच अंतर स्पष्ट कीजिए ।

Answer»
पूर्ण स्पर्धा का बाजारअपूर्ण स्पर्धा का बाजार (एकाधिकार)
क्रेताओं और विक्रेताओं की स्थिति अत्याधिक होती है ।विक्रेताओं की संख्या अपेक्षाकृत कम होती है ।
क्रेता-विक्रेताओं को बाज़ार का पूर्ण ज्ञान होता है ।क्रेता-विक्रेताओं को बाज़ार का पूर्ण ज्ञान नहीं होता ।
उत्पादन के साधनों में पूर्ण गतिशीलता पायी जाती है ।उत्पादन के साधनों की पूर्ण गतिशीलता में अनेक प्रकार की बाधाएँ रहती हैं।
पूर्ण स्पर्धा की स्थिति काल्पनिक है ।अपूर्ण स्पर्धा की स्थिति व्यवहारिक है ।
वस्तुएँ समानगुणी होती हैं ।वस्तु विभेद पाया जाता है ।
माँग रेखा पूर्णत: लोचदार रहती है ।माँग रेखा पूर्णतः लोचदार से कम अर्थात् बाँये से दाहिने नीचे की ओर गिरती है ।

27.

कीमत स्थिर (जड़ता) के सम्बन्ध में चर्चा कीजिए ।

Answer»

अल्पहस्तक एकाधिकारवाले बाजार में इकाईयों की संख्या अल्प होती है और इकाईयों परस्पर आधारित (अवलंबन) होती हैं। जिसके कारण यदि इकाई एक वस्तु की कीमत कम करे तो माँग के नियम के अनुसार अन्य इकाईयों की वस्तु की तुलना में वस्तु सस्ती बनने से माँग में वृद्धि होगी । स्पर्धक इकाईयों की वस्तु की माँग में कमी होगी । यदि इकाई को ऐसा न होने देना हो तो वह भी अनिवार्य रूप से वस्तु की कीमत घटाती है । इस कारण कीमत स्पर्धा के कारण वस्तु की कीमत किसी एक निम्नस्तर पर पहुँच जाती है । जहाँ से कीमत में कमी करना संभव नहीं होता है । जबकि दूसरी ओर कोई एक इकाई वस्तु की कीमत बढ़ाये तो उसकी माँग घटेगी जिसका लाभ स्पर्धक इकाई को होगा । इस प्रकार, स्पर्धक इकाई कीमत घटाने का अनुसरण करती है । परंतु कीमत बढ़ाने का अनुसरण नहीं करती है । जिससे अल्पहस्तक एकाधिकारवाले बाजार में वस्तु की कीमत किसी एक स्तर पर जड़ अर्थात् स्थिर बन जाती है ।

28.

जत्था आधारित बाजार के वर्गीकरण को समझाइए ।

Answer»

जत्था आधारित बाजार का वर्गीकरण मुख्य रूप से दो प्रकार से किया जाता है :

  1. थोक बाजार
  2. फुटकर बाजार

फुटकर और थोक बाज़ार : जहाँ पर वस्तुओं का क्रय-विक्रय बड़े पैमाने पर होता है उसे थोक बाज़ार कहते हैं । जैसे : गुजरात के ऊँझा शहर का जीरा का गंज बाज़ार, अहमदाबाद के कालुपुर का चोखा बाज़ार, अहमदाबाद के नरोड़ा रोड़ का फ्रूट मार्केट इत्यादि । जहाँ पर कम मात्रा में अर्थात् एक-दो इकाई की संख्या में वस्तुओं का क्रय-विक्रय होता हो उसे फुटकर बाज़ार कहते हैं । जैसे : अहमदाबाद की रतनपोल का साड़ी का बाज़ार, गली-नुक्कड़ पर लगनेवाले साग-सब्जी का बाज़ार इत्यादि ।

29.

अल्पहस्त एकाधिकारवाले बाजार के तीन लक्षण समझाइए ।

Answer»

अल्प एकाधिकार बाजार के लक्षण निम्नानुसार है :

(1) कम विक्रेता और असंख्य क्रेता : इस बाजार में विक्रेताओं की संख्या खूब ही कम होती हैं । सामान्य रूप से बाजार में इकाईयों की संख्या दो या उससे अधिक और लगभग दस से बीस तक मर्यादित होती है । कम विक्रेता होने के कारण एकाधिकारशाही प्रकार का नियंत्रण होता है तथा क्रेता असंख्य होते हैं । इसलिए क्रेता वस्तु की कीमत को प्रभावित नहीं कर सकता है ।

(2) समानगुणी या प्रतिस्थापन वस्तुएँ : अल्पहस्तकवाले बाजार में समगुणी अथवा प्रतिस्थापन वस्तुओं का उत्पादन और विक्रय किया जाता है । जब बाजार में इकाईयाँ समगुणी वस्तुओं का उत्पादन और विक्रय करती है तब बाजार को संपूर्ण अल्पहस्तक एकाधिकार कहते हैं । जैसे : नमक, क्रूड ऑयल, चाय आदि ।

(3) इकाईयों का प्रवेश : अल्पहस्तक एकाधिकारवाले बाजार में नयी इकाईयों का प्रवेश मुक्त या प्रतिबंधित होती है । यदि बाजार में मुक्त अल्पहस्तक एकाधिकारवाले बाजार के उद्योग में नयी इकाईयों के प्रवेश मुक्त होते हैं । जबकि प्रतिबंधित अल्पहस्तकवाले बाजार में प्रतिबंध होता है ।

(4) विक्रय खर्च : अल्पहस्तक एकाधिकारवाले बाजार में विक्रय खर्च भी देखने को मिलता है । विक्रय खर्च अर्थात् वस्तु के विक्रय के लिए किया जानेवाले खर्च । जिसमें वस्तु की आकर्षक पेकिंग, परिवहन खर्च, विक्रय कर, थोक व्यापारी और फुटकर व्यापारी को भुगतान की गयी रकम, शॉ रूम और सेल्समेन के पीछे किया जानेवाले खर्च का समावेश किया जाता है ।
इस बाजार में ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए विक्रय खर्च खूब उपयोगी होता है ।

(5) परस्पर अवलंबन : अल्पहस्तक एकाधिकारवाले बाजार में उत्पादक या विक्रेताओं की संख्या बहुत ही कम होती है । इसलिए एकदूसरे की जानकारी रखती हैं । जैसे कार उत्पादक, टेलीविजन उत्पादक आदि यह अपनी स्पर्धक इकाईयों के प्रकार और गुणवत्ता पर ध्यान रखते हैं और कीमत निर्धारण करते समय स्पर्धक इकाईयों पर परोक्ष या प्रत्यक्ष आधार रखते हैं ।

(6) कीमत स्थिरता (त्रुटक मांग रेखा) : अल्पहस्तक एकाधिकारवाले बाजार में माँग रेखा त्रुटक (मोड़दार) देखने को मिलती हैं ।

30.

विक्रय खर्च क्या है ?

Answer»

एकाधिकार युक्त स्पर्धावाले बाज़ार में वस्तु विक्रय के लिए सभी उत्पादक अपनी वस्तुओं को अन्य वस्तुओं से श्रेष्ठ सिद्ध करने और ग्राहकों तक उसकी जानकारी पहुँचाने के लिए विभिन्न माध्यमों के पीछे खर्च करते हैं । जिससे विक्रय वृद्धि का लाभ मिलता है और अधिकतम लाभ प्राप्त कर सकते हैं । इसलिए वस्तु के प्रचार-प्रदर्शन के लिए दृश्य-श्राव्य माध्यमों के द्वारा किया गया खर्च विक्रय खर्च है ।

31.

समतुला विक्षेप से क्या प्रभाव पड़ता है ?

Answer»

वस्तु की माँग और पूर्ति की स्थिति न बदले तब तक कीमत का संतुलन बना रहता है । परंतु माँग और पूर्ति दोनों में या दोनों में से किसी एक की स्थिति में परिवर्तन होने पर नई संतुलन की स्थिति प्राप्त होती है । जहाँ माँग के स्थिर रहने पर पूर्ति में कमी होने पर कीमत बढ़ती है जबकि पूर्ति में वृद्धि होने पर कीमत कम हो जाती है । इसी प्रकार पूर्ति के स्थिर रहने पर माँग में कमी होने पर कीमत बढ़ती है और माँग में वृद्धि होने पर कीमत कम हो जाती है । जहाँ पुनः समतुला की स्थिति स्थापित होती है ।

32.

जत्था आधारित बाजार के प्रकार हैं ………………………(A) पाँच(B) सात(C) दो(D) तीन

Answer»

सही विकल्प है (C) दो

33.

बाजार का वर्गीकरण : स्थान आधारित और जत्था (थोक) आधारित समझाइए ।

Answer»

अर्थशास्त्र में बाजार का वर्गीकरण अलग-अलग मापदण्डों के आधार पर किया जाता है । जिसमें स्थान आधारित बाजार, समय आधारित बाजार, वस्तु के स्वरूप पर आधारित बाजार, वस्तु के जत्थे पर आधारित बाजार, नियंत्रण पर आधारित बाजार, स्पर्धा आधारित बाजार द्वारा बाजार के विभिन्न प्रकार है ।

यहाँ स्थान आधारित और जत्था आधारित बाजार की चर्चा करेंगे :

(1) स्थान आधारित बाजार : स्थान आधारित बाजार को भौगोलिक विस्तार के आधार पर विभाजित किया गया है, जो निम्नानुसार है :

(i) स्थानिक बाज़ार : जिन चीज-वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन जिस स्थान पर होता हो वहीं उसकी बिक्री भी हो जाए ऐसे स्थान पर होनेवाले बाज़ार को स्थानीय बाज़ार कहते हैं । अधिकांशतः शीघ्र नष्ट होनेवाली वस्तुओं का बाज़ार स्थानीय होता है ।
जैसे : साग-सब्जी, दूध, माँस-मछली, अण्डा, गाँव के धोबी, नाई, कुम्हार, बढ़ई इत्यादि का बाज़ार ।

(ii) प्रादेशिक बाज़ार : जिन वस्तुओं के क्रेता एक प्रदेश या राज्यभर में फैलें हों उन वस्तुओं का बाज़ार अर्थात् वस्तु का उत्पादन जिस प्रान्त में होता हो और अधिकांश विक्रय उसी प्रांत में होता हो ऐसी वस्तुओं के बाज़ार को प्रादेशिक बाज़ार कहते हैं । जैसे : राजस्थान का लहंगा-चुन्नी, पंजाब में पघड़ी का बाज़ार, गुजरात के चणिया-चोली का बाज़ार, उत्तर प्रदेश की कुर्ता-धोबी का बाज़ार इत्यादि ।

(iii) राष्ट्रीय बाज़ार : जिस राष्ट्र में वस्तुओं का उत्पादन हो और उसी राष्ट्र में उसका विक्रय अधिकांशतः हो तो ऐसी वस्तुओं के बाज़ार को राष्ट्रीय बाज़ार कहते हैं । जैसे : भारत की साड़ियों का बाज़ार, भारतीय चूड़ियों का बाज़ार इत्यादि ।

(iv) अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ार : जिस वस्तु का उत्पादन किसी एक राष्ट्र में होता है लेकिन उसका विक्रय विश्व के अन्य देशों में होता हो ऐसी वस्तुओं के बाज़ार को अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ार कहते हैं । जैसे : ब्राज़िल की कॉफी का बाज़ार, हिन्दुस्तानी चाय, सोना-चांदी का बाज़ार इत्यादि ।
परंतु आज के आधुनिक संदेशा व्यवहार और यातायात की सुविधाओं के विकास के कारण बाज़ार को स्थान की दृष्टि से बाँध . पाना उचित नहीं है ।

(2) जत्था आधारित बाजार (विक्रय की दृष्टि से) : जत्था आधारित या विक्रय की दृष्टि से बाजार के मुख्य दो प्रकार हैं :

(i) जत्थाबंद (थोक) बाजार : थोक बाजार ऐसा बाजार है जिसमें बड़े पैमाने पर वस्तुओं का क्रय-विक्रय होता हैं । थोक बाजार में थोक व्यापारी उत्पादक के पास से बड़े पैमाने पर वस्तुओं की खरीदी करता है और उसे फुटकर बाजार में व्यापारियों को विक्रय करता है इस प्रकार थोक बाजार में फुटकर व्यापारी क्रेता बनते हैं । थोक व्यापारी उत्पादक एवं ग्राहक के बीच की कड़ी है, जैसे : गुजरात के ऊँझा शहर का जीरा गंज का बाजार, अहमदाबाद के कालुपुर का चोखा बाजार आदि ।

(ii) फुटकर बाजार : फुटकर बाजार में वस्तुओं का क्रय-विक्रय छोटे पैमाने पर या फुटकर होता है । इस प्रकार फुटकर बाजार के व्यापारी भी बाजार की अन्य एक महत्त्वपूर्ण कड़ी बनकर ग्राहकों तक वस्तुएँ पहुँचाते है । फुटकर व्यापारी थोक व्यापारी से वस्तुएँ खरीदकर ग्राहक तक पहुँचाता है । इस प्रकार फुटकर व्यापारी वस्तुओं का पुनः विक्रय करते हैं और ग्राहकों को उनकी आवश्यकता अनुसार वस्तुएँ
और सेवाएँ पहुँचाते हैं ।

34.

पूर्ण स्पर्धावाले बाजार में वस्तु की कीमत एकसमान क्यों होती है ?

Answer»

पूर्ण स्पर्धावाले बाजार में क्रेता और विक्रेता को संपूर्ण बाजार का ज्ञान होता है । उत्पादक या व्यापारी अन्य उत्पादक और व्यापारी किस कीमत पर विक्रय करता है, प्रतिस्थापन या पूरक वस्तु किस गुणवत्ता पर विक्रय करता है आदि बातों से परिचित होते हैं । इसलिए ऐसे समानगुणी वस्तुएँ रखनेवाले बाजार में कोई एक उत्पादक या व्यापारी वस्तु की अलग-अलग कीमत लेकर भेदभाव सर्जित करने. में असमर्थ होता है इसलिए बाजार में वस्तु की कीमत एकसमान होती है ।

35.

एकाधिकार के संदर्भ में इकाई ही उद्योग है’ समझाइए ।

Answer»

इकाई अर्थात् उत्पादन करनेवाली स्वतंत्र इकाई जबकि उद्योग अर्थात् एकसमान वस्तुओं का उत्पादन करनेवाली इकाईयों का समूह, परंतु एकाधिकारवाले बाजार में उत्पादक या विक्रेता एक ही होने से वह वास्तव में इकाई है और ऐसे उद्योगों में इकाईयों का समूह भी यह एक इकाई से ही होता है । इसलिए कह सकते हैं कि एकाधिकार के संदर्भ में इकाई ही उद्योग है ।

36.

स्थान आधारित बाजार के कितने प्रकार होते हैं ?(A) एक(B) तीन(C) चार(D) सात

Answer»

सही विकल्प है (C) चार

37.

स्पर्धा आधारित बाजार को मुख्य कितने विभागों में बाँटा गया है ?

Answer»

स्पर्धा आधारित बाजार को मुख्य दो विभागों में बाँटा गया है :

  1. पूर्ण स्पर्धा
  2. अपूर्ण स्पर्धा
38.

परिवहन खर्च का अभाव यह किस बाजार का लक्षण है ?(A) पूर्ण स्पर्धा(B) एकाधिकार(C) एकाधिकारयुक्त स्पर्धा(D) अल्पहस्तक एकाधिकार

Answer»

सही विकल्प है (A) पूर्ण स्पर्धा

39.

पूर्ण स्पर्धावाले बाजार के लक्षणों को समझाइए ।

Answer»

जहाँ एकाधिकार का अभाव हो और असंख्य ग्राहक और विक्रेताओं की संख्या हो जिसमें तंदुरस्त स्पर्धा विक्रेताओं के बीच होने के कारण वस्तुओं की उचित (सर्वमान्य) कीमत के साथ गुणवत्ताशील वस्तुओं का उत्पादन होता हो ऐसी स्थितिवाले बाज़ार को पूर्ण स्पर्धा का बाज़ार कहते हैं ।

पूर्ण स्पर्धावाले बाजार की परिभाषा कुछ अर्थशास्त्रियों द्वारा देखें :
श्रीमति ज्होन रोबिन्सन के मतानुसार : “पूर्ण स्पर्धा का अस्तित्व वहीं होता है, जहाँ उत्पादक की उत्पादित वस्तु की माँग संपूर्ण मूल्य सापेक्ष होता है ।”

प्रो. लेक्टविच के मतानुसार : पूर्ण स्पर्धा एक ऐसी बाजार-व्यवस्था है कि जिसमें बाजार कीमत को प्रभावित कर सके उतनी बड़ी पीढ़ी समग्र बाजार में न होने के साथ बहुत-सी इकाईयों समानगुणी वस्तुओं का विक्रय करती हैं ।

पूर्ण स्पर्धावाले बाजार के लक्षण निम्नानुसार है :

(1) असंख्य क्रेता-विक्रेता : जहाँ ग्राहक या विक्रेता क्रमश: अपनी माँग और पूर्ति में परिवर्तन करके बाज़ार की स्थिति को प्रभावित नहीं कर सकते । अर्थात् क्रेता और विक्रेता कीमत निर्धारित न कर सकें बल्कि कीमत का स्वीकार करते हों । प्रवर्तमान कीमतों पर अपनी अनुकूलता के अनुसार क्रय-विक्रय करते हों ।

(2) समानगणी इकाईयाँ : पूर्णरूप से प्रतिस्थापनवाली वस्तुओं का उत्पादन होता है । उत्पादित सभी वस्तुओं की गुणवत्ता समान होती है । जैसे : एक ही गाँव के किसानों के चावल की फसल एकसमान हो ।

(3) बाज़ार व्यवहार का संपूर्ण ज्ञान : अन्य उत्पादक और विक्रेता किस कीमत वस्तुओं का विक्रय कर रहे हैं इसकी जानकारी सभी विक्रेताओं को होती है । ग्राहकों को भी बाज़ार में प्रवर्तमान कीमत और बाज़ार की स्थिति का संपूर्ण ज्ञान होता है । विक्रेता ग्राहकों की अज्ञानता का लाभ नहीं उठा सकते ।

(4) मुक्त प्रवेश : वस्तु के नए-नए ग्राहक माँग करने के लिए स्वतंत्र हों और उत्पादन-विक्रय के लिए किसी भी उत्पादक या विक्रेता पर कोई अंकुश न हो अर्थात् कोई भी ग्राहक या विक्रेता बाज़ार में प्रवेश कर सकता है । इसके अतिरिक्त साधनों की पूर्ण गतिशीलता, तर्कबद्ध व्यवहार, पूर्ण रोजगार, यातायात की संपूर्ण सुविधा ऐसे बाज़ार में उपलब्ध होनी चाहिए ।

(5) उत्पादन के साधन संपूर्ण गतिशील : पूर्ण स्पर्धावाले बाजार में उत्पादन के चारों साधन : जमीन, पूँजी, श्रम और नियोजक भौगोलिक, व्यावसायिक और उपयोग की दृष्टि से संपूर्ण गतिशील होते हैं ।

पूर्ण स्पर्धावाले बाजार में कीमत समान होती है । उसी प्रकार उत्पादन के साधनों का प्रतिफल समान होता है । इसलिए उत्पादन के साधन कम प्रतिफल से अधिक प्रतिफल की ओर स्थानांतरण करते हैं ।

(6) परिवहन खर्च अनुपस्थित : पूर्ण स्पर्धावाले बाजार में असंख्य क्रेता और असंख्य विक्रेता होते हैं । इस बाजार में परिवहन खर्च कुल खर्च का अल्प अंश होता है । इसलिए उसे गणना में नहीं लेते हैं । इसलिए वाहनव्यवहार खर्च शून्य होता है ऐसा स्वीकार कर लेने से वाहन-व्यवहार खर्च की अनुपस्थिति बाजार का एक महत्त्वपूर्ण लक्षण होता है ।

40.

बाजार की परिभाषा दीजिए। विभिन्न प्रकार के बाजारों के लक्षणों की व्याख्या कीजिए।याबाजार को परिभाषित कीजिए। बाजार के मुख्य तत्त्व अथवा विशेषताएँ क्या हैं? बाजार में एक ही वस्तु की कीमत कैसे निर्धारित होती है?

Answer»

बाजार का अर्थ तथा परिभाषाएँ
साधारण बोलचाल की भाषा में बाजार शब्द से अभिप्राय किसी ऐसे स्थान विशेष से है जहाँ किसी वस्तु या वस्तुओं के क्रेता व विक्रेता एकत्र होते हैं तथा वस्तुओं का क्रय-विक्रय करते हैं, परन्तु अर्थशास्त्र में बाजार शब्द का अर्थ इससे भिन्न है। अर्थशास्त्र के अन्तर्गत बाजार शब्द से अभिप्राय उस समस्त क्षेत्र से है जहाँ तक किसी वस्तु के क्रेता व विक्रेता फैले होते हैं तथा उनमें स्वतन्त्र प्रतियोगिता होती है, जिसके कारण वस्तु के मूल्यों में एकरूपता की प्रवृत्ति पायी जाती है।

विभिन्न अर्थशास्त्रियों के द्वारा बाजार की परिभाषाएँ निम्नवत् दी गयी हैं

एली के अनुसार, “हम बाजार को अर्थ साधारण क्षेत्र से लगाते हैं जिसके अन्तर्गत किसी वस्तु-विशेष पर मूल्य निर्धारित करने वाली शक्तियाँ सक्रिय होती हैं।”
कूर्गों के शब्दों में, “अर्थशास्त्री ‘बाजार’ शब्द का अर्थ किसी ऐसे विशिष्ट स्थान से नहीं लगाते हैं जहाँ पर वस्तुओं का क्रय-विक्रय होता है, बल्कि उस समस्त क्षेत्र से लगाते हैं जिसमें क्रेताओं और विक्रेताओं के मध्य आपस में इस प्रकार का सम्पर्क हो कि किसी वस्तु का मूल्य सरलता एवं शीघ्रता से समान हो जाये।”
प्रो० जेवेन्स के अनुसार, “बाजार शब्द का अर्थ व्यक्तियों के किसी भी ऐसे समूह के लिए होता है जिसमें आपस में व्यापारिक सम्बन्ध हों तथा जो किसी वस्तु का विस्तृत सौदा करते हों।”
प्रो० चैपमैन – “बाजार शब्द आवश्यक रूप से स्थान का बोध नहीं करता, बल्कि वस्तु अथवा वस्तुओं तथा क्रेताओं एवं विक्रेताओं का ज्ञान कराता है, जिसमें पारस्परिक प्रतिस्पर्धा होती है।”
प्रो० बेन्हम – “बाजार वह क्षेत्र होता है, जिमसें क्रेता और विक्रेता एक-दूसरे के इतने निकट सम्पर्क में होते हैं कि एक भाग में प्रचलित कीमतों का प्रभाव दूसरे भाग में प्रचलित कीमतों पर पड़ता रहता है।’
स्टोनियर एवं हेग – “अर्थशास्त्री बाजार का अर्थ एक ऐसे संगठन से लेते हैं, जिसमें किसी वस्तु के क्रेता तथा विक्रेता एक-दूसरे के निकट सम्पर्क में रहते हैं।”
प्रो० जे० के० मेहता – “बाजार एक स्थिति को बताता है, जिसमें एक ऐसी वस्तु की माँग एक ऐसे स्थान पर का जाती है, जहाँ उसे विक्रय के लिए प्रस्तुत किया जाता है।”

बाजार के मुख्य तत्व (लक्षण/विशेषताएँ)
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर बाजार में पाँच तत्त्वों का समावेश किया जाता है
1. एक क्षेत्र – बाजार से अर्थ उसे समस्त क्षेत्र से होता है जिसमें क्रेता व विक्रेता फैले रहते हैं तथा क्रय-विक्रय करते हैं।
2. एक वस्तु का होना – बाजार के लिए एक वस्तु का होना भी आवश्यक है। अर्थशास्त्र में प्रत्येक वस्तु का बाजार अलग-अलग माना जाता है; जैसे–कपड़ा बाजार, नमक बाजार, सर्राफा बाजार, किराना बाजार, घी बाजार। अर्थशास्त्र में बाजार की संख्या वस्तुओं के प्रकार तथा किस्मों पर निर्भर करती है।
3. क्रेताओं व विक्रेताओं का होना – विनिमय के कारण बाजार की आवश्यकता होती है। अतः बाजार में विनिमय के दोनों पक्षों (क्रेता व विक्रेता) का होना आवश्यक है। किसी एक भी पक्ष के न होने पर बाजार नहीं होगा।
4. स्वतन्त्र व पूर्ण प्रतियोगिता – बाजार में क्रेता और विक्रेताओं में स्वतन्त्र व पूर्ण प्रतियोगिता होनी चाहिए जिससे कि वस्तु की कीमत सम्पूर्ण बाजार में एकसमान बनी रह सके।
5. एक कीमत – बाजार की एक आवश्यक विशेषता यह भी है कि बाजार में किसी वस्तु की एक समय में एक ही कीमत हो। यदि कोई व्यापारी किसी वस्तु की एक ही समय में भिन्न-भिन्न कीमतें माँगता है तो क्रेता उससे माल नहीं खरीदेंगे। अत: बाजार में वस्तु की कीमत की प्रवृत्ति समान होने की होती है।
6. बाजार को पूर्ण ज्ञान – वस्तु का एक ही मूल्य हो, इसके लिए क्रेता-विक्रेता दोनों को ही बाजार का पूर्ण ज्ञान होना चाहिए। बाजार का अपूर्ण ज्ञान होने के कारण उनको वस्तुएँ उचित मूल्य पर प्राप्त होने में कठिनाई होती है।
उपर्युक्त विशेषताओं के आधार पर बाजार को इस प्रकार भी परिभाषित किया जा सकता है-“अर्थशास्त्र में बाजार का आशय किसी वस्तु के क्रेताओं एवं विक्रेताओं के ऐसे समूह से होता है, जिनमें स्वतन्त्र पूर्ण प्रतियोगिता हो तथा जिसके फलस्वरूप उस वस्तु की बाजार में एक ही कीमत हो।”

41.

एकाधिकार और पूर्ण स्पर्धावाले बाजार के बीच अंतर स्पष्ट कीजिए ।

Answer»
एकाधिकारपूर्ण स्पर्धा
व्यापारी या उत्पादक एक ही होता है ।व्यापारी या उत्पादक अत्याधिक होते हैं ।
ग्राहकों का शोषण होता है ।ग्राहकों का शोषण नहीं होता ।
पूर्ति में परिवर्तन कर कीमत परिवर्तन संभव है ।पूर्ति में परिवर्तन कर कीमत परिवर्तन संभव नहीं ।
इकाई-पीढ़ी का मालिक एकाधिकारी बनता है ।पीढ़ी-इकाई के मालिक एकाधिकारी नहीं बन सकते ।
नये उत्पादक के प्रवेश की इजाजत नहीं ।नए उत्पादक के प्रवेश को मुक्ति (इजाजत) है ।

42.

एकाधिकार युक्त स्पर्धा किसे कहते हैं ?

Answer»

प्रतिस्थापन वस्तुओं का उत्पादन करनेवाली इकाईयों जो अपनी वस्तु में उत्पादन पर एकाधिकार रखती है और उसे बेचने के लिए स्पर्धा करती है ऐसे बाजार को एकाधिकारयुक्त स्पर्धा कहते हैं ।

43.

पूर्ण बाजार की तीन विशेषताएँ बताइए।

Answer»

⦁     पूर्ण बाजार में क्रेताओं और विक्रेताओं की संख्या अधिक होती है।
⦁    क्रेताओं और विक्रेताओं को बाजार का पूर्ण ज्ञान होता है।
⦁    पूर्ण बाजार में वस्तु की कीमत की प्रवृत्ति एकसमान होती है।

44.

दीर्घकालीन बाजार से क्या अभिप्राय है?

Answer»

जब किसी वस्तु का बाजार कई वर्षों के लम्बे समय के लिए होता है, तो उसे दीर्घकालीन बाजार कहते हैं। ऐसे बाजार में माँग की अपेक्षा पूर्ति का अधिक प्रभाव पड़ता है तथा वस्तु का मूल्य उसके उत्पादन व्यय के बराबर होता है।

45.

पूर्ण प्रतियोगी बाजार से आप क्या समझते हैं?

Answer»

ऐसा बाजार जिसमें क्रेताओं व विक्रताओं की संख्या अधिक होती है तथा व्यक्तिगत रूप से कोई भी वस्तु की कीमत को प्रभावित नहीं कर सकता।

46.

परस्पर अवलंबन किस बाजार में देखने को मिलता है ?(A) अल्पहस्तक एकाधिकार(B) एकाधिकार(C) एकाधिकारयुक्त स्पर्धा(D) पूर्ण स्पर्धा

Answer»

सही विकल्प है (A) अल्पहस्तक एकाधिकार

47.

अल्पकालीन बाजार से क्या आशय है?

Answer»

अल्पकालीन बाजार में माँग और पूर्ति में सन्तुलन के लिए कुछ समय मिलता है, किन्तु यह पर्याप्त नहीं होता। पूर्ति में माँग के अनुसार कुछ सीमा तक घट-बढ़ की जा सकती है, किन्तु यह पर्याप्त नहीं होती।

48.

किस बाजार में इकाई ही उद्योग बनती है ?(A) पूर्ण स्पर्धा(B) एकाधिकार(C) एकाधिकारयुक्त स्पर्धा(D) अल्पहस्तक बाजार

Answer»

सही विकल्प है (B) एकाधिकार

49.

एकाधिकार से आप क्या समझते हैं ?

Answer»

जिस बाजार में वस्तु का केवल एक उत्पादक या विक्रेता होता है, उसे एकाधिकार बाजार कहते हैं। एकाधिकार बाजार प्रतियोगितारहित बाजार होता है। इसमें एकाधिकारी (Monopolist) अपनी वस्तु की कीमत अपनी इच्छानुसार निर्धारित करता है।

50.

कीमत स्थिरता किस बाजार में देखने को मिलती है ?(A) पूर्ण स्पर्धा(B) अल्पहस्तक एकाधिकार(C) एकाधिकारयुक्त स्पर्धा(D) एकाधिकार

Answer»

सही विकल्प है (B) अल्पहस्तक एकाधिकार