InterviewSolution
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आपातकाल के बाद के दौर में भाजपा एक महत्त्वपूर्ण शक्ति के रूप में उभरी। इस दौर में इस पार्टी के विकास-क्रम का उल्लेख करें। |
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Answer» भारतीय जनता पार्टी का विकासक्रम आपातकाल के बाद भारतीय जनता पार्टी की शक्ति में निरन्तर वृद्धि हुई और एक सशक्त राजनीतिक दल के रूप में उभरी। भाजपा की इस विकास यात्रा को निम्न प्रकार से समझा जा सकता है- ⦁ जनता पार्टी सरकार के पतन के बाद जनता पार्टी के भारतीय जनसंघ घटक ने वर्ष 1980 में भारतीय जनता पार्टी का गठन किया। श्री अटल बिहारी वाजपेयी इसके संस्थापक अध्यक्ष बने। |
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चलो मान लिया कि भारत जैसे देश में लोकतान्त्रिक राजनीति का तकाजा ही गठबन्धन बनाना है। लेकिन क्या इसका मतलब यह निकाला जाए कि हमारे देश में हमेशा से गठबन्धन बनते चले आ रहे हैं। अथवाराष्ट्रीय स्तर के दल एक बार फिर से अपना बुलन्द मुकाम हासिल करके दिखाएँगे। |
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Answer» भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में गठबन्धन का दौर हमेशा से चला आ रहा है। यह बात कुछ हद तक सही है, लेकिन इन गठबन्धनों के स्वरूप में व्यापक अन्तर है। पहले जहाँ एक ही पार्टी के भीतर गठबन्धन (जैसे—कांग्रेस पार्टी में क्रान्तिकारी और शान्तिवादी, कंजरवेटिव और रेडिकल, गरमपन्थी और नरमपन्थी, दक्षिणपन्थी और वामपन्थी आदि) होता था अब पार्टियों के बीच गठबन्धन होता है। जहाँ तक राष्ट्रीय दलों के प्रभुत्व का सवाल है, वर्तमान दलीय व्यवस्था के बदलते दौर में अपना बुलन्द मुकाम पाना बहुत कठिन है। क्योंकि वर्तमान में भारतीय दलीय व्यवस्था का स्वरूप बहुदलीय हो गया है, जिसमें राष्ट्रीय दलों के साथ-साथ क्षेत्रीय दलों के महत्त्व को भी नकारा नहीं जा सकता। यही कारण है कि आज राष्ट्रीय स्तर पर किसी भी एक दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिल पा रहा और मिली-जुली सरकारों का निर्माण हो रहा है। भारत में नब्बे के दशक में गठबन्ध सरकारों का दौर शुरू हुआ और यह सिलसिला अभी तक जारी है। |
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“गठबन्धन की राजनीति के इस दौर में राजनीतिक दल विचारधारा को आधार मानकर गठजोड़ नहीं करते हैं।” इस कथन के पक्ष या विपक्ष में आप कौन-कौन से तर्क देंगे? |
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Answer» वर्तमान युग में गठबन्धन की राजनीति का दौर चल रहा है। इस दौर में राजनीतिक दल विचारधारा को आधार बनाकर गठजोड़ नहीं कर रहे बल्कि अपने निजी स्वार्थी हितों की पूर्ति के लिए गठजोड़ करते हैं। वर्तमान समय में अधिकांश राजनीतिक दलों को राष्ट्रीय हित की चिन्ता नहीं रहती, बल्कि वे सदैव इस प्रयास में रहते हैं कि किस प्रकार अपने राजनीतिक हितों को पूरा किया जाए, इसी कारण अधिकांश राजनीतिक दल विचारधारा और सिद्धान्तों के आधार पर गठजोड़ न करके स्वार्थी हितों की पूर्ति के लिए गठजोड़ करते हैं। पक्ष में तर्क-गठबन्धन की राजनीति के भारत में चल रहे नए दौर में राजनीतिक दल विचारधारा को आधार मानकर गठजोड़ नहीं करते। इनके समर्थन में निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं- (1) सन् 1977 में जे०पी० नारायण के आह्वान पर जो जनता दल बना था उसमें कांग्रेस के विरोधी प्रायः सी०पी०आई० को छोड़कर अधिकांश विपक्षी दल जिनमें भारतीय जनसंघ, कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी, भारतीय क्रान्ति दल, तेलुगू देशम, समाजवादी पार्टी, अकाली दल आदि शामिल थे। इन सभी दलों को हम एक ही विचारधारा वाले दल नहीं कह सकते। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि राजनीति में किसी का कोई स्थायी शत्रु नहीं होता। अवसरवादिता हकीकत में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। विपक्ष में तर्क-उपर्युक्त कथन के विपक्ष में निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं- |
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1989 के बाद की अवधि में भारतीय राजनीति के मुख्य उद्देश्य क्या रहे हैं? इन मुद्दों से राजनीतिक दलों के आपसी जुड़ाव के क्या रूप सामने आए हैं? |
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Answer» 1989 के बाद भारतीय राजनीति के मुख्य मुद्दे – सन् 1989 के बाद भारतीय राजनीति में कई बदलाव आए जिनमें कांग्रेस का कमजोर होना, मण्डल आयोग की सिफारिशें एवं आन्दोलन, आर्थिक सुधारों को लागू करना, राजीव गांधी की हत्या तथा अयोध्या मामला प्रमुख हैं। इन स्थितियों में भारतीय राजनीति में अग्र मुद्दे प्रमुख रूप से उभरे- ⦁ कांग्रेस ने स्थिर सरकार का मुद्दा उठाया। इन मुद्दों में कांग्रेस ने दूसरे दलों की गैर-कांग्रेस सरकारों की अस्थिरता का मुद्दा उठाकर कहा कि देश में स्थिर सरकार कांग्रेस दल ही दे सकता है। दूसरी तरफ भाजपा ने अयोध्या में राम मन्दिर का मुद्दा उठाकर हिन्दू मतों को अपने पक्ष में कर अपने जनाधार को ग्रामीण क्षेत्रों में व्यापक करने का प्रयास किया। |
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निम्नलिखित अवतरण को पढ़ें और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें-भारत की दलगत राजनीति ने कई चुनौतियों का सामना किया है। कांग्रेस प्रणाली ने अपना खात्मा ही नहीं किया बल्कि कांग्रेस के जमावड़े के बिखर जाने से आत्म-प्रतिनिधित्व की नयी प्रवृत्ति का भी जोर बढ़ा। इससे दलगत व्यवस्था और विभिन्न हितों की समाई करने की इसकी क्षमता पर भी सवाल उठे। राज-व्यवस्था के सामने एक महत्त्वपूर्ण काम एक ऐसी दलगत व्यवस्था खड़ी करने अथवा राजनीतिक दलों को गढ़ने की है, जो कारगर तरीके से विभिन्न हितों को मुखर और एकजुट करें। -जोया हसन(क)इस अध्याय को पढ़ने के बाद क्या आपदलगत व्यवस्था की चुनौतियों की सूची बना सकते हैं?(ख) विभिन्न हितों का समाहार और उनमें एकजुटता का होना क्यों जरूरी है?(ग) इस अध्याय में आपने अयोध्या विवाद के बारे में पढ़ा। इस विवाद ने भारत के राजनीतिक दलों की समाहार की क्षमता के आगे क्या चुनौती पेश की? |
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Answer» (क) इस अध्याय में दलगत व्यवस्था की निम्नलिखित चुनौतियाँ उभरकर सामने आती हैं- |
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भारत में गठबन्धन की राजनीति के प्रभाव समझाइए। |
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Answer» सन् 1989 में भारत में गठबन्धन की राजनीति का श्रीगणेश हुआ। इस गठबन्धन की राजनीति के निम्नलिखित प्रमुख प्रभाव पड़े- ⦁ एक दलीय प्रभुत्व की समाप्ति-गठबन्धन की राजनीति में कांग्रेस के दबदबे की समाप्ति हुई और बहुदलीय प्रणाली का युग शुरू हुआ। |
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भारतीय दलीय व्यवस्था की दो विशेषताएँ बताइए। |
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Answer» ⦁ बहुदलीय व्यवस्था, एवं |
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संयुक्त मोर्चा सरकार कब और किसके नेतृत्व में बनी? |
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Answer» संयुक्त मोर्चा सरकार 1 जून, 1996 को एच०डी० देवगौड़ा के नेतृत्व में बनी। |
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दल-बदल से क्या अभिप्राय है? |
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Answer» कोई जन-प्रतिनिधि किसी खास दल के चुनाव चिह्न को लेकर चुनाव लड़े और चुनाव जीतने के बाद इस दल को छोड़कर किसी दूसरे दल में शामिल हो जाए, तो इसे ‘दल-बदल’ कहते हैं। |
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भारतीय जनता पार्टी की स्थापना कब हुई? इसके प्रथम अध्यक्ष कौन थे? |
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Answer» भारतीय जनता पार्टी की स्थापना सन् 1980 में हुई। अटल बिहारी वाजपेयी पार्टी के प्रथम अध्यक्ष थे। |
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1990 का दशक भारतीय राजनीति में नए बदलाव का दशक माना जाता है? कारण बताइए। |
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Answer» 1990 का दशक भारतीय राजनीति में नए बदलाव का दशक निम्नलिखित कारणों से माना जाता है- ⦁ सन् 1984 में भारत की प्रथम महिला प्रधानमन्त्री इन्दिरा गांधी की हत्या। लोकसभा के चुनाव व सहानुभूति की लहर में कांग्रेस का विजयी होना। लेकिन सन् 1989 में कांग्रेस की हार तथा सन् 1991 में मध्यावधि चुनाव होना तथा सन् 1991 में राजीव गांधी की हत्या। |
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किन्हीं चार क्षेत्रीय दलों के नाम लिखिए। |
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Answer» ⦁ डी०एम०के० |
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‘मण्डल कमीशन’ अथवा ‘मण्डल आयोग’ की नियुक्ति क्यों की गयी? इसकी प्रमुख सिफारिशें बताइए। |
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Answer» मण्डल आयोग का गठन-केन्द्र सरकार ने सन् 1978 में एक आयोग का गठन किया और इसको पिछड़ा वर्ग की स्थिति को सुधारने के उपाय बताने का कार्य सौंपा गया। आमतौर पर इस आयोग को इसके अध्यक्ष बिन्देश्वरी प्रसाद मण्डल के नाम पर ‘मण्डल कमीशन’ कहा जाता है। मण्डल आयोग का गठन भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों के बीच शैक्षिक और सामाजिक पिछड़ेपन की व्यापकता का पता लगाने और इन पिछड़े वर्गों की पहचान के तरीके बताने के लिए किया गया था। आयोग से यह भी अपेक्षा की गयी थी कि वह इन वर्गों के पिछड़ेपन को दूर करने के उपाय सुझाएगा। मण्डल आयोग की सिफारिशें-आयोग ने सन् 1980 में अपनी सिफारिशें पेश की। इस समय तक जनता पार्टी की सरकार गिर चुकी थी। आयोग का मशविरा था कि पिछड़ा वर्ग को पिछड़ी जाति के अर्थ में स्वीकार किया जाए। आयोग ने एक सर्वेक्षण किया और पाया कि इन पिछड़ी जातियों की शिक्षा संस्थाओं तथा सरकारी नौकरियों में बड़ी कम मौजूदगी है। इस वजह से आयोग ने इन समूहों के लिए शिक्षा संस्थाओं तथा सरकारी नौकरियों में 27 प्रतिशत सीट आरक्षित करने की सिफारिश की। मण्डल आयोग ने अन्य पिछड़ा वर्ग की स्थिति सुधारने के लिए कई और समाधान सुझाए जिनमें भूमि-सुधार भी एक था। |
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1990 के दशक में कांग्रेस के पतन के प्रमुख कारणों पर प्रकाश डालिए। |
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Answer» 1990 के दशक में कांग्रेस के पतन के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं- ⦁ अन्य पिछड़ा वर्ग ओ०बी०सी० के कारण मण्डल एवं कमण्डल की राजनीति कुछ समय तक देश के क्षितिज पर छा गई। |
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राजनीतिक दल के कोई दो कार्य बताइए। |
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Answer» ⦁ राजनीतिक चेतना का प्रसार, एवं |
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राजनीतिक दलों के दो आवश्यक तत्त्व बताइए। |
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Answer» ⦁ संगठन, एवं |
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भारतीय दलीय व्यवस्था के कोई दो अवगुण/दोष/कमियाँ बताइए। |
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Answer» ⦁ साम्प्रदायिकता तथा क्षेत्रवाद की प्रबलता, एवं |
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वर्तमान दलीय व्यवस्था की उभरती हुई दो प्रवृत्तियाँ बताइए। |
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Answer» ⦁ जाति आधारित दलों का गठन, एवं |
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जन मोर्चा का गठन किसने और कब किया? |
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Answer» जन मोर्चा का गठन वी०पी० सिंह ने 2 अक्टूबर, 1987 को किया। |
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जनता पार्टी का उदय कब हुआ-(a) सन् 1980 में(b) सन् 1998 में(c) सन् 1999 में(d) सन् 1977 में। |
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Answer» सही विकल्प है (d) सन् 1977 में। |
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भारतीय दलीय व्यवस्था का स्वरूप है-(a) एकदलीय(b) द्विदलीय(c) बहुदलीय(d) इनमें से कोई नहीं। |
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Answer» सही विकल्प है (c) बहुदलीय। |
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बाबरी मस्जिद कब गिराई गई, उस समय केन्द्र में किस पार्टी की सरकार थी? |
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Answer» बाबरी मस्जिद 6 दिसम्बर, 1992 को गिराई गई, उस समय केन्द्र में कांग्रेस पार्टी की सरकार थी तथा पी०वी० नरसिम्हा राव प्रधानमन्त्री थे। |
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निर्बल व अस्थिर जिस शासन-प्रणाली का दोष है, वह है-(a) एकदल की तानाशाही(b) द्विदलीय प्रणाली(c) बहुदलीय प्रणाली(d) दलविहीन प्रणाली। |
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Answer» सही विकल्प है (c) बहुदलीय प्रणाली। |
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क्या हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि जो लोग ऐसे जनसंहार की योजनाए बनाएँ, अमल करें और उसे समर्थन दें, वे कानून के हाथों से बच न पाएँ? ऐसे लोगों को कम-से-कम राजनीतिक रूप से तो सबक सिखाया ही जा सकता है। |
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Answer» भारत में धर्म, जाति व सम्प्रदाय के नाम पर अनेक बार साम्प्रदायिक दंगे हुए तथा देश की शान्ति और व्यवस्था पर प्रश्न चिह्न भी लगा। इन साम्प्रदायिक दंगों के पीछे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से विभिन्न राजनीतिक दलों का हाथ रहा है। यह दल अपने राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति हेतु दुष्प्रचार करते हैं जिसमें जनसामान्य इनके बहकावे में आकर गलत कदम उठाते हैं। भारत में सन् 1984 के सिक्ख दंगे हों, सन् 1992 की अयोध्या की घटना हो या सन् 2002 में गुजरात का गोधरा काण्ड, इन सभी चटनाओं के पीछे राजनीतिक दलों की स्वार्थपूर्ण नीति रही है। |
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