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This section includes InterviewSolutions, each offering curated multiple-choice questions to sharpen your knowledge and support exam preparation. Choose a topic below to get started.

1.

कृषि संशोधनों का परिचय दीजिए ।

Answer»

ICAR (Indian Council of Agricultural Research) यह एक मात्र संस्था है जो भारत में विविध प्रकार के कृषि संशोधन करवाती है, इसके लिए व्यवस्था करती है और उसके लिए सहायता भी करती हैं । इसके उपरांत कृषि सहित बागायती कृषि, मत्स्यपालन और पशुपालन विज्ञान के सम्बन्ध में ज्ञान को फैलाने में मदद करती है । ICAR यह हरित क्रांति के लिए आधारभूत कार्य करती है । किसान को राष्ट्रीय अनाज प्राप्ति और पोषणयुक्त रक्षण प्राप्त हो इसके लिए संभव जितने प्रयत्न भी किये हैं ।

2.

2011 की जनगणना के अनुसार कितने प्रतिशत जनसंख्या ग्राम्य विस्तारों में निवास करती हैं ?(A) 68.8%(B) 72%(C) 60%(D) 74%

Answer»

सही विकल्प है (A) 68.8%

3.

फसल की अदलाबदली को समझाइए ।

Answer»

फसल की अदलाबदली यह देश में लिये जानेवाले अलग-अलग फसलों के लिए उपयोग में ली जानेवाली जोती गयी जमीन के विस्तार द्वारा प्राप्त कर सकते हैं । फसल की अदला-बदली खेती के कार्यों के स्वरूप को दर्शाती है । सामान्य रूप से फसल के मुख्य रूप से दो स्वरूप है –

(1) अनाज की फसल जिसमें गेहूँ, चाबल, बाजरा, ज्वार, मक्का तथा तिलहन का समावेश होता है ।

(2) नगदी फसल या अनाजेतर फसल जिसमें विविध तिलहन, गन्ना, रबर, कपास, सन आदि का समावेश होता है ।

फसल की अदला-बदली के मुख्य दो कारण है :

(1) टेक्नोलॉजिकल परिबल
(2) आर्थिक परिबल

(1) टेक्नोलोजिकल परिबल : किसी एक विस्तार में फसल की अदलाबदली यह जमीन, जलवायु, वरसाद आदि बातों पर आधारित है । जैसे : मध्य प्रदेश में वर्षों तक बाजरे की फसल के बाद चाबल की फसल ली जाती है । भारत में बहुत से राज्यों में सिंचाई की सुविधाओं के आधार पर गन्ना, तमाकू जैसी फसल ली जाती है । इस प्रकार फसल की अदला-बदली पूँजी, नये बीज, खाद, ऋण की सुविधा आदि पर आधार रखता है ।

(2) आर्थिक परिबल : फसल की अदलाबदली लिए आर्थिक परिबल भी महत्त्वपूर्ण है । यह आर्थिक परिबल निम्नानुसार है :

  1. कीमत और आय को महत्तम बनाना
  2. कृषिजन्य साधनों की उपलब्धता
  3. खेत का कद
  4. वीमा रक्षण
  5. समय (जमीन मालिक पास से प्राप्त जमीन का समय) आदि ।

इन परिबलों के आधार पर फसल की अदला-बदली के लिए जवाबदार होते हैं । 1950-’51 में लगभग 75% अनाज और 25% नगदी फसलें ली जाती थी । उसके बाद 1966 से हरित क्रांति के बाद 1970’71 में अनाज 74% और नकदी फसलें 26% ली जाती थी । यह अनुपात 2006-’07 में 64% और 34% हो गया । और 2010-’11 में लगभग अनाज की फसल 66% और नकदी फसलें 34% ली जाती थी ।

4.

नकद फसल के उदाहरण दीजिए ।

Answer»

नगद फसलें कपास, सन, मूंगफली, तिलहन, गन्ना आदि हे ।

5.

राष्ट्रीय आय अर्थात् क्या ?

Answer»

उत्पादन के साधनो द्वारा वर्ष दरम्यान उत्पादित हुयी वस्तुओं और सेवा के मूल्य को राष्ट्रीय आय कहते हैं ।

6.

किसानों को बाज़ारभाव में परिवर्तन होने पर सुरक्षित रखने के लिए सरकार क्या उपाय करती है ?

Answer»

किसानों को बाज़ारभाव में परिवर्तन होने पर सुरक्षित रखने के लिए ‘न्यूनतम भाव’ घोषित करती है ।

7.

HYVP का पूरा नाम लिखिए ।

Answer»

HYVP का पूरा नाम – High Yielding Varities Program है ।

8.

भारत में कौन-सी योजना से औद्योगिकीकरण का प्रयत्न किया गया ?

Answer»

भारत में दूसरी पंचवर्षीय योजना से औद्योगिकीकरण का प्रयत्न किया गया ।

9.

2006-’07 में अनाज और नगदी फसल का उत्पादन होता था ?

Answer»

07 में अनाज और नगदी फसल का उत्पादन 64% और 36 प्रतिशत था ।

10.

कृषि उत्पाद के संग्रह के लिए किस निगम की स्थापना की गयी है ?

Answer»

कृषि उत्पाद के संग्रह के लिए ‘राष्ट्रीय कोठार निगम’ की स्थापना की गयी ।

11.

भारत में सिंचाई की सुविधा बढ़ाने के लिए किस योजना की रचना की गयी ?

Answer»

भारत में सिंचाई की सुविधा बढ़ाने के लिए ‘सिंचाई क्षेत्र विकास योजना’ और ‘आंतरिक ढाँचाकीय विकास भंडार’ की रचना की गयी है।

12.

भारत में कृषि की वर्तमान स्थिति की समीक्षा कीजिए ।

Answer»

भारत प्राचीनकाल से ही कृषिप्रधान देश है । भारतीय अर्थतंत्र कृषि पर आधारित है । इसलिए कृषि अर्थतंत्र की रीड की हड्डी है । कृषि क्षेत्र के महत्त्व को समझने के लिए हम कृषि क्षेत्र की वर्तमान स्थिति की चर्चा करेंगे :

(1) राष्ट्रीय आय : भारत की राष्ट्रीय आय में कृषि क्षेत्र का महत्त्वपूर्ण योग गान है । कृषि क्षेत्र को प्राथमिक क्षेत्र भी कहते हैं । जिसमें कृषि फसल, मुर्गीपालन, मत्स्यपालन, पशुपालन आदि का समावेश होता है । 2011-’12 के आर्थिक सर्वे के अनुसार भारत की राष्ट्रीय आय में 1950-51 में कृषि क्षेत्र का हिस्सा 53.1% था जो घटकर 2011-’12 में 13.9% रह गया है । जो भारत में बिन कृषि क्षेत्र के विकास का निर्देश है । भारत में कृषि क्षेत्र का विकास भी एक जटिल प्रश्न बन गया है ।

(2) रोजगार : भारत में कृषि क्षेत्र सबसे अधिक रोजगार देनेवाला क्षेत्र है । स्वतंत्रता के समय 72% कृषि क्षेत्र और उससे सम्बन्धित प्रवृत्तियों से रोजगार प्राप्त करते थे । स्वतंत्रता के बाद उद्योग क्षेत्र और कृषि क्षेत्र का विकास होने से रोजगारी का प्रमाण घटा है । जैसे – 2001-’02 में कृषि क्षेत्र 58% और 2014-’15 में 49% रोजगार उपलब्ध करवाता है ।

(3) जो अन्य क्षेत्रों से अधिक है। निर्यात आय : भारत कृषि उत्पादनों का निर्यात करके विदेशी मुद्रा प्राप्त करता है । जैसे चाय, मिर्च-मसाला, फल आदि कृषि उत्पादों का निर्यात करता है । स्वतंत्रता के समय 70% विदेशी मुद्रा कृषि निर्यात से प्राप्त होती थी । जो घटकर 2013-’14 . में 14.2 प्रतिशत रह गयी ।

(4) जीवनस्तर : लोगों के जीवनस्तर में सुधार के लिए कृषि क्षेत्र महत्त्वपूर्ण है । कृषि उत्पादन बढ़ाकर हम कम कीमत में कृषिजन्य आवश्यकता को पूर्ण कर सकते हैं । तथा उद्योगों को कच्चा माल उपलब्ध करवाकर औद्योगिक विकास को भी गति प्रदान करता है । वर्तमान समय कृषि क्षेत्र भारत में स्वनिर्भर बना है । जैसे 1951 में प्रतिव्यक्ति अनाज की प्राप्ति 395 ग्राम थी वह बढ़कर 2013 में 511 ग्राम होग गयी । जिससे हम कह सकते हैं कि लोगों के जीवनस्तर में सुधार हुआ है और लोगों की औसत आयु भी बढ़ी है ।

(5) कृषि उत्पादन में वृद्धि : स्वतंत्रता के बाद भारत सरकार ने कृषि विकास पर ध्यान दिया परिणाम स्वरूप कृषि उत्पादन में वृद्धि हुयी है जैसे अनाज, दलहन, गन्ना और तिलहन का उत्पादन 1950-’51 में क्रमश: 51.0, 8.4, 69.0 और 5.1 मेट्रिक टन था जो बढ़कर क्रमश: 2013-’14 में 264.4, 19.6, 348.0 और 32.4 मेट्रिक टन हो गया । इस प्रकार अनाज के उत्पादन में पाँच गुना, दलहन में ढाई गुना, गन्ना में पाँच गुना तथा तिलहन का उत्पादन 6.35 गुना वृद्धि हुयी है । कपास का उत्पादन 1950’51 मे 2.1 मेट्रिकस वेल्स (गांठ) था वह बढ़कर 2013-’14 में 36.5 मेट्रिक वेल्स(गांठ) हो गया अर्थात् 17 गुना वृद्धि हुयी है । कृषि उत्पादन के साथ-साथ कृषि उत्पादकता में वृद्धि हुयी है।

(6) औद्योगिक विकास का आधार : कृषि क्षेत्र का विकास औद्योगिक विकास के लिए भी महत्त्वपूर्ण है । उद्योगों को कच्चा माल । कृषि क्षेत्र उपलब्ध करवाती है । और औद्योगिक विकास को गति प्रदान करती है । दूसरी दृष्टि से देखें तो 69 प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण विस्तार में रहती है, जिसकी आय का मुख्य स्रोत कृषि क्षेत्र है । तो कृषि क्षेत्र का विकास होने से ग्रामीण लोगों की आय बढ़ेगी जिससे टी.वी., फ्रीज, मोटर साइकल आदि औद्योगिक वस्तुओं की मांग बढ़ेगी और उद्योगों का विकास होगा ।

13.

भारत में किस पंचवर्षीय योजना में कृषि पर अधिक ध्यान दिया था ?(A) तीसरी(B) दूसरी(C) प्रथम(D) पाँचवी

Answer»

सही विकल्प है (C) प्रथम

14.

कृषि क्षेत्र द्वारा देश की जनसंख्या को क्या-क्या उपलब्ध करवाया जाता है ?

Answer»

कृषि क्षेत्र द्वारा देश की जनसंख्या को अनाज, सब्जी, फल, फूल तथा उद्योगों को कच्चा माल उपलब्ध करवाया जाता है ।

15.

भारत में किस वर्ष के बाद औद्योगिकीकरण को महत्त्व दिया गया ?(A) 1951 से(B) 1991 से(C) 1956(D) 2001

Answer»

सही विकल्प है (C) 1956

16.

कृषि उत्पादन की गुणवत्ता के अनुसार उनका वर्गीकण करने के लिए किस मार्क की रचना की गयी है ।(A) हॉलमार्क(B) इकोमार्क(C) एगमार्क(D) ISI मार्क

Answer»

सही विकल्प है (C) एगमार्क

17.

1950-’51 में नगदी फसलों का उत्पादन कितने प्रतिशत होता था ?(A) 25%(B) 50%(C) 75%(D) 100%

Answer»

सही विकल्प है (A) 25%

18.

भारत को कृषि प्रधान देश क्यों कहा जाता है ?

Answer»

भारत प्राचीनकाल से ही कृषिप्रधान देश है । रोजगार, राष्ट्रीय आय, निर्यात आय में कृषि क्षेत्र का महत्त्वपूर्ण योगदान है । भारत में 2011 की जनगणना के अनुसार 68.8% जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है । यदि कृषि उत्पादन में कमी आती है । तो इसकी असर देश की अधिकांशतः हिस्से की जनसंख्या पर विपरीत असर पड़ेगी । तथा उद्योगों को भी कच्चा माल पर्याप्त मात्रा में नहीं मिलेगा । और औद्योगिक विकास पर विपरीत असर पड़ेगी । कृषि क्षेत्र का अपर्याप्त विकास होने से लोगों की आय में कमी आयी आयेगी जिससे औद्योगिक वस्तुओं की माँग कम होगी और उद्योग क्षेत्र में रोजगार तथा आय भी कम होगी इसी प्रकार सेवा क्षेत्र पर भी विपरीत असर पड़ेगी । कृषि भारतीय अर्थतंत्र की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है । रोजगार, राष्ट्रीय आय और निर्यात में हिस्सा कम हुआ है । फिर भी विकसित देशों की अपेक्षा अधिक है । इसलिए भारतीय अर्थतंत्र के लिए कृषि मेरुदण्ड के समान है । भारत एक कृषि प्रधान देश है।

19.

कृषि उत्पादकता बढ़ाने के उपायों की चर्चा कीजिए ।

Answer»

भारत एक कृषिप्रधान देश है । भारतीय अर्थतंत्र के लिए कृषि रीड़ की हड्डी है । इसलिए भारतीय अर्थतंत्र के विकास के लिए कृषि उत्पादकता बढ़ाना जरूरी है । इसलिए हम यहाँ कृषि उत्पादकता बढ़ाने के उपाय निम्नानुसार हैं : 

(1) संस्थाकीय सुधार : कृषि क्षेत्र की कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिए निम्नलिखित संस्थाकीय सुधार किये गये हैं :

(i) जमीन सम्बन्धी सुधार : भारत में किसान को जमीन मालिकी मिले तथा काश्तकार को जोत के अधिकार सुरक्षित करने के लिए जमीनदारी प्रथा समाप्त, जोत-अधिकार सुरक्षा तथा काश्त नियमन सम्बन्धी कानून पारित किया गया । जिससे किसानों का आर्थिक शोषण रुके तथा कृषि उत्पादकता का बड़ा हिस्सा प्राप्त कर सके ऐसी स्थिति का निर्माण होने से वे कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रयत्नशील होते हैं ।

(ii) संस्थाकीय ऋण की प्राप्ति : नीची कृषि उत्पादकता के लिए कृषि ऋण का अभाव भी जवाबदार है । इसलिए भारत में कृषि क्षेत्र तक ऋण और अन्य वित्तीय सुविधाएँ पहुँचाने के लिए सरकार ने 1969 और 1980 में बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया । NABARD की स्थापना की गयी जो कृषि क्षेत्र के लिए मध्यस्थ बैंक का एक अंग है । 1982 में RRBs और C.D.Bs की स्थापना करके किसानों को कर्जा समयसर, कमव्याज पर सरलता से मिल सके ऐसी व्यवस्था की है । जिससे किसान कृषि कार्य के लिए पूँजी प्राप्त करके कृषि उत्पादकता बढ़ा सकता है ।

(iii) कृषि उत्पादन की विक्रय व्यवस्था में सुधार : कृषि उत्पादो की विक्रय व्यवस्था में रही हुयी कमीयों दूर करने के लिए निम्नलिखित
कदम उठाये हैं :

  1. नियंत्रित बाज़ार की स्थापना की गयी है ।
  2. कृषि उत्पादनों की गुणवत्ता अनुसार उनका वर्गीकरण करने के लिए ‘ऐगमार्क’ (AGMARK = Agriculture Marketing) की प्रथा दाखिल की गयी है ।
  3. किसान अपने उत्पादन को संग्रह कर सके इस उद्देश्य से ‘राष्ट्रीय कोठार निगम’ और राज्य कोठार निगमों की स्थापना की है।
  4. कृषि उत्पादों के भाव की जानकारी प्राप्त हो ऐसी व्यवस्था की गयी है । (दूरदर्शन पर कृषि समाचार)
  5. किसानों का उत्पादन उचित मूल्य प्राप्त हो इसलिए सरकार द्वारा ‘न्यूनतम भाव’ घोषित किया गया है ।

(iv) कृषि संशोधन : भारतीय किसान कम शिक्षित होने से वह स्वयं संशोधन नहीं कर सकते हैं । इसलिए कृषि संशोधन की जवाबदारी
NABARD को सैंप दी है । जो विविध प्रकार के कृषि संशोधन करते हैं । इसके लिए प्रशिक्षण और समझ किसान तक पहुँचाई जाती है । जिससे किसान परम्परागत कृषि का उत्पादन न करे, परंतु बाज़ार में जिस वस्तु की मांग अधिक उसी के अनुसार बुआई करके अधिक आय प्राप्त करने के लिए बाज़ारलक्षी फसल का उत्पादन करे यह प्रयत्न किया जाता है । इसके उपरांत कृषि सुधार के कार्यक्रमों में किसानों की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए, सामूहिक ग्राम विकास योजना, पंचायती राज, संकलित ग्रामविकास योजना, जनधन योजना आदि शुरू करके कृषि क्षेत्र आधुनिकीकरण की ओर प्रेरित करके कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिए मोड़ सकते हैं ।

(2) टेक्नोलोजिकल सुधार : कृषि उत्पादन को बढ़ाने के लिए निम्नलिखित टेक्नोलोजिकल सुधार निम्नलिखित हैं : 

(i) सुधरे हुए बीज : राष्ट्रीय कृषि संशोधन समिति, राष्ट्रीय बीज निगम और कृषि विश्व विद्यालयों में सुधरे हुये बीज विकसित करने के लिए अग्रिमता देकर कृषि उत्पादकता बढ़ा सकते हैं । सुधरे हुए बीज (हाइब्रिड बीज) विकसित करने से अधिक उत्पादन कर सकते हैं, रोगों से सामना कर सकते है । जिससे उत्पादन में वृद्धि होती है । जिसे कृषि क्रांति के स्थान पर ‘बीज क्रांति’ के नाम से जानते हैं ।

(ii) रासायनिक खाद का उपयोग : जमीन की उर्वरक शक्ति को बढ़ाने के लिए रासायनिक खाद का उपयोग बढ़ा है । जिससे फसल को पर्याप्त पोषण मिले और तीव्रता से अधिक विकास हो इस उद्देश्य से विविध फसलों पर रासायनिक खाद का प्रयोगों से सिद्ध हुये रासायनिक खाद कृषि उत्पादन के लिए महत्त्वपूर्ण होते हैं । संबंधित फसल को आवश्यक नाइट्रोजन, फोस्फेट, पोटाश जैसे रासायनिक खाद का उपयोग किया जाये । इसके लिए सरकार किसानों को सबसिड़ी प्रदान की जाती है ।

(iii) सिंचाई की सुविधा में वृद्धि : भारत की खेती अभी भी वरसाद पर आधारित है । वरसाद अनियमित होने से उसकी असर कृषि उत्पादन पर पड़ती है । इसलिए हमें सिंचाई की सुविधा बढ़ाकर फसल को बचाना चाहिए । इसके लिए भारत में सिंचाई सुविधा बढ़ाने के लिए ‘सिंचाई क्षेत्र विकास योजना’ और ‘आंतर ढाँचाकीय विकास भंडार’ की रचना की गयी है । इस प्रकार सिंचाई की सुविधा बढ़ाकर उत्पादन बढ़ाना चाहिए ।

(iv) यंत्रो का उपयोग : भारत में नीची कृषि उत्पादकता के लिए एक कारण परम्परागत साधन या यंत्र भी हैं । वर्तमान समय में इन्जिनियरिंग और ओटोमोबाइल विकास के साथ ट्रेक्टर, ट्रेलर, थ्रेसर, इलेक्ट्रिक पम्पसेट, ऑयल इन्जिनो, दबा छिड़कने के लिए पंप आदि आधुनिक यंत्रो की खोज हुयी है । इसलिए इन यंत्रों का उपयोग करके कृषि में तीव्रता आती है और उत्पादन में वृद्धि होती है ।

(v) जंतुनाशक दवा : फसल संरक्षण के अभाव में फसल नष्ट होती है । इसलिए विविध प्रकार के जंतुनाशक दवाओं का उपयोग करके फसल संरक्षण के द्वारा कृषि उत्पादकता को बढ़ा सकते हैं । इसके लिए सरकार भी किसानो ऋण और आर्थिक सहायता पहुँचाती है ।

(vi) भूमि परीक्षण : वर्तमान समय में वैज्ञानिक ढंग से कृषि में फसल लेने के लिए भूमि परीक्षण (Soil testing) करने की पद्धति प्रचलित बनी है । जो परीक्षण फसल के अनुकूल जमीन की गुणवत्ता है या नहीं तथा जमीन में जिन घटकों की गुणवत्ता है या नहीं तथा जमीन में जिन घटकों की कमी है । उसकी जानकारी देता है । जिससे फसल लेने से पहले जमीन की विशेष प्रकार की कमी को दूर करके कृषि उत्पादकता को बढ़ा सकते हैं ।

(3) अन्य परिबल : कृषि उत्पादकता को बढ़ाने के लिए किसानों को शिक्षित करने के लिए तथा नवीन प्रकार की पद्धतियों से परिचित करवाकर किसान की कार्यप्रणाली को परिवर्तित होती है । तथा शिक्षित होने से ग्रामीण क्षेत्र में अंधविश्वास, प्रारब्धवाद समाप्त होता है । और नये परिबलों को स्वीकार करते हैं । तथा कृषि उत्पादकता में वृद्धि होती है ।

इसके उपरांत कृषि से सम्बन्धित उद्योग जैसे पशुपालन, मुर्गीपालन, बतक पालन, फुड प्रोसेसिंग कार्य, जंगल जैसे संशोधनों का
उपयोग बढ़ने से कृषि क्षेत्र पर भार कम होता है । जिससे उत्पादकता में वृद्धि होती है ।

20.

कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिए कृषि-ऋण के महत्त्व को समझाइए ।

Answer»

नीची कृषि उत्पादकता के लिए किसान की कमजोर आर्थिक स्थिति भी जवाबदार होती है । कम आय के कारण छोटे-सीमांत किसान में पूंजीनिवेश नहीं कर पाते हैं परिणाम स्वरूप आधुनिक खेती लाभ नहीं ले पाते । इसलिए सरकार कृषि क्षेत्र ऋण और अन्य मौद्रिक सुविधाएँ पहुँचे इसलिए सरकार 1969 और 1980 में बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया । इसके उपरांत कृषि पर पर्याप्त ध्यान देने के लिए कृषि क्षेत्र के लिए मध्यस्थ बैंक का अंक NABARD की स्थापना 1982 में की गयी और उसके अंतर्गत RRB (Regional Rural Banks), प्रादेशिक ग्रामीण बैंक और LDB (Land Development Banks) जमीन विकास । बैंको का विकास किया गया । जिससे भारतीय किसानों को समयसर, पर्याप्त और सस्ता ऋण मिल सके और इस प्रकार कृषि कार्य के लिए पूँजी प्राप्त करके आधुनिक खेती करके कृषि उत्पादकता को बढ़ा सकते हैं ।

21.

2000-01 में राष्ट्रीय आय में कृषि क्षेत्र का हिस्सा कितने प्रतिशत था ?(A) 20%(B) 21%(C) 25%(D) 22.3%

Answer»

सही विकल्प है (D) 22.3%

22.

वर्ष 2013-’14 में तिलहन का उत्पादन कितने मेट्रिक टन था ?(A) 32.4(B) 30.4(C) 28.4(D) 34.4

Answer»

सही विकल्प है (A) 32.4

23.

सामान्य रूप से कृषि क्षेत्र की आय को किस क्षेत्र की आय कहते हैं ?(A) द्वितीय(B) प्रथम(C) तृतीय(D) चतुर्थ

Answer»

सही विकल्प है (B) प्रथम

24.

वर्ष 2013-’14 में गन्ने का उत्पादन कितने मेट्रिक टन था ?(A) 264.4(B) 348.0(C) 364.4(D) 248.0

Answer»

सही विकल्प है (B) 348.0

25.

वर्ष 2013-’14 में कपास का उत्पादन कितने मेट्रिक वेल्स (गांठ) था ?(A) 36.5(B) 46.5(C) 26.5(D) 16.5

Answer»

सही विकल्प है (A) 36.5

26.

लोगों के जीवनस्तर में सुधार के लिए कृषि क्षेत्र के योगदान को समझाइए ।

Answer»

विश्व में लोगों का प्राथमिक आधार कृषि क्षेत्र रहा है । भारत में भी कृषि क्षेत्र में लोगों के जीवनस्तर में सुधार करने का कार्य सतत किया है । फसल के मुख्य रूप से दो स्वरुप है – अनाज और नगदी फसलें । अनाज में मुख्यरूप से धान्य का समावेश होता है । जिसमें भारत स्वनिर्भर बना है । नगदी फसलों में जैसे कि कपास, सन, मूंगफली, गन्ना आदि का समावेश होता है । जो उद्योगों में कच्चे माल के रूप में उपयोग किया जाता है । इन फसलों का उत्पादन भी बढ़ा है । वर्तमान किसान फल-फूल, सब्जी आदि की भी खेती करते हैं । जिससे कृषि क्षेत्र लोगों के कृषिजन्य आवश्यकताओं को पूर्ण करने में सफल रहा है । 1951 में प्रतिव्यक्ति अनाज की प्राप्ति 395 ग्राम थी । वह जनसंख्या बढ़ने पर भी 2013 में 511 ग्राम हो गयी । जिससे हम कह सकते हैं कि कृषि क्षेत्र के द्वारा भारतीय लोगों की आवश्यकताओ को खूब अच्छे प्रमाण में संतुष्ट होने से लोगों की औसत आयु भी बढ़ी है । जो लोगों के जीवनस्तर में सुधार का निर्देश है ।

27.

1950-’51 में राष्ट्रीय आय में कृषि क्षेत्र का हिस्सा कितने प्रतिशत था ?

Answer»

1950-’51 में राष्ट्रीय आय में कृषि क्षेत्र का हिस्सा 53.1 प्रतिशत था ।

28.

नीची कृषि उत्पादकता के लिए ‘जनसंख्या का भार’ परिबल को समझाइए ।

Answer»

भारत में स्वतंत्रता के समय 72% लोग कृषि क्षेत्र में से रोजगार प्राप्त करते थे । जो 2001-02 में घटकर 58% रह गया । अब 2013-14 में कृषि क्षेत्र में 49% लोग रोजगार प्राप्त करते थे । कृषि क्षेत्र में अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा प्रमाण अधिक है । विदेशो की तुलना में भी अधिक है । कृषि क्षेत्र के कुल उत्पादन में संलग्न व्यक्तियों से भाग देने से प्राप्त आय श्रम की उत्पादकता कही जाती है । अधिक भार होने अधिक लोगों में वितरित हो जाती है । इसलिए नीची उत्पादकता होती है ।

29.

वर्ष 1950-’51 में राष्ट्रीय आय में कृषि क्षेत्र का योगदान कितने प्रतिशत है ?(A) 53.1%(B) 48.7%(C) 42.3%(D) 36.1%

Answer»

सही विकल्प है (A) 53.1%

30.

वर्ष 2013-’14 में कपास का उत्पादन कितना था ?

Answer»

वर्ष 2013-’14 में कपास का उत्पादन 36.5 मेट्रिक वेल्स (गांठ) था । 

31.

वर्ष 1951 में प्रति व्यक्ति अनाज की प्राप्ति कितनी थी ?

Answer»

वर्ष 1951 में प्रति व्यक्ति अनाज की प्राप्ति 395 ग्राम थी ।

32.

अमेरिका में प्रति हेक्टर कितना जंतुनाशक दवा का उपयोग होता है ?

Answer»

अमेरिका में प्रति हेक्टर 7.0 किग्रा जंतुनाशक 991 का उपयोग होता है ।

33.

भारत की निर्यात आय में कृषि क्षेत्र का योगदान कितना है ?

Answer»

भारत की निर्यात आय में कृषि क्षेत्र का योगदान 14.2 प्रतिशत है ।

34.

भारत में कृषि संशोधन करनेवाली संस्था कौन-सी है ?(A) ICAR(B) CIBRC(C) प्रादेशिक ग्रामीण बैंक(D) RBI

Answer»

सही विकल्प है  (A) ICAR

35.

भारत में जंतुनाशक दवाई का प्रति हेक्टर उपयोग कितना है ?(A) 0.5 कि.ग्रा.(B) 2.5 कि.ग्रा.(C) 6.6 कि.ग्रा.(D) 7 कि.ग्रा.

Answer»

सही विकल्प है (A) 0.5 कि.ग्रा.

36.

भारत में हरित क्रांति का सर्वागीण उपयोग किस वर्ष से शुरू हुआ ?(A) 1961(B) 1966(C) 1969(D) 1991

Answer»

सही विकल्प है (B) 1966

37.

वर्ष 2001-’02 में कृषि क्षेत्र में कितने प्रतिशत लोग रोजगार प्राप्त करते थे ?(A) 58%(B) 13.9%(C) 49%(D) 60%

Answer»

सही विकल्प है (A) 58%