InterviewSolution
This section includes InterviewSolutions, each offering curated multiple-choice questions to sharpen your knowledge and support exam preparation. Choose a topic below to get started.
| 1. |
आधुनिक औद्योगिक नगरीय समाज की मुख्यतम समस्या है(क) निर्धनता(ख) निरक्षरता(ग) बेरोजगारी(घ) पर्यावरण-प्रदूषण |
|
Answer» (घ) पर्यावरण-प्रदूषण |
|
| 2. |
जल प्रदूषण से क्या आशय है? |
|
Answer» जल-प्रदूषण “जल ही जीवन है।” यह पेड़-पौधों और जीव-जन्तुओं के लिए अति आवश्यक है। जल का मुख्य स्रोत जमीन के अन्दर नीचे की तरफ एकत्रित जल है, इसके अतिरिक्त यह नदियों, नहरों, झीलों, समुद्रों आदि से भी अप्त होता है। प्रकृति में मुख्यतया जल, वर्षा से प्राप्त होता है जो ऊपर लिखे स्रोतों में बहकर आता है। जल बहकर आता है तो अपने साथ बहुत-सारे दूषित पदार्थ भी बहा लाता है, जिनसे जल प्रदूषित हो जाता है। जल-प्रदूषण के मुख्य कारकों में वाहित मल (Sewage), घरेलू अपमार्जक (Detergents), धूल, गन्दगी, उद्योग-धन्धों से निकले रसायन एवं उनके व्यर्थ पदार्थ, अम्ल, क्षार, तैलीय पदार्थ, लेड (Lead), मरकरी, क्लोरीनेटेड हाइड्रोकार्बन्स, अकार्बनिक पदार्थ, फिनोलिक यौगिकी, भारी धातु, सायनाइड आदि होते हैं। इनमें से कुछ चीजें बहुत अधिक विषैली होती हैं। इसी प्रकार डी० डी० टी०, कीटाणुनाशक रसायन (Pesticides), अपतृणनाशी रसायन (Weed cides) भी जल प्रदूषित करते हैं, जिनका उपयोग हम विभिन्न प्रकार के कीड़े-मकोड़ों आदि को नष्ट करने में करते हैं। यह सब हानिकारक पदार्थ, खाद्य-श्रृंखला के द्वारा मनुष्यों के शरीर में एकत्रित होते रहते हैं और विभिन्न प्रकार के रोग उत्पन्न करते हैं; जैसे-स्नायु रोग, कैन्सर, टाइफॉइड, पेचिश आदि। |
|
| 3. |
जल-प्रदूषण से क्या आशय है? |
|
Answer» जल के मुख्य स्रोतों में दूषितं एवं विषैले तत्त्वों का समावेश होना जल-प्रदूषण कहलाता है। |
|
| 4. |
मृदा-प्रदूषण से क्या आशय है? |
|
Answer» मृदा-प्रदूषण– मिट्टी, पेड़-पौधों के लिए बहुत आवश्यक है, और पेड़-पौधे, जीव-जन्तुओं के लिए बहुत आवश्यक हैं, अत; हम कह सकते हैं कि मिट्टी सभी जीवों के लिए आवश्य है। मिट्टी में बहुत-सारे अनावश्यक पदार्थ, कूड़ा-कचरा, मल-मूत्र, अपमार्जक, धूल, गर्द, रेत, औद्योगिक रसायन, अम्ल, क्षार, तैलीय पदार्थ, कीटाणुनाशक एवं अपतृणनाशी रसायन, रासायनिक उर्वरक, डी० डी० टी० आदि विभिन्न कार्यों में उपयोगिता के कारण मृदा में एकत्रित होते रहते हैं और मृदा का प्राकृतिक सन्तुलन बिगाड़ते रहते हैं तथा पेड़-पौधों और जीव-जन्तुओं पर हानिकारक प्रभाव डालते हैं। इनमें से कुछ पदार्थ जीवों के लिए विषैले होते हैं। ये हानिकारक पदार्थ खाद्य श्रृंखला द्वारा जीव-जन्तुओं और मनुष्य के शरीर में हानिकारक प्रभाव डालते हैं एवं मृदा प्रदूषण करते हैं। |
|
| 5. |
वायु-प्रदूषण से क्या आशय है? यावायु-प्रदूषण क्या होता है? उदाहरण द्वारा समझाइए। |
|
Answer» वायुमण्डल में विभिन्न प्रकार की गैसें एक निश्चित अनुपात में पायी जाती हैं एवं वातावरण में सन्तुलन बनाये रखती हैं। इसमें मुख्य रूप से नोइट्रोजन, ऑक्सीजन, ऑर्गन, कार्बन डाइऑक्साइड, नियॉन, हीलियम, हाइड्रोजन, ओजोन आदि गैसें प्रमुख हैं। इसके अतिरिक्त इसमें जलवाष्प, छोटे-छोटे ठोस कण, जीवाणु आदि भी होते हैं। जीव श्वसन में ऑक्सीजन लेते हैं और वातावरण में कार्बन डाई-ऑक्साइड बाहर निकालते हैं लेकिन पेड़-पौधे प्रकाश-संश्लेषण में वातावरण से कार्बन डाइ-ऑक्साइड लेते हैं और ऑक्सीजन बाहर निकालते हैं। इससे वातावरण में ऑक्सीजन और कार्बन डाइ-ऑक्साइड का सन्तुलन बना रहता है। जब वातावरण में किसी भी बाह्य कारक के कारण (गैसों, ठोस, कणों या वाष्पकणों के कारण) या उपस्थित गैसों के अनुपात में घटत या बढ़त के कारण असन्तुलन उत्पन्न होता है तो इसे वायु प्रदूषण कहते हैं। |
|
| 6. |
वायु-प्रदूषण का मानव-जीवन एवं व्यवहार पर क्या प्रभाव पड़ता है?यावायु-प्रदूषण हमें किस प्रकार से हानि पहुँचाता है?यावायु-प्रदूषण के दुष्परिणामों की व्याख्या कीजिए। |
|
Answer» ‘वायु-प्रदूषण’ शब्द मस्तिष्क में आते ही प्रायः दुर्गन्धमय और विभिन्न गैसों से युक्त तथा धुएँ से आच्छादित वायुमण्डल का दृश्य उपस्थित हो जाता है। वस्तुतः अनेक रासायनिक पदार्थ और गैस वायु-प्रदूषण को अत्यन्त खतरनाक बना रहे हैं। उद्योगों से नि:सृत व्यर्थ पदार्थ गैसों के सन्तुलन को बिगाड़ रहे हैं। उदाहरणार्थ-कपड़ा, शराब, दवाई, कागज, सीमेण्ट, चमड़ा, रँगाई, तेलशोधक कारखाने, रासायनिक उर्वरक के कारखाने आदि ऐसे उद्योग-धन्धे हैं जो वायु-प्रदूषण को बढ़ा रहे हैं। (1) शारीरिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव वायु- प्रदूषण से आँख और नाक से पानी बहने लगता है। इसके कारण दमा-श्वास और फेफड़ों का कैन्सर जैसे रोग हो जाते हैं। स्वचालित वाहनों से निकले धुएँ और धूल से श्वसन सम्बन्धी रोग उत्पन्न हो जाते हैं जिनमें खाँसी और गले की खराश मुख्य हैं। कैडमियम, मरकरी, डी० डी० टी० पदार्थ भी खाद्य श्रृंखला या अन्य विधियों द्वारा मानव के शरीर में पहुँचकर हृदय रोग, कैंसर, स्नायु रोग, रक्तचाप, तन्त्रिका-तन्त्र के भयंकर रोग पैदा कर देते हैं। (2) मनोरोगों में वृद्धि- शारीरिक रोगों के अतिरिक्त वायु-प्रदूषण मानसिक व्याधियों में वृद्धि का भी एक प्रमुख कारण है। कार्बन मोनो-ऑक्साइड, जो वायु-प्रदूषण के लिए सर्वाधिक उत्तरदायी कारक है, इससे सिरदर्द, मिर्गी, थकान तथा स्मृति ह्रास पैदा होते हैं। राटन तथा फ्रे ने अपने अध्ययनों में पाया कि वायु-प्रदूषण की अधिकता में मनोरोगियों की संख्या में वृद्धि हो रही है। (3) कार्य-निष्पादन क्षमता में ह्रास- वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययनों से सिद्ध किया है कि जैसे-जैसे वायु में कार्बन मोनोऑक्साइड की मात्रा बढ़ती है, वैसे-ही-वैसे कार्य निष्पादन की क्षमता में ह्रास होता है। चूहों पर किये गये प्रयोगों के निष्कर्ष इस बात की पुष्टि करते हैं। ग्लीनर तथा अन्य वैज्ञानिकों ने यह बताया है कि वायु-प्रदूषण, वाहन चालक की क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। और इससे दुर्घटनाएँ बढ़ने की प्रवृत्ति दिखाई देती है। (4) सौन्दर्यबोधक संवेगों में हास- राटन, याशिकावा तथा अन्य ने अपने अध्ययनों से सिद्ध किया है कि दुर्गन्धमय वायु-प्रदूषण छायांकन तथा चित्रकारी आदि से सम्बन्धित अभिवृत्ति को कम कर देता है। केवल इतना ही नहीं अपितु इससे अन्य लोगों के प्रति आकर्षण भी कम हो जाता है और मनुष्य की सौन्दर्यबोधक संवेदनशीलता में ह्रास आता है। (5) बाह्य वातावरण में आयोजित सामाजिक कार्य- कलापों में कमी–प्रदूषित वायु के कारण खुले में आयोजित होने वाले सामाजिक कार्यक्रमों को कम करना पड़ता है, क्योंकि उनके कारण अधिक लोग एक ही स्थान पर वायु प्रदूषण के शिकार हो जाते हैं। |
|
| 7. |
ध्वनि-प्रदूषण से क्या आशय है?याध्वनि-प्रदूषण के लिए उत्तरदायी कारणों का विश्लेषण कीजिए। |
|
Answer» वातावरण में विभिन्न स्रोतों से उत्पन्न अप्रिय एवं अनचाही आवाज, जिसका हमारे ऊपर बुरा या प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, शोर या ध्वनि कहलाता है। यह अगर अप्रिय, असहनीय और कर्कश होता है तो वातावरण को प्रदूषित करता है और शोर या ध्वनि-प्रदूषण कहलाता है। ध्वनि-प्रदूषण मुख्यतया बड़े शहरों या औद्योगिक दृष्टि से विकसित क्षेत्र, रेलवे स्टेशन, बस स्टॉप, हवाई अड्डों, भीड़-भाड़ वाले स्थानों, सभास्थलों, सिनेमाघरों, फैक्ट्री या कल-कारखानों के आस-पास ज्यादा होता है। इसके अलावा रेडियो, ट्रांजिस्टर, टी० वी०, लाउडस्पीकर, सायरन, स्वचालित वाहन (बस, ट्रक, हवाई जहाज आदि) भी ध्वनि प्रदूषण करते हैं। ध्वनि-प्रदूषण से हमारी एकाग्रता प्रभावित होती है। इसीलिए अस्पतालों, नर्सिंग होम, स्कूल एवं कॉलेजों के पास यह चेतावनी लिखी होती है कि “यहाँ हॉर्न का प्रयोग वर्जित है”, “ध्वनि मुक्त क्षेत्र (Silence Zone) आदि। |
|
| 8. |
ताप-प्रदूषण का व्यक्ति के जीवन एवं व्यवहार पर क्या प्रभाव पड़ता है?यामानव-व्यवहार पर ताप-प्रदूषण के प्रभावों की व्याख्या कीजिए। |
|
Answer» कारखानों और स्वचालित वाहनों से निकलती गैसें व धुआँ, आणविक विस्फोटों, ओजोन के विक्षेपण तथा वनों की कमी और जुनसंख्या विस्फोट ने तापमान में निरन्तर वृद्धि की है। गर्मी का प्रकोप बढ़ रहा है। इसी को ताप-प्रदूषण कहा जाता है। यदि यह प्रदूषण बढ़ता गया तो पृथ्वी ग्रह मनुष्य के रहने योग्य नहीं बचेगा मानव-व्यवहार पर ताप-प्रदूषण के निम्नलिखित प्रभाव दृष्टिगोचर होते है (1) बौद्धिक प्रखरता पर प्रभाव- तापमान वृद्धि बौद्धिक प्रखरता पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है। ताप प्रदूषण में आदमी सुस्त, थका हुआ और निष्क्रिय महसूस करने लगता है, जबकि कम तापमान व्यक्ति की कुशलता में वृद्धि करता है। | (2) गर्म-जलवायु और आक्रामक-व्यवहार– गोरान्सन तथा किंग ने अपने अनुसन्धान में पाया कि अधिकांशतः व्यावहारिक विकार गर्मी के महीनों में ज्यादा देखने को मिलते हैं। फ्रांस के सामाजिक चिन्तक दुर्णीम ने कुछ देशों के अपराधों के आँकड़ों का अध्ययन करके यह पाया कि गर्मियों में मानव शरीर के प्रति अपराध ज्यादा होते हैं; जैसे—मारपीट, हत्या, बलात्कार आदि; जबकि जाड़ों में सम्पत्ति के प्रति अपराध; जैसे-चोरी, डकैती आदि अधिक होते हैं। ग्रिफिट तथा वीच ने कमरों के तापमान में वृद्धि करके देखा कि अधिक गर्मी में रहने वाले व्यक्ति ठण्डे कमरों में रहने वाले व्यक्तियों से अधिक आक्रामक थे। (3) चन्द्रमा की चक्रीय क्रिया का मानव- व्यवहार पर प्रभाव-यह सर्वविदित है कि समुद्र में ज्वार-भाटा चन्द्रमा, की चक्रीय क्रिया अर्थात् क्रमागत घटने-बढ़ने से आते हैं। मानव-शरीर में भी जल-विद्यमान है। वह भी चन्द्रमा के चक्रीय प्रभाव से वंचित नहीं हैं। प्राचीनकाल से ही यौन-वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन से सिद्ध किया है कि चन्द्रमा की घटती-बढ़ती कलाओं का मनुष्य; विशेषकर महिलाओं की यौन-इच्छाओं, यौन-उत्तेजनाओं तथा यौन-व्यवहार पर प्रभाव पड़ता है। (4) तापमान एवं शारीरिक स्वास्थ्य- बढ़ता हुआ तापमान मनुष्य के शारीरिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। इससे अधिक चर्म रोग उत्पन्न हो जाते हैं। बहुत ठण्ड में अत्यधिक शीतप्रधान क्षेत्रों में भी मनुष्य की त्वचा विदीर्ण एवं मस्सों वाली हो जाती है। (5) तापमान वृद्धि के सामाजिक जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव– तापमान वृद्धि के कुछ अप्रत्यक्ष कुप्रभाव जानने में आये हैं। इससे फसलों और पौधों को नुकसान होता है, भूमि में जल-स्तर नीचे चला जाता है, पेयजल का संकट उत्पन्न हो जाता है और समूचा सामाजिक जीवन ही अस्त-व्यस्त हो जाता है। |
|
| 9. |
ध्वनि प्रदूषण का मानव-जीवन एवं व्यवहार पर क्या प्रभाव पड़ता है? |
|
Answer» शोध कार्यों से पता चलता है कि ध्वनि प्रदूषण का मानव-व्यवहार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इस प्रभात का अध्ययन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है– (1) स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव- अत्यधिक शोर का व्यक्ति के स्नायुमण्डल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इससे उसकी श्रवण-शक्ति कमजोर होती है, बहरापन बढ़ता है। (2) आक्रामकता और चिड़चिड़ेपन में वृद्धि- ब्लम तथा एजरीन नामक वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययनों से प्रदर्शित किया है कि अति तीव्र शोर से मनुष्य शारीरिक रूप से उद्वेलित और उत्तेजित हो जाता है, परिणामस्वरूप उसमें आक्रामकता और चिड़चिड़ापन बढ़ जाता है। (3) अनुक्रियात्मकता का ह्रास- कुछ विद्वानों का कहना है कि मनुष्य में अपने उद्दीपकों के साथ अनुकूलन की स्वाभाविक क्षमता होती है। इसे अभ्यस्त होना (Habituation) कहा जाता है, किन्तु ग्लास तथा अन्य ने अपने प्रयोगों में पाया कि अनुकूलन की प्रक्रिया में मनुष्य की मानसिक ऊर्जा व्यय होती है। शनैः-शनैः वह पर्यावरणीय अपेक्षाओं और कुण्ठाओं के प्रति सकारात्मक अनुक्रिया करने में अक्षम हो जाते हैं। (4) परार्धमूलक क्रियाओं में अरुचि- मैथ्यूज तथा कैनन ने अपने अध्ययन से यह भी प्रदर्शित किया कि शान्त वातावरण में व्यक्ति दूसरों की सहायता करने के प्रति अधिक सक्रिय थे, जब कि शोरगुल के वातावरण में उन्होंने दूसरों की सहायता या सेवा-कार्य में कोई रुचि प्रदर्शित नहीं की। (5) गर्भ-स्थिति पर कुप्रभाव-ध्वनि- प्रदूषण का गर्भस्थ शिशु पर बुरा प्रभाव पड़ता है और प्रसव पीड़ादायक हो जाता है। | (6) मानसिक प्रक्रियाओं पर प्रतिकूल प्रभाव- ध्वनि-प्रदूषण का मनुष्य की मानसिक प्रक्रियाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, क्योंकि इसमें रक्तचाप (Blood pressure) बढ़ जाता है तथा अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ अधिक सक्रिय हो जाती हैं। स्पष्टतः इनका मानसिक प्रक्रियाओं पर बुरा असर पड़ेगा ही, पाचक रसों का स्राव भी कम होगा जिससे अल्सर व दमा जैसे रोगों की सम्भावना बढ़ेगी। इतना ही नहीं, इससे मनुष्य की एकाग्रता भी भंग हो जाती है जिससे अध्ययन और मनन पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। |
|
| 10. |
मानवीय व्यवहार पर ध्वनि-प्रदूषण के प्रभाव हैं(क) ध्यान का विचलित होना(ख) व्यवहार में अनुक्रियात्मकता घटना(ग) व्यवहार में चिड़चिड़ापन तथा आक्रामकता बढ़ जाना(घ) उपर्युक्त सभी प्रभाव |
|
Answer» (घ) उपर्युक्त सभी प्रभाव |
|
| 11. |
ध्वनि-प्रदूषण से होने वाले किन्हीं दो दुष्प्रभावों के बारे में लिखिए। |
|
Answer» ध्वनि-प्रदूषण का प्रतिकूल प्रभाव व्यक्ति के शारीरिक स्वास्थ्य एवं व्यवहार दोनों पर पड़ता है। ध्वनि-प्रदूषण के कारण बहरापन, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप तथा पाचन-तन्त्र सम्बन्धी रोग हो सकते हैं। ये रोग साधारण से लेकर अति गम्भौर तक हो सकते हैं। ध्वनि-प्रदूषण के प्रभाव से व्यक्तिः के स्वभाव में चिड़चिड़ापन तथा आक्रामकता में वृद्धि हो सकती है। इसके अतिरिक्त इस स्थिति में व्यक्ति अपने पर्यावरण के साथ अनुकूलन करने में कठिनाई अनुभव करता है। उसकी कार्यक्षमता भी कुछ घट जाती है। |
|
| 12. |
वायु-प्रदूषण के कारण उत्पन्न हो सकता है(क) अस्थमा(ख) उच्च रक्त चाप(ग) पीलिया(घ) मधुमेह |
|
Answer» सही विकल्प है (ख) उच्च रक्त चाप |
|
| 13. |
पर्यावरणीय मनोविज्ञान विज्ञान का वह क्षेत्र है जो मानवीय अनुभवों और क्रियाओं तथा सामाजिक एवं भौतिक अनुभवों के प्रासंगिक पक्षों में होने वाले व्यवहारों तथा अन्तक्रियाओं का संयोजन और विश्लेषण करता है।”-प्रस्तुत परिभाषा प्रतिपादित है(क) कैटर तथा क्रेक द्वारा(ख) हेमस्ट्रा तथा मैक्फारलिंग द्वारा(ग) मन द्वारा(घ) विलियम जेम्स द्वारा। |
|
Answer» (क) कैटर तथा क्रेक द्वारा |
|
| 14. |
पर्यावरणीय मनोविज्ञान को किस श्रेणी में रखा जाता है? |
|
Answer» पर्यावरणीय मनोविज्ञान को व्यावहारिक महत्त्व का विज्ञान माना जाता है। |
|
| 15. |
आधुनिक युग में किस कारण से पर्यावरणीय मनोविज्ञान का महत्त्व बढ़ गया है? |
|
Answer» आधुनिक युग में पर्यावरण-प्रदूषण में वृद्धि तथा पर्यावरण-सन्तुलन के बिगड़ने के कारण पर्यावरणीय मनोविज्ञान का महत्त्व बढ़ गया है। |
|
| 16. |
पर्यावरणीय मनोविज्ञान के मुख्य भागों या प्रकारों का उल्लेख कीजिए। |
|
Answer» पर्यावरणीय मनोविज्ञान के तीन भाग या प्रकार हैं ⦁ प्रत्यक्षवादी पर्यावरणीय मनोविज्ञान ⦁ निदानात्मक, पर्यावरणीय मनोविज्ञान तथा ⦁ व्यावहारिक पर्यावरणीय मनोविज्ञान। |
|
| 17. |
पर्यावरणीय मनोविज्ञान से आप क्या समझते हैं। इसकी प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।यापर्यावरणीय मनोविज्ञान की विशेषताएँ लिखिए। |
|
Answer» भूमिका पर्यावरणीय मनोविज्ञान (Evironmental Psychology) मनोविज्ञान की नवीनतम शांखा है। इसका विकास बीसवीं सदी के सातवें दशक उत्तरार्द्ध और आठवें दशक के पूर्वार्द्ध में हुआ। इसकी पृष्ठभूमि में विश्व के जागरूक वैज्ञानिकों एवं सामाजिक चिन्तकों की पर्यावरण-प्रदूषण से उत्पन्न मानव अस्तित्व के संकट के प्रति बढ़ती हुई जागरूकता भी। इस संकट से उबरने के उपायों की खोज ने पर्यावरणीय मनोविज्ञान के विकास को गति प्रदान की है। पर्यावरणीय संकट एक वस्तुस्थिति है। जिसने इस पृथ्वी पर जीवन समर्थक शक्तियों का तीव्र ह्रास कर दिया है, जिससे मानव-जीवन का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया है। इसलिए पर्यावरणीय मनोविज्ञान का महत्त्व स्वयं सिद्ध हो गया है। पर्यावरणीय मनोविज्ञान : अर्थ एवं परिभाषा ‘पर्यावरणीय मनोविज्ञान का शाब्दिक अर्थ यदि हम देखें तो यह दो शब्दों से मिलकर बना है-‘पर्यावरण एवं ‘मनोविज्ञान’। पर्यावरण से अर्थ उस सब-कुछ से है जो मनुष्य को चारों ओर से घेरे हुए है और मनुष्य के तन-मन एवं व्यवहार को प्रभावित करता है। पर्यावरण’ की शब्दोत्पत्ति ही परि’ (चारों ओर से) + ‘आवरण’ (घेरे हुए होना) है। इस दृष्टि से ‘पर्यावरण’ एक व्यापक शब्द है। मनुष्य के कुल पर्यावरण में प्राकृतिक (Natural) तथा सामाजिक-सांस्कृतिक (Socio-cultural) दोनों ही भाग सम्मिलित हैं। प्राकृतिक पर्यावरण जल, वायु, तापमान, भूमि की बनावट तथा भूगर्भीय संरचना एवं प्रक्रियाएँ और सम्पदाएँ अर्थात् वे सभी प्राकृतिक बल सम्मिलित हैं जो अभी तक मनुष्य के संकल्प और नियन्त्रण से बाहर हैं। जो कुछ मानव द्वारा निर्मित, संचालित और नियन्त्रित है, वह उसका सामाजिक तथा सांस्कृतिक पर्यावरण है। ” मनोविज्ञान मनुष्य की अन्तश्चेतना का व्यवस्थित अध्ययन है। यह मनुष्य के मानसिक जगत् की प्रक्रियाओं का व्यवस्थित अध्ययन है। मनुष्य का अस्तित्व वस्तुतः भावात्मक प्रवाह है। यह प्रवाह त्रिआयामी है—ज्ञानात्मक (Cognitive), भावात्मक (Affective) एवं क्रियात्मक (Conative or Psychomotor activity)। पर्यावरण के किसी भी अंश के प्रति वह अपनी प्रतिक्रिया इन तीनों ही रूपों में अभिव्यक्त करता है। इसी भाँति, उसके प्राकृतिक एवं सामाजिक-सांस्कृतिक पर्यावरण का प्रत्येक संघटक उसके ज्ञानात्मक, भावात्मक और क्रियात्मक व्यवहार को प्रभावित करता है। अँधेरे में आँखों की पुतली फैल जाती है तो प्रकाश में सिकुड़ जाती है, शाकाहारी समाज में पला व्यक्ति मांस की दुकान के पास से गुजरने-मात्र से वितृष्णा अनुभव करता है, उसे मितली आने लगती है, जबकि मांसाहारी परिवेश में पले व्यक्ति के मुँह में मांसाहारी भोजन को देखकर लार आ सकती है। | स्पष्ट है कि प्राकृतिक तथा सांस्कृतिक दोनों ही पर्यावरण मनुष्य के मानसिक व्यवहार को प्रभावित करते हैं। मनोविज्ञान, विज्ञान की वह शाखा है जो मनुष्य के मानसिक व्यवहार के रहस्य के पर्दो को उठाने का प्रयास करती है। | इस भाँति पर्यावरणीय मनोविज्ञान को हम मनुष्य के मानसिक व्यवहार तथा पर्यावरण के बीच अन्तर्सम्बन्ध के अध्ययन के रूप में परिभाषित कर सकते हैं। (1) प्रोशैन्सकी, लिट्रेलसन तथा रिवलिन के अनुसार, “पर्यावरणीय मनोविज्ञान वह है जो पर्यावरणीय मनोवैज्ञानिक करते हैं।’यह परिभाषा सरल तो है, किन्तु पर्यावरणीय मनोविज्ञान की विषय-वस्तु को स्पष्ट नहीं करती और इसका एक अस्पष्ट अर्थ दान करती है। (2) हेमस्ट्रा तथा मैकफारलिंग का कथन है, “पर्यावरणीय मनोविज्ञान, मनोविज्ञान की वह शाखा है जो मानव-व्यवहार तथा भौतिक वातावरण के परस्पर सम्बन्धों का अध्ययन करती है।” (3) फिशर के अनुसार, “पर्यावरणीय मनोविज्ञान व्यवहार तथा प्राकृतिक एवं निर्मित पर्यावरण के बीच अन्तर्सम्बन्ध का अध्ययन करता है। इस परिभाषा से स्पष्ट होता है कि मानवीय व्यवहार तथा प्राकृतिक एवं मानव निर्मित पर्यावरण के पारस्परिक प्रभावित होने के व्यवस्थित अध्ययन को पर्यावरणीय मनोविज्ञान कहा जाता है। (4) कैटर तथा क्रेक पर्यावरणीय मनोविज्ञान की सही परिभाषा करते हुए लिखते हैं, पर्यावरणीय मनोविज्ञान विज्ञान का वह क्षेत्र है जो मानवीय अनुभवों और क्रियाओं तथा सामाजिक एवं भौतिकी पर्यावरण के प्रासंगिक पक्षों में होने वाले व्यवहारों तथा अन्तक्रियाओं का संयोजने और विश्लेषण करता है। स्पष्ट है कि इन विद्वानों के अनुसार मनुष्य के कुल पर्यावरण एवं मानवीय व्यवहार के बीच अन्तर्सम्बन्धों का आनुभविक अध्ययन ही पर्यावरणीय मनोविज्ञान है। पर्यावरणीय मनोविज्ञान की विशेषताएँ वास्तव में, किसी भी विषय का अनूठापन उसके दृष्टिकोण में निहित होता है। यही उसे अन्य विषयों से अलग करता है। पर्यावरणीय मनोविज्ञान का दृष्टिकोण अथवा उसकी रुचि मानव-व्यवहार और उसके कुल पर्यावरण के अन्तर्सम्बन्धों को जानने में है। यही चयनशील रुचि उसे अन्य विज्ञानों से पृथक् करती है और उसकी निजी विशेषताओं को जन्म देती है। पर्यावरणीय मनोविज्ञान की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं| (1) मनुष्य का पर्यावरणीय व्यवहार इकाई रूप है- पर्यावरणीय मनोविज्ञान, मनुष्य के पर्यावरणीय व्यवहार को एक इकाई के रूप में मानकर अध्ययन करता है। उदाहरण के लिए यह किसी नगरवासी के पर्यावरणीय व्यवहार में केवल उद्दीपक और अनुक्रिया को ही स्पष्ट नहीं करेगा, बल्कि उस व्यक्ति के सौन्दर्यबोध की अनुभूति को भी इस स्पष्टीकरण में सम्मिलित करेगा। वह जानने का प्रयास करेगा कि उस व्यक्ति ने उस विशिष्ट उद्दीपक को पर्यावरणीय दृष्टि से क्या अर्थ प्रदान किया है? उसके पिछले अनुभव क्या रहे हैं? उस स्थिति के पर्यावरण में उसने किन विशेषताओं पर विशेष रूप से ध्यान दिया है-आदि। (2) व्यवस्था उपागम- मनोविज्ञान की इस शाखा की मान्यता है कि कोई पर्यावरणीय व्यवहार एक समग्र सैटिंग (Setting) या मंच के रूप में होता है। मान लीजिए हम किसी सहभोज में आमन्त्रित हैं। वहाँ पण्डाल में भोजन की मेजें सजी हैं और काफी भीड़-भाड़े है। वहाँ की सजावट, रोशनी की व्यवस्था सभी कुछ हमें प्रभावित करेगा। हम पाएँगे कि भीड़-भाड़ के बावजूद भी व्यक्ति अपनी प्लेट में रुचि के अनुकूल खाने की सामग्री लेकर अलग-अलग छोटे-छोटे समूहों में बँट जाते हैं। (3) अन्तःअनुशासित दृष्टिकण- स्वभावतः ही , पर्यावरणीय मनोविज्ञान अन्री:अनुशासित (Inter-disciplinary) होता है। इसमें संवेदना, प्रत्यक्षीकरण, प्रेरक, उद्दीपक व अनुक्रिया सदृश मनोविज्ञान के संप्रत्ययों का प्रयोग होता है। इतना ही नहीं वरन् इसमें समाजशास्त्र के सामाजिक सम्बन्ध, सामाजिक क्रिया, अन्तक्रिया, भीड़-व्यंत्रहार जैसे—सम्प्रत्ययों का भी प्रयोग होता है। मानवशास्त्र के सांस्कृतिक सम्प्रत्ययों; जैसे—प्रथा व रूढ़ि आदि का भी इसमें सहयोग लिया जाता है। कारण स्पष्ट है कि मानव का पर्यावरणीय व्यवहार अपने समग्र पर्यावरण से प्रभावित होता है, न कि केवल उसके प्राकृतिक पक्ष से। उदाहरण के तौर पर बुजुर्ग और सम्मानित व्यक्तियों की उपस्थिति में किसी भी व्यक्ति का व्यवहार वैसा नहीं होता है जैसा कि वह अपने हम उम्र साथियों के बीच होने पर करता है। इसी भाँति भीड़ में सामूहिक उत्तेजना और निजी उत्तरदायित्व की भावना की अनुपस्थिति व्यक्ति के व्यवहार को असामान्य बना देती है। वह ऐसा व्यवहार कर बैठता है जैसा अकेला होने पर वह शायद कभी न करता। अतः पर्यावरणीय व्यवहार का अध्ययन अन्त:अनुशासनिक दृष्टिकोण के प्रयोग को अनिवार्य बना देता है। (4) समस्या समाधान हेतु रचनात्मक उपाय– पर्यावरणीय मनोविज्ञान का व्यावहारिक पक्ष उतना ही महत्त्व रखता है जितना कि सैद्धान्तिक पक्ष; क्योंकि पर्यावरणीय मनोविज्ञान का मूल उद्देश्य पर्यावरणीय व्यवहार से उत्पन्न समस्याओं का निदान अथवा समाधान होता है। उससे आशा की जाती है कि वह पर्यावरणीय समस्याओं के समाधान के लिए रचनात्मक उपाय सुझाएगा। (5) सामाजिक- मनोवैज्ञानिक तत्त्वों का प्रभाव पर्यावरणीय मनोविज्ञान और समाज मनोविज्ञान के बीच न सिर्फ समानता है अपितु घनिष्ठ सम्बन्ध भी है। मनुष्य का पर्यावरणीय व्यवहार उसके सामाजिक-मनोवैज्ञानिक तत्त्वों से अत्यधिक प्रभावित होता है और उन्हीं के वशीभूत होकर व्यक्ति एक ही पर्यावरणीय उद्दीपक के प्रति विभिन्न अनुक्रियाएँ करता है। उदाहरणार्थ-सूअर पालने वाले व्यक्तियों के लिए गन्दगी का पर्यावरण सहयोगी हो सकता है, किन्तु अन्य व्यक्तियों के लिए वह स्थिति असहनीय हो सकती है। इस प्रकार स्पष्ट है कि पर्यावरणीय मनोविज्ञान और समाज मनोविज्ञान के बीच परस्पर आदान-प्रदान का सम्बन्ध है। (6) पर्यावरणीय मनोविज्ञान एक संश्लेषणात्मक विज्ञान है- पद्धतिशास्त्र की दृष्टि से पर्यावरणीय मनोविज्ञान’को एक संश्लेषणात्मक विज्ञान (Synthetic Science) कहा जा सकता है। इसकी पद्धतिशास्त्रीय के उपागम संकलक (Electic) होता है। वह किसी एक कारक को निर्णायक की भूमिका प्रदान नहीं कर सकता, वह वह तो अनेक विज्ञानों के निष्कर्षों का लाभ उठाता है। इसी प्रकार वह विभिन्न अनुसन्धान पद्धतियों का प्रयोग करता है। उसका दृष्टिकोण है कि विभिन्न स्रोतों से विचार और जानकारी आने दो, उनका संचालन करो और फिर व्यवस्थित रूप से पर्यावरणीय संश्लेषण प्रस्तुत करो। |
|
| 18. |
पर्यावरण-प्रदूषण की रोकथाम कैसे करेंगे? |
|
Answer» पर्यावरणीय प्रदूषण की रोकथाम प्रदूषण की समस्या पर विचार करने से यह स्पष्ट हो गया है कि यह एक गम्भीर समस्या है तथा इसके विकराल रूप धारण करने से मानव-मात्र तो क्या, पूरी सृष्टि के अस्तित्व को खतरा हो सकता है। इस स्थिति में बढ़ते हुए पर्यावरणीय-प्रदूषण को नियन्त्रित करना नितान्त आवश्यक है। यह सत्य है। (1) वायु-प्रदूषण पर नियन्त्रणवायु- प्रदूषण के मुख्य स्रोत औद्योगिक संस्थान, सड़कों पर चलने वाले वाहन तथा गन्दगी हैं। अतः वायु-प्रदूषण को नियन्त्रित करने के लिए इन्हीं स्रोतों पर ध्यान केन्द्रित करना होगा। वायु प्रदूषण को नियन्त्रित करने के लिए अंति आवश्यक है कि औद्योगिक संस्थानों की चिमनियों से निकलने वाले धुएँ कों नियन्त्रित किया जाए। इसके लिए दो उपाय अवश्य किये जाने चाहिए। प्रथम यह कि चिमनियाँ बहुत ऊंची होनी चाहिए ताकि उनसे निकलने वाली दूषित गैसें काफी ऊँचाई पर वायुमण्डल में मिलें और पृथ्वी पर इनका अधिक प्रभाव न पड़े। दूसरा उपाय यह किया जाना चाहिए कि औद्योगिक संस्थानों की चिमनियों में बहुत उत्तम प्रकार के छन्ने लगाये जाने चाहिए। (2) जल-प्रदूषण पर नियन्त्रण– वायु प्रदूषण के ही समान जल-प्रदूषणों के भी मुख्य स्रोत औद्योगिक संस्थान ही हैं। जल-प्रदूषण को नियन्त्रित करने के लिए भी औद्योगिक संस्थानों की गतिविधियों को नियन्त्रित करना होगा। औद्योगिक संस्थानों में ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि कम-से-कम व्यर्थ पदार्थ बाहर निकालें तथा निकलने वाले व्यर्थ पदार्थों एवं जल को उपचारित करके ही निकाला जाए। इसके अतिरिक्त नगरीय कूड़े-करकट को भी जैसे-तैसे नष्ट कर देना चाहिए तथा जल-स्रोतों में मिलने से रोकना चाहिए। जहाँ तक घरेलू जल-मल का प्रश्न है, इसकी भी कोई वैकल्पिक व्यवस्था करनी चाहिए। इससे गैस एवं खाद बनाने की अलग से व्यवस्था की जानी चाहिए। (3) ध्वनि-प्रदूषण पर नियन्त्रण- ध्वनि-प्रदूषण को नियन्त्रित करने के लिए भी विशेष उपाय किये जाने चाहिए। जहाँ तक सम्भव हो वाहनों के हॉर्न अनावश्यक रूप से न बजाये जाएँ। कल-कारखानों में जहाँ-जहाँ सम्भव हो मशीनों में साइलेन्सर लगाये जाएँ। सार्वजनिक रूप से लाउडस्पीकरों आदि के इस्तेमाल को नियन्त्रित किया जाना चाहिए। घरों में भी रेडियो, टी० वी० आदि की ध्वनि को नियन्त्रित रखा जाना चाहिए। औद्योगिक संस्थानों में छुट्टी आदि के लिए बजने वाले उच्च ध्वनि के सायरन न लगाए जाएँ। इन उपायों एवं सावधानियों को अपनाकर काफी हद तक ध्वनि प्रदूषण से बचा जा सकता है। |
|
| 19. |
पर्यावरणीय मनोविज्ञान का वर्गीकरण प्रस्तुत कीजिए। |
|
Answer» अध्ययन की सरलता की दृष्टि से पर्यावरणीय मनोविज्ञान को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है| (1) प्रत्यक्षवादी पर्यावरणीय मनोविज्ञान (Positive Environmental Psychology)- यह पर्यावरणीय मनोविज्ञान की वह शाखा है जो मनुष्य के प्राकृतिक एवं सामाजिक पर्यावरण तथा व्यक्ति के व्यवहार के मध्य अन्तर्सम्बन्ध और अन्तक्रिया का कार्य-कारण सम्बन्धी अध्ययन करती है। इस अध्ययन के आधार पर कुछ सामान्य निष्कर्षों और नियमों की स्थापना की जाती है। सामान्य नियमों की स्थापना से पूर्व निष्कर्षों की विश्वसनीयता और प्रामाणिकता की जाँच की जाती है। (2) निदानात्मक पर्यावरणीय मनोविज्ञान (Diagnostic Environmental Psychology)– यह पर्यावरणीय मनोविज्ञान की वह शाखा है जो पर्यावरण प्रदूषण के लक्षणों, कारणों और परिणामों का अध्ययन करती है। इसमें ज़ल, वायु, तापमान, ध्वनि एवं मृदा के प्रदूषण का समग्रवादी अध्ययन किया जाता है। प्रदूषण के लक्षणों और कारणों की खोज की जाती है। इससे उत्पन्न परिणामों को चिह्नित किया जाता है। समाधान की दिशाओं का निरूपण भी होता है। (3) व्यावहारिक पर्यावरणीये, मनोविज्ञान (Applied Environmental Psychology)यह पर्यावरणीय मनोविज्ञान की वह शेखा है जो उन उपायों और साधनों की खोज करती है जिनके द्वारा पर्यावरण का संवर्द्धन और संरक्षण किया जाता है। यह उपर्युक्त दोनों शाखाओं के निष्कर्षों को व्यवहार में लाने योग्य बनाकर मनुष्य के पर्यावरण को सन्तुलित बनाना चाहती है। इसका उद्देश्य मानव और समाज के जीवन को कल्याणमय बनाना है।इस प्रकार पर्यावरणीय मनोविज्ञान का दृष्टिकोण समग्रवादी है। वह पर्यावरण और मानव व्यवहार के बीच अन्तक्रिया का प्रत्यक्षवादी, निदानात्मक और व्यावहारिक विज्ञान है। |
|
| 20. |
पर्यावरणीय मनोविज्ञान के उस भाग को क्या कहते हैं, जिसके अन्तर्गत पर्यावरण के संवर्द्धन और संरक्षण उपायों को खोजा जाता है ?(क) निदानात्मक पर्यावरणीय मनोविज्ञान(ख) प्रत्यक्षवादी पर्यावरणीय मनोविज्ञान(ग) व्यावहारिक पर्यावरणीय मनोविज्ञान(घ) इन में से कोई नहीं |
|
Answer» (ग) व्यावहारिक पर्यावरणीय मनोविज्ञान |
|
| 21. |
‘भू-भागिता से आप क्या समझते हैं। भू-भागिता के प्रमुख प्रकारों के बारे में समझाइए। |
|
Answer» पर्यावरणीय मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से पर्यावरण का एक रूप अन्तर्वैयक्तिक पर्यावरण भी है। पर्यावरण के इस रूप का सम्बन्ध जनसंख्या से है। जब हम अन्तर्वैयक्तिक पर्यावरण की बात करते हैं तब इसके मुख्य कारकों का विश्लेषण करते हैं। ये कारक हैं—वैयक्तिक स्थान, भू-भागिता, जनसंख्या घनत्व तथा भीड़। अन्तर्वैयक्तिक पर्यावरण के एक महत्त्वपूर्ण कारक के रूप में भू-भागिता का व्यवस्थित अध्ययन आल्टमैन ने किया है। भू-भागिता : का सम्बन्ध सम्बन्धित भू-भांग के स्वामित्व या अधिकार से है। भू-भाग अपने आप में अदृश्य नहीं होता बल्कि इसकी कुछ स्पष्ट रूप से निर्धारित सीमाएँ होती हैं। हम स्वाभाविक रूप से ही अपने आस-पास के क्षेत्र तथा अधिकार वाले भाग को अपना समझते हैं। हम सभी अपने घर को अपना भू-भाग मानते हैं। (1) प्राथमिक भू-भाग- व्यक्ति के लिए सबसे अधिक आवश्यक एवं उपयोगी भू-भाग को आल्टमैन ने प्राथमिक भू-भाग के रूप में वर्णित किया है। प्राथमिक भू-भाग उस भू-भाग को कहा जाता है, जिसका उपयोग कोई व्यक्ति या समूह पूर्ण स्वतन्त्र रूप से करता है। घर इस वर्ग के भू-भाग को सबसे मुख्य उदाहरण है। घर के अतिरिक्त यदि व्यक्ति के अधिकार में कोई दुकान, कार्यशाला या बगीचा आदि है, तो उसे भी प्राथमिक भू-भाग की ही श्रेणी में रखा जायेगा। प्राथमिक भू-भाग के किसी अन्य व्यक्ति को प्रवेश का अधिकार नहीं होता तथा सामान्य रूप से इसे सहन भी नहीं किया जाता। किसी व्यक्ति के प्राथमिक भू-भाग में यदि कोई अन्य व्यक्ति बलपूर्वक प्रवेश करता है तो व्यक्ति उसका विरोध करता है। उसे क्रोध भी आता है तथा यह दुःख की बात होती है। (2) गौण भू-भाग- गौण भू-भाग उस भू-भाग को कहा गया है, जिसका स्वामित्व स्पष्ट रूप से निश्चित नहीं होता। इस वर्ग के भू-भाग को कोई एक व्यक्ति नहीं बल्कि अनेक व्यक्ति उपयोग में लाते हैं। विद्यालय का कक्ष इसका एक स्पष्ट उदाहरण है। कक्षा के अनेक छात्र होते हैं और वे किसी भी सीट पर बैठ सकते हैं तथा कमरे का उपयोग सम्मिलित रूप से करते हैं। व्यक्ति के जीवन में गौण भू-भाग का महत्त्व प्राथमिक भू-भाग की तुलना में कम होता है। (3) सार्वजनिक भू-भाग- जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है-भू-भाग का यह रूप किसी एक व्यक्ति का स्वामित्व नहीं होता। सार्वजनिक भू-भाग पर जन-साधारण का समान अधिकार होता है। इसे भू-भाग पर निजी स्वामित्व का प्रश्न ही नहीं उठता। सार्वजनिक भू-भाग के मुख्य उदाहरण हैं-पार्क, रेलवे प्लेटफॉर्म, हर प्रकार के प्रतीक्षालय तथा वाचनालय आदि। इन भू-भागों में किसी व्यक्ति का कोई स्थान आरक्षित नहीं होता। उदाहरण के लिए, पार्क में किसी भी बेंच पर कोई भी व्यक्ति बैठ सकता है। सार्वजनिक भू-भाग में किसी स्थान पर कोई व्यक्ति अपनी दावेदारी नहीं कर सकता। कानून भी इसके लिए अनुमति नहीं देता। |
|
| 22. |
पर्यावरणीय मनोविज्ञान के भाग हैं(क) प्रत्यक्षवादी पर्यावरणीय मनोविज्ञान(ख) निदानात्मक पर्यावरणीय मनोविज्ञान(ग) व्यावहारिक पर्यावरणीय मनोविज्ञान(घ) ये सभी |
|
Answer» सही विकल्प है (घ) ये सभी |
|
| 23. |
निम्नलिखित में से कौन प्रदूषण से सम्बन्धित नहीं है। (क) पेड़ों की कटाई(ख) लाउडस्पीकर का प्रयोग(ग) जैविक खाद का प्रयोग।(घ) औद्योगिक अपशिष्ट |
|
Answer» (ग) जैविक खाद का प्रयोग। |
|
| 24. |
निम्नलिखित में कौन प्राथमिक भू-भाग नहीं है?(क) दुकान(ख) पुस्तकालय(ग) खेत(घ) घर |
|
Answer» सही विकल्प है (ख) पुस्तकालय |
|