InterviewSolution
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शिक्षा एक त्रिधुवी (त्रिमुखी) प्रक्रिया है। स्पष्ट कीजिए। |
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Answer» कुछ विद्वानों ने शिक्षा को त्रिभुवी या त्रिमुखी प्रक्रिया माना है। इस वर्ग के मुख्य शिक्षाशास्त्री जॉन डीवी हैं। इस मान्यता के अनुसार शिक्षा के तीन प्रमुख अंग हैं। ये अंग हैं क्रमश: शिक्षार्थी या बालक, शिक्षा के लिए निर्धारित पाठ्यक्रम तथा शिक्षक। वास्तव में बालक तथा शिक्षक निर्धारित पाठ्यक्रम के आधार पर ही शिक्षा की प्रक्रिया को सुचारु रूप से अग्रसर करते हैं। पाठ्यक्रम के अभाव में शिक्षा की प्रक्रिया सम्पन्न नहीं हो सकती। इस तथ्य को ही ध्यान में रखते हुए शिक्षा की एक त्रिमुखी प्रक्रिया माना गया है। |
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शिक्षा के तीन प्रमुख अंग क्या हैं?याडीवी के अनुसार शिक्षा के प्रमुख पक्ष क्या हैं? |
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Answer» शिक्षा के तीन प्रमुख अंग हैं-शिक्षार्थी, पाठ्यक्रम तथा शिक्षक। |
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सामान्य शिक्षा तथा विशिष्ट शिक्षा से क्या आशय है? या विशिष्ट शिक्षा क्या है। |
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Answer» समान्य तथा विशिष्ट शिक्षा शिक्षा के उद्देश्य के आधार पर शिक्षा के दो प्रकारों का निर्धारण किया गया है, जिन्हें क्रमश: सामान्य शिक्षा तथा विशिष्ट शिक्षा के रूप में जाना जाता है। शिक्षा के इन दोनों प्रकारों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित 1. सामान्य शिक्षा- यह शिक्षा बालकों को सामान्य जीवन के लिए तैयार करती है। इस शिक्षा का कोई विशेष उद्देश्य नहीं होता। इसके अन्तर्गत बालक को किसी व्यवसाय के लिए तैयार नहीं किया जाता, अपितु उसमें तत्परता लाने की दृष्टि से उसकी सामान्य बुद्धि को तीव्र करने का प्रयास किया जाता है। सामान्य शिक्षा को उदार शिक्षा भी कहा जाता है। भारत के माध्यमिक स्कूलों में इसी प्रकार की शिक्षा प्रदान की जाती है। 2. विशिष्ट शिक्षा- यह शिक्षा किसी विशेष उद्देश्य को ध्यान में रखकर प्रदान की जाती है। यह विशेष उद्देश्य बालक को किसी विशेष दिशा में अपरिहार्य गुणों, कार्य-कुशलताओं तथा क्षमताओं से परिपूर्ण कर देता है। इस शिक्षा को प्राप्त करने के उपरान्त बालक जीवन के एक विशेष या निश्चित क्षेत्र; जैसे-डॉक्टर, वकील, इंजीनियर, चित्रकार या एकाउण्टेण्ट आदि; में कार्य करने के लिए कुशलता एवं योग्यता प्राप्त कर लेता है। वर्तमान युग में जीविका उपार्जन के लिए तथा किसी भी क्षेत्र में विशेषज्ञ का स्थान अर्जित करने के लिए विशिष्ट शिक्षा को ही आवश्यक माना जाता है। |
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शिक्षा के चार मुख्य महत्त्वों का उल्लेख कीजिए। |
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Answer» शिक्षा के चार मुख्य महत्त्व हैं- ⦁ जन्मजात शक्तियों का विकास करती है, ⦁ परिस्थितियों के साथ अनुकूलन में सहायक होती है, ⦁ प्रतिभा के अभिप्रकाशन में सहायक होती है तथा ⦁ व्यक्तित्व के समुचित विकास में सहायक होती है। |
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शिक्षा के कार्यों का सामान्य परिचय दीजिए। |
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Answer» शिक्षा का प्रमुख एवं महत्त्वपूर्ण कार्य मानव-जीवन को इस तरह से सुधारना तथा सँवारना है। ताकि वह समाज के लिए मूल्यवान् एवं उपयोगी सिद्ध हो सके। शिक्षा के माध्यम से व्यक्ति जीवन के विभिन्न क्षेत्रों के सम्बन्ध में वांछित ज्ञान प्राप्त करता है और उस ज्ञान को सामाजिक हित के कार्यों में प्रयोग करता है। जैक्स के अनुसार, “शिक्षा को बहुत-से कार्य करने हैं। शिक्षा के माध्यम से बालकों को इस योग्य बनाना चाहिए ताकि वे स्वयं विचार कर सकें, श्रम का सम्मान कर सकें।” शिक्षा का कार्य व्यक्तिगत जीवन को उन्नत बनाने के साथ-ही-साथ सामाजिक एवं राष्ट्रीय जीवन को भी उन्नत बनाना है। |
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साक्षरता से क्या आशय है? |
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Answer» साक्षरता का सामान्य अर्थ ‘अक्षर-ज्ञान’ या ‘लिपि ज्ञान’ है। यह भाषा के लिखित पक्ष से सम्बन्धित है, जिसके अन्तर्गत लिखना तथा पढ़ना सम्मिलित है। |
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‘शिक्षा’ एवं ‘साक्षरता’ का सम्बन्ध एक वाक्य में स्पष्ट कीजिए। |
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Answer» शिक्षा एवं साक्षरता दोनों एक-दूसरे के सहायक एवं पूरक हैं। |
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साक्षरता तथा शिक्षा का सम्बन्ध स्पष्ट कीजिए। |
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Answer» यह सत्य है कि साक्षरता तथा शिक्षा में स्पष्ट अन्तर है, परन्तु इस अन्तर के होते हुए भी साक्षरता तथा शिक्षा के बीच अटूट सम्बन्ध है। वास्तव में दोनों का एक ही लक्ष्य है और वह है मानव-जीवन को अधिक-से-अधिक सभ्य एवं सुसंस्कृत बनाना। इस लक्ष्य तक पहुँचने की सीढ़ी का पहला सोपान ‘साक्षरता है और दूसरा सोपान ‘शिक्षा’। ये दोनों सोपान एक-दूसरे के सहायक एवं परिपूरक हैं तथा मानव-जीवन की पूर्णता के क्रमिक व अनिवार्य साधन हैं। साक्षरता के माध्यम से व्यक्ति दैनिक जीवन को सुचारु एवं सुव्यवस्थित बनाता है और शिक्षा उसके व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करती है। |
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क्या शिक्षा प्राप्त करने के लिए साक्षरता एक अनिवार्य शर्त है? |
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Answer» नहीं, शिक्षा प्राप्त करने के लिए साक्षरता अनिवार्य शर्त नहीं है। |
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साक्षरता का अर्थ स्पष्ट कीजिए। |
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Answer» साक्षरता का सामान्य अर्थ ‘अक्षर-ज्ञान’ या ‘लिपि-ज्ञान’ है। यह भाषा के लिखित पक्ष से सम्बन्धित है, जिसके अन्तर्गत लिखना और पढ़ना दोनों शामिल हैं। अंग्रेजी भाषा में इसे लिट्रेसी (Literacy) कहते हैं, जिसका सम्बन्ध, लेखन-पाठन और गणित’ (Writing-Reading and Arithmatic) से है। इन्हें संक्षेप में श्री-आर्स (3-R’s) कहा जाता है। आधुनिक समय में इन श्री-आर्स अर्थात् लिखना-पढ़ना और गणित का ज्ञान प्रत्येक व्यक्ति के लिए महत्त्वपूर्ण एवं अनिवार्य है। इनको समुचित अध्ययन किये बिना दैनिक जीवन के क्रिया-कलापों को सुचारु और व्यवस्थित रूप से चलाना दूभर है। यूनेस्को के अनुसार, साक्षरता द्वारा व्यक्ति अपनी सामाजिक तथा आर्थिक प्रगति को प्राप्त कर सकता है, जो उसे आधुनिक संसार में अपना स्थान ग्रहण करने योग्य बनाती है और शान्तिपूर्वक मिल-जुलकर रहने की प्रेरणा देती है।” |
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“शिक्षा एक द्विध्रुवीय प्रक्रिया है, जिसमें एक व्यक्ति का व्यक्तित्व दूसरे को प्रभावित करता है।” यह कथन किसका है?(क) एडम्स का(ख) एडीसन का(ग) मॉण्टेसरी का(घ) प्लेटो का |
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Answer» सही विकल्प है (क) एडम्स का |
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शिक्षा को गतिशील प्रक्रिया क्यों कहा जाता है ? |
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Answer» शिक्षा की प्रक्रिया का समुचित विश्लेषण करने पर स्पष्ट होता है कि शिक्षा एक गतिशील प्रक्रिया (Dynamic Process) है। शिक्षा के गत्यात्मक पक्ष को ध्यान में रखते हुए हम कह सकते हैं कि यह न तो जड़ और न ही स्थिर प्रक्रिया है। शिक्षा की प्रक्रिया का मुख्यतम उद्देश्य व्यक्ति का सतत विकास करना है। व्यक्ति का शिक्षा के माध्यम से होने वाला विकास सदैव उन्नयनकारी ही होता है। इन समस्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए ही हम शिक्षा को गतिशील प्रक्रिया कहते हैं। |
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शिक्षा को ‘द्विमुखी प्रक्रिया’ कहा है(क) जॉन एडम्स ने(ख) जॉन लॉक ने(ग) जॉन डीवी ने(घ) जेम्स रॉस ने |
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Answer» सही विकल्प है (क) जॉन एडम्स ने |
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शिक्षा को त्रिमुखी प्रक्रिया किसने माना है? |
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Answer» जॉन डीवी ने शिक्षा को त्रिमुखी प्रक्रिया माना है। |
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“शिक्षा जीवन के लिए अत्यन्त आवश्यक है, क्योंकि बिना शिक्षा के जीवन में प्रगति नहीं हो सकती।” यह कथन किसका है?(क) जॉन डीवी का(ख) रेमण्ट का(ग) पेस्टोलॉजी का(घ) हरबर्ट का |
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Answer» सही विकल्प है (ख) रेमण्ट का |
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शिक्षा की आवश्यकता का मुख्य कारण है(क) जीवन की प्रगति(ख) सन्तुलित एवं सर्वांगीण विकास(ग) जीविकोपार्जन(घ) सुखी जीवन |
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Answer» सही विकल्प है (ख) सन्तुलित एवं सर्वांगीण विकास |
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शिक्षा की परिभाषा निर्धारित कीजिए तथा शिक्षा की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। |
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Answer» शिक्षा एक व्यापक प्रक्रिया है, जिसका घनिष्ठ सम्बन्ध सम्पूर्ण मानव-जीवन से है। शिक्षा के वास्तविक अर्थ को स्पष्ट करने के लिए अनेक विद्वानों ने अपने-अपने ढंग से शिक्षा की परिभाषाएँ प्रतिपादित की हैं। शिक्षा की परिभाषाएँ (Definitions of Education) ⦁ प्लेटो के अनुसार, “शिक्षा एक शारीरिक, मानसिक एवं बौद्धिक विकास की प्रक्रिया है।” ⦁ अरस्तू के अनुसार, “स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का विकास ही शिक्षा है।” ⦁ फ्रॉबेल के अनुसार, “शिक्षा छह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा बालक की जन्मजात शक्तियाँ बाहर प्रकट होती हैं।” ⦁ काण्ट के अनुसार, “शिक्षा व्यक्ति की उस सब पूर्णता का विकास है, जिसकी उसमें क्षमता है।” ⦁ पेस्टालॉजी के अनुसार, “शिक्षा मनुष्य की जन्मजात शक्तियों का स्वाभाविक, सामंजस्यपूर्ण तथा प्रगतिशील विकास है।” ⦁ टी० पी० नन के अनुसार, “शिक्षा बालक के व्यक्तित्व का पूर्ण विकास है, जिसके द्वारा यह यथाशक्ति मानव-जीवन को मौलिक योगदान कर सके।” ⦁ जेम्स के अनुसार, “शिक्षा कार्य-सम्बन्धी अर्जित आदतों का संगठन है, जो व्यक्ति को उसके भौतिक और सामाजिक वातावरण में उचित स्थान देती है।” ⦁ टी० रेमण्ट के अनुसार, “शिक्षा विकास का वह क्रम है, जिसके द्वारा मनुष्य स्वयं को शैशवावस्था से परिपक्वावस्था तक आवश्यकतानुसार भौतिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक वातावरण के अनुकूल बना लेता है।” बटलर के अनुसार, “शिक्षा प्रजाति की आध्यात्मिक निष्पत्ति के साथ व्यक्ति का क्रमिक अनुकूलन है।” शिक्षा की प्रमुख विशेषताएँ(Main Features of Education) आधुनिक विद्वानों ने शिक्षा की प्रक्रिया का विश्लेषण करके शिक्षा के वैज्ञानिक अर्थ को स्पष्ट किया है। इस अर्थ के अनुसार शिक्षा, वैज्ञानिक पद्धति का अंनुसरण करके व्यक्ति के सर्वांगीण विकास में सहायक होती है। वैज्ञानिक अर्थ की स्पष्टता शिक्षा-प्रक्रिया की निम्नलिखित विशेषताओं से होती है ⦁ आजीवन चलने वाली प्रक्रिया-शिक्षा जीवन-पर्यन्त चलने। शिक्षा की प्रमुख विशेषता प्रक्रिया है, जिसके अन्तर्गत व्यक्ति नये अनुभवी आजीवन चलने वाली प्रक्रिया से अपने ज्ञान में अभिवृद्धि करता है। ⦁ अन्तर्निहित शक्तियों का विकास-शिक्षा के माध्यम से दिमखी प्रक्रिया बालक की अन्तर्निहित शक्तियों का विकास होता है। ⦁ द्विमुखी प्रक्रिया-कुछ विद्वानों के अनुसार शिक्षा एक सामाजिक विकास द्विमुखी प्रक्रिया है, जिसके अन्तर्गत दो महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व शिक्षा परिवर्तनशीलता प्रदान करने वाला (शिक्षक) और शिक्षा प्राप्त करने वाली (विद्यार्थी), त्रिपक्षीय प्रक्रिया सम्मिलित हैं। ये दोनों व्यक्तित्व एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं। ⦁ गतिशीलता- शिक्षा कोई जड़ वस्तु नहीं, अपितु जीवन की गतिशील प्रक्रिया है। इसके द्वारा शिक्षार्थी प्रतिक्षण प्रगति करता हुआ अपने व्यक्तित्व का विकास करता है। |
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“शिक्षा अर्थपूर्ण और नैतिक क्रिया है। अतः यह कल्पना ही नहीं की जा सकती कि यह उद्देश्यहीन है।” यह कथन किसका है ? |
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Answer» यह कथन रिवलिन का है । |
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“शिक्षा से मेरा अभिप्राय उन सर्वश्रेष्ठ गुणों का प्रदर्शन है जो बालक और मनुष्य के शरीर, मस्तिष्क और आत्मा में विद्यमान है।” यह कथन किसका है ? |
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Answer» यह कथन गांधी जी का है। |
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विद्यालय में दी जाने वाली शिक्षा को क्या कहा जाता है ? |
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Answer» विद्यालय में दी जाने वाली शिक्षा को संकुचित शिक्षा अथवा औपचारिक शिक्षा कहा जाता है। |
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शिक्षा द्विमुखी प्रक्रिया है। ऐसा किसने कहा है? |
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Answer» जॉन एडम्स ने शिक्षा को द्विमुखी प्रक्रिया कहा है। |
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शिक्षा की फ्रॉबेल द्वारा प्रतिपादित परिभाषा लिखिए।याशिक्षा की परिभाषा दीजिए। |
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Answer» “शिक्षा वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा बालक की जन्मजात शक्तियाँ बाहर प्रकट होती हैं।” -फ्रॉबेल |
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शिक्षा के वैज्ञानिक अर्थ को स्पष्ट कीजिए। |
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Answer» शिक्षा का वैज्ञानिक अर्थ (Scientific Definition of Education) आधुनिक विद्वानों ने शिक्षा की प्रक्रिया का विश्लेषण करके शिक्षा के वैज्ञानिक अर्थ को स्पष्ट किया है। इस अर्थ के अनुसार शिक्षा, वैज्ञानिक पद्धति का अनुसरण करके व्यक्ति के सर्वांगीण विकास में सहायक होती है। वैज्ञानिक अर्थ की स्पष्टता शिक्षा-प्रक्रिया की निम्नलिखित विशेषताओं से होती है। 1. आजीवन चलने वाली प्रक्रिया-शिक्षा जीवन-पर्यन्त चलने वाली एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, जिसके अन्तर्गत व्यक्ति नये अनुभवों से अपने ज्ञान में अभिवृद्धि करता है। |
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“मनुष्य की सबसे बड़ी आवश्यकता और सबसे बड़ा रक्षक चरित्र है, शिक्षा नहीं।” यह कथन किस विद्वान् का है ? |
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Answer» यह कथन हरबर्ट स्पेन्सर का है। |
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कोई ऐसा कथन लिखिए जो शिक्षा के व्यापक अर्थ को स्पष्ट करता है। |
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Answer» “शिक्षा के व्यापक अर्थ में वे समस्त प्रभाव सम्मिलित होते हैं, जो व्यक्ति पर उसके पालने से मृत्यु तक की यात्रा के मध्य पड़ते हैं।” -डूमवाइल |
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मानव-जीवन में शिक्षा की आवश्यकता को विस्तारपूर्वक स्पष्ट कीजिए। |
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Answer» शिक्षा की आवश्यकता (Need of Education) 1. अधिगम या सीखने के लिए प्रकृति ने पशु- पक्षियों के बच्चों को ऐसी शक्ति प्रदान की है कि वे बिना सिखाये अपनी-अपनी क्रियाएँ कर सकते हैं, किन्तु इसके शिक्षा की आवश्यकता। विपरीत मानव-शिशु जन्म से ही असहाय होता है और बिना सिखाये , अधिगम या सीखने के लिए कोई भी कार्य नहीं कर पाता। शिक्षा की प्रक्रिया के अन्तर्गत वह सामंजस्य के लिए अधिगम (सीखना) करता है तथा चलने-फिरने, बोलने और ज्ञानवर्धन के लिए। लिखने-पढ़ने जैसी क्रियाएँ करने लगता है। अतः अधिगम के लिए। शिक्षा अत्यन्त आवश्यक है। |
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सच्ची शिक्षा का कार्य है(क) सूचनाएँ एकत्र करना।(ख) कक्षा में अनुदेश देना(ग) उपाधि प्रदान करना ।(घ) व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करना |
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Answer» सही विकल्प है (घ) व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करना |
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“शिक्षा आत्मानुभूति है।” यदि ऐसा है, तो इसके क्या लाभ हैं ? |
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Answer» शिक्षा के वैयक्तिक उद्देश्य का समर्थन करने वाले विद्वानों ने शिक्षा के अर्थ एवं स्वरूप को स्पष्ट करते हुए कहा है, शिक्षा आत्मानुभूति है। शिक्षा के इस स्वरूप को स्वीकार कर लेने पर व्यक्ति शिक्षा के माध्यम से अपनी निजी विशेषताओं का समुचित विकास कर सकता है। व्यक्ति की मुख्य निजी विशेषताएँ हैं-व्यक्ति की रुचियाँ, प्रवृत्तियाँ तथा विभिन्न आन्तरिक गुण। यदि व्यक्ति अपनी निजी विशेषताओं का समुचित विकास कर लेता है तो वह एक अच्छा नागरिक तथा अच्छा व्यक्ति बन सकता है। यही शिक्षा का प्रमुख लाभ होगा। |
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शिक्षा के चरित्र-निर्माण सम्बन्धी उद्देश्य के विषय में आपका क्या विचार है ? |
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Answer» व्यक्ति एवं समाज के हित में चरित्र-निर्माण शिक्षा का एक अनुपम उद्देश्य अवश्य है, किन्तु इसे शिक्षा का मुख्य एवं एकमात्र उद्देश्य नहीं माना जा सकता। |
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मानव-जीवन में शिक्षा की उपयोगिता का उल्लेख कीजिए। |
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Answer» शिक्षा की उपयोगिता (Utility of Education) आधुनिक मानव के सभ्य तथा सुसंस्कृत जीवन का रहस्य शिक्षा में निहित है। शिक्षा के माध्यम से आदिमानव के आचार-विचार, रहन-सहन तथा दृष्टिकोण में उत्तरोत्तर परिवर्तन आया और उसे पृथ्वी का श्रेष्ठ एवं विवेकशील प्राणी समझा गया। जहाँ एक ओर जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में मानव की उपलब्धियाँ शिक्षा की उपयोगिता को सिद्ध करती हैं, वहीं दूसरी और शिक्षा की उपयोगिता के विषय में सभी विद्वान् एकमत हैं। संक्षेप में, शिक्षा की निम्नलिखित उपयोगिताएँ हैं। 1. अन्तःशक्तियों का विकास- शिक्षा बालक की अन्त:शक्तियों को विकसित करने की उत्तम प्रक्रिया है। शिक्षा के अभाव में उसकी ये शक्तियाँ अविकसित रह जाती हैं। शिक्षा बालक के व्यवहार का परिमार्जन की जन्मजात व स्वाभाविक क्षमताओं एवं योग्यताओं का सम्यक् तथा ) मानवीय गुणों का अभिप्रकाशन समान रूप से इस भाँति विकास करती है कि वह उनका अपने परिवार, जाति, समाज और राष्ट्र के हित में ठीक प्रकार से उपयोग कर सके। |
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शिक्षा के व्यापक अर्थ को स्पष्ट कीजिए।याशिक्षा जन्म से लेकर मृत्यु तक चलने वाली प्रक्रिया है। विश्लेषण कीजिए।या“शिक्षा अनुभवों के पुनर्गठन एवं पुनर्रचना की सतत् प्रक्रिया है।” स्पष्ट कीजिए। |
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Answer» शिक्षा का व्यापक अर्थ (Definition of Complete Education) अपने व्यापक अर्थ में शिक्षा जीवन- पर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है। मनुष्य का समूचा जीवन ही शिक्षा का काल है और व्यक्ति जन्म से लेकर मृत्यु तक कुछ-न-कुछ सीखता रहता है। एडलर (Adler) के अनुसार, शिक्षा मनुष्य के सम्पूर्ण जीवन से सम्बन्धित क्रिया है। यह छोटे बच्चों से ही सम्बन्धित नहीं होती, अपितु जन्म से आरम्भ होती है और मृत्यु तक चलती रहती है। इसी प्रकार टी० रेमण्ट ने लिखा है, “शिक्षा विकास की प्रक्रिया है, जिसमें वह शनैः-शनैः विविध प्रकार से स्वयं को भौतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक वातावरण के अनुकूल बनाता है।” मनुष्य अपने जीवन काल में जिस वातावरण, परिस्थितियों तथा व्यक्तियों के सम्पर्क में आता है, उनसे प्राप्त अनुभव उसकी शिक्षा में निरन्तर वृद्धि करते हैं। भूमण्डल की सभी चेतन और अचेतन सत्ताओं के माध्यम से मनुष्य कुछ-न-कुछ शिक्षा अवश्य ग्रहण करता है। सूरज, चाँद, तारे, नदियाँ, पहाड़, पुष्प, वृक्ष, चींटियाँ इस भाँति, व्यापक अर्थ के अन्तर्गत शिक्षा को घर, परिवार या शिक्षण-प्रशिक्षण संस्थाओं तक ही सीमित नहीं रखा जा सकता है। शिक्षा पाने के लिए न तो कोई स्थान सुनिश्चित है और न कोई विशिष्ट क्षेत्र ही निर्धारित है। इस प्रकार यह सम्पूर्ण विश्व शिक्षाका महाप्रांगण, केन्द्र-स्थल और क्षेत्र है। इसी कारण मानव की अन्तर्निहित शक्तियों को जीवनभर विकसित करने की अविराम प्रक्रिया को ही व्यापक दृष्टिकोण से शिक्षा कहा गया है। इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए यह कहा जा सकता है, “शिक्षा अनुभवों के पुनर्गठन एवं पुनर्रचना की सतत प्रक्रिया है।” |
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अनुदेश या निर्देश शिक्षा का संकुचित/व्यापक रूप है। |
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Answer» संकुचित रूप है। |
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“संकुचित अर्थ में शिक्षा का अर्थ-हमारी शक्तियों के विकास और सुधार के लिए चेतनापूर्वक किये गये प्रयासों से किया जाता है।” यह परिभाषा है(क) मैकेंजी की(ख) पेस्टालॉजी की(ग) फ्रॉबेल व(घ) टी०पी० नन की |
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Answer» सही विकल्प है (क) मैकेंजी की |
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शिक्षा के शारीरिक विकास के उद्देश्य का तटस्थ मूल्यांकन कीजिए। |
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Answer» शारीरिक शक्ति को मानसिक एवं आत्मिक शक्तियों से अधिक मूल्य देने से समाज में बलशाली व्यक्तियों का एकाधिकार हो जाएगा। शरीर से कमजोर लोगों पर अत्याचार होंगे और उन्हें अमानवीय यातनाओं व शोषण के दुष्चक्र से गुजरना होगा। निश्चय ही शिक्षा का यह उद्देश्य इस आधुनिक, सभ्य एवं सुसंस्कृत समाज को उस जंगली एवं पाषाण काल में पहुँचा देगा जहाँ से वर्तमान तक आने में कई युग लगे हैं। शरीर के साथ मनुष्य की बुद्धि, चरित्र, नैतिकता, आचरण एवं आत्मा का विकास भी होना चाहिए। डियो लेविस कहते हैं, “स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का निर्माण सबसे बड़ी सांसारिक समस्या और मानव-जाति की सबसे बड़ी आशा है। इस स्थिति में हम कह सकते हैं कि शारीरिक विकास भी शिक्षा का एक उद्देश्य होना चाहिए, परन्तु शारीरिक विकास को ही शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य स्वीकार नहीं किया जा सकता। |
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शिक्षा के संकुचित अर्थ को स्पष्ट कीजिए। या शिक्षा के प्रचलित अर्थ को सोदाहरण समझाइए। |
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Answer» शिक्षा का संकुचित अथवा प्रचलित अर्थ(Narrow Meaning of Education) शिक्षा के संकुचित अथवा प्रचलित अर्थ से अभिप्राय बालक को विद्यालय में प्रदान की जाने वाली शिक्षा से है। इस प्रकार की शिक्षा एक निश्चित पाठ्यक्रम, निश्चित समय एवं स्थान, निश्चित शिक्षण-विधि तथा शिक्षक के माध्यम से प्रदान की जाती है। वर्तमान शिक्षा-प्रणाली के अन्तर्गत हम शिक्षा शब्द का प्रयोग एक विशेष अर्थ में करते हैं। इस अर्थ के अनुसार शिक्षा को कुछ विशेष प्रभावों तथा विषयों के अध्ययन तक ही सीमित मान लिया जाता है। इस प्रकार बालक को एक पूर्व निश्चित योजना के अनुसार वह ज्ञान दिया जाता। है जो उसके जीवन तथा समाज के लिए उपयोगी हो। इससे शिक्षा का एक सीमित अथवा संकुचित अर्थ ही स्पष्ट होता है और इसे औपचारिक शिक्षा (Formal Education) का नाम दिया जाता है। जे० एस० मैकेंजी का कहना है, “संकुचित अर्थ में शिक्षा से अभिप्राय हमारी शक्तियों के विकास और सुधार के लिए चेतनापूर्वक किये गये प्रयासों से लिया जाता है।” संकुचित शिक्षा के साधन मुख्यत: रटने की क्रिया पर बल देते हैं। अत: ज्ञान से वंचित रहने के कारण बालकों को सर्वांगीण विकास नहीं हो पाता। इसी कारण से यहाँ शिक्षा के लिए अध्यापन या निर्देशन (Instruction) शंब्द का प्रयोग किया जाता है। |
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स्पष्ट कीजिए कि शिक्षा का सामाजिक उद्देश्य साहित्य एवं कलाओं के विकास में बाधक है। |
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Answer» मानव समाज में साहित्य एवं विभिन्न ललित कलाओं का विशेष महत्त्व है, परन्तु यदि शिक्षा के वैयक्तिक उद्देश्य की अवहेलना करके उसके सामाजिक उद्देश्य को प्राथमिकता दी जाए तो उस स्थिति में साहित्य एवं अन्य कलाओं का समुचित विकास नहीं हो पाता। शिक्षा के सामाजिक उद्देश्य के अन्तर्गत व्यक्तिगत स्वतन्त्रता, इच्छाओं एवं भावनाओं की उपेक्षा होने के कारण व्यक्तिगत प्रयासों पर ध्यान नहीं दिया जाता। साहित्य, कला तथा संगीत आदि का विकास तभी सम्भव है जब व्यक्ति स्वयं को अभिव्यक्त करने में स्वतन्त्र हो और उसे व्यक्तिगत प्रयासों के माध्यम से अनवरत अभ्यास करने की पूरी छूट हो। शिक्षा के सामाजिक उद्देश्य के अन्तर्गत यह छूट प्राय: उपलब्ध नहीं होती; अत: हम कह सकते हैं कि शिक्षा का सामाजिक उद्देश्य साहित्य एवं कलाओं के विकास में बाधक है। |
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आपके विचार से क्या शिक्षा के सामाजिक उद्देश्य को शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य माना जा सकता है ? |
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Answer» शिक्षा के सामाजिक उद्देश्य की मान्यता शिक्षा के वैयक्तिक उद्देश्य के विपरीत है। शिक्षा के इस उद्देश्य के अन्तर्गत समाज के अधिक-से-अधिक विकास को शिक्षा का लक्ष्य माना जाता है। इसके विपरीत, व्यक्ति के विकास को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता। इसे सैद्धान्तिक मान्यता को स्वीकार कर लेने पर बालकों के कुण्ठाग्रस्त हो जाने की आशंका रहती है। शिक्षा के सामाजिक उद्देश्य को प्राथमिकता प्रदान करने की स्थिति में संकीर्ण राष्ट्रीयता की भावना प्रबल हो जाती है तथा व्यापक मानवता की अवहेलना हो जाती है। यही नहीं, शिक्षा के सामाजिक उद्देश्य को अनावश्यक महत्त्व देने की स्थिति में व्यक्ति के जीवन में संस्कृति, सौन्दर्य, कला, धर्म आदि का महत्त्व घट जाता है तथा इन महत्त्वपूर्ण मूल्यों की अवहेलना होने लगती है। इन समस्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए हम कह सकते हैं कि शिक्षा के सामाजिक उद्देश्य को शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य नहीं माना जा सकता। |
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आपके विचार से वर्तमान परिस्थितियों में शिक्षा का कौन-सा उद्देश्य अधिक लोकप्रिय है? |
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Answer» वर्तमान परिस्थितियों में शिक्षा का जीविकोपार्जन सम्बन्धी उद्देश्य अधिक लोकप्रिय है। |
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सामाजिक एवं राष्ट्रीय जीवन में शिक्षा के कार्यों का उल्लेख कीजिए। |
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Answer» सामाजिक एवं राष्ट्रीय जीवन में शिक्षा के कार्य व्यक्ति, समाज और राष्ट्र आपस में घनिष्ठ सम्बन्ध रखते हैं। व्यक्ति से समाज और समाज से राष्ट्र बनता है। मैकाइवर (Maclver) ने सत्य ही लिखा है, “राष्ट्र का गुण, उसकी सामाजिक इकाइयों का गुण है अर्थात् सामाजिक इकाइयों का सामूहिक जीवन ही राष्ट्रीय जीवन है।” राष्ट्र की उन्नति तभी हो सकती है जब कि उसके नागरिक श्रेष्ठ हों। अत: शिक्षा का यह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कार्य है कि वह व्यक्ति को राष्ट्रीय जीवन के लिए भी तैयार करे। भारतीय समाज के प्रजातान्त्रिक एवं समाजवादी आदर्श को ध्यान में रखते हुए शिक्षा के सामाजिक एवं राष्ट्रीय जीवन से सम्बन्धित कार्य निम्नलिखित हैं 1. व्यक्तिगत हितों के साथ सामूहिक हित की भावना-आधुनिक समाज में तेजी से बढ़ रही । भौतिकवादी प्रवृत्तियाँ, व्यक्तिवाद को अधिकाधिक महत्त्व प्रदान कर, सार्वजनिक हित की उपेक्षा कर रही हैं। प्रत्येक मनुष्य अपने हित के सामने जनहित की अनदेखी कर रहा है। इसके परिणामत: भारत का समाज जाति, वर्ग, धर्म, भाषा और राजनीति के नाम पर विखण्डित हो रहा है तथा लोगों में पारस्परिक द्वेष, कटुता तथा शत्रुता जैसी दूषित भावनाओं का विस्तार होने लगा है। राष्ट्रीय जीवन में शिक्षा का यह महत्त्वपूर्ण कार्य है कि वह लोगों को इस भाँति प्रशिक्षित करे कि वे व्यक्तिगत हितों से अपने समूह, समाज तथा राष्ट्र के हितों को अधिक महत्त्व दें। सामूहिक हित में ही राष्ट्रीय हित निहित है। |
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शिक्षा के ज्ञानार्जन सम्बन्धी उद्देश्य का समर्थन मुख्य रूप से किन विद्वानों ने किया है ? |
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Answer» शिक्षा के ज्ञानार्जन सम्बन्धी उद्देश्य का समर्थन करने वाले मुख्य विद्वान् हैं—सुकरात, प्लेटो, अरस्तू, दान्ते तथा बेकन। |
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शिक्षा के सामाजिक उद्देश्य के मुख्य प्रतिपादक कौन-कौन-से शिक्षाशास्त्री हैं? |
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Answer» शिक्षा के सामाजिक उद्देश्य के मुख्य प्रतिपादक शिक्षाशास्त्री हैं-हरबर्ट स्पेन्सर, जॉन डीवी, टी० रेमण्ट, प्रो० जेम्स तथा स्मिथ। |
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शिक्षा के सामाजिक उद्देश्य की प्रमुख मान्यता का उल्लेख कीजिए। |
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Answer» शिक्षा के सामाजिक उद्देश्य के अनुसार शिक्षा का प्रमुख कार्य समाज का अधिकतम उत्थान एवं विकास करना प्रतिपादित किया गया है। |
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आपके विचार से क्या शिक्षा के वैयक्तिक उद्देश्य को शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य माना जा सकता है ? |
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Answer» शिक्षा के वैयक्तिक उद्देश्य के अन्तर्गत व्यक्ति के विकास को प्राथमिकता दी जाती है तथा समाज के विकास की ओर प्राय: कोई ध्यान नहीं दिया जाता; अर्थात् उसकी अवहेलना ही की जाती है। शिक्षा के इस उद्देश्य को शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य स्वीकार कर लेने की स्थिति में व्यक्ति में अहम् भाव का आवश्यकता से अधिक विकास हो जाने की आशंका रहती है। इस दशा में यह आशंका रहती है कि बालक उद्दण्ड न बन जाए। इन परिस्थितियों में कुछ बालक समाज-विरोधी कार्य भी कर सकते हैं। हमारा विचार है। कि यदि शिक्षा के वैयक्तिक उद्देश्य को ही शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य स्वीकार कर लिया जाए तो बच्चों में सामाजिक सद्गुणों (अर्थात् सहयोग, सहानुभूति तथा सामाजिक एकता आदि) का समुचित विकास नहीं हो पाता। इन समस्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए हम कह सकते हैं कि शिक्षा के वैयक्तिक उद्देश्य को शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य नहीं माना जा सकता। |
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व्यक्तिगत जीवन में शिक्षा के कार्यों का उल्लेख कीजिए।याविद्यार्थी के लिए शिक्षा क्यों अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है?याशिक्षा के कार्यों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।याशिक्षा के दो कार्यों के बारे में लिखिए। |
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Answer» व्यक्तिगत जीवन में शिक्षा के कार्य (Functions of Education in Personal Life) व्यक्तिगत जीवन में शिक्षा के कार्य देश-काल एवं समाज की आवश्यकताओं के अनुरूप निर्धारित और परिवर्तित होते रहे हैं। हमारे समाज की वर्तमान आवश्यकताओं, मूल्यों, उद्देश्यों तथा संरचना को ध्यान में रखते हुए व्यक्तिगत जीवन में शिक्षा के निम्नलिखित कार्यों का उल्लेख किया जा सकता है| 1. जन्मजात शक्तियों एवं गुणों का विकास- शिक्षा का मुख्य कार्य मनुष्य की जन्मजात शक्तियों तथा गुणों का सम्यक् विकास करके उसके जीवन को सफल बनाना है। बालक प्रेम, दया, करुणा, सहानुभूति, कल्पना, जिज्ञासा, आत्म-गौरव तथा आत्म-समर्पण जैसी अनेक विशिष्ट शक्तियों व गुणों के साथ जन्म लेता है, जिनके अभिप्रकाशन में शिक्षा की प्रक्रिया का महत्त्वपूर्ण योगदान रहता है। |
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शिक्षा के जीवन की पूर्णता के उद्देश्य का मुख्य रूप से प्रतिपादन किसने किया है ? |
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Answer» शिक्षा के जीवन की पूर्णता के उद्देश्य के मुख्य प्रतिपादक हैं-हरबर्ट स्पेन्सर। |
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शिक्षा के जीवन की पूर्णता के उद्देश्य से क्या आशय है ? |
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Answer» शिक्षा के जीवन की पूर्णता के उद्देश्य शिक्षा के जीवन की पूर्णता के उद्देश्य का अर्थ यह है कि शिक्षा के माध्यम से जीवन के सभी अंगों या पक्षों का विकास किया जाए ताकि व्यक्ति का जीवन पूर्णता की ओर बढ़ सके। व्यक्ति का सर्वांगीण विकासे उसे जीवन के प्रत्येक क्षेत्र और परिस्थिति के लिए तैयार कर देता है। इस भाँति, जीवन के विविध पक्षों से ।। सम्बन्धित ज्ञान से युक्त मानव समाज में अपने अधिकार और कर्तव्यों के प्रति सजग हो जाता है। वह भली प्रकार जानता है कि उसे स्वयं अपने लिए, मित्रों, समुदाय तथा राष्ट्र के लिए क्या-क्या कार्य करने हैं। शिक्षा उसे जीवन के समस्त क्रिया-कलापों को सफलतापूर्वक करने के लिए पूरी तरह तैयार कर देती है। इस उद्देश्य के प्रणेता एवं प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री हरबर्ट स्पेन्सर का कथन है, “शिक्षा को हमें पूर्ण जीवन के नियमों और ढंगों से परिचित कराना चाहिए। शिक्षा का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य हमें जीवन के लिए इस प्रकार तैयार करना है कि हम उचित प्रकार का व्यवहार कर सकें और शरीर, मस्तिष्क तथा आत्मा का सदुपयोग कर सकें।” शिक्षा की प्रक्रिया के अन्तर्गत जीवन की पूर्णता के उद्देश्य की पर्याप्त आलोचना-प्रत्यालोचना हुई है। इसके समर्थन एवं विरोध में विद्वानों ने अनेकानेक तर्क प्रस्तुत किए हैं। उद्देश्य के पक्षधरों की दृष्टि में यह शिक्षा का एक सर्वश्रेष्ठ उद्देश्य है, जब कि आलोचकों ने इसे संकीर्ण, अमनोवैज्ञानिक, अपूर्ण तथा अव्यावहारिक उद्देश्य बताया है। आलोचकों का एक प्रमुख तर्क यह भी है कि शिक्षा में नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों की अवहेलना कर मानव-निर्माण की बात करना एकांगी तथा निर्मूल विचार है, लेकिन ध्यान देने योग्य बात यह है कि हरबर्ट स्पेन्सर महोदय ने पूर्ण जीवन के उद्देश्य का प्रतिपादन करते समय कहीं भी बालक के चारित्रिक एवं आध्यात्मिक पक्षों के विकास का विरोध नहीं किया है। निष्कर्षत: जीवन की पूर्णता के उद्देश्य के अन्तर्गत यदि हम मानव-जीवन के सामाजिक, नैतिक तथा आध्यात्मिक पक्षों को भी सम्मिलित कर लें तो शिक्षा का पाठ्यक्रम सर्वांगी तथा सर्वोत्कृष्ट बन जाएगा। |
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आधुनिक युग में मुख्य रूप से किन शिक्षाशास्त्रियों ने शिक्षा के वैयक्तिक उद्देश्य कासमर्थन किया है ? |
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Answer» आधुनिक युग में रूसो, फ्रॉबेल, पेस्टालॉजी तथा टी० पी० नन आदि शिक्षाशास्त्रियों ने शिक्षा के वैयक्तिक उद्देश्य का समर्थन किया है। |
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शिक्षा के वैयक्तिक उद्देश्य की प्रमुख मान्यता क्या है ? |
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Answer» शिक्षा के वैयक्तिक उद्देश्य के अनुसार शिक्षा का प्रमुख कार्य व्यक्ति की निजी विशेषताओं का अधिकतम विकास करना प्रतिपादित किया गया है। |
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शिक्षा के वैयक्तिक उद्देश्य का प्रमुख गुण है(क) व्यक्तिवाद को प्रोत्साहन।(ख) पौरिवारिक संगठन को प्रोत्साहन(ग) समाजवाद को बढ़ावा।(घ) छात्रों के व्यक्तित्व का विकास |
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Answer» सही विकल्प है (घ) छात्रों के व्यक्तित्व का विकास |
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व्यक्तिगत जीवन में शिक्षा के एक महत्त्वपूर्ण कार्य का उल्लेख कीजिए। |
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Answer» शिक्षा व्यक्ति की जन्मजात शक्तियों एवं गुणों के विकास में सहायक होती है। |
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