InterviewSolution
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                                    संवेगों के नियन्त्रण के लिए अपनायी जाने वाली मुख्य विधियों का उल्लेख कीजिए। | 
                            
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                                   Answer»  संवेगात्मक विकास की प्रक्रिया के अन्तर्गत कुछ संवेगों को नियन्त्रित करना भी आवश्यक होता है। संवेगों को नियन्त्रित करने के लिए निम्नलिखित विधियों को अपनाया जाता है ⦁    दमन या विरोध- इस विधि के अन्तर्गत अवांछित संवेगों को दबा या रोक देने की व्यवस्था होती है। प्रबल संवेगों का दमन प्रायः हानिकारक माना जाता है।  | 
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| 2. | 
                                    संवेगावस्था की पहचान का सही उपाय है-(क) विचार-प्रक्रिया का तीव्र होना(ख) भाषा का दोषपूर्ण होना(ग) मुखाभिव्यक्ति(घ) इनमें से कोई नहीं | 
                            
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                                   Answer»  सही विकल्प है (ग) मुखाभिव्यक्ति  | 
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| 3. | 
                                    प्रबल संवेगावस्था में व्यक्ति का चिन्तन(क) सुव्यवस्थित हो जाता है(ख) प्रबल हो जाता है(ग) अस्त-व्यस्त हो जाता है(घ) उत्तम हो जाता है | 
                            
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                                   Answer»  सही विकल्प है (ग) अस्त-व्यस्त हो जाता है  | 
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| 4. | 
                                    निम्नलिखित कथन सत्य हैं या असत्य⦁ व्यक्ति के जीवन में संवेगों का कोई महत्त्व नहीं है⦁ संवेगावस्था में व्यक्ति का चिन्तन एवं निर्णय लेने की क्षमता अत्यधिक उत्तम एवं दोष रहित हो जाती है⦁ बाल्यावस्था में संवेगों को नियन्त्रित करने के उपाय किये जाने चाहिए।⦁ संवेगों की उत्पत्ति सदैव आर्थिक कारकों से होती है⦁ संवेगों को नियन्त्रित करने का एक उत्तम उपाय उनका शोधने है | 
                            
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                                   Answer»  ⦁    असत्य  | 
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| 5. | 
                                    शैशवावस्था में होने वाले संवेगात्मक विकास का सामान्य विवरण प्रस्तुत कीजिए। | 
                            
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                                   Answer»  शैशवावस्था में संवेगात्मक विकास शिशु के संवेगात्मक विकास के सम्बन्ध में स्किनर तथा हैरीमन ने लिखा है कि “शिशु का संवेगात्मक व्यवहार क्रमशः अधिक स्पष्ट और निश्चित होता जाता है। उसके व्यवहार के विकास की सामान्य दिशा अनिश्चित और अस्पष्ट से विशिष्ट की ओर होती है।” एक शिशु के संवेगात्मक विकास की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं| ⦁    जन्म के समय शिशु में कोई विशेष संवेग नहीं होता। वह केवल उत्तेजना का अनुभव करता है। शिशु को रोना, चिल्लाना और हाथ-पैर पटकना उत्तेजना का परिणाम है।  | 
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| 6. | 
                                    संवेग के विषय में सत्य है(क) प्रसन्न होना तथा हँसना(ख) आवेश में आ जाना, भड़क उठना तथा उत्तेजित हो जाना(ग) कष्ट अनुभव करना(घ) अन्य व्यक्तियों की सहानुभूति की आशा करना | 
                            
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                                   Answer»  (ख) आवेश में आ जाना, भड़क उठना तथा उत्तेजित हो जाना  | 
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| 7. | 
                                    संवेगों के अत्यधिक दमन का बालक के व्यक्तित्व पर कैसा प्रभाव पड़ता है ? | 
                            
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                                   Answer»  संवेगों के अत्यधिक दमन का बालक के व्यक्तित्व पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है  | 
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| 8. | 
                                    बालक के सुचारु संवेगात्मक विकास के लिए शिक्षक के कर्तव्यों एवं भूमिका का उल्लेख कीजिए। | 
                            
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                                   Answer»  बालक के संवेगात्मक विकास में शिक्षक की भूमिका बालक के संवेगात्मक विकास में विद्यालय की महत्त्वपूर्ण भूमिका एवं योगदान होता है। विद्यालय में भी शिक्षक या अध्यापक का सर्वाधिक महत्त्व होता है। बालक के उचित संवेगात्मक विकास के लिए अध्यापक को निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए ⦁    बालकों में उत्तम रुचियाँ उत्पन्न करने के लिए अध्यापक को स्वस्थ सदों का सहारा लेना चाहिए, जैसे-आशा, हर्ष तथा उल्लास आदि।  | 
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| 9. | 
                                    संवेग से क्या आशय है ? | 
                            
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                                   Answer»  संवेग एक प्रकार की भावात्मक स्थिति होती है, जिसमें व्यक्ति को मन:शारीरिक सन्तुलन पूर्ण रूप से अस्त-व्यस्त हो जाता है।  | 
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| 10. | 
                                    किशोरों द्वारा अभिव्यक्त किये जाने वाले संवेग कैसे होते हैं ? | 
                            
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                                   Answer»  किशोरों द्वारा अभिव्यक्त किये जाने वाले संवेग प्रबल तथा अनियन्त्रित होते हैं।  | 
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| 11. | 
                                    शिशुओं द्वारा मुख्य रूप से कौन-कौन से संवेग अभिव्यक्त किये जाते हैं ? | 
                            
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                                   Answer»  शिशुओं द्वारा मुख्य रूप से भय, क्रोध तथा प्रेम नामक संवेग ही अभिव्यक्त किये जाते हैं।  | 
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| 12. | 
                                    बाल्यावस्था में होने वाले संवेगात्मक विकास का सामान्य विवरण प्रस्तुत कीजिए।याबाल्यावस्था में संवेगात्मक विकास पर प्रकाश डालिए। | 
                            
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                                   Answer»  बाल्यावस्था में संवेगात्मक विकास (Emotional Development in Childhood) बाल्यावस्था में प्रवेश करते-करते बालक के संवेगों में पर्याप्त स्थिरता आ जाती है। शैशवकाल में विकसित संवेगों की अभिव्यक्ति बाल्यावस्था में ही होती है। बालक में सामूहिकता का विकास हो जाता है और वह अपने मित्रों के प्रति प्रेम, घृणा, द्वेष तथा प्रतियोगिता की भावना का प्रकटीकरण करने लग जाता है। वह शैशवकाल के समान शीघ्र उत्तेजित नहीं होता, भय और क्रोध पर वह पर्याप्त नियन्त्रण स्थापित कर लेता है। इस अवस्था में बालक के संवेगात्मक विकास पर विद्यालय के वातावरण का विशेष प्रभाव पड़ता है। जिन विद्यालयों में पर्याप्त स्वतन्त्रता तथा स्वस्थ परम्पराओं का वातावरण होता है, वहाँ बालकों का संवेगात्मक विकास उचित दिशा में होता है। इसके विपरीत दमन, आतंक तथा कठोरता के वातावरण में ऐसा नहीं होता। इस अवस्था में बालक के संवेगों में पर्याप्त शिष्टता आ जाती है। वह अपने अध्यापक तथा अभिभावकों के आगे उन संवेगों को प्रकट नहीं होने देता, जिनको वे उचित नहीं समझते।  | 
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| 13. | 
                                    संवेगात्मक विकास को प्रभावित करने वाले चार मुख्य कारकों का उल्लेख कीजिए। | 
                            
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                                   Answer»  ⦁    शारीरिक स्वास्थ्य  | 
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| 14. | 
                                    किशोरावस्था में होने वाले संवेगात्मक विकास का सामान्य विवरण प्रस्तुत कीजिए। | 
                            
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                                   Answer»  किशोरावस्था में संवेगात्मक विकास किशोरावस्था में संवेगों में तीव्रता से परिवर्तन होते हैं। एक किशोर के लिए अपने संवेगों पर नियन्त्रण करना अत्यन्त कठिन होता है। उसमें प्रेम, दया, क्रोध तथा सहानुभूति आदि संवेग स्थायित्व धारण कर लेते हैं। किसी को दु:खी देखकर वह अत्यन्त भावुक हो उठता है तथा अत्याचार को देखकर एकदम क्रोधित हो उठता है। इस अवस्था में किशोर न तो बालक होता है और न प्रौढ़। ऐसी दशा में उसके अपने संवेगात्मक जीवन में वातावरण से अनुकूलन करने में विशेष कठिनाई होती है। वातावरण में अनुकूलन की असफलता से उसे निराशा होती है। यह निराशा उसे कभी घर से भागने के लिए प्रेरित करती है तो कभी आत्महत्या के लिए। इस अवस्था के किशोर-किशोरियों में काम-प्रवृत्ति का तीव्र विकास होता है, जिसके कारण उनके संवेगात्मक व्यवहार पर विशेष प्रभाव पड़ता है। वे दिवास्वप्न देखने लगते हैं तथा उनका अधिकांश समय कल्पना लोक में विचरण करने में व्यतीत होता है। प्रत्येक लड़का किसी लड़की के सम्पर्क में आकर भावुक हो उठता है। किशोर का संवेगात्मक विकास बहुत कुछ परिस्थितियों पर निर्भर करता है। अनुकूल परिस्थितियाँ उसे प्रोत्साहित करती हैं तथा प्रतिकूल परिस्थितियाँ उसे निराश करती हैं।  | 
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| 15. | 
                                    छोटे शिशुओं द्वारा किस प्रकार के संवेग अभिव्यक्त किये जाते हैं ? | 
                            
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                                   Answer»  छोटे शिशुओं द्वारा सरल तथा अस्पष्ट संवेग अभिव्यक्त किये जाते हैं।  | 
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| 16. | 
                                    संवेग की अभिव्यक्ति होती है(क) भाषा(ख) इंगित चेष्टा(ग) चेहरे का प्रदर्शन(घ) ये सभी | 
                            
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                                   Answer»  सही विकल्प है (घ) ये सभी  | 
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| 17. | 
                                    बाल्यावस्था में अभिव्यक्त होने वाले संवेग-(क) स्थायी होते हैं(ख) प्रबल होते हैं(ग) शीघ्र परिवर्तनीय होते हैं(घ) असहनीय होते हैं | 
                            
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                                   Answer»  सही विकल्प है (ग) शीघ्र परिवर्तनीय होते हैं  | 
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| 18. | 
                                    संवेगों को नियन्त्रित करने का उपाय है(क) दमन(ख) रेचन(ग) मार्गान्तीकरण एवं शोधन(घ) ये सभी | 
                            
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                                   Answer»  सही विकल्प है (घ) ये सभी  | 
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| 19. | 
                                    बालकों के संवेगों एवं संवेगात्मक व्यवहार की मुख्य विशेषताएँ क्या होती हैं ? | 
                            
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                                   Answer»  प्रौढ़ व्यक्तियों तथा बालकों के संवेगों में पर्याप्त अन्तर होता है। बालकों के संवेगों की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित होती हैं ⦁    बालकों द्वारा प्रकट किये जाने वाले संवेग प्राय: सरल, सीधे-सादे तथा क्षणिक होते हैं।  | 
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| 20. | 
                                    ‘संवेग’ की एक व्यवस्थित परिभाषा लिखिए। | 
                            
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                                   Answer»  “संवेग शब्द किसी भी प्रकार से आवेग में आने, भड़क उठने अथवा उत्तेजित होने की दशा को सूचित करता है।”  | 
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| 21. | 
                                    मुख्य रूप से किन कारणों से संवेगों की उत्पत्ति होती है ? | 
                            
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                                   Answer»  संवेगों की उत्पत्ति मुख्य रूप से मनोवैज्ञानिक कारणों से ही होती है।  | 
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| 22. | 
                                    संवेगात्मक विकास से क्या आशय है? संवेगात्मक विकास को प्रभावित करने वाले कारकों को उल्लेख कीजिए।याउन कारकों का उल्लेख कीजिए,जो संवेगात्मक विकास पर प्रभाव डालते हैं। | 
                            
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                                   Answer»  संवेगात्मक विकास का आशय (Meaning of Emotional Development) शिशु जन्म के उपरान्त क्रमश: संवेगों को प्रकट करना प्रारम्भ करता है। इस प्रकार से संवेगों के क्रमश: होने वाले विकास को ही संवेगात्मक विकास कहा जाता है। संवेगात्मक विकास की प्रक्रिया के अन्तर्गत व्यक्ति के संवेगों का स्वरूप क्रमश: सरल से जटिल की ओर अग्रसर होता है। संवेगात्मक विकास के अन्तर्गत ही संवेगों को नियन्त्रित करना भी सीखा जाता है। जैसे-जैसे बालक का संवेगात्मक विकास होता है, वैसे-वैसे उसके संवेगों में क्रमशः स्थिरता आने लगती है। संवेगात्मक विकास के ही परिणामस्वरूप व्यक्ति के संवेग उसकी आयु तथा सामाजिक मान्यताओं के अनुरूप स्वरूप ग्रहण करते हैं। व्यक्तित्व के सुचारु विकास के लिए संवेगात्मक विकास का सामान्य होना अनिवार्य है। संवेगात्मक विकास को प्रभावित करने वाले कारक बालक के संवेगात्मक विकास को निम्नलिखित कारक प्रभावित करते हैं|  | 
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| 23. | 
                                    संवेग का अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा परिभाषा निर्धारित कीजिए। संवेगों की मुख्य विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। | 
                            
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                                   Answer»  संवेग का अर्थ (Meaning of Emotion) ‘संवेग’ को अंग्रेजी में ‘Emotion’ कहते हैं। Emotion शब्द ‘Emovre’ से बना है, जिसका अर्थ है-उत्तेजित होना’। इस प्रकार संवेग की स्थिति में व्यक्ति उत्तेजित हो जाता है और उसका व्यवहार असामान्य हो जाता है। संवेग व्यक्ति के वैयक्तिक तथा आन्तरिक अनुभव हैं। प्रत्येक व्यक्ति सुख, दु:ख, पीड़ा तथा क्रोध का अनुभव करता है। जब तक ये अनुभव अपने साधारण रूप में रहते हैं, तब इन्हें राग या भाव (feeling) कहा जाता है, परन्तु जब किसी विशेष कारण या घटना से राग या भाव उग्र रूप धारण कर लेते हैं, तो उन्हें संवेग कहा जाता है। संवेग की परिभाषा (Definition of Emotion) विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने संवेगों को निम्नलिखित रूप में परिभाषित किया है संवेग की विशेषताएँ (लक्षण) (Characteristics of Emotion) संवेग की विभिन्न परिभाषाओं का विश्लेषण करने पर संवेग की निम्नांकित विशेषताओं पर प्रकाश पड़ता 1. भावनाओं से सम्बन्धित- डॉ० जायसवाल के अनुसार, “संवेगों का सम्बन्ध भावनाओं और वृत्तियों से होता है। बिना भावना के संवेग सम्भव नहीं है। भावनाएँ एक प्रकार से संवेगों की पृष्ठभूमि है अथवा संवेगों के गर्भ में भावनाओं का ही बल है। वास्तव में भावात्मक प्रवृत्ति का बढ़ा हुआ रूप ही संवेग है।  | 
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