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This section includes InterviewSolutions, each offering curated multiple-choice questions to sharpen your knowledge and support exam preparation. Choose a topic below to get started.

1.

नेत्रों की सफाई एवं सुरक्षा आप किस प्रकार करेंगी? या आँखों को कैसे सुरक्षित रख सकते हैं?

Answer»

नेत्र हमारे लिए प्रकृति की अमूल्य देन हैं। इनकी स्वच्छता एवं सुरक्षा सर्वोपरि है। हमें नेत्रों की सफाई एवं सुरक्षा के विषय में निम्नलिखित बातों का सदैव ध्यान रखना चाहिए

  1. नेत्रों को प्रातः उठने पर एवं रात्रि को सोने से पूर्व ठण्डे एवं स्वच्छ जल से धोना चाहिए।
  2. धूल अथवा इस प्रकार का कोई अन्य पदार्थ गिर जाने पर नेत्रों को मसलना अथवा रगड़ना नहीं चाहिए, बल्कि स्वच्छ जल से इन्हें धोना चाहिए।
  3. गन्दे कपड़े अथवा रूमाल से नेत्रों को कभी साफ नहीं करना चाहिए।
  4. नेत्रों को तेज धूप अथवा तेज रोशनी से बचाना चाहिए। इसके लिए रंगीन शीशों वाली ऐनक का प्रयोग किया जा सकता है।
  5. कम अथवा अधिक प्रकाश में नहीं पढ़ना चाहिए। पढ़ते समय प्रकाश यदि नेत्रों पर न पड़कर पुस्तक पर पड़े तो अधिक अच्छा रहता है।
  6. निकट अथवा दूर-दृष्टि में यदि कोई कमी हो, तो विशेषज्ञ की सलाह के अनुसार तुरन्त आवश्यक ऐनक प्रयोग की जाए।
  7.  किसी भी प्रकार के रोग की आशंका होने पर देर न करें, तुरन्त ही योग्य नेत्र-विशेषज्ञ से सम्पर्क करें।
2.

फर्श पर थूकना क्यों हानिकारक है?

Answer»

थूक और कफ में रोगाणु होते हैं; अतः फर्श पर थूकने से इनके अन्य व्यक्तियों तक फैलने .. की सम्भावना रहती है।

3.

दाँतों की नियमित सफाई न करने पर इनमें किस रोग के होने की आशंका रहती है?

Answer»

दाँतों की नियमित सफाई न करने पर इनमें पायरिया नामक घातक रोग के होने की आशंका रहती है।

4.

नाखूनों की सफाई क्यों आवश्यक है?

Answer»

नाखूनों की समुचित सफाई न होने पर उनमें गन्दगी तथा विभिन्न रोगों के रोगाणु एकत्र हो जाते हैं जो भोजन ग्रहण करते समय हमारे शरीर में प्रवेश करके रोग उत्पन्न कर सकते हैं।
अतः इन रोगों से बचाव के लिए नाखूनों की सफाई आवश्यक है।

5.

स्वास्थ्य के प्रत्यक्ष लक्षण क्या हैं?

Answer»

स्वस्थ व्यक्ति के शरीर का वजन उचित होता है, अस्थि-संस्थान सुविकसित तथा सन्तुलित होता है, आँखों तथा बालों में स्वाभाविक चमक होती है तथा शरीर की मांसपेशियाँ सुसंगठित तथा सुविकसित होती हैं।

6.

स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले घटक कौन-कौन से हैं?

Answer»

नियमबद्धता, शारीरिक स्वच्छता, व्यायाम, पौष्टिक एवं सन्तुलित आहार, विश्राम एवं निद्रा तथा स्वस्थ मनोरंजन स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले प्रमुख घटक अथवा कारक हैं।

7.

सोते समय किस प्रकार के वस्त्र पहनने चाहिए?

Answer»

सोते समय ढीले-ढाले सूती वस्त्र पहनने चाहिए।

8.

टिप्पणी लिखिए–उत्तम स्वास्थ्य के लिए नाखूनों की स्वच्छता।

Answer»

व्यक्तिगत शारीरिक स्वच्छता के अन्तर्गत नाखूनों की स्वच्छता का विशेष महत्त्व है। नाखून अँगुलियों के अग्रभाग में होते हैं। हम अपने सभी कार्य हाथों से करते हैं। भोजन पकाना एवं खाना भी हाथों द्वारा ही होता है; अत: हाथों को तथा विशेष रूप से नाखूनों को स्वच्छ रखना अनिवार्य होता है। यदि नाखून बढ़े हुए एवं गन्दे होते हैं, तो अनेक प्रकार से नुकसान हो सकता है। बढ़े हुए नाखूनों में गन्दगी भर जाती है तथा इस गन्दगी में तरह-तरह के रोगों के कीटाणु पनपने लगते हैं। जब हम भोजन ग्रहण करते हैं। तब भोजन के साथ ही ये कीटाणु भी हमारे मुँह में चले जाते हैं। इसलिए सामान्य रूप से नाखूनों को बढ़ने ही नहीं देना चाहिए। नाखूनों को सप्ताह में एक बार अवश्य ही काट देना चाहिए। नाखूनों को कैंची अथवा नेल-कटर द्वारा ही काटना चाहिए। कुछ लोग, विशेष रूप से बच्चे दाँतों से नाखून काटते हैं, यह बुरी एवं अस्वास्थ्यकर आदत है। अनेक फैशन-परस्त महिलाएँ नाखून बढ़ाकर रखती हैं। ऐसी महिलाओं के लिए यह अति आवश्यक सुझाव है कि वे नाखूनों की सफाई का विशेष रूप से ध्यान रखें अन्यथा स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

9.

वस्त्रों का स्वच्छ होना क्यों आवश्यक है?

Answer»

स्वच्छ वस्त्र स्वस्थ रहने में सहायक होते हैं तथा गन्दे वस्त्र स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। इसलिए वस्त्रों का स्वच्छ होना आवश्यक है।

10.

पेट की आँतों की सफाई के लिए किन बातों को ध्यान में रखना आवश्यक है?

Answer»

व्यक्तिगत स्वास्थ्य के लिए जहाँ बाहरी शारीरिक सफाई आवश्यक है वहीं अन्तरिक सफाई भी आवश्यक है। शरीर की आन्तरिक सफाई के लिए मुख्य रूप से पेट या आँतों की सफाई महत्त्वपूर्ण है। इसके लिए सर्वप्रथम आवश्यक है कि शौच की नियमित आदत डाली जाए। प्रात:काल सर्वप्रथम शौच के लिए जाना चाहिए। यदि किसी कारण से नियमित शौच न हो रहा हो, तो इसके लिए समुचित उपाय करने चाहिए। कब्ज़ से बचने के लिए आहार में हरी सब्जियाँ, फल तथा चोकरयुक्त आटे की रोटी का समावेश किया जाना चाहिए। इससे भी यदि कब्ज दूर न हो, तो सोते समय ईसबगोल की भूसी अथवा कोई अन्य हल्का रेचक पदार्थ लेना चाहिए।

11.

विद्यालय में खेल के मैदान होने से क्या लाभ हैं?

Answer»

विद्यालय में खेल के मैदान होने से निम्नलिखित लाभ हैं

  1. खेल के मैदान फुटबॉल, हॉकी, बैडमिण्टन, क्रिकेट, टैनिस वे बास्केट बॉल आदि खेलों के आयोजन के लिए आवश्यक हैं, जो कि व्यायाम के दृष्टिकोण से बहुत उपयोगी हैं।
  2. खेलों से शरीर सुन्दर, सुव्यवस्थित एवं सबले होता है।
  3. खेलों से परस्पर प्रेम व सहयोग की भावना में वृद्धि होती है।
  4. विद्यालयों में होने वाले खेलों से राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी विकसित होते हैं।
12.

निद्रा और विश्राम क्यों आवश्यक हैं?

Answer»

दैनिक कार्यों से होने वाली थकान को दूर करने के लिए तथा कार्यरत रहते हुए ऊतकों में हुई टूट-फूट की मरम्मत के लिए निद्रा और विश्राम की आवश्यकता होती है।

13.

व्यक्तिगत स्वास्थ्य से आप क्या समझती हैं? व्यक्तिगत स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए।

Answer»

व्यक्तिगत स्वास्थ्य का अर्थ

किसी व्यक्ति विशेष के शारीरिक, मानसिक एवं संवेगात्मक पक्षों के कल्याण को व्यक्तिगत स्वास्थ्य के रूप में जाना जा सकता है। अतः वह शारीरिक रूप से रोगमुक्त, बलशाली, कुशल एवं प्रफुल्ल होना चाहिए तथा मानसिक रूप से उत्साही, सक्रिय एवं विवेकशील होना चाहिए और इनके साथ-साथ उसका पारिवारिक एवं सामाजिक अनुकूलन सही होना चाहिए।

व्यक्तिगत स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारक

व्यक्तिगत स्वास्थ्य को विभिन्न कारक प्रभावित करते हैं। उत्तम स्वास्थ्य के लिए इन कारकों को ध्यान में रखना आवश्यक होता है। व्यक्तिगत स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले मुख्य कारक निम्नलिखित हैं.

(1) उचित पोषण:
व्यक्तिगत स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाला मुख्यतम कारक है–उचित पोषण। शरीर के स्वस्थ रहने के लिए पर्याप्त मात्रा में सन्तुलित आहार की आवश्यकता होती है। सन्तुलित आहार से शरीर का उत्तम पोषण होता है तथा व्यक्ति अभावजनित रोगों का शिकार नहीं होता। उचित पोषण की अवस्था में समस्त शारीरिक क्रियाएँ सुचारू रूप से चलती रहती हैं तथा शरीर का ढाँचा भी स्वस्थ एवं सुविकसित होता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि उत्तम स्वास्थ्य के लिए उचित पोषण अनिवार्य कारक है।

(2) रोगों से मुक्त रहना:
रोग से मुक्त रहने वाला व्यक्ति ही स्वस्थ कहलाता है। यदि कोई व्यक्ति अक्सर किसी-न-किसी रोग से ग्रस्त रहता है, तो उस व्यक्ति को स्वस्थ व्यक्ति नहीं कहा जा सकता, भले ही रोग साधारण ही क्यों न हो। उदाहरण के लिए-निरन्तर नजला-जुकाम रहने से भी व्यक्ति स्वस्थ नहीं कहला सकता।यहाँ यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि यदा-कदा रोगग्रस्त हो जाना। कोई विशेष बात नहीं है तथा इसे स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाला कारक नहीं माना जा सकता।

(3) नियमबद्धता:
दैनिक कार्यों को सदैव एक नियमित योजना के अनुसार करना चाहिए। उदाहरण के लिए-सुबह शीघ्र उठना, शौच जाना, नाश्ता-भोजन समय पर करना, नित्यप्रति व्यायाम करना तथा समय से सोना इत्यादि। अनियमित जीवन का स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। यहाँ यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि स्वस्थ व्यक्ति अपनी दिनचर्या के नियमों का निर्धारण स्वयं करता है। तथा उनका स्वेच्छा से पालन करता है। बाहरी रूप से थोपे हुए नियमों का कोई महत्त्व नहीं है।

(4) शारीरिक स्वच्छता:
शरीर स्वच्छ रखने से स्फूर्ति बनी रहती है, मन प्रसन्न रहता है तथा रोगों की सम्भावना बहुत कम रहती है। शारीरिक स्वच्छता के लिए त्वचा की स्वच्छता, मुँह एवं दाँतों की स्वच्छता, नाखूनों की स्वच्छता, बालों की स्वच्छता, नेत्रों एवं नाक-काने की स्वच्छता आवश्यक है। नियमित शारीरिक स्वच्छता का व्यक्तिगत स्वास्थ्य से घनिष्ठ सम्बन्ध है। शारीरिक स्वच्छता के अभाव में व्यक्ति का स्वस्थ रह पाना प्रायः कठिन हो जाता है। शारीरिक स्वच्छता के साथ-साथ शरीर पर धारण किए जाने वाले वस्त्रों की स्वच्छता भी शारीरिक स्वास्थ्य के लिए एक अनिवार्य कारक है।

(5) नियमित व्यायाम करना:
शरीर को स्वस्थ एवं स्फूर्तियुक्त बनाए रखने के लिए नियमित व्यायाम करना आवश्यक है। व्यायाम से मांसपेशियों की क्रियाशीलता एवं कार्यक्षमता में वृद्धि होती है। व्यायाम का व्यक्ति के पाचन-तन्त्र, श्वसन तन्त्र तथा रुधिर परिसंचरण तन्त्र पर भी अच्छा प्रभाव पड़ता है। स्पष्ट है कि नियमित व्यायाम करना भी स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाला कारक है।

(6) विश्राम एवं निद्रा:
लगातार कार्य करने से शरीर थक जाता है तथा इसकी कार्यक्षमता कम हो जाती है। पुनः शक्ति प्राप्त करने के लिए विश्राम करना अत्यधिक आवश्यक है। निद्रा सबसे अच्छे प्रकार का विश्राम है। अत: प्रत्येक व्यक्ति को उपयुक्त एवं आवश्यक समय के लिए निद्रा लेनी चाहिए।

(7) मादक वस्तुओं से दूर रहना:
अफीम, भाँग, चरस, कोकीन, शराब व तम्बाकू इत्यादि मादक पदार्थ स्वास्थ्य को कुप्रभावित करते हैं। इनका आवश्यकता से अधिक सेवन करने से शारीरिक बल घटता जाता है तथा अनेक घातक रोगों की आशंका हो जाती है। अतः स्वस्थ रहने के लिए तथा पारिवारिक एवं सामाजिक हित में मादक पदार्थों से दूर रहना ही विवेकपूर्ण एवं कल्याणकारी है।

(8) स्वस्थ मनोरंजन:
व्यक्तिगत स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाला एक महत्त्वपूर्ण कारक स्वस्थ मनोरंजन भी है। मनोरंजन द्वारा व्यक्ति के जीवन की ऊब दूर होती है तथा व्यक्ति अपने अवकाश के समय को व्यक्तित्व के विकास के लिए उपयोग में लाता है। स्वस्थ मनोरंजन से व्यक्ति का शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य उत्तम बनता है।

14.

व्यक्तिगत स्वास्थ्य के लिए मनोरंजन का महत्त्व स्पष्ट कीजिए।

Answer»

व्यक्तिगत स्वास्थ्य में मानसिक स्वास्थ्य भी निहित होता है। मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाला एक मुख्य कारक है—मनोरंजन। मनोरंजन के अर्थ को डॉ० नक्खुड़ा ने इन शब्दों में स्पष्ट किया है, “मनोरंजन वह अवकाशकालीन कार्य है जो व्यक्ति के तत्कालीन सन्तोष के लिए चुना जाता है। और जो व्यक्तियों को उनके अवकाश का सृजनात्मक उपयोग तथा खोई हुई शक्ति की पुनः प्राप्ति द्वारा आत्माभिव्यक्ति तथा आत्मानुभूति का अवसर देता है।” स्पष्ट है कि व्यक्ति के लिए स्वस्थ मनोरंजन का विशेष महत्त्व है। स्वस्थ मनोरंजन से व्यक्ति का मानसिक तथा शारीरिक स्वास्थ्य उत्तम बनता है। स्वस्थ मनोरंजन द्वारा व्यक्ति का चरित्र भी संगठित होता है। स्वस्थ मनोरंजन द्वारा व्यक्ति का चरित्र सुदृढ़ बनता है तथा आगे विभिन्न सद्गुणों का भी विकास होता है।

15.

टिप्पणी लिखिए–व्यक्तिगत स्वास्थ्य के लिए वस्त्रों की स्वच्छता।

Answer»

व्यक्तिगत स्वास्थ्य तथा शारीरिक स्वच्छता के लिए जहाँ एक ओर शरीर के विभिन्न अंगों को स्वच्छ रखना अनिवार्य है, वहीं शरीर पर धारण करने वाले वस्त्रों की स्वच्छता का भी ध्यान रखना आवश्यक है। वस्त्र चाहे जो भी पहना जाए, इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वह स्वच्छ हो। गन्दा वस्त्र कभी नहीं पहनना चाहिए। गन्दे वस्त्र धारण करने से शारीरिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसके अतिरिक्त यह भी एक तथ्य है कि गन्दे वस्त्र धारण करने वाले व्यक्ति को कोई भी पसन्द नहीं करता तथा अपने पास बैठाना भी नहीं चाहता। साफ-सुथरे वस्त्र धारण करने से व्यक्ति का चित्त प्रसन्न रहता है तथा व्यक्ति चुस्त भी रहता है। वस्त्रों की सफाई के लिए वस्त्रों को नियमित रूप से धोना । आवश्यक होता है। गर्म कपड़ों को बीच-बीच में ब्रश से झाड़कर भी साफ किया जा सकता है।

16.

व्यायाम से आप क्या समझती हैं? व्यायाम के महत्त्व एवं आवश्यक नियमों का वर्णन कीजिए।याव्यायाम के महत्व को स्पष्ट करते हुए कुछ उपयोगी व्यायामों का उल्लेख कीजिए।

Answer»

व्यायाम का अर्थ

व्यायाम का अर्थ है-“वे शारीरिक क्रियाएँ एवं गतिविधियाँ जो मनुष्य के समस्त अंगों के पूर्ण एवं सन्तुलित विकास में सहायक होती हैं।” व्यायाम के अन्तर्गत व्यक्ति को शरीर के विभिन्न अंगों की विभिन्न प्रकार से गति करनी पड़ती है। व्यायाम के विभिन्न प्रकार हो सकते हैं, जैसे कि सुबह-शाम को घूमना, भागना-दौड़ना, दण्ड-बैठक लगाना, मलखम्भ, योगाभ्यास अथवा कोई खेल खेलना। वर्तमान में सन्तुलित व्यायाम के लिए विभिन्न मशीनें भी तैयार कर ली गई हैं।

व्यायाम की महत्त्व

व्यक्तिगत स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाला एक मुख्य कारक है–नियमित रूप से व्यायाम करना। नियमित रूप से व्यायाम करने के अनेक लाभ हैं, जिनमें निम्नलिखित अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हैं

  1. व्यायाम करने से रक्त संचार तीव्र गति से होता है, जिसके फलस्वरूप मांसपेशियाँ पुष्ट होती हैं। तथा शरीर में नई स्फूर्ति उत्पन्न होती है।
  2. व्यायाम करते समय श्वास क्रिया तेज होती है, जिससे शरीर को अधिक मात्रा में ऑक्सीजन प्राप्त होती है।
  3. व्यायाम करने से पाचन तन्त्र की मांसपेशियाँ अधिक क्रियाशील हो जाती हैं, इससे पाचन-शक्ति में वृद्धि होती है तथा अधिक भूख लगती है।
  4. व्यायाम करने से पसीना अधिक निकलता है, परिणामस्वरूप शरीर के विजातीय तत्त्व शरीर से बाहर निकल जाते हैं।
  5. नियमित व्यायाम करने से अधिक प्यास लगती है। अधिक पानी पीने से शरीर की आन्तरिक सफाई भी अधिक होती है।
  6. व्यायाम करने से रक्त को परिभ्रमण सारे शरीर में तीव्र गति से होता है। इससे मस्तिष्क में भी रक्त का संचार अधिक होता है। अतः मस्तिष्क की कार्यक्षमता में लाभकारी वृद्धि होती है।
  7. व्यायाम करने से शरीर सुन्दर, सुडौल एवं कान्तिमयं होता है।

व्यायाम के लिए आवश्यक नियम

  1. व्यायाम नित्य प्रति नियमित रूप से करना चाहिए।
  2. व्यायाम शौच-निवृत्ति के पश्चात् मुँह वे दाँतों की सफाई करके बिना कुछ खाए-पीए करना चाहिए।
  3. व्यायाम सदैव खुली हवा में ढीले वस्त्र पहनकर करना चाहिए।
  4. व्यायाम सदैव अपनी क्षमता के अनुसार ही करना चाहिए।
  5. योगाभ्यास व कठिन व्यायाम सदैव उपयुक्त प्रशिक्षक की देख-रेख में करने चाहिए। पूर्णरूप से निपुण हो जाने पर इन्हें स्वयं किया जा सकता है।
  6. व्यायाम के तुरन्त बाद पानी कभी नहीं पीना चाहिए। कुछ समय उपरान्त सदैव दूध एवं पौष्टिक अल्पाहार लेना चाहिए।
  7. रोगी अथवा रोग के कारण दुर्बल हुए व्यक्ति को व्यायाम नहीं करना चाहिए।

कुछ उपयोगी व्यायाम

() प्रातःकाल दौड़ना टहलना:
प्रौढ़ों व वृद्ध पुरुषों के लिए टहलना सर्वश्रेष्ठ व्यायाम है। इससे उन्हें शुद्ध वायु मिलती है तथा शरीर चुस्त रहता है। बालकों एवं युवा वर्ग के लिए नित्य प्रति दौड़ना एक उपयोगी व्यायाम है। इससे शरीर की मांसपेशियाँ पुष्ट होती हैं, पाचन क्रिया में वृद्धि होती है तथा शरीर में रक्त का संचार तीव्र गति से होता है।

() नियमित योगाभ्यास:
योग की विभिन्न क्रियाएँ लगभग सभी आयु वर्गों के पुरुषों एवं . महिलाओं के लिए उपयोगी रहती हैं। उदाहरण के लिए प्राणायाम फेफड़ों को स्वस्थ रखने के लिए एक उत्तम व्यायाम है। इसी प्रकार अलग-अलग शारीरिक भागों के लिए अलग-अलग योगासन होते हैं। इस विषय पर अनेक पुस्तकें सुलभ हैं तथा टेलीविजन पर भी अनेक बार प्रायोजित कार्यक्रम दिखाए जाते हैं, परन्तु किसी उपयुक्त शिक्षक की देख-रेख में योगासन करना सदैव अच्छा व लाभप्रद रहता है।

(ग) खेल-कूद में भाग लेना:
फुटबॉल, हॉकी, बैडमिण्टन, टेनिस, क्रिकेट व तैराकी इत्यादि खेल; व्यायाम के दृष्टिकोण से अत्यधिक उपयोगी हैं। इनसे शरीर सुन्दर, सुविकसित एवं सबल होता है। तथा इसकी कार्यक्षमता में भी वृद्धि होती है।

17.

शराब में मुख्य मादक अवयव कौन-सा होता है?

Answer»

शराब में मुख्य मादक अवयव ऐल्कोहॉल होता है।

18.

सूर्य के प्रकाश की वस्तुओं पर क्या प्रभाव पड़ता है?

Answer»

सूर्य के प्रकाश के वस्तुओं पर पड़ने वाले प्रमुख प्रभाव निम्नलिखित हैं

  1. अन्धकार में अनेक प्रकार के कीड़े-मकोड़े व कीटाणु पनपते हैं। सूर्य का प्रकाश अथवा धूप इन हानिकारक जीव-जन्तुओं को नष्ट करती है। अतः खाद्य पदार्थों; जैसे कि गेहूँ, चना, मक्का इत्यादि को संग्रहीत करने से पूर्व धूप में रखकर अच्छी प्रकार से सुखा लेना चाहिए।
  2. सूर्य का प्रकाश घर की सीलन को नष्ट करता है।
  3. सूर्य के प्रकाश में लेटने से चर्म रोग होने की कम सम्भावना रहती है।
  4. सूर्य के प्रकाश में शरीर में विटामिन ‘डी’ उत्पन्न होता है जो कि एक आवश्यक पोषक तत्त्व है।
  5.  सूर्य का तेज प्रकाश नेत्रों के लिए हानिकारक होता है; अतः रंगीन ऐनक लगाकर आँखों का . बचाव करना चाहिए।
19.

व्यक्तिगत स्वास्थ्य के एक उपाय के रूप में विश्राम तथा निद्रा का वर्णन कीजिए।याविश्राम तथा निद्रा की क्या आवश्यकता है? इसके मुख्य नियमों का वर्णन कीजिए।

Answer»

विश्राम एवं निद्रा की आवश्यकता व्यक्तिगत स्वास्थ्य के लिए व्यायाम एवं शारीरिक श्रम के साथ-साथ विश्राम भी नितान्त आवश्यक होता है। वास्तव में हम जो भी शारीरिक अथवा मानसिक कार्य करते हैं, उससे हमारे शरीर में थकान आ जाती है। यह थकान क्या है? वास्तव में शारीरिक परिश्रम करते समय हमारे शरीर में अनेक विषैले तत्त्व एकत्र हो जाते हैं। ये तत्त्व ही हमारी माँसपेशियों को थकाते हैं। इसके अतिरिक्त कार्य करते समय हमारे शरीर के ऊतक अधिक टूटते-फूटते रहते हैं। कार्य के दौरान इनकी मरम्मत नहीं हो पाती, अतः शरीर के उत्तम स्वास्थ्य के लिए इन ऊतकों की मरम्मत तथा विषैले तत्त्वों का बाहर निकलना अनिवार्य होता है। इस उद्देश्य के लिए विश्राम अति आवश्यक है। विश्राम का सर्वोत्तम उपाय है-निद्रा।

विश्राम एवं निद्रा के नियम

अनियमित विश्राम एवं निद्रा स्वास्थ्य के लिए हानिकारक सिद्ध होते हैं। विश्राम व निद्रा के सामान्य नियम निम्नलिखित हैं

  1. अधिक शारीरिक श्रम अथवा मानसिक कार्य के फलस्वरूप होने वाली थकान को दूर करने के लिए विश्राम तथा निद्रा ही एकमात्र विकल्प है।
  2. दोपहर के खाने के पश्चात् कुछ समय के लिए विश्राम करना स्वास्थ्य के लिए हितकर रहता है।
  3. रात्रि भोजन के लगभग एक घण्टे के पश्चात् सोना चाहिए।
  4. सोने का बिस्तर स्वच्छ एवं कोमल होना चाहिए।
  5. सदैव खुले स्थान में सोना चाहिए अथवा सोते समय सोने के कमरे के दरवाजे, खिड़कियाँ व रोशनदान खुले रखने चाहिए।
  6. (सोने से पूर्व ऋतु के अनुकूल ठण्डे अथवा गर्म जल से मुँह, हाथ व पैर धो लेने चाहिए।
  7. सदैव ढीले-ढाले सूती वस्त्र पहनकर सोना चाहिए।

नींद का महत्त्व
विश्राम का सबसे उत्तम उपाय नींद है। नींद व्यक्ति के लिए वरदान है। निद्रा के समय हमारे शरीर में कार्य के परिणामस्वरूप हुई टूट-फूट ठीक हो जाती है तथा हमारा शरीर नई ऊर्जा एवं स्फूर्ति अर्जित कर लेता है। पर्याप्त नींद ले लेने से व्यक्ति एकदम तरो-ताजा एवं स्वस्थ हो जाता है। नींद के समय हमारे शरीर के सभी अंगों को विश्राम मिलता है। नींद के समय हमारी नाड़ी एवं श्वास की गति भी कुछ मन्द हो जाती है तथा रक्तचाप भी घट जाता है, अतः सम्बन्धित अंगों को भी विश्राम मिल जाता है। यदि किसी व्यक्ति को पर्याप्त नींद नहीं आती है, तो उसका जीवन कठिनाइयों से भर जाता है। नींद के अभाव में व्यक्ति दुर्बल हो जाता है, स्वभाव में चिड़चिड़ापन आ जाता है तथा चेहरे पर उदासी छा जाती है। इस प्रकार स्पष्ट है कि स्वस्थ व्यक्ति के लिए पर्याप्त शान्त नींद अति आवश्यक एवं महत्त्वपूर्ण है।

20.

मादक द्रव्य कौन-कौन से होते हैं? इनका शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है? सोदाहरण वर्णन कीजिए।

Answer»

प्रमुख मादक द्रव्य तथा उनका शरीर पर प्रभाव,

सभी मादक द्रव्य अनिवार्य रूप से स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं, परन्तु फिर भी अनेक पुरुष एवं स्त्रियाँ इनका सेवन करते हैं। विभिन्न राजकीय एवं व्यक्तिगत माध्यमों के द्वारा मादक द्रव्यों से होने वाली हानियों के विषय में समय-समय पर जानकारियाँ दी जाती हैं, परन्तु आश्चर्य की बात है कि मादक द्रव्यों का सेवन करने वाले मनुष्यों की संख्या में कोई विशेष कमी होती नहीं दिखाई पड़ती है। कुछ प्रमुख मादक द्रव्य निम्नलिखित हैं

(1) अफीम:
यह पोस्त के पौधे से प्राप्त होने वाला एक तीव्र मादक पदार्थ है। पोस्त के कच्चे फलों में चाक लगाकर निकलने वाले दूध अथवा लेटेक्स को सुखाकर अफीम प्राप्त की जाती है। यद्यपि अफीम की खेती एवं व्यापार पूर्ण रूप से राजकीय नियन्त्रण में किया जाता है फिर भी इसकी तस्करी न केवल हमारे देश में, बल्कि प्रायः सम्पूर्ण विश्व में होती है। अफीम को एक मादक पदार्थ के रूप में अनेक प्रकार से उपयोग किया जाता है। कुछ लोग चूर्ण के रूप में खाते हैं, तो कुछ अन्य इसे सँघकर नशा करते हैं। गरीब लोग प्रायः पोस्त के बेकार फलों को पानी में उबालकर इनके संत का सेवन कर नशा प्राप्त करते हैं। अफीम के निरन्तर प्रयोग से होने वाले शारीरिक कुप्रभाव निम्नलिखित हैं

  1. अफीम का सेवन करने से मनुष्य सुस्त एवं आलसी हो जाता है।
  2. अफीम के सेवन से शरीर पीला पड़ जाता है, रक्त की कमी हो जाती है तथा शारीरिक शक्ति क्षीण हो जाती है।
  3. अफीम का सेवन नेत्रों की ज्योति पर कुप्रभाव डालता है।

(2) भाँग:
भाँग के पौधे की पत्तियों को पीसकर प्रयोग करने योग्य भाँग प्राप्त की जाती है। पत्तियों की इस चटनी को सीधे खाया जाता है। कुछ लोग ठण्डाई बनाकर इसका सेवन करते हैं। भाँग से होने वाली हानियाँ निम्नलिखित हैं

  1. मानसिक सन्तुलन कुप्रभावित होता है।
  2. शरीर सुस्त हो जाता है।
  3. भाँग का सेवन, आँतों को दुर्बल व शुष्क बनाता है, जिसके फलस्वरूप पाचन शक्ति कुप्रभावित होती है।

(3) चरस गाँज़ा:
भाँग के पौधों से प्राप्त होने वाले मादक द्रव्य अत्यन्त नशीले पदार्थ हैं। इनका सेवन सिगरेट-बीड़ी एवं चिलम में तम्बाकू के साथ मिलाकर किया जाता है। इनका शरीर पर होने वाला प्रभाव भाँग के समान परन्तु भाँग से कई गुना अधिक होता है।

(4) कोकीन:
यह भी पत्तियों से प्राप्त होने वाला मादक पदार्थ है। कोकीन का सेवन करने वाले मनुष्यों का शरीर एवं सभी इन्द्रियाँ धीरे-धीरे शिथिल पड़ने लगती हैं तथा अन्त में शरीर अत्यधिक दुर्बल हो जाता है।

(5) तम्बाकू:
तम्बाकू के पौधे की पत्तियों को विशिष्ट प्रक्रियाओं द्वारा प्रयोग करने योग्य बनाया जाता है। तम्बाकू का प्रयोग प्राय: तीन प्रकार से किया जाता है। इसे सुपारी, कत्था, पान इत्यादि के साथ खाया जाता है। सिगरेट, बीड़ी व हुक्का इत्यादि के रूप में तम्बाकू का प्रयोग करे धूम्रपान किया जाता है। तथा नसवार के रूप में सुँघने में भी इसका प्रयोग किया जाता है। तम्बाकू में निकोटिन नामक विषैला पदार्थ होता है। तम्बाकू से होने वाली हानियाँ निम्नलिखित हैं

  1. धूम्रपान करने से नाक, गले तथा फेफड़ों में शुष्कता आती है, जिसके फलस्वरूप खाँसी व कफ बनने की बीमारी उत्पन्न हो जाती है।
  2. पाचन शक्ति कुप्रभावित होती है।
  3. तम्बाकू के निरन्तर प्रयोग से निद्रा कम आती है।
  4. इसके सेवन से हृदयगति तीव्र हो जाती है, जिसके फलस्वरूप उच्च रुधिर चाप रहने लगता है।
  5. तम्बाकू में पाया जाने वाला विषैला पदार्थ निकोटिन रुधिर केशिकाओं को संकुचित करता रहता है, जिसके परिणामस्वरूप हृदय रोगों के होने की सम्भावनाओं में वृद्धि होती है।
  6. तम्बाकू का अधिक सेवन मस्तिष्क को भी कुप्रभावित करता है।
  7. आधुनिक वैज्ञानिक खोजों द्वारा यह सिद्ध हो चुका है कि तम्बाकू का सेवन करने वाले मनुष्यों में कैंसर जैसा असाध्य रोग अधिक होता है।

(6) मदिरा या शराब:
मदिरा का मादक अवयव ऐल्कोहॉल होता है। विभिन्न प्रकार की मदिरा में ऐल्कोहॉल की प्रतिशत मात्रा भिन्न-भिन्न होती है। उदाहरण के लिए–बीयर में ऐल्कोहॉल 7% तक तथा अंग्रेजी व देशी मदिरा में 42% तक होता है। मदिरा एक मूल्यवान् मादक पेय है, जिसके सेवन की आदत पड़ जाने पर अच्छे-अच्छे परिवारों की आर्थिक व्यवस्था चरमरा जाती है। मदिरापान से शरीर परे | होने वाले कुप्रभाव निम्नलिखित हैं

  1. मदिरापान का मस्तिष्क पर सीधा प्रभाव पड़ता है। कम मात्रा में यह मादकता वे उत्तेजना उत्पन्न करती है। अधिक मात्रा में यह केन्द्रीय तन्त्रिका-तन्त्र को दुर्बल कर देती है तथा स्मरण-शक्ति एवं नेत्र-ज्योति को कुप्रभावित करती है।
  2. मदिरापान उच्च रक्तचाप उत्पन करता है, जिससे हृदय रोगों की सम्भावनाओं में वृद्धि होती है।
  3. मांसपेशियाँ धीरे-धीरे शिथिल एवं दुर्बल हो जाती हैं।
  4. पाचन-तन्त्र दुर्बल एवं विकृत हो जाती है।
  5. अधिक मदिरापान से गुर्दो की कार्यक्षमता क्षीण हो जाती है।
  6. शरीर में विटामिन्स की कमी हो जाती है; अतः रोग-प्रतिरोधक शक्ति क्षीण हो जाती है।
  7. गर्भवती महिला के मदिरापान करने से गर्भस्थ शिशु विकृत हो सकता है।
21.

दैनिक कार्यों से हुई थकान को दूर करने के लिए(क) कार्य करना चाहिए(ख) विश्राम करना चाहिए(ग) व्यायाम करना चाहिए(घ) भोजन करना चाहिए।

Answer»

सही विकल्प है (ख) विश्राम करना चाहिए